मिल गयी हुनर को नई पहचान – अर्चना सिंह :  Moral Stories in Hindi

सोनिया ने अपनी ननद रम्भा से फोन पर कहा…”दीदी ! मम्मी जी दिन भर घर पर बोर होती रहती हैं, क्यों न उनके कला और शौक को बढ़ावा देने और उनका समय अच्छे से व्यतीत कराने के लिए कोई आर्ट गैलरी या आर्ट कॉर्नर खोल दें ? उनका मन लगा रहेगा । अपने पास हैदराबाद बुलाना चाहती हूँ

तो उनका दिल ही नहीं लगता ।अभी पिछले साल आपके मनीष भैया ने भी कहा था…आ जाइये मम्मी , आपका टाइम पास हो जाएगा , आपके और सोनिया के लिए एक छोटा सा बिजनेस खड़ा कर दूँगा, न तो पापा जी आने को तैयार होते हैं ना ही मम्मी जी !

सोनिया की बात पूरी होने पर रम्भा ने कहा…”मैं इस गर्मी की छुट्टियों में बनारस मम्मी के पास आऊँगी, तब सब मिलकर योजना बनाएँगे कैसे क्या करना है । बस दो महीने की ही तो बात है । ठीक है कहकर जैसे ही सोनिया ने फोन रखना चाहा…फिर से रम्भा ने बात छेड़ते हुए कहा…”अच्छा भाभी !

मम्मी के जो बनाए हुए पोस्टर, वॉल आर्ट, पेंटिंग और सारे पेंटिंग, एम्ब्रॉइडरी वाली चीजें थीं आपके पास है ना सम्भाल के रखी हुई ? इस बार सोचती हूँ आऊँगी तो उसका भी कुछ उपाय सोचेंगे ।”जी दीदी ! सब मैंने अपने पास रखे हैं , पर आप क्या करेंगी उन चीजों का ? पिछली बार तो आपने रेशम

पेंटिंग, सोलार पेंटिंग और ऊन से बने हुए शॉल ले जाने से मना कर दिए थे ये बोलकर कि आजकल ऐसे पुराने और देहाती चीजों को कौन पूछता है ? “ओफ्फो ! मैं अपने लिए नहीं मांग रही भाभी, अब

ज़माना कहाँ से कहाँ पहुँच गया है । घर से बने हुए हाथ की चीजों को कौन पूछता है अब ? मम्मी को यही परेशानी थी ना कि बेड में पूरा सामान भरा रहता है, अब मैंने उपाय ढूँढ लिया है । आकर आराम से सारी बातें करूँगी इन सबके बारे में, तब तक थोड़े काम निपटा लूँ ? 

“अच्छा दीदी ! एक मिनट सुनिए ज़रा ! आपने दीवार से मम्मी जी के बनाए हुए  सारे पोस्टर और आर्ट क्यों हटवा दिए थे ?

अब खीझते हुए रम्भा ने कहा…”आपको आजकल के ज़माने का पता ही नहीं है भाभी, मेरी सारी सहेलियों के घर जाती थी तो अच्छे – अच्छे बाहर के बने हुए पेंटिंग सजे होते थे, और मम्मी ने पुराने ज़माने की तरह सारे आर्ट घर मे सजा दिए थे, बेज्जती तो मेरी होती थी न ..? मुझे नहीं पसन्द आता था इसलिए हटवा दिए ? अब और कुछ पूछना है भाभी, या रखूं फोन ? बहुत व्यस्त हूँ अभी । 

“ठीक है रम्भा दीदी ! बाय बोलकर सोनिया ने फोन रख दिया ।

अब सोनिया ने अपनी सासू माँ अल्पना जी को फोन करके कहा…”मम्मी जी ! आपके लिए एक अच्छी खबर है । अल्पना जी ने हँसते हुए कहा…”हाँ बहू ! रम्भा से बात हुई अभी, वो इस बार छुट्टियाँ यहीं मायके में बिताएगी, अभी बताया उसने । 

