Moral Stories in Hindi
जब तुम माँ बनोगी तब पता चलेगा।” ये वाक्य तो माँ से बचपन से सुनती आई थी, पर माँ ने जब ये कहा था, “जब तुम बेटी की माँ बनोगी, तभी मेरे दर्द को समझ पाओगी। ऐसे तुम नहीं समझ सकती हो। मुझे क्या दर्द है कितना दर्द है?” फिर भी शिवानी को लगता था, इससे बड़ा, उसके दर्द से बड़ा तो कोई दर्द हो ही नहीं सकता, इस दुनिया में।
शिवानी आज अपने मां से कह रही थी, माँ मुझे माफ़ कर दो, सच कहा था तुमने, जब मुझे बेटी होगी, तभी तुम्हारे दर्द को मैं समझ सकती हूँ, तुमने क्या झेला है, कितना दुःख है तुझे? मां तुम तो, कहते-कहते शिवानी की आवाज़ भर्रा जाती, आँखों में आँसू भर आते। मां कहती, धत् बिटिया, मां से कोई
माफ़ी मांगा जाता क्या..? मां के दिल में बच्चों के लिए सिर्फ प्यार होता है,…कोई गुस्सा या नफ़रत नहीं। शिवानी की शादी अजीत से हुई थी। और शादी के नवें महीने में ही उसने एक सुंदर बेटे को जन्म
दिया। बहुत खुश थी, वो और अजीत, शिवानी अकेली बहन थी, अपने मायके में, और उसके छोटे दो भाई थे। माता-पिता ने खूब दान-दहेज, अपने हैसियत से ज्यादा, कर्ज लेकर अच्छे घर में शिवानी की शादी की थी। अजीत बहुत अच्छी कंपनी में मैनेजर था, गाँव में जमीन-जगह भी काफ़ी थी। किसी
चीज की कमी नहीं थी शिवानी को। शिवानी अपने चार महीने के बेटे को लेकर अपने पति के साथ रहने लगी। शिवानी के पति ने उसका एडमिशन bed के लिए भी करवा दिया था। शिवानी आगे की पढ़ाई, इतनी अच्छी ज़िंदगी और बेटे और पति का साथ पाकर बहुत खुश थी। उसके कुछ दिनों बाद
न जाने प्रकृति की काली नज़र क्यों शिवानी की ज़िंदगी को लग गई? अजीत की मृत्यु चार दिन के डेंगू बुखार से हो गई। शिवानी की ज़िंदगी बिखर गई। शादी के चौदह महीने बाद ही शिवानी विधवा हो गई। सुहाग लुट गया उसका। वो बेसुध हो गई। उसे किसी चीज का होश ही नहीं रहता था। शिवानी की अंधकारमय ज़िंदगी में माँ हमेशा साथ थी। शिवानी के ससुराल वालों ने शिवानी की मां से कहा,
आप इसे यहीं रहने दें, हमलोग ख्याल रख लेंगे। पर माँ ने कहा, मैं अपनी बेसुध बेटी जो अभी मात्र बाईस साल की है उसको अकेले नहीं छोड़ सकती, अगर ये यहां रहेगी तो मैं भी इसके साथ ही रहूंगी। ससुराल वालों ने कहा, तब आपलोग इसे लेकर यहां से जाइए। शिवानी अपने बच्चों को लेकर माँ के
साथ रहने लगी। शिवानी की ज़िंदगी से सिंदूर, श्रृंगार सब मिट गया तो, शिवानी की माँ ने भी सिंदूर लगाना और चूड़ी बिंदी, श्रृंगार, सुहाग के लिए होनेवाले सारे व्रत, पर्व (वट- सावित्री, तीज करवा-चौथ) आदि सब छोड़ दिया। जबकि शिवानी के पिता जिंदा थे। शिवानी और शिवानी के बच्चों के लिए
उसकी माँ समर्पित हो गई। शिवानी की माँ (आशा-कार्यकर्ता) थी अस्पताल में, लंबे दिनों से अस्पताल से अनुपस्थित रहने के कारण, उसे अपना काम अपनी नौकरी भी छोड़नी पड़ी। शिवानी की माँ की ज़िंदगी का जैसे बस एक ही उद्देश्य रह गया हो। अपने नाती और बेटी का ख्याल रखना। उसकी नींद से जगना, उसकी नींद सोना। शिवानी के लिए जीना। शिवानी का हाल बुरा था, मानसिक रूप से
