“ये लो आंटी” ये प्यारे से शब्द सुनकर प्रमिला ने चौंककर देखा तो मासूम सी छोटी लड़की के हाथ में उसका पर्स था जो प्रमिला के हाथ से गिर गया था, और वह उसके पल्लू को खींचकर उससे कह रही थी।उसकी उम्र लगभग 5 वर्ष की रही होगी।यूँ तो वह इस लड़की को अक्सर मन्दिर आते जाते समय मन्दिर के पास ही खेलता हुआ देखती थीं किन्तु कभी बात नहीं की थी।आज इतनी प्यारी आवाज सुनकर प्रमिला ने उससे अपना पर्स लिया और उसको 10 रुपये देकर पूछने लगी “बेटी आपका नाम क्या है?”
“पिंकी” उस बच्ची ने नाम बताते हुए रुपये लेने से इंकार कर दिया और कहा “नहीं, मुझे मम्मी मारेंगी।”
“रहने दीजिए मैडम जी, ये नहीं लेगी।”फूलवाले की इतनी बात सुनकर प्रमिला की उत्सुकता और बढ़ गयी और उसने फूलवाले से पूछा- “क्या तुम इसे जानते हो?”
” हमारे गाँव के पास की ही तो है। इसकी मां बहुत भली बहुत स्वाभिमानी औरत है लेकिन बेचारी किस्मत की मारी है और जब से इस बेचारी को इसके ससुराल वालों ने निकाला है तब से ये दोनों माँ-बेटी यहीं गांव के बाहर इसी मंदिर के पीछे बने एक बरामदे में पड़ी रहती हैं।” इतना कहकर फूलवाला अपने काम मे लग गया।
तब तक पिंकी भी चली गयी थी लेकिन प्रमिला का मन उन दोनों से मिलने को बेचैन हो उठा और वह मन्दिर के पीछे चली गयीं जिससे उसकी माँ से मिलकर और अधिक जानकारी कर सकें।
प्रमिला एक बहुत दयालु महिला और पेशे से अध्यापिका थीं। गरीब, जरूरतमंदों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहतीं थीं।
बरामदे में एक महिला,उम्र लगभग 25 वर्ष की होगी, रुई की बाती बनाने में बड़ी तल्लीनता से लगी हुई थी और पास ही एक गठरी रखी थी जिसमें शायद उसका जरूरतमंद सामान था। सम्भवतः यही पिंकी का माँ है ये सोचकर प्रमिला ने उससे पूछा -“क्या पिंकी तुम्हारी ही बेटी है?”
“हाँ, मेरी ही है। कोई बात है गयी है का?”उसने घबड़ाकर पूछा।
“नहीं, नहीं बात तो कुछ नहीं हुई। बहुत प्यारी बच्ची है। और तुम ये यहां क्या कर रही हो?”प्रमिला ने पूछा
“अरे कहा बताऊं बीबी जी हमारे तो भाग ही फूटे हैं।जब 14 साल की भई तौ मेरौ व्याह है गयौ वो भी इतनी दूर कि आज 10 साल है गए पर मायके की कोई ख़बर नाय हत। न मैं वहां जाय पायी और न वहाँ ते कोई आयौ। 8 बहन भैया में सातवें नम्बर की ही मैं। व्याह को 2 साल भये तौ ये बिटिया आय गयी जो हमारी ससुराल में कोई कूं फूटे आंख नाय सुहाती। वो तो सब बेटा ही चाहते।बस एक मेरे आदमी को ही संग हो जाके मारे मोय कोई की परवाह नाय हती। फैक्ट्री में नौकरी करतौ तौ आराम ते गुजर बसर है जाती, कछु खेत कौ नाज आय जातौ। 5 भाईयन के बीच में 10 बीघा खेत हो पर किस्मत कूँ तौ कछु और ही मंजूर हो। जाके 5 वर्ष की होते होते बाप को सायो तो सिर ते उठौ ही घर ते बेघर और है गए। ससुराल में वैसे ही कोई कूँ जे ना सुहाती, हम दोनों मनहूस कहकर निकार दिये।तब ते यहीं रहूँ 4 महीना है गए।मंदिर के आस-पास की सफाई कर दऊं जाते ये पुजारी रोज हमें खावे कूँ दे देवें और पुजारी जी ते थोड़ी सी रुई लेके भगवान जी की बाती बनाकर दे दऊँ तौ थोड़े बहुत पइसा मिल जायें।” रोते हुए पिंकी की माँ ने प्रमिला को बताया।
प्रमिला को उसके भोलेपन पर बहुत दया आयी और सोचा कि यदि यह पढ़ी लिखी होती तो इसे अपने अधिकारों का ज्ञान होता और आज इसको यूं बेसहारा जिंदगी नहीं जीनी पड़ती। इसके स्वभाव से तो अब तक वह परिचित हो चुकीं थीं अतः कुछ सोचकर कहा- “यदि तुम्हें कोई काम मिल जाये तो क्या तुम करोगी?”
