घर दीवार से नहीं परिवार से बनता है – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

अरे मम्मी आप क्यों झाड़ू लगा रही हो भाभी कहां गई ।घर में घुसते ही निभि ने मां से पूछा ,अरे बेटा आ गई तू गले से बेटी को लगाते हुए रेखा जी ने कहा। अरे क्या बताएं ।अरे ये आपकी उम्र है काम करने की आप क्यों झाड़ू लगा रही थी ।अरे काम वाली लगाई थी ना, अरे बेटा वह बीमार है एक हफ्ते से आ नहीं रही है । भाभी कहां है वह क्या कर रही है ।घर की जिम्मेदारी तो भाभी की है ना आपकी

नहीं। बेटा क्या करूं महारानी बैठी होगी कमरे में फोन लेकर। मां से अपने यहां की शिकायत बता रही होगी। अभी मैं देखती हूं भाभी को। अरे ना बेटा तू न जा यहां बैठ। बता तेरे घर में सब कुछ ठीक है और दामाद जी कैसे हैं ।क्या बताऊं मम्मी दामाद जी का कुछ ना पूछो दिन भर बस  अपनी मां और बहन का ही साइड लेते रहते हैं। सासू मां तो सासु मां ननद रानी भी कोई काम में हाथ नहीं लगती ।दिन भर बैठी रहती है ‌मैं तो परेशान हो गई थी ।इसलिए कुछ दिन तेरे पास रहने को आ गए हैं अच्छा किया अब रहना आराम से तेरे लिए मैं चाय बनाकर लाती हूं।

                 अरे दीदी आप कब आई अंदर से बाहर आई शिखा बोल पड़ी ।तभी भाभी जब आप जब मां झाड़ू लगा रही थी। और आप अंदर फोन पर अपनी मां से यहां की बुराइयां कर रही थी ।बुराइयां नहीं कर रही थी निभि तेरी भाभी अपनी मां से बस एक नॉर्मल बातचीत कर रही थी। भाई देवेश बोला ।जैसे तू अपने घर की मां से बातें कर रही थी ।मैं कोई बुराई तो नहीं कर रही थी ससुराल की भैया। तुम तो मैं बस हां ऐसे ही बस  अपनी मम्मी से घर के हाल-चाल बता रही थी ।यह तो एक नॉर्मल

बातचीत होती है निभि। देखो इस तरह से दूसरों की बुराइयां करके हम परिवार को तोड़ते हैं और एक दूसरे से अपना रिश्ता भी खराब करते हैं। घर खाली दीवारों दीवारें खड़ी कर देने से नहीं बनता आपस में प्रेम भाव से रखने से भी। एक दूसरे को समझने से और एक दूसरे के  प्रति प्रेम सम्मान रखने से बनता है ‌जब तुम अपनी भाभी की इज्जत नहीं करोगी तो वह कैसे तुम्हारी इज्जत करेगी भाई देवेश बोला।

              मां इस उम्र में झाड़ू लगा रही थी भाई तो मैंने टोंक दिया मुझे अच्छा नहीं लगा। हां ठीक है मां की उम्र हो रही है तो हाथ पर भी तो चलना जरूरी है देवेश बोला। बैठे-बैठे कमरे में ऊब जाती है तो थोड़ा सा काम कर लिया तो क्या हो गया। अब तुम अभी नहीं कह रही थी कि तुम्हारी सास कोई काम नहीं करती। अभी तो उनकी भी तो उम्र हो रही है आखिर तुम भी तो चाहती हो कि वह थोड़ा बहुत काम करें।  बताओ तो क्या हो गया अगर मांजी ने  थोड़ा सा काम कर लिया। तो इसका यह

मतलब तो नहीं है कि तुम्हारी भाभी मम्मी पर ध्यान नहीं देती है ‌आप तो भाई भाभी की साइड दिए जा रहे हो ।भैया साइड में ले रहा हूं सच का साथ दे रहा हूं। भाभी तुम्हारी घर की पूरी जिम्मेदारी से संभालती है ।अब मां को ही देख लो यदि किसी समय कुछ खाने को बनती है तो अपने लिए और हमारे लिए बना देती है। और शिखा के लिए नहीं बनाती है। परस कर  खाना ले आएंगी और हमसे कहेंगी की आ देवेश अपन दोनों लोग खाते हैं ।अब बताओ यह क्या अच्छी आदत है  शिखा को बुरा