अस्थिर हो चुकी थी। उसकी ज़िंदगी में जैसे अंधेरा था, वैसे ही उसे अंधेरा पसंद रहने लगा। कमरे में लाइट जलती तो वो चिल्ला उठती। न कहीं आना, न कहीं जाना, खाना भी जैसे बस नाममात्र, वो भी माँ जिद करती, बेटा, बाबू को दूध कौन पिलायेगा? अपने बच्चे को सीने से लगाकर शिवानी बुझी-बुझी
रहती जैसे जीना उसके लिए अभिशाप बन गया हो। शिवानी की मां, शिवानी को खुश रखने का खूब प्रयत्न करती। मां अपनी बेटी के कारण, कहीं भी रिश्तेदारी में नहीं जा सकती थी। बस बेटी का ख्याल रखती। बेटी को हंसाने, की कोशिश करती, उसका मन बहलाने के लिए कहती, बेटा दामाद जी का
सपना पूरा करना है, तुम्हें आगे पढ़कर नौकरी करना है। मैं कर्ज लेकर भी तुम्हारी पढ़ाई जारी रखूंगी, बस खुद को मजबूत करो। खुद को समझाओ, तुम आगे पढ़ोगी, नौकरी करोगी तो बाबू का भविष्य
सुनहरा होगा। तुम इससे बात करोगी, इसका ख्याल रखोगी तो ये जीनियस बनेगा। इस बच्चे के बारे में भी सोचो, तुम इसकी मां हो, इस बच्चे का तो पिता भी नहीं है, मां भी बेसुध रहेगी तो इसे दुनिया में कौन संभालेगा। इसके लिए तुमको खुद को खड़ा करना है, तुमको जीना होगा, जो अजीत की निशानी है, उसे इस दुनिया के लिए मजबूत बनाना है। और इसका सबसे बेहतर ख्याल तुम ही रख सकती हो
। मां के समझाने का उस पर कोई असर नहीं होता। वो और चिढ़ जाती, रोने लगती, खुद को संभाल नहीं पाती। शिवानी की ज़िंदगी में किसी श्रोत से खुशियां आए मां सोचती। मां कभी-कभी डांटती, कभी-कभी उसके बेटे का ध्यान रखना छोड़ देती, कभी कभी अपनी कसम देती, हर तरह से शिवानी
को मजबूत करने और ज़िंदगी में उलझाने की कोशिश करती। शिवानी की मां सोचती, शिवानी नौकरी करे, अपने बेटे के लिए जिए। पर शिवानी न जाने क्या सोचती थी? अपने बेटे को दूध पिलाती थी,
उसके रोने पर बिलखने लगती थी, पर इससे ज्यादा वो सोच ही नहीं पाती थी। जब परीक्षा नजदीक आया तो मां ने कहा, थोड़ा किताब देख लो, तो वो और गुस्सा जाती। शिवानी के जख्म और टूटे दिल की दवा क्या है? मां समझने का प्रयास करती, पर हर बार असफल रहती। अपनी बेटी के दर्द को
अपना बना लिया था पर…बेटी जैसे दर्द में डूबती जा रही हो। समय अपनी गति से बीत रहा था। शिवानी की मां, शिवानी और उसका बच्चा, यही ज़िंदगी थी शिवानी और उसकी मां के लिए भी।
शिवानी के पापा अस्थाई काम शहर में करते थे, घर की आर्थिक हालत कमजोर थी तो दोनों भाई भी शहर में काम करने चला गया। आखिर बेटी की शादी के बाद,…ये अपना कर्जा उतारते तो, उसके परिवार को ऐसा दर्द मिला कि, ज़िंदगी में जैसे कुछ बचा ही नहीं हो, ऊपर से दो आदमी का खर्च भी बढ़ गया। समय आ गया,…शिवानी के bed परीक्षा का।
शिवानी अपनी मां की सहायता से bed की परीक्षा में जैसे-तैसे परीक्षा में शामिल हुई और परीक्षा दिया। अब बच्चा भी सवा साल का हो गया था, मम्मा-मम्मा कहता, शिवानी को सुकून तो मिलता पर, अजीत की यादें धुंधली नहीं हो पाई थी। मां यदि कभी, कोई बात कहती, उसे मजबूत बनने के लिए, तो
वो मां पर बिफर पड़ती थी। कहती “तुम क्या जानो मेरे दर्द को, शौक से बिंदी-चूड़ी, सिंदूर उतारना और समाज में मेरी तरह विधवा होने में क्या अंतर है? क्या दर्द होता है? तुम मेरे दर्द को कभी नहीं समझ पायेगी? तुम्हारा पति जिंदा है, तुम्हारा गया क्या है? खोया तो मैंने है न..? मेरी तो दुनिया अंधार
