नमिता जी का शव घर के आँगन मे रखा हुआ था। तुलसी के पौधा का गमला उनके सिरहाने रखकर उसमे कुछ अगरबत्ती जला कर गाड़ा हुआ था। मुख मे भी तुलसीपत्र रखा हुआ था। नमिता जी की आँखे बंद थी और चेहरे पर असीम शांति थी। लग रहा था जैसे बहुत बड़ी पीड़ा से आजाद होकर सुकून भरी गहरी नींद मे हो।
मृत्यु शायद सभी दुख सुख से परे गहरी आत्म शांति ही है।जो इस लोक को छोड़कर परलोक चले जाते है वे तो गहन शांति मे डूब जाते है पर उनके पीछे जो रह जाते है उनकी पीड़ा मे जाने वाले की पीड़ा भी समाहित हो जाती है और यह एहसास तब और बढ़ जाता है जब वह जाने वाले की चाह कर भी कोई मदद नहीं कर पाया होता है।
आज इसी स्थिति से नमिता जी के पति गुजर रहे थे। वे अपनी आँखो को उपर की ओर किये शून्य मे निहारते हुए अपनी पीड़ा को आत्मसात कर रहे थे। नमिता जी को आज से छह माह पूर्व ब्रेन हेमरेज हुआ था उससे उनकी जान तो नहीं गईंथी पर शरीर लकवाग्रस्त हो गया था।उस दिन तो उनके पति यह जानकर बहुत खुश हुए कि जान बच गईं, पर उन्हें उस समय क्या पता था
कि आगे उन्हें ओर उनकी पत्नी को क्या क्या दुख देखने थे। इन छह माह मे पत्नी के साथ वह भी तिल तिल कर मर रहे थे। आज नमिता जी को उनके दुख से छुटकारा मिल गया था,पर उनके पति को तो उनके हिस्से का भी दुख मिल गया था।इन छह माह मे उन्होंने नमिता जी की जी जान से सेवा की थी। समाज मे बहू की बेइज्जती नहीं हो यह सोचकर
उन्होंने कभी किसी के सामने यह नहीं दर्शाया कि अपनी पत्नी की सेवा वे करते है। सदा सामने वालो को यही दिखाया गया कि उनकी बहू सास की सेवा करती है। यहाँ तक की उनके बेटा को भी नहीं पता था कि उसकी पत्नी नहीं उसके पिता माँ की सेवा करते है। उसने माँ के काम के लिए एक नर्स रखने को भी कहा था पर उसकी पत्नी ने यह कहकर मना कर दिया
कि माता – पिता की सेवा करने से पुण्य मिलता है इसलिए वह ही माँ की सेवा करेगी।उसका पति भी यह सोचकर बहुत खुश था कि मै कितना भाग्यशाली हूँ जो मुझे इतनी अच्छी पत्नी मिली है। बहू ने कहने को तो कह दिया कि वह सेवा करेगी, परन्तु सेवा तो दूर की बात है वह तो एक पल के लिए भी सास के कमरा मे नहीं जाती थी,
लेकिन जब कोई पड़ोसी या रिश्तेदार नमिता जी से मिलने आता तो वह उनके पास जाती ओर सबको कहती देखिए माँ जी का मै कितने अच्छे से ख्याल रखती हूँ।नमिता जी ओर उनके कमरे को उनके पति इतनी साफ – सफाई से रखते थे कि लगता ही नहीं था कि वे रोगी है या रोगी का कमरा है।नमिता जी के पति एक सेठ के दुकान का हिसाब किताब देखते थे।
पैसे कम थे पर परिवार छोटा होने के कारण गुजारा हो जाता था।पति पत्नी और एक बेटा, बस इतने ही लोग थे परिवार के नाम पर। बेटा बारहवीं करने के बाद सेना मे चला गया था।नौकरी लगने पर कम उम्र मे ही उन्होंने बेटे का विवाह कर दिया था। बेटा का जब विवाह हुआ उस समय नमिता जी की उम्र भी ज्यादा नहीं थी
इसलिए वे अन्य सासो के जैसे बहू पर हुक्म चलाने की जगह बहू के साथ मिलकर घर के सारे काम भी करा देती थी। मिलकर कहना गलत ही होगा क्योंकि बहू की जब कभी मर्जी होती थी तो वह सास के साथ कुछ काम करवा देती थी, नहीं तो सारे काम नमिता जी ही करती थी।शुरू शुरू मे उन्होंने यह सोचकर कि बच्ची है काम का ज्यादा बोझ क्या डालना उन्होंने बहू को काम करने को नहीं बोला,
पर धीरे धीरे बहू ने यह आदत ही बना लिया।कुछ दिनों बाद जब एक बेटी हुई तब तो बहू को और काम नहीं करने का बहाना ही मिल गया। दिनरात बेटी की देखभाल कर रही हूँ, बेटी रात को चैन से सोने नहीं देती आदि उसके पास हजारों बहाने थे। करते करते बेटी बड़ी हो गईं। वह काम मे अपनी दादी की मदद करने लगी, पर बहू के स्वभाव मे कोई परिवर्तन नहीं हुआ।
