वक्त का फैर – सुनीता माथुर : Moral Stories in Hindi

विश्वनाथ के घर आज बड़ी खुशियां मनाई जा रही थीं विश्वनाथ की पत्नी शेफाली बहुत खुश थी आखिर खुश भी क्यों ना हो—- उसके पति का मैनेजर की पोस्ट पर प्रमोशन हो गया था।  उनके दोनों बच्चे मीनल और मिहिर बहुत खुश थे अपने स्कूल के दोस्तों को भी पार्टी में बुलाया था विश्वनाथ के मकान

के बगल वाले पोर्शन में उनके छोटे भाई का परिवार रहता था लेकिन— विश्वनाथ अपनी पत्नी की ज्यादा बात मानता था! विश्वनाथ की पत्नी शेफाली ने अपने देवर देवरानी को पार्टी में बुलाने से मना कर दिया क्योंकि शेफाली का कहना था, उनका स्टैंडर्ड अपने स्टैंडर्ड के बराबर नहीं है, वह गरीब हैं

अपनी पार्टी मे—– सब स्टैंडर्ड के लोग आएंगे! विश्वनाथ को पहले तो बुरा लगा कि वह अपने छोटे भाई के परिवार को अपनी खुशियों में शामिल नहीं कर पा रहा,—— पर वह अपनी पत्नी के मारे कुछ नहीं बोला आखिर पार्टी शुरू हो गई।

विश्वनाथ के बगल वाले पोर्शन में सन्नाटा छाया हुआ था! क्योंकि विश्वनाथ का छोटा भाई राघव—- गरीब था! एक सरकारी ऑफिस में बाबू की पोस्ट पर था, ईमानदार था, इस कारण उसने ज्यादा पैसा नहीं कमाया बस रोजी-रोटी उसकी चल जाती थी——- राघव की पत्नी सारिका भी बहुत एक्टिव थी, पढ़ी लिखी थी, और बहुत अच्छे से घर संभालती थी। सारिका—— अपनी बेटी अन्वी को अच्छे

संस्कार सिखाती थी, अन्वी और मीनल दोनों बी.ए फर्स्ट ईयर में एक साथ आई थीं। मीनल का भाई मिहिर छोटा था और 10th में पढ़ता था। शेफाली और उसके दोनों बच्चों को अपने पापा के पैसों का बहुत घमंड था खूब पार्टियां मनाते थे और पैसा उड़ाते थे कार भी दरवाजे पर खड़ी थी। 

विश्वनाथ के दोनों बच्चे अपने चाचा को कुछ भी नहीं समझते थे। उनका आदर भी नहीं करते थे, लेकिन राघव की बेटी अन्वी पढ़ाई में बहुत अच्छी थी उसका सपना था कि वह आई.ए.एस ऑफिसर बने इसलिए रात दिन पढ़ाई में मेहनत करती—— लेकिन मीनल उसे हमेशा नीचा दिखाती थी कि—

— तुम्हारे पास तो अच्छी ड्रेस भी नहीं है, तुम्हारे पास कार भी नहीं है, घर का स्टैंडर्ड भी अच्छा नहीं है पर अन्वी चुप रहती थी, कभी-कभी अपनी मां से मीनल की शिकायत करती——  पर मां हमेशा यह कहती तुम किसी पर ध्यान मत दो तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो वक्त सबका बदलता है वक्त पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए—– तुम्हारे पापा ईमानदार हैं ईमानदारी से पैसा कमाते हैं, तो भगवान भी अपना साथ देगा।

वक्त आगे बढ़ता जा रहा था देखते-देखते अन्वी बी.ए में फर्स्ट आती है और— आई.ए.एस की परीक्षा में भी पास हो जाती है! अब उसकी पोस्टिंग भी इसी शहर में हो जाती है, सारा घर खुशियां मनाता है। सारिका अन्वी से कहती है देखो—— हमने बोला था ना वक्त सबका बदलता है, आज तुमने हमारा

नाम रोशन कर दिया!—– यही तो “वक्त का फेर” है और अन्वी के ताऊजी की लड़की मीनल सिर्फ पास हो पाती है।  मीनल का छोटा भाई मिहिर गलत संगत में पड़ जाता है, और हर साल फेल होता जाता है 10th पास नहीं कर पाता— नशा करने लगता है, पैसा उड़ाता है,— क्योंकि उसके पापा ऐक

प्राइवेट कंपनी में मैनेजर थे उनकी बहुत ज्यादा तनख्वाह थी, पैसों की कोई कमी नहीं थी। वह अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते और मां—- शेफाली अपनी किटी पार्टी में लगी रहती, और पैसा उड़ाती रहती। 

अन्वी जैसे ही आई.ए.एस ऑफिसर बनती है तो उसको गाड़ी, बंगला, नौकर, चाकर सब कुछ मिल जाता है! यह सब सादगी से रहने का और बेटी की पढ़ाई——– और माता-पिता के संस्कार का ही नतीजा था! आज राघव का और सारिका का सर गर्व से ऊंचा हो जाता है, सभी लोग उनकी तारीफ करते हैं— देखते-देखते राघव का परिवार बंगले में शिफ्ट हो जाता है और अपने मकान को किराए

पर दे देते हैं—– राघव सभी को मिठाई बांटता है और  बैर- भाव भूल कर अपने बड़े भाई विश्वनाथ को भी मिठाई खिलाने जाता है— लेकिन विश्वनाथ तो खुश होते हैं! और बधाई देते हैं!—— पर राघव की भाभी शेफाली मुंह बना लेती है कुछ नहीं बोलती।

सब कुछ अच्छा चल रहा था बेटी की नौकरी से घर में खुशियां आ गई थीं कि——- एक दिन राघव को पता चलता है, कि——- उनका बड़ा भाई विश्वनाथ बहुत परेशानी में है उसकी कंपनी को घाटा हो गया और छोटा बेटा भी बहुत बिगड़ गया।——घर में आर्थिक  परेशानी आ गई! यह देखकर राघव का मन पिघल जाता है! और वह अपनी पत्नी सारिका से बोलता है कि मेरे बड़े भाई विश्वनाथ के

परिवार पर बहुत मुसीबत आ गई है सारी बात सारिका को बताता है—– सारिका कहती है चलो अपन उनकी मदद करते हैं, जब तक वह नई कंपनी में जॉब ढूंढते हैं अपन थोड़े पैसों से जैसे भी सहायता बनेगी, उनकी मदद कर देंगे! राघव जैसे ही अपने परिवार सहित अपने बड़े भाई विश्वनाथ के

यहां उनकी सहायता करने पहुंचते हैं तो विश्वनाथ और उनकी पत्नी—-आश्चर्यचकित रह जाते हैं——– कि हमने हमेशा अपने छोटे भाई के परिवार की बेइज्जती की और उन्हें नीचा दिखाया वही आज हमारी मुसीबत में—— हमारे साथ खड़े हैं! उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं और पश्चाताप होने

लगता है। यही तो भाई का प्यार है जो अपने बड़े भाई की मुसीबत में साथ देने के लिए तुरंत चला गया— लेकिन जब छोटा भाई साधारण स्थिति में था तो बड़े भाई ने उसको अपने घर की पार्टी में बुलाने से भी इनकार कर दिया कि——- उनका स्टैंडर्ड छोटा हो जाएगा! यही तो “वक्त का फेर” है इसीलिए कहते हैं समय एकसा नहीं रहता “वक्त से डरो”।

  सुनीता माथुर 

 मौलिक स्वरचित रचना 

 पुणे महाराष्ट्र

#वक्त से डरो 

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