योगेश जी एक मैथ्स अध्यापक थे राजकीय विद्यालय में। अपने आप में मस्त मौला, अपनी ही धुन में रहने वाले। यूं तो उनके पास बी एस सी ,बी एड की डिग्रीयां थीं किन्तु वे रहन सहन, बोलने बात करने से ऐसे लगते जैसे कोई दिमाग से उतरा हुआ हो।लोग पीठ पीछे उन्हें जाहिल,गंवार कहते। कुछ मुंह फट लोग उनके मुंह पर ही उन्हें जाहिल, गंवार कह देते किन्तु वे बुरा नहीं मानते,केवल मुस्कुरा कर
रह जाते। उनके क्रिया कलाप भी दैनिक जीवन के ऐसे ही थे। वे भूरे रंग का पेन्ट एवं सफेद बुशर्ट ही पहनते चाहे वे दो जोड़ी हों किन्तु लगता वही कपड़े पहन रखे हैं। नहाते समय भी कपड़े नहीं उतारते। कपड़ों के ऊपर से ही साबुन लगा लेते और उन्हीं पर पानी डाल लेते फिर पहने पहने ही सुखा लेते। सर्दीयों में भी जब सब लोग भारी भरकम ऊनी कपडों से लदे -फदे होते वे अपनी उसी ड्रेस में होते।
उन्हें कभी स्वेटर तक पहने नहीं देखा। खाना घर जाकर खाते इसके अलावा उन्हें जो प्रेम से खाने को कहता वहीं खा लेते। कोई शौक नहीं कोई ग़लत आदत नहीं फिर भी वे सबकी नजरों में जाहिल गंवार थे। उन्हें अच्छे से पता था कि लोग उनके बारे मे क्या सोचते हैं। कैसी-कैसी बातें करते हैं,उनका मजाक बनाते हैं किन्तु वे इन सब बातों से निर्लिप्त रहते। विद्यालय समय के बाद वे इधर-उधर घूम
कर अपना समय व्यतीत करते। कभी बच्चों को घर पर ट्यूशन भी पढ़ाते। मेरे पति भी उसी विद्यालय में थे सो कई बार उनके बारे में बताते। कभी कभी मेरे पति भी उन्हें साथ लेकर आते और कहते अरे मंजू आज योगेश भी खाना खाएंगे। खैर मैं उन्हें खाना खिलाती।हम लोग बैठकर बातें भी करते किन्तु उनके चेहरे पर एक स्थाई उदासी छाई रहती। हंसते तो भी ऐसे जैसे मजबूरी में हंस रहे हों। मुझे उनके बारे में जानने की उत्सुकता होती। कई बार मैंने अपने पति अशोक जी से बोला मेरी इच्छा है कि उनसे कुछ उनके जीवन के बारे में जानकारी ली जाए।
क्या करोगी जानकर वो जैसे हैं खुश हैं।
खुश नहीं हैं ऐसा लगता है कि वह ज़िन्दगी जी नहीं रहे ढो रहे हैं। पूछने में क्या बुराई है।
फालतू के पचड़ों में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है।बस इसी तरह कई बर्ष निकल गये।इन दिनों में वे कोई चार-पांच बार आए भी किन्तु पति की अनिच्छा के चलते मैं उनसे कुछ नहीं पूछ पाई।
पर इस बार मैं अपने आपको नहीं रोक पाई। खाना खाने के बाद हम लोग बातें कर ही रहे थे कि मैंने पूछ ही लिया योगेश जी मेरे मन में आपके प्रति जानने की कुछ जिज्ञासा है। क्या आपसे कुछ पूंछू तो बुरा तो नहीं मानेंगे।
अरे नहीं बहनजी आपकी बात का क्या बुरा मानूंगा ।आप तो मुझे फिर भी बहुत सम्मान देतीं हैं अपना बड़ी बहन जैसा स्नेह रखतीं हैं लोग तो मुझे मुंह पर जाहिल गंवार कहते हैं उनका ही बुरा नहीं मानता।
हां योगेश जी यही बात है कि आप इस तरह क्यों रहते हैं, कहीं आपको कोई मन में दुख तकलीफ़ है जो आप ऐसे तटस्थ रहते हैं । एक साधारण इंसान तो ऐसे नहीं रह पाता। न आपको खाने का शौक है न पहनने का। आपने अपना परिवार भी नहीं बसाया। अपने परिवार के बारे में कुछ बताएंगे मैं केवल जिज्ञासा वश पूछ रही हूं। वे केवल चुप बैठे रहे पर उनकी आंखें पनीली हो गईं।
फिर रुक कर बोले रहने दीजिए बहन जी घाव को कुरेदने से दर्द बढ़ेगा ही।
नहीं योगेश जी कई बार कह देने से मन का गुबार निकल जाता है तो मन हल्का हो जाता है।आप विश्वास रखिए ये बात हमारे तीनों के बीच ही रहेगी।इसे हम लोग अफवाह की तरह नहीं फैलाएंगे।आप हमारी ओर से आश्वस्त रहें।
तभी अशोक जी ने उनके कंधे पर हाथ रखा और बोले यार योगेश आज बोल भी दे। ये जो तुम्हारे मन में दबा है निकाल दो।