नहीं लगता है ।परिवार में ऐसा भेदभाव । शिखा बनाए तो  सबके लिए बनाए और मां बनती है तो सिर्फ मेरे लिए और अपने लिए। मांजी जो वही बैठी सुन रही थी बोल पड़ी हां हां तो क्या हो गया मैं क्यों बनाऊं बहू के लिए खाना ।क्यों बहू से उम्मीद रखती हो और  तुम नहीं कर सकती कुछ उसके लिए । तुम्हारा  भी तो शिखा।ध्यान रखती है।

                   जाने दीजिए आप शिखा बोली देवेश से क्यों जाने दूं, मैं बहुत दिनों से यह देख रहा था मुझे अच्छा नहीं लग रहा था ।अगर  कोई खाना बनाता है तो सबकी लिए बनाए अलग-अलग नहीं। तुम अलग बना लो वो  अलग बना लो ये अच्छी बात नहीं है। वहां बैठी निभि भी सुन रही थी तो उसे भी बुरा लगा हां मां यह तो आप गलत करती हो, ऐसा नहीं करना चाहिए तुम अपना और भाई का बनाती हो खाना तो भाभी का भी बनाना चाहिए। भाभी भी तो सबका बनाती है वहां बैठी रेखा जी सुन रही थी

।उन्होंने वह अपनी गलती समझ में आई तूने ठीक कहा, हां बेटा तुम लोगों ने सही रास्ता दिखाया मुझे ऐसा भेदभाव नहीं करना चाहिए। आखिर घर में वह भी तो मेरा ख्याल रखती है मैं खाना बनाती हूं तो उसको उसका भी बनाना चाहिए। आखिर वह भी तो मेरे लिए बनती है अब आगे से ऐसा नहीं होगा जो काम होगा वह सब का इकट्ठे होगा रेखा जी बोली।

                निभि जो इतनी देर से भाई की बातें सुन रही थी बोल पड़ी, हां भाई बिल्कुल सही कहा आपने रिश्तों को तो प्यार से निभाया जाता है एक दूसरे की कमियां निकाल कर नहीं। अक्सर परिवार में ही देखा जाता है की बेटी को तो बेटी समझा जाता है लेकिन बहू को बेटी तो दूर बहू भी नहीं समझा जाता। हर गलत काम की  वहीं जिम्मेदार बहू होती है चाहे वह जितना भी कर ले, परिवार वाली खुश

नहीं होते हैं ।कभी एक बेटी चाहे वह बहू हो या बेटी अपनी परेशानी अपनी मां को बताती है उसकी हर  बात वक्त  गलत ही से गलत तरीके से ना ले हो सकता है वह अपनी बात कह रही हो शिकायत नहीं। अपने मन में उठते बातों को किसी न किसी से तो करना ही पड़ता है ना।

            इतनी में रेखा जी बोली चल बेटी मिलकर खाना बनाते हैं सबको भूख लगी होगी। तभी शिखा बोल पड़ी मैं बना लूंगी आप बस सब्जियां काट दीजिए बैठे-बैठे ।और हां डरियें मत  मैं आप सबका खाना बनाऊंगी सिर्फ अपना नहीं। अब सब जोर से हंस पड़े ।निधि उठ खड़ी हुई चलो भाभी हम दोनों मिलकर काम करते हैं। फिर सभी  मिलकर खाना खाएंगे ।तो पता ना चल अब सभी इकट्ठे बैठकर खाना खा रहे थे और आज घर की दीवारें भी मुस्कुरा रही थी ।सही महीने में घर आज घर बना है जहां पूरे परिवार से हंसी गूंज रही थी।

             दोस्तों हम घर में सास बहू ननद बेटा मिल कर रहे। सब बिना मतलब के ही तनाव की स्थिति पैदा करते हैं। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम कुछ बातों को नजरअंदाज करके हंसी-खुशी परिवार में फैलाएं ।एक दूसरे से नफरत और कड़वाहट को दूर भगाएं। कितना अच्छा होता यदि किसी तरह इस बात को समझ सके हर तरफ एक खुशहाल परिवार हो कोई लड़ाई झगड़ा नहीं।

धन्यवाद 

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

290जुलाई 

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