क्या रिर्टायरमेंट सिर्फ ऑफिस जाने वाली महिलाओं के लिए होता हैं – स्वाती जैन :  Moral Stories in Hindi

धनलक्ष्मी जी ने जब अपनी बहन और उसकी बहू को एक साथ गप्पे लड़ाते देखा तो अपनी होने वाली बहु आकांक्षा के लिए उनका प्यार ओर उमड़ पड़ा और वे मन ही मन सोचने लगी बस जल्दी बेटे ललित की शादी हो जाए तो मैं भी इसी तरह रसोई में काम करते हुए आकांक्षा से गप्पे लड़ाऊंगी !! उतने में उनकी बहन लाजवंती जी रसोई से बाहर आकर बोली – धनलक्ष्मी जब से मेरी बहू राखी शादी करके आई हैं घर में रोनक छा गई हैं , हम दोनों पहले साथ में पुरा काम निपटाते हैं और फिर बैठकर सास – बहु का सिरियल देखते हैं , अब तेरे भी यह दिन नजदीक आ गए हैं कहके दोनों बहने हंस पड़ी !!

धनलक्ष्मी जी बोली लाजवंती भगवान ने मुझे बेटी नहीं दी पर मैं आकांक्षा को बेटी से बढ़कर प्यार दूंगी !! दोनों बहनो ने खुब बातें की और फिर धनलक्ष्मी जी अपने घर आ गई !! 

धनलक्ष्मी जी को वह दिन याद आ गए जब वह शादी करके इस घर में आई थी ,

पढ़ाई लिखाई में होशियार रही धनलक्ष्मी जी शादी के बाद आगे पढ़ना चाहती थी मगर जिम्मेदारियों का ऐसा बोझ सर पर पड़ा कि उनकी किताबें कपड़ों के नीचे दब के रह गई !! पति विजयलाल जी भी कभी पत्नी की इच्छा से अवगत ही नहीं होना चाहते थे क्योंकि उनके लिए उनके माता पिता ने जो कह दिया वही सर्वोपरि होता था !! ससुराल वालों की सारी पसंद का ख्याल था धनलक्ष्मी जी को बस धनलक्ष्मी जी की पसंद नापसंद किसी को नहीं पता थी !! बेटा ललित भी जिंदगी में आ चुका था , फिर सास – ससुर की मृत्यु और फिर एक रात अचानक विजयलाल जी को दिल का दौरा पड़ा और वे भी दुनिया छोड़कर चले गए !! वह रात धनलक्ष्मी जी के लिए मानो एक काली रात थी , सुबह उजाला तो हो गया था मगर अब सब कुछ बदल सा गया था , अब धनलक्ष्मी जी पुरी तरह ललित पर आधारित हो चुकी थी  !! ललित भी नौकरी के लायक हो चुका था और अब बस दो महिने बाद ललित की आकांक्षा से शादी होने वाली थी !!

आखिरकार वह दिन आ ही गया जब आकांक्षा ने इस दहलीज पर अपने पहले कदम रखें !! धनलक्ष्मी जी आकांक्षा की हरकतो में अपनी बेटी ढूंढने का प्रयास करने लगी फिर बोली बेटा , आगे क्या करना चाहती हो ?? आकांक्षा आत्मविश्वास से बोली नीट की परिक्षा देना चाहूंगी मम्मी जी !! धनलक्ष्मी जी ने तो पहले ही सोच लिया था कि जो उनके साथ हुआ वे कभी अपनी बहू के साथ ऐसा नहीं होने देंगी !!

उन्होंने उसे तुरंत मंजूरी दे दी मगर वे नहीं जानती थी कि आकांक्षा और उनमें पढ़ाई की वजह से इतनी दूरी आ जाएगी !! अब आकांक्षा दिनभर अपने कमरे में पढ़ती रहती !! सुबह का खाना डायनिंग टेबल पर से उठाकर वापस अपने कमरे में चली जाती !! ललित जब शाम को घर आता तो दोनों कहीं बाहर घूमने चले जाते और बाहर ही खाना खाकर आते !!

धीरे धीरे धनलक्ष्मी जी को बहुत अकेलापन सताने लगा था , आकांक्षा की शादी के बाद भी वही अकेले काम करना , अकेले टीवी देखना और अकेले ही सैर पर निकलना !! आकांक्षा फ्री टाईम में मोबाईल में स्क्रोलिंग करती रहती पर धनलक्ष्मी जी से बात ना करती !!

एक दिन धनलक्ष्मी जी आकांक्षा के पास अपनी पुरानी एल्बम लेकर गई और बताने लगी यह देखो बहु , ललित बचपन में ऐसा लगता था , यह तब की फोटो हैं जब हमने पहली बार ललित का मुंडन करवाया था !! आकांक्षा अपने लेपटॉप पर पढ़ाई करते हुए बोली मम्मी जी मुझे पढ़ाई करनी हैं , आप एलबम यहां रखकर जाईए मैं बाद में देख लूंगी !!