हो गई, अब मैं किसके सहारे ज़ियूँगी? कौन समझेगा मुझे, मेरा और मेरे बच्चे का ख्याल रखनेवाला कौन है? मेरा, मुझे अपना कहने वाला कौन है? मैं समाज के लिए अशुभ हो गई। मुझे प्यार कौन करेगा? मैं किससे…..कहते-कहते रोने लगती शिवानी। मां के आंखों में भी आसूं होता, फिर भी वो
शिवानी को गले लगाकर चुप कराती। धीरे-धीरे समय बीत रहा था,…शिवानी का bed भी पूरा हो गया। शिवानी असामान्य स्थिति से कुछ हद तक निकली थी। अब शिवानी की मां कई बातें शिवानी से
उसके भविष्य को लेकर करने लगी थी। कहती, बेटा तुम नौकरी कर लो, बाबू का ख्याल मैं रख लूंगी। और हां, अच्छा लड़का देखकर तुम्हारी शादी भी कर दूंगी। बेटा मेरे बाद तुम्हें कौन संभालेगा? तुम इस जमाने को नहीं जानती हो, अकेली लड़की के लिए कोई सहारा बने या न बने, उसे बेसहारा करने
के लिए,…समाज चारों तरफ से तैयार रहता है। हर कोई तुम्हें गिद्ध नज़र से देखेगा, इसलिए तुम्हें फिर से जीवनसाथी मिल जायेगा तो, मैं संतुष्टि से मर सकूंगी। शिवानी इन सब बातों से,…. गुस्सा हो जाती, और अपनी मां से कहने लगती, तुमको मैं भार लगने लगी,.. तुम यही चाहती हो मैं अजीत की यादों को
मिटा दूं? दूसरी शादी की बात करती हो,…कैसे और कहां संभव है, मेरे बेटे को कोई नहीं दे सकता पिता का प्यार….। मां प्यार से समझाती, बेटा अजीत की यादों को हमसब कोई नहीं मिटा सकते, उसकी निशानी हमारे पास है, रौनक बाबू। और रहा रौनक बाबू को पिता का प्यार देने का तो तुम
खुद कमाओगी, उसके लिए माता-पिता दोनों बनोगी। बस एक पति, जो तुम्हें खुशियों से भर दे,… तुम्हारे लिए समाज में खड़ा रहे, तुमको प्यार दे,…तुम्हारा श्रृंगार बने इसलिए दूसरी शादी कर लो। शिवानी कहती, नहीं मां संभव नहीं है, तुम नहीं समझोगी मुझे,… तुम मेरे दर्द से अंजान हो, और
तुम्हारा दर्द ही क्या है? मुझे दूसरी शादी के जंजाल में फंसाकर खुद फ्री होना चाहती हो। खुद अपने लिए जीना चाहती हो,…छोड़ दो मुझे, मैं खुद अपना और अपने बच्चे का ख्याल रख लूंगी। आंखों में आँसू भरकर शिवानी की मां कहती,…”जब तुम बेटी की माँ बनोगी तभी मेरे दर्द का एहसास होगा।” एक बाईस साल की बेटी को विधवा रूप में देखना। वो भी इकलौती बेटी, जिसकी शादी एक साल
पहले सबकुछ बेचकर बहुत धूमधाम से किया हो,….और भगवान ने बेटी को वैधव्य दे दिया हो। मैं नहीं चाहती हूँ कि,… ज़िंदगी भर मेरी बेटी इस रूप में रहे। मैं चाहती हूँ कि,…मेरी बेटी फ़िर से खिले, मेरी बेटी फिर से मुस्कुराए,…मेरी बेटी ज़िंदगी में आगे बढ़े, और…तुम्हारा अपना परिवार हो, कोई तुम्हारा
ख्याल रखे, तुम्हें कोई खूब प्यार करे। शिवानी सच में माँ के दर्द को नहीं समझ पा रही थी। मां ये भी कहती,..बेटा मैं अभी तुरत या आज नहीं कह रही,..सोच लो, समझ लो,…मजबूत बन जाओ।
अच्छा लड़का मिलेगा, जो तुमको, तुम्हारी परिस्थिति को स्वीकार करेगा, उसके बाद तुम फैसला लेना। समय गुजरा,…शिवानी स्कूल टीचर बन गई। शिवानी अब घर से बाहर निकलने लगी। दुनिया की नजरों को खुद के लिए पढ़ने लगी। इस तरह समय के साथ शिवानी ने खुद को दूसरी शादी के