तब वे बोले मेरा अच्छा खासा परिवार था। माता पिता,हम दो भाई , एक बहन थे। सबको पढ़ाया लिखाया।बहन बड़ी थी उसकी शादी कर दी। फिर मेरी नौकरी लगते ही मेरी भी शादी हो गई। पत्नी खूबसूरत, समझदार,गुणी थी। मैं उसे बहुत प्यार करता था।उसका दोष इतना था कि वह एक सामान्य परिवार की बेटी थी सो उसके पिता ज्यादा दहेज नहीं दे पाए। मां ने उसे सताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बहुत कोसतीं,ताने मारतीं, यहां तक मारतीं भी।वह सब सहन कर रही थी।कभी पलटकर मां
को जबाब नहीं दिया। फिर भी मां ने उसे परेशान करना नहीं छोड़ा। मैं कायर था। अपनी मां से डरता था। मैं तो क्या पिताजी भी कभी उनके सामने नहीं बोल पाए तो मैं क्या बोल पाता।कभी अपनी पत्नी के हक में उनके सामने खड़ा नहीं हो पाया।यह जानते हुए भी कि सीमा मेरी पत्नी निर्दोष है। ऐसे ही समय गुजर रहा था। एकांत में हम दोनों एक दूसरे को ढांढस बंधाते कि यह समय भी निकल जाएगा। सीमा मेरे भरोसे सब सह रही थी।इसी बीच हमारे एक बेटा भी हुआ। प्रेग्नेंसी के समय भी मां ने उसे नहीं
बख्शा उनका अत्याचार बदस्तूर चालू रहा।रोते -पीटते घर के अशांत माहौल में हमारी जिंदगी गुज़र रही थी। बेटा भी दो साल का हो गया। मैं कभी अलग होने की बात मां से नहीं कह पाया। यदि यह कदम उठा लिया होता तो आज मेरी सीमा और बेटा मेरे साथ होते।कभी भी सीमा के लिए कुछ भी बोलने पर मां जोरु का गुलाम कहतीं और भी कई बेमतलब की बातें मुझे सुना देतींऔर मेरे पीछे इस
बात की सजा भी सीमा को मिलती कि तूने ही मेरे बेटे को सिखाया है। मुझे पता ही नहीं चला कि कब माता पिता और भाई ने मिलकर सीमा को रास्ते से हटाने का खतरनाक प्लान बना लिया। मैं स्कूल में था तभी तीनों ने मिलकर उसे जिंदा आग के हवाले कर दिया।वह चीख रही थी, दर्द से छटपटा रही थी
और ये तीनों तमाशा देख रहे थे।मेरा बेटा भी जोर जोर से रो रहा था। तभी मैं घर पहुंचा सब देख मेरे होश उड़ गए। सीमा आधे ज्यादा जल चुकी थी।वह पथराई आंखों से मुझे देख रही थी और मैं कायर , जाहिल उसके लिए कुछ नहीं कर सका। मैंने आग बुझाने का प्रयास किया सीमा बच नहीं सकी।उस दिन सिर्फ सीमा की ही मौत नहीं हुई थी मैं भी मर चुका था।
मां बोलीं बेटा रास्ते का कांटा हट गया अब इसे जल्दी ठिकाने लगा। मैं कुछ नहीं बोला जो करना था सब उन्होंने ही किया। बात ले देकर रफा-दफा हो गई। और दो महीने बाद ही उन्होंने मेरे लिए रिश्ता देखना शुरू कर दिया। बेटा हम दूसरी लड़की देख रहे हैं तू भी शादी के लिए तैयार रह।
मां अब कोई शादी नहीं होगी। सीमा के साथ ही तुम्हारा बेटा भी मर चुका है। ये अब केवल जिन्दा लाश है जिसमें कोई भावना नहीं, इच्छा नहीं और लाशों की शादी नहीं होती। मैं कायर था जो अपने प्राण नहीं दे सका किन्तु जिन्दा भी नहीं हूं। तुम बहू के साथ -साथ बेटे को भी को चुकी होआगे से शादी का नाम भी मत लेना।
उन्होंने मुझे बहुत समझाने की कोशिश की पर मेरे ऊपर कोई असर नहीं हुआ। देख रेख के अभाव में चार महीने बाद मेरा बेटा भी चल बसा।अब मैं पूर्ण रूप से आजाद था। घर जाना छोड़ दिया। कभी माता-पिता के पास नहीं गया।बस ऐसे ही घूमता-फिरता। रहने के लिए एक कमरा ले लिया।कभी खाता कभी भूखा ही सो जाता सीमा और बेटे की याद में पागल हुआ जा रहा था। किसी काम में मन
नहीं लगता। फिर धीरे-धीरे मेरी यही दिनचर्या हो गई। इसलिए कोई मुझसे कुछ भी कहे मेरे ऊपर कोई असर नहीं होता।अब तो माता-पिता भी नहीं रहे। भाई अपने परिवार के साथ सुखी है, पर मैं उससे कभी नहीं मिलता ।बहन जरूर कभी-कभी मिलती है मेरी हालत देख दुखी होती है पर किया क्या जा सकता था।
जब मेरा भाई ही मुझे जाहिल, गंवार,कायर समझता है तो मैं दूसरों को क्या दोष दूं।
अन्त में गहरी सांस लेते बोले ज़िन्दगी कट रही है किन्तु ज़िन्दगी अब जिंदगी नहीं रही अशोक।आज तुमने मुझे बोलने को मजबूर कर दिया ।
उनकी दास्तां सुन हमारी आंखें भी भीग गईं। सोचने पर विवश हो गये क्या कोई मां इतनी भी क्रूर हो सकती है जिसने अपने ही हाथों दहेज के लिए बेटे का जीवन नर्क बना दिया।
शिव कुमारी शुक्ला
स्व रचित एवं अप्रकाशित
विषय****जाहिल