दीवार के उस तरफ से आते हुए शोर से परमिंदर कौर को अंदाज़ा हो गया था कि उसके देवर चरण सिंह की बेटी नवजोत कौर के रिश्ते के लिए लोग इकट्ठे हुए होंगे।आस पड़ोस की औरतों से उसे कुछ बातें तो पता चल ही गई थी।रात को जब परमिंदर के पति सुजीत सिंह और उसका बेटा खेती-बाड़ी
का काम निपटाकर घर आए तो उन्हें खाना खिलाकर और अपनी रसोई समेट कर परमिंदर सोने की तैयारी करने लगी।उसे यूं चुप चुप देखकर सुजीत सिंह को कुछ शक हुआ क्योंकि वह हमेशा कुछ ना कुछ बातें करती रहती थी पर आज तो ना उसने बेटे से ज़्यादा पूछताछ की और ना ही उनसे।
रात को सोते वक्त जब उन्होंने परमिंदर से पूछा,”क्यों भई क्या हो गया..आज किस बात की चुप्पी लगा रखी है” तो परमिंदर बोली,”कुछ नहीं आज साथ वाले घर से शोर आ रहा था”।
“कहां से..चरण के घर से”?
“हां..और हमारे साथ में किसका घर है”? परमिंदर ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा”।
“तो”
“तुम्हें पता नहीं क्या..चरण ने अपनी बेटी नवजोत का रिश्ता तय कर दिया और देखो पूरे मोहल्ले में यह बात पता है पर हमें नहीं।अपने हाथों से पाली हुई बेटी आज ब्याहने जा रही है और ताया ताई को कोई खबर नहीं”।
“अरे खबर कैसे करेगा जब सारे रिश्ते ही टूट चुके हैं तो किस बात की खबर करता वो।जो बीत गया उसे याद करने का क्या फायदा और जो हो नहीं सकता उसे सोचना नहीं चाहिए” कहकर सुजीत सिंह सोने चले गए और परमिंदर बाहर ड्राइंग रूम में बैठी अतीत को याद करती रही।
उनका घर गांव के रसूखदार घरों में से एक था।खूब सारे खेत और पैसे की कोई कमी नहीं।दोनों भाई आपस में मिलकर रहते।परमिंदर के एक ही बेटा था और उसके देवर चरण सिंह और देवरानी हरजीत के एक बेटी और एक बेटा।बच्चों का भी आपस में खूब प्यार था।दोनों भाइयों की इकलौती बेटी होने की वजह से नवजोत सबकी लाडली थी और परमिंदर की तो खासकर।सारा दिन ताई की चुन्नी पकड़ इधर-उधर घूमती रहती।”कभी मां के पास भी जाया कर” कभी-कभी परमिंदर तंग आकर बोल देती पर फिर प्यार से उसे गले लगा कर खूब चूमती।
गांव में उनके प्यार की मिसालें दी जाती।हर कोई चाहता कि उनके जैसी बहुएं सबको मिले।सांझे चूल्हे पर रोटी बनती और सभी मिलजुल कर खाते।हर त्यौहार और उत्सव पर इसी सांझे चूल्हे पर पकवान बनते जिसके चटकारे सारे रिश्तेदार और गांव के लोग लेते।फिर ना जाने इस घर के प्यार को किसकी नज़र लगी।दोनों भाइयों में खेती बाड़ी को लेकर छोटी-छोटी नोंक झोंक रोज़ रहती।दोनों की बीवियां समझाती और किस्सा खत्म हो जाता पर कुछ दिनों बाद फिर से वही बातें होने लगती। धीरे-धीरे यह नोंक झोंक झगड़े का रूप लेने लगी।
चरण सिंह के दिमाग में रिश्तेदार और गांव के कुछ लोगों ने यह बिठा दिया था कि उसका भाई उस पर अपनी हुकूमत चलता है और उसे कोई काम अपनी मर्ज़ी से नहीं करने देता।बस..इन्हीं बातों को लेकर झगड़े हुए और बात बंटवारे तक आ पहुंची।घर की औरतों ने समझाने की बहुत कोशिश की।माता-पिता तो पहले ही नहीं थे पर चरण सिंह को अलग होने का फितूर छा गया था।वह तो ठान कर बैठा था कि अलग होकर अपने फ़ैसले खुद करेगा।