नमिता जी की भी अब उम्र बढ़ रही थी पर बहू की तरफ से मदद की उम्मीद बेकार थी। छह माह पूर्व पोती की शादी मे अत्यधिक काम करने और पोती के ससुराल चले जाने से अत्यधिक टेंशन के कारण उनका ब्रेन हेमरेज हो गया था। बेटा बार बार कहता था कि माँ इतना काम मत करो, तुम्हारी बहू कर ही रही है तुम थोड़ा आराम कर लिया करो, पर यह कहकर कि विवाह वाला घर है
एक आदमी के काम करने से नहीं चलेगा वे सारे काम करती थी। तब बेटा को क्या पता था कि मेरी पत्नी सिर्फ मेरे सामने दिखावे के लिए काम करती है मेरे घर से बाहर जाते ही आराम करने चली जाती है। बेटी की शादी के बाद नमिता जी का बेटा ड्यूटी पर चला गया। बस थोड़े दिनों बाद ही अचानक रात मे नमिता जी की तबियत खराब होने लगी, पड़ोसियों की सहायता से अस्पताल ले जाया गया।
समय पर इलाज शुरू होने से जान बच गईं पर शरीर का बाये अंग ने काम करना बंद कर दिया। डॉक्टर ने कहा था कि सही से सेवा होंगी तो ठीक होने की संभावना है। यही सोचकर कल रात उनका बेटा सेना से सेवानिवृत होकर घर आया। अपने आने की बात उसने किसी से नहीं बताई थी। उसने सोचा था कि वह स्वयं जाकर बताएगा कि उसने रिटायरमेंट ले लिया है
और वह एक कम्पनी मे सुपरवाजर का काम करेगा और सभी साथ रहेंगे। दोनों पति पत्नी मिलकर माँ की सेवा करेंगे और माँ को जल्द से जल्द ठीक कर देंगे। पर जब वह सुबह घर पहुंचा तो देखा कि पत्नी सो रही थी, पापा बुखार से तप रहे थे और माँ अब इस दुनिया मे नहीं थी। तीन चार दिन से नमिता जी के पति को वायरल बुखार हो रहा था
उन्होंने बहू को कहा भी कि बहू मेरी तबियत ठीक होने तक माँ का काम तुम कर दो। कही मुझसे उन्हें भी संक्रमण ना हो जाए, पर बहू ने उनकी बात नहीं मानी।नमिता जी का काम उनके पति को ही करना पड़ता था जिससे उनसे नमिता जी को भी संक्रमण हो गया और बुखार लग गईं। इधर उनके पति भी बुखार से इतने पीड़ित थे कि वे नमिता जी का कोई काम नहीं कर पा रहे थे.
रात मे उन्होंने बहू से कहा कि तुम्हारी सास को बाथरूम जाना है मै कमजोरी से उठ नहीं पा रहा तुम पहुंचा दो पर बहू ने ध्यान नहीं दिया और सोने चली गईं। उन्हें अपनी बेबसी पर रोना आ रहा था। बहू की ज़्यादती का चरम हो गया था तब उनके मुँह से निकल गया तुम जो यह सोचती हो कि किसी को कुछ पता नहीं है तो बहू यह मत भूलो कि भगवान सब देखता है। तुम्हारे पापो का भी हिसाब होगा।
यह कहकर वह बेहोश हो गए। शायद उनके बेबसी को भगवान से भी नहीं देखा गया उन्होंने नमिता जी को इस कष्टमय जीवन से आजाद कर दिया और बिना बताए आने के कारण बेटे को अपनी पत्नी का सही रूप भी दिख गया, बाकी बचा उसकी बेटी ने पिता को बताया कि किस तरह माँ घर के सारे काम दादी से करवाती थी और दादी यह सोचकर आपको नहीं बताती थी
और मुझे भी नहीं बताने देती थी कि आप कुछ दिनों की छुट्टी पर आये है आप बेकार परेशान होंगे। सब कुछ जानने के बाद नमिता जी के बेटे ने श्राद्ध के बाद अपने पिता को साथ लेकर अपनी नई नौकरी ज्वाइन करने चला गया।
घर मे पत्नी को यह कहकर छोड़ गया कि आज से मै या मेरी बेटी तुमसे कोई संबंध नहीं रखेंगे।तुमसे विवाह किया हूँ तो तुम्हे भूखे नहीं मरने दूंगा। तुम्हारे खाने पहनने के लिए पैसा आ जाएगा पर अब तुम्हे आजीवन यही पर रहकर समाज के लोगो के ताने उलाहने सुनकर अपना शेष जीवन अकेले काटना होगा।
वाक्य – बहू यह मत भूलो कि भगवान सब देखता है
लतिका पल्लवी