लिए,..भी तैयार कर लिया। अजीत के जाने के चार साल बाद, नवीन आया उसकी ज़िंदगी में,…मां के द्वारा। दोनों ने कोर्ट-मैरेज किया। अब रौनक भी स्कूल में पढ़ने लगा था। शिवानी, अजीत की यादों को भी जिंदा रखी थी। मिटाना आसान भी तो नहीं था। ज़िंदगी चल रही थी, फिर से चूड़ी, सिंदूर, मंगलसूत्र,
श्रृंगार सज गए शिवानी की ज़िंदगी में। शिवानी की मां भी सिंदूर पहनने लगी, अपनी बेटी के लिए फिर से मुस्कुराने लगी, अथाह दर्द से जैसे निकलना चाह रही हो, समुद्र से गहरा दुःख हो और जैसे उसका अंत होने वाला हो। शिवानी की मां अपनी बेटी का श्रृंगार देखकर जैसे….ज़िंदगी की सुकून को
पा लिया हो। कुछ समय बाद शिवानी ने एक बेटी को जन्म दिया। नवीन की खुशियों का ठिकाना न रहा, अपनी बेटी और शिवानी को चूमते हुए कहा, परिवार पूरा हो गया हमारा। एक बेटा एक बेटी तुम और मैं। शिवानी की आँखें भींग गई।
शिवानी की मां भी अपनी नातिन को गोद में लेकर खूब इतरा रहीं थीं। क्या खूबसूरत और प्यारी नातिन दिया भगवान ने। भगवान का बहुत-बहुत धन्यवाद। शिवानी की तो रौनक और प्यारी बेटी, मधु में जान बसती थी। एक बेटे और एक बेटी की मां बन शिवानी भी जैसे पूर्ण हो गई थी। उसे लगता
बचपन में मां सही तो कहती, जब तुम मां बनोगी तभी समझ आएगा,…आखिर मां क्या होती है। वो जान गई थी कि मां की तो अपने बच्चों, और अपनी बच्चों की खुशियों में जान बसती है। उसकी बेटी
मधु,…बहुत प्यारी और लाडली थी उसकी। मधु को देख-देख शिवानी खूब इतराती,…। और जब अपनी बीती ज़िंदगी, अपनी पिछली ज़िंदगी के बारे में सोचती,….मां का वो त्याग,..मां का उसे दुःख से उबारना, उसके लिए सिर्फ जीना, उसकी हिम्मत बनना, उसकी खुशियां के लिए,..मां ने न जाने क्या-क्या नहीं किया। वहीं शिवानी जब अपनी फूल सी कोमल बच्ची मधु को देखती, और कल्पना आ जाता
कि 22 साल में, शादी के एक साल बाद जब उसकी बेटी विधवा हो जायेगी,…तो उस पर क्या बीतेगी?? न, न नहीं, कभी नहीं, उसके अंदर से चीख निकलती, हे भगवान किसी भी, कभी भी, किसी मां को कभी ये दुःख नहीं देना। सच में ये दुःख असहनीय है। कोई मां कभी भी, इस रूप में अपनी बेटी को नहीं देख पायेगी। और शिवानी चुपचाप मां के गोद में सर रख कहती, मां बचपन में सच कहती थी कि
मां बनोगी तभी मेरे दर्द को समझ पाओगी। मां बनकर जाना है कि तुम क्या हो मेरे लिए। और कहती, मां ये भी तुमने सही कहा था, जब बेटी होगी तभी जानोगी, मेरा दर्द क्या है? मां मुझे माफ़ कर दो,..जो तुमने झेला है, सच में बहुत ही विकट थी। मां मैं समझ नहीं पाती थी तुमको, और तुमने सबकुछ
अकेले झेला। कितना दर्द दिया मैंने तुमको। सिर्फ़ अपना दर्द समझ आता था मुझे। जबकि मेरे दर्द से कहीं बड़ा था तुम्हारा दर्द। साथ ही,…. अपने दर्द को झेलकर मुझे भी संभाला। कैसे तुमसे माफ़ी मांगू, कैसे तुमको धन्यवाद कहूं? सीने से लगा लेती शिवानी को मां, और कहती ना बेटा, तुमने कम नहीं झेला है,…और भगवान न करे, ज़िंदगी में अब आगे कोई भी दुःख हो तुमको।
बस ऐसे ही मुस्कुराती रहो, ज़िंदगी में सारी खुशियां मिले तुमको। आज मां का स्पर्श, नवीन का प्यार, पक्की नौकरी, अपने दोनों बच्चे और अजीत की यादों के साथ बहुत खुश थी शिवानी। शिवानी की ज़िंदगी में मां की ममता, उसका साथ ही तो वो आज इतनी मजबूत है।
जब तुम मां बनोगी तब पता चलेगा। शीर्षक – “परिवार पूरा हो गया हमारा
चाँदनी झा