“नहीं मम्मी जी ! उत्सुकता से सोनिया ने कहा…रम्भा दीदी का आना अलग बात है, लेकिन मैंने आपके बोरिंग समय को खास बनाने के लिए कुछ अच्छा सोच रखा है । बहुत सारी बातें करनी है आपसे । मनीष का भी वर्क फ्रॉम होम चल रहा है, चीकू की छुट्टियाँ भी अगले महीने से होने वाली हैं तभी आएँगे हम तो 1 महीने रुकेंगे । “क्या सोच रखा है बहू ! बता भी दो, और वैसे भी तुम्हारा चीकू चार साल का तो है, कुछ करने ही नहीं देगा हमें । 

एक महीने बाद….

सोनिया अपने पति मनीष और बेटे चीकू के साथ बनारस पहुँच चुकी थी । अल्पना जी ने सोनिया और मनीष के पसन्द के सारे व्यंजन बनाए थे । मम्मी जी पापा जी के चरण स्पर्श करके नहा धोकर सोनिया ने सबको खाना परोसा और सबके साथ खुद भी खा ली । अब अल्पना जी अपने पति मुकेश जी के साथ चीकू को खेलाने में लग गईं । ऐसे ही धीरे – धीरे दिन महीने बीतने को आए । आज रम्भा के भी

आने का दिन आ गया । अचानक सुबह सोनिया को याद आया तो उसने अल्पना जी से कहा…”मम्मी जी ! आपने हाथ से बनाए हुए जो सारे पेंटिंग मेजपोश, और बोर्ड पेंटिंग रखे थे वो सारे निकाल दीजिए, मैं देखना चाहती हूं ।आश्चर्य भाव से अल्पना जी ने पूछा…अब उन सब चीजों का क्या करना है बेटा !

छोड़ ना, याद है तुझे …पिछली बार जब रम्भा आयी थी तो उसने सारे हटवा दिए थे तो मैंने स्टोर रूम में डाल दिया । अब कौन पूछता है उन चीजों को ? रम्भा पहुँचने वाली होगी, देखेगी तो फिर से बिगड़ेगी । मम्मी ने अभी तक कबाड़ नहीं हटाया । बोलते हुए अल्पना जी अपने मन के भाव छिपाते हुए हँसने लगी ।

सोनिया स्टोर रूम में जाकर सारे सामानों को अच्छे से कलीनर से साफ करके चमका रही थी और एक – एक करके बाहर रखती जा रही थी । बाहर से आवाज़ आयी …”सोनिया भाभी ! मैं आ गयी । अल्पना जी चीकू को लेकर लॉन में झूला झुलाने में लगी हुई थीं । जब रम्भा को अपनी बातों का उत्तर कहीं से नहीं मिला तो उसे सीढी वाले पास के स्टोर रूम की तरफ से आवाज़ आयी…”रम्भा ने भाभी

को नीचे से ऊपर देखते हुए कहा..”ये क्या भाभी ? आप इस कबाड़ रूम में क्या कर रही हैं ? “अरे ! आप कब आईं दीदी, पता ही नहीं चला । मम्मी जी के सारे सामानों को सोचती हूँ साफ करके रख दूँ । तभी अल्पना जी अंदर घुसीं और रम्भा ने पैर छूते हुए कहा…”क्या मम्मी !  आज तो मेरे बिन बोले ही

आपने मेरी बात सुन ली । “कौन सी बात बेटा ? पहले मुझे एक कप चाय चाहिए । “नहीं पहले आप नहा लीजिए दीदी, फिर हम फुर्सत से बैठ के बातें करेंगे तो मैं चाय बना लूँगी । मनुहार करते हुए सोनिया ने बोला । तब तक मुकेश जी ने स्वयं चाय लाकर सबके लिए पेश किया । चाय खत्म करते ही रम्भा ने कहा…मज़ा आ गया पापा ! अल्पना जी की तरफ नज़रें करते हुए बोल रही थी रम्भा…”मम्मी !