सुजीत सिंह ने भी रोज़-रोज़ के क्लेश को खत्म करने के लिए बंटवारा कर दिया।हवेली नुमा घर में बड़ी सी दीवार खड़ी हो गई।चरण सिंह के मन में इतनी नफ़रत भर गई थी कि उसने बीवी बच्चों को भी अपने भाई और उसके परिवार से मिलने से मना कर दिया। रिश्तेदारों का सिखाया उसके दिल और दिमाग पर पूरी तरह से कब्ज़ा कर चुका था।
सांझा चूल्हा दो रसोइयों में बदल चुका था।बच्चे एक दूसरे को देखने के लिए तरसते थे।नवजोत कितने दिनों तक बीमार रही थी।अपनी ताई के प्यार को तरसती वह बच्ची बड़ों के क्रोध के आगे चुप्पी लगा गई थी।हरजीत भी तब से गुमसुम रहती पर चरण सिंह को कोई फर्क नहीं पड़ता।इधर परमिंदर कौर का भी यही हाल था पर होनी को कौन टाल सकता है यही सोच कर मन को तसल्ली देती रहती।अब उसी नवजोत का ब्याह था जिसके लिए वह सपने देखा करती थी।लोगों से पता चला कि नवजोत का ब्याह कुछ महीनों बाद तय हुआ है।
देखते-देखते समय बीत गया और अब शादी को कुछ रोज़ ही रह गए थे।एक दिन पता चला कि चरण सिंह बैंक से नगद पैसे निकलवा कर ला रहा था तो रास्ते में कुछ लुटेरों ने उसे लूट लिया।सर पर बेटी का ब्याह और इतना बड़ा नुकसान।चरण सिंह बौखला गया था।रात को सुजीत सिंह को कहीं जाते देखा परमिंदर पूछ बैठी,” इस वक्त कहां जा रहे हो”?
“चरण के पास”।
“क्यों वहां क्यों”?
“अरे, इतना बड़ा नुकसान हो गया..सर पर बेटी की शादी है..कैसे करेगा अकेला”?
“तो,तुम क्यों जा रहे हो..उसकी बेटी है ना”।
“सिर्फ उसकी बेटी कैसे हुई..धीया सब दिया सांझिया हुंदिया ने (बेटियां सबकी बराबर होती हैं) चल तू भी मेरे नाल (साथ )। पल भर में दोनों चरण सिंह के घर में खड़े थे।भाई को देखकर चरण सिंह ज़ोर से चिल्लाया,” वीरे, सब खत्म हो गया”।
“किस तरह खत्म हो जाएगा.. तेरा वीर है ना.. हमारी बेटी का ब्याह है ना..सब संभाल लेंगे”।
अगले दिन से ही सांझा चूल्हा शुरू हो गया।परमिंदर कौर ने मिठाई और खाने पीने का काम अपने हाथों में ले लिया।गांव की औरतें भी इकट्ठा हो गई।परमिंदर ने अपने देखरेख में तरह-तरह की मिठाईयां बनवाई और नवजोत के ससुराल वालों के लिए अपने हाथों से बनाई बेसन की स्पेशल बर्फी जिसके सभी मुरीद थे।सांझे चूल्हे की खुशबू हर तरफ फैल गई थी.. जिसमें अपनापन था..प्यार था और चूल्हे की भट्टी की आग में जल गए थे ईर्ष्या और द्वेष के भाव जो कभी दोनों भाइयों के बीच में आ गए थे।
नवजोत का ब्याह बड़ी धूमधाम से हो गया था।बरसों से उसके ब्याह को देखे हुए सपने परमिंदर ने पूरे कर लिए थे।अपने हाथों से बेटी को सजाते वक्त उसे ढेर सारी दुआएं और आशीर्वाद दिया था।देवरानी हरजीत एक पल के लिए भी उसका पीछा नहीं छोड़ रही थी।ऐसे लग रहा था हर कोई बरसों से इसी पल की कामना कर रहा था।हवेली की वह दीवार अब ढह चुकी थी।दोनों रसोई घरों में ताले लगा दिए गए थे।सांझा चूल्हे की महक में दोनों परिवार फिर से गिरफ्तार हो गए थे।
#स्वरचितएवंमौलिक
गीतू महाजन,
नई दिल्ली।