धनलक्ष्मी जी बाहर जाते वक्त बोली – बहु , कल शनिवार हैं हम दोनों शांपिंग करने चले क्या ??

आकांक्षा बोली – मम्मी जी मैं , मेरे कपड़े ऑनलाइन ही मंगवाती हुं , आप हो आईए !! आकांक्षा धनलक्ष्मी जी से ज्यादा बात करना भी जरूरी नहीं समझती थी और एक धनलक्ष्मी जी जो आकांक्षा को बेटी बनाकर रखना चाहती थी पर आकांक्षा ने तो जैसे ठान ही लिया था कि उसे अपनी सास से कोई मतलब नहीं !!

ललित और आकांक्षा का बाहर खाना बढ़ गया था आज धनलक्ष्मी जी ललित से बोली बेटा तुम लोग बाहर से खाना खाकर आते हो, घर का खाना वेस्ट होता हैं !! ललित तो कुछ बोला नहीं मगर आकांक्षा बोली – मम्मी जी , हमें जब घर में खाना खाना होगा हम बोल देंगे आप रोज घर पर खाना क्यूं बनाती है उस दिन धनलक्ष्मी जी को समझ आ गया कि उनकी मेहनत की भी कोई वेल्यू नहीं हैं !!

आकांक्षा ने परीक्षा दी और पास भी कर ली , अब आकांक्षा नौकरी पर जाने लगी थी और अब तो उसे अपने घर से कोई मतलब ही नहीं था , सुबह टिफिन लेकर निकलती , शाम को देरी से आती और फिर अपने कमरे में जो जाती , वापस बाहर आने का नाम ही नहीं लेती !!

धनलक्ष्मी जी की सुबह साढ़े पांच बजे से हो जाती , उन्हें पल भर आराम ना मिलता !! एक रोज उनके घुटने बहुत दर्द करने लगे , वे ललित से बोली तो ललित बेपरवाही से मोबाईल स्क्रोल करते हुए बोला पेनकिलर रखी हैं खा लो मम्मी और फिर कभी उनके दर्द के बारे में नहीं पूछा !!  

एक दिन धनलक्ष्मी जी रसोई से काम करके बाहर निकली ही थी कि ललित बोला मम्मी आकांक्षा मां बनने वाली है और आप दादी !!

दादी शब्द सुनते ही धनलक्ष्मी जी का चेहरा खिल गया और वे खुश हो गई !! उन्हें वह दिन याद आ गए जब ललित का जन्म होने वाला था और नार्मल डिलीवरी के नाम पर उनसे ससुराल में बहुत काम करवाया गया , कामवाली बाई को तक निकाल दिया गया ताकि धनलक्ष्मी जी सारा काम खुद करें और उनकी डिलीवरी नार्मल हो लेकिन होनी को कौन टाल सकता हैं , सारा काम करने के वावजूद उनका ऑपरेशन करना पड़ा था इसलिए उन्होंने सोच लिया वे आकांक्षा को खुब प्यार और आराम देंगी ,वैसे भी ऐसे समय में एक लड़की को खास अटेंशन की जरूरत होती हैं !! अब तो धनलक्ष्मी जी ने आकांक्षा का खुब ध्यान रखना शुरू कर दिया , खुद बहुत थक जाती मगर बहू को खुब आराम देती !! नौ महिने बाद आकांक्षा को लड़का हुआ !! धनलक्ष्मी जी तो पोते का मुंह देखकर खिल गई !! अब पोते का ध्यान रखने में वह व्यस्त सी हो गई थी !! आकांक्षा ने चार महिने बाद फिर से अपनी नौकरी ज्वाइन कर ली क्योंकि उसे पता था मुन्ने को मम्मी जी संभाल लेंगी !! धनलक्ष्मी जी की अब उम्र हो चली थी जिस वजह से उनकी तबीयत खराब रहने लगी थी मगर ललित और आकांक्षा को कभी मां की तबीयत का कहां ख्याल रहता ?? उन्हें तो बस टाईम से चाय – कॉफी , नाश्ता और टिफिन चाहिए होता जो उन्हें रोज मिलता रहता और मुन्ने के लिए एक आया जिसका काम धनलक्ष्मी जी बखुबी निभाती !!

मुन्ना भी दो साल का हो चला था , ललित और आकांक्षा ने अपनी शादी की पाँचवी सालगिरह के उपलक्ष्य में प्रोग्राम रखा था जिसमें सभी मेहमान आए थे !! लाजवंती जी ने जब अपनी बहन को इतना सारा काम अकेले करते देखा वे बोली धनलक्ष्मी जब तक तुम अपने से छोटो पर काम का बोझ नहीं डालोगी वे लोग तुम्हें ही नौकरानी बनाकर रखेंगे !!