मेरे घर मे जो बाई आती है ना काम करने उसकी बेटी की शादी है, तो मैं इस बार प्लान करके आयी हूँ कि आपके सारे कूड़े – कबाड़ पुरानी बनी हुई चीजें उसे दे दूँगी । उसके यहाँ बेटियों की शादी में ये सारे सामान देने का बहुत प्रचलन है । आपका घर भी साफ हो जाएगा ।

“दीदी ! जिन्हें आप कूड़ा कबाड़ कह रही हैं ना दरअसल वो मम्मी के हाथ का हुनर है । मैं मम्मी के हौसलों को उनके मेहनत को पंख देना चाहती हूँ ताकि मम्मी का मन लगा रहे, उत्साह बना रहे और शौक भी पूरे होते रहें । सोनिया ने थोड़े ऊँचे स्वर में कहा  ।

भाभी ! इन सब चीजों के लिए क्या लंबी लंबी बातें आप कर रही हैं, ये कोई काम आने वाली चीज नहीं । आप भी तो साफ करके यहाँ से ले जाएंगी ताकि अपनी बाई को दे सकें । झल्लाते हुए रम्भा ने कहा और अपनी मम्मी का मुँह देखते हुए बोली…”आप फैसला करिए मम्मी ! हर बार आप मुझसे नाराज होती थीं जब मैं आपको नहीं सजाने देती थी तो । अब तो उपाय भी ढूँढ लिया । 

सोनिया को रम्भा के ऊँचे स्वर का मतलब समझ आ रहा था   । उसने रम्भा के पति हर्ष को कहा..”जीजा जी , दीदी ! आपलोग खाइए फिर बात करेंगे । “रम्भा ने अंदर कमरे में हर्ष को खाना देने का इशारा किया । अब सोनिया आकर बोलने लगी रम्भा को प्यार से बेड पर बिठाते हुए..”देखिए दीदी ! मैं इनमें से कोई सामान बाई को देने के लिए नहीं ले जा रही । मैंने और मनीष ने मम्मी के लिए एक ऑनलाइन आर्ट गैलरी साइट देखा है  , हम मम्मी को धीरे धीरे सिखाएंगे आर्डर लेना, पैसे रिसीव

करना  और बाकी के सभी क्रियाकलाप । आजकल हैंड मेड चीजें बहुत बिकती हैं, शौक से लोग खरीदते हैं । मैंने अच्छे से जानकारी लिया है अपनी पड़ोसन उज्ज्वला से, वो यही काम करती है, उससे मैंने सारी जानकारी जुटाई है ।हमारा एक महीने रहने का प्लान था लेकिन कुछ काम अभी पूरे नहीं हो पाए तो मनीष ने छुट्टियाँ बढ़ा ली ।

अल्पना जी की आश्चर्यमिश्रित खुशी का ठिकाना न था सोनिया की पूरी योजना सुनकर । वो मुँह पर हाथ रख कर अवाक सी सोनिया को देखती रहीं । रम्भा का चेहरा उतरा हुआ था । 

“थैंक यू सोनिया ! अल्पना जी ने गले लगाते हुए कहा और उसका माथा चूम कर बोला…”कब का सपना देखा हुआ तुमने अब पूरा कर दिया बेटा, मेरे हौसलों को उड़ान और हुनर को पहचान देकर । बता नहीं सकती कितनी खुश हूं । माहौल खुशनुमा देखकर रम्भा बुदबुदा रही थी कभी मुट्ठी भींच रही थी लेकिन कुछ सोचते हुए वह भी मुस्कुराकर गयी और मम्मी भाभी के गले मिलते हुए सोनिया को देखकर बोली…””थैंक यू भाभी ! मम्मी की इतनी कद्र करने के लिए । 

मौलिक, स्वरचित

अर्चना सिंह

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