“अरे बीबीजी हम कोई पढ़े लिखे तौ हैं नायें जो हमें कोई काम देगौ। और यदि ऐसौ हैगो तौ ऊपर वारे की बहुत बड़ी कृपा होगी हम पर”
प्रमिला उसको और उसकी बेटी पिंकी को अपने साथ अपने घर अपने साथ ले आयी। वह उसके स्वाभिमान को बिना ठेस पहुँचाये उसकी मदद इस प्रकार करना चाहती थीं कि जिंदगी में आगे उसे या उसकी बेटी को कभी ऐसी परेशानियों का सामना न करना पड़े।
प्रमिला का घर थोड़ी दूर एक कस्बे में था। उसने केसरी,पिंकी की माँ को रहने के लिए अपने ही घर के बाहर बना कमरा दे दिया। प्रमिला के घर में केवल उसकी बूढ़ी सास और उसकी 10 वर्षीय बेटी और 6 साल का बेटा था। इसके पति का देहांत 4 साल पहले एक दुर्घटना में हो गया था और उनके दो भाई अपने- अपने परिवारों के साथ दूसरे शहरों में बस गए थे जो कभी कभी अपनी माँ से मिलने आ जाया करते थे। पति की मृत्यु के बाद प्रमिला नौकरी के साथ साथ समाज सेवा के कार्यों में लग गयी और घर पर अपनी सास और दोनों बच्चों की जिम्मेदारी बखूबी सम्भाले हुए थी। अब उसे केसरी का सहारा भी मिल गया था। केसरी उसके घर के काम मे उसकी मदद कर देती थी। जब प्रमिला स्कूल चली जाती तो उसकी सास का मन भी उससे लगा रहता था और दोनों बच्चे भी उसकी बेटी पिंकी के साथ खेलते थे जिससे घर में रौनक बनी रहती थी।
एक दिन प्रमिला ने उसे समझाकर कहा “अभी तो मैं हूं लेकिन हमेशा ऐसे कब तक काम चलेगा और तुम्हारी बेटी के अच्छे भविष्य के लिए तुम्हें उसको पढाना चाहिए। सरकार ने तुम लोगों के लिए, बेटियों के लिए बहुत सी योजनाएं चलाकर बहुत सी सुविधाएं दे रखी हैं जिनसे शिक्षा के अभाव में अब तक तुम अनजान हो। अब ऐसा करो कि अपनी बेटी का पास के ही स्कूल में दाखिला करा दो जिससे वह खूब पढ़े।”
प्रमिला की बात उसको समझ में आ गई और अब वह अपनी बेटी को पास ही के सरकारी स्कूल में भेजने लगी। स्कूल से सारी सुविधाएं जैसे ड्रेस, कॉपी-किताब आदि मिल ही जातीं थीं तो चिंता की कोई बात ही नहीं थी।
अब घर का काम खत्म करने के बाद शाम को केसरी भी प्रमिला से पढ़ने लगी।वह मन लगाकर पढ़ती जिससे कुछ महीनों में उसे अच्छी तरह पढ़ना-लिखना आ गया था।
प्रमिला की मेहनत रंग ला रही थी। अब केसरी के रहन- सहन और बोलने-चालने के ढंग में भी परिवर्तन होने लगा था। आखिर ये सब पढ़ाई-लिखाई का असर था। धीरे-धीरे प्रमिला ने उसे महिला अधिकारों की भी जानकारी दे दी जिनसे अब तक वह अनजान होने के कारण वंचित थी और कौशल विकास केंद्र में उसको सिलाई-कढाई आदि सिखाने के लिए भेजा जिससे केसरी के जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आ गया। यह सब प्रमिला और केसरी की लगन का परिणाम था।
अब 2 साल बाद केसरी ने प्रमिला और एक एन. जी.ओ. की मदद से कोर्ट में केस कर अपने पति की संपत्ति पर अधिकार हांसिल कर लिया जो कि उसका और उसकी बेटी का हक था लेकिन ज्ञान के अभाव में उसे छोड़कर वह ऐसे अपनी बेटी के साथ भटक रही थी।
आज प्रमिला केसरी और उसकी बेटी को खुश देखकर बहुत खुश थी आखिर उसकी वजह से उनको खुशियां जो मिल गयीं थीं।
अब तक केसरी को भी पढ़ाई लिखाई का महत्व समझ आ चुका था जिस कारण वह प्रमिला के साथ सर्व शिक्षा अभियान की मुहिम में शामिल हो गयी और एक एन. जी. ओ. से भी जुड़ गई थी।उसने अपने गाँव आकर सबको पढ़ने के लिए प्रेरित किया और अब वह अपने गाँव में रहकर लड़कियों और महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई आदि सिखाने लगी, अचार-पापड़ आदि का व्यापार शुरू कर दिया। उसने अपने काम की मदद के लिए अपने ही गाँव की महिलाओं और लड़कियों को रखा जिससे उनको भी रोजगार मिल गया। अब उसकी बेटी भी अच्छे स्कूल में पढ़ने जाने लगी। आज वह सबकी मदद के लिए तैयार रहती और किसी को भी किसी भी प्रकार के जुर्म का शिकार नहीं होने देती जिससे उसके गांव में अलग ही चमक आ गयी।शिक्षा का असर दिखने लगा था।
वह मन ही मन प्रमिला और सभी शिक्षकों को धन्यवाद देती कि इनकी वजह से ही उसकी और सब लोगों की जिंदगी एक सार्थक जिंदगी बनी है। सच में ये शिक्षकों की तपस्या ही है जो सभी के भविष्य को उज्जवल बनाते हैं और सबके जीवन को सार्थक बनाने के लिए अपना पूरा जीवन लगा देते हैं।
उसको आज अलग ही खुशी थी वह जान चुकी थी कि जब इस शिक्षा से थोड़े समय में उसका और उसके गावों के लोगों का जीवन बदल सकता है तो फिर एक नियमित शिक्षा से पूरे देश का भविष्य भी उज्जल हो सकता है और वह गाँव के सभी लोगों से कहने लगी “पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया” ।
प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’