धनलक्ष्मी बोली – अपने ही बच्चों का काम करने से थोड़ी नौकरानी बन जाते हैं लाजवंती !!

प्रोग्राम खत्म होने के बाद सभी मेहमान जा चुके थे सिर्फ आकांक्षा की मां रेखा जी घर पर रुकी थी !!

दूसरे दिन जब धनलक्ष्मी जी सभी के लिए चाय बनाकर ललित के कमरे में देने ही जा रही थी कि आकांक्षा की आवाज आई मां दो महिने बाद आपका रिटायरमेंट हैं , अब खुब आराम करना , घूमने फिरने जाना , खुब शापिंग करना , अपने सारे शौक पूरा करना और हां घर का काम बिल्कुल हाथ मत लगाना अब वह सब भाभी की जिम्मेदारी हैं !!

आकांक्षा के चेहरे पर उसकी मां के लिए प्यार साफ झलक रहा था !! ललित भी आकांक्षा की बातो में हां में हां मिला रहा था और वे लोग रेखा जी को खुब सम्मान दे रहे थे !!

धनलक्ष्मी को अचानक चाय की ट्रे का भार सहन नहीं हुआ और वे फिर से रसोई में आ गई और सोचने लगी क्या रिटायरमेंट सिर्फ ऑफिस में काम करने वाली औरतों के लिए ही होता हैं ?? क्या घर में काम करने वाली औरतों की कोई वेल्यू नहीं ?? क्या एक हाउस वाईफ का श्रम , श्रम नहीं !!

लाजवंती की बात आज धनलक्ष्मी को सही लग रही थी कि वैसे भी बेटे – बहू की नजर में वह नौकरानी ही तो बन चुकी थी !!

दूसरे दिन सुबह धनलक्ष्मी जी ने अपने स्पोर्टस शूज निकाले जो काफी वक्त से ऐसे ही पड़े थे और वार्क के लिए निकल गई !! आज सुबह की वार्क लेते समय उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था !!

यहां घर मे ललित और आकांक्षा एक दूसरे से कह रहे थे मम्मी जी कहां चली गई है ?? आज ना सुबह की कॉफी मिली है , ना नाश्ता और टिफिन कैसे बनेगा ??

जब धनलक्ष्मी जी घर आई तो उन दोनों को आपस में झगड़ते देख बोली – तुम दोनों यहां आओ , मुझे तुमसे कुछ बात करनी है !!

धनलक्ष्मी जी की आंखों में बिल्कुल शांतता थी वे बोली बहु कल अनजाने में मैंने तुम्हारी और तुम्हारी मां की बातें सुन ली तुम उन्हें घूमने फिरने आराम करने कह रही थी क्योंकि उनकी अब उम्र हो चली हैं तो क्या यह बात मुझ पर भी लागू नहीं होनी चाहिए ?? मैं भी तो उसी उम्र में हुं मगर मैं तो घर के सारे काम ,मुन्ने को संभालना सब कर रही हुं और ललित कल तो तुम बड़ी हामी भर रहे थे लेकिन आज अगर मेरी तबीयत जरा सी भी खराब हो जाए तो तुम दोनो में से कोई मेरी खैर खबर तक नहीं पूछता !! मैं यह नहीं कहती कि मैं घर से पुरी तरह रिटायर्ड हो जाऊंगी मगर मुझे सहयोग चाहिए और मैं भी अपनी जिंदगी जीना चाहती हुं बोलकर धनलक्ष्मी जी नहाने चली गई !!

नहाकर आकर धनलक्ष्मी जी ने देखा ललित ने तीन कप कॉफी बना ली थी !! अपने लिए , धनलक्ष्मी जी के लिए और आकांक्षा के लिए !! आकांक्षा एक तरफ नाश्ता और दूसरी तरफ मुन्ने के लिए दलिया बना रही थी !!

आज से धनलक्ष्मी जी ने अपने लिए जीना शुरू कर दिया था !! वह रोज सुबह सैर पर निकल जाती , सहेलियों के साथ किट्टी पार्टी और योगा करती और घर के बचे खुचे काम कर लेती !!

दोस्तों , घर किसी एक की जिम्मेदारी नहीं होता , धनलक्ष्मी जी के एक सख्त फैसले ने घर के हर इंसान को जिम्मेदार बना दिया !! सभी का साथ होता हैं तभी रिश्ते सारे मुस्कुराते हैं वर्ना एक अकेला इंसान हार मान जाता हैं !!

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आपकी सहेली

स्वाती जैन

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