कठपुतली – के आर अमित : Moral Stories in Hindi

नहर से बहती आ रही एक औरत की लाश पर जैसे ही आसपास के लोगों की नजर पड़ी लोग तुरन्त उस तरफ भागने लगे। लोगों ने देखा एक औरत जो कम उम्र की ही लग रही थी पानी की धाराओं में धीरे धीरे बहती जा रही थी। उनमे सी किसी ने तुरंत पुलिस को फ़ोन किया तो किसी ने लोकल गोताखोर को। कुछ ही देर में पुलिस और वो गोताखोर घटनास्थल पर पहुंच गए

लाश तबतक मुश्किल से पांच सौ मीटर ही आगे गई थी। गोताखोर ने बिना देर किए पानी मे छलांग लगाई और काफी मशक्कत के बाद उस औरत की लाश को बाहर किनारे पे ले आया। तबतक पुलिस ने लोगो की भीड़ को थोड़ा पीछे कर दिया।

लाश के बाहर आने पर महिला पुलिस ने उस औरत के पास किसी तरह का कोई पहचान का निशान ढूंढने की कोशिश की जैसे ही उसने उसके बाजू के ऊपरी हिस्से पे हाथ लगाया तो उसे किसी चीज का एहसास हुआ

कपड़ा थोड़ा ऊपर उठाने पे देखा तो पाया कि एक कागज लिफाफे में बंद टेप के साथ चिपकाया हुआ था। पुलिस ने टेप निकालकर वो कागज बाहर निकाला उसपर एक लंबा आत्महत्या का नोट लिखा हुआ था जिस पर लिखा था…..

मेरा नाम स्वाति शर्मा है मैं ऊना हिमाचल प्रदेश के तरमेडा गांव की रहने वाली हूँ। मेरे घर मे मां बाप और बड़ा भाई हैं मेरे घर वालों ने मेरा हर वो सपना पूरा किया जो मैंने देखा था। पिताजी मुझे खूब पढ़ाना लिखाना चाहते थे

ताकि मैं बड़ी होकर अपने पांव पे खड़ी हो जाऊं और अपने परिवार का नाम रोशन करूँ मगर मैंने जो किया उसके बदले में मैंने जो दर्द पाया शायद वो मेरे कर्मो के हिसाब से बहुत कम था मैं इसी सजा की हकदार थी।

बाहरवीं में मैंने पूरे हिमाचल में टॉप किया पिताजी ने मेरा एडमिशन ऊना कॉलेज में करवा दिया मैं शुरू से ही पढ़ने लिखने और धार्मिक कामों में बहुत रुचि रखती थी। रोज सुबह मंदिर जाना मेरी दिनचर्या का हिस्सा था और ये संस्कार शायद मुझे मेरे परिवार से ही मिले थे क्योंकि पूरा परिवार शुद्ध शाकाहारी और भगवान में आस्था रखने वाला था।

एक दिन जब मैं मंदिर से आ रही थी तभी मंदिर के बाहर एक लड़का जो मेरी तरफ देख रहा था मेरी नजर उसपर पड़ी वो अजीव नजर से मुझे देख रहा था मैं नजर नीचे करके बहां से निकल गई। अब ये रोज का हो गया वो लड़का हमेशा सुबह सुबह बहीं खड़ा दिखाई देता कुछ दिन तक ऐसे ही चलता रहा। 

एक दिन जब मैंने देखा तो वो लड़का थोड़ा सा मुस्कुराया अगले दिन उसने नमस्ते कहा मगर मैंने कोई जवाब नही दिया। कुछ और दिन वो किसी न किसी बहाने मुझे बुलाने की कोशिश करता मगर मैं हमेशा चुपचाप निकल जाती।

फिर एक दिन जैसे ही मैं बाहर निकली तो उसने कहा कि और कुछ नही तो प्रशाद ही दे दो मैं कुछ बोली नही मगर हाथ से थोड़ा सा प्रशाद उसके हाथ मे रख दिया उसने खाया की नही मुझे नही पता मैं आगे निकल गई। धीरे धीरे हम दोनों हेलो हाय तक पहुंच गए। 

एक दिन जब मैं कॉलेज जाने के लिए बस अड्डे पे खड़ी थी तो वो ही लड़का मेरे पास आकर खड़ा हो गया मुझे अजीब लगा मगर तबतक बस आ गई मैं बस में चढ़ी वो भी मेरे साथ बस में चढ़ गया और मेरे साथ वाली सीट पर बैठ गया उसने बात शुरू की मैं भी जवाब देती रही

अब वो कभी मंदिर के बाहर कभी बस में मुझे मिलने लगा वो देखने में काफी आकर्षक था उसकी बातें भी बहुत मनमोहक थी पता नही उसने क्या जादू किया कि मैं उसकी तरफ खींचते चली गई। एक दिन मैंने उससे कहा कि मैं तो आपका नाम भी नही जानती

आप कौन हो कहाँ से हो ये भी नही पता तो वो मुस्कुराकर बोला मेरा नाम लकी है मैं यहां डॉक्टर की दुकान करता हूँ बैसे मैं मलेरकोटला पंजाब से हूँ।

धीरे धीरे हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए नम्बर एक्सचेंज हुए तो आपस मे बातें भी होने लगी उसकी बातें मुझे बहुत अच्छी लगती थी वो हमेशा मजाक करता मैं जब भी किसी प्रॉब्लम में होती तो वो मुझे होंसला देता और मुझे हंसाकर ही फ़ोन रखता।

अब हमारी मुलाकात बाहर भी होने लगी कभी कभी मैं कॉलेज के बहाने उससे मिलने चली जाती और कब रेस्टोरेंट में समोसे की प्लेट से होटल के बेड तक पहुंच गई कुछ पता ही नही चला मैं न चाहकर भी उसे मना न कर सकी।अब अक्सर हम होटल में जाने लगे और वो मुझे बड़े बड़े सपने दिखाकर मेरे साथ मनमर्जी करता रहा।

चार पांच महीने गुजर गए एक दिन मैंने जब जोर देकर उसे कहा कि ऐसे कबतक चलेगा आखिर कब तुम अपने माँ बाप को मेरे घर रिश्ते के लिए भेजोगे ताकि हमारी शादी हो जाए।

अब जब मैं ज्यादा जोर डालने लगी तो एक दिन जो उसने कहा वो सुनकर मेरे पैरों तले जमीन निकल गई। अब उसका व्यबहार बदला हुआ था उसके बोलने का तरीका अलग था वो एकदम से बोला कि हमारे यहां शादी नही निकाह होता है बोलो करोगी मुझसे निकाह। मैं अवाक से उसे देखती हुई बोली ये क्या बकबास है तुमने तो अपना नाम लकी बताया था

उसने कहा हां तो मेरा नाम लकी अली है। तुमने कभी पूछा नही नाम पूछा मैंने बता दिया था मैंने कोई झूठ थोड़ी बोला था। मैंने उसे कहा कि तुम्हे तो पता था कि मैं हिन्दू हूँ रोज मन्दिर जाती हूँ तो तुमने जानते हुए भी ये सब क्यों किया। वो बोला जिस दिन पहली बार तुम्हे देखा उसी दिन मैं दिल हार गया

तुम्हारी सादगी खूबसूरती मेरे सपनों की राजकुमारी जैसी थी मैं तुम्हे जान से ज्यादा चाहने लगा था तो भला अगर मैं तुम्हे सच बताता तो क्या तुम मुझसे प्यार करती मैं तुम्हे खोना नही चाहता था बस इसलिए तुमसे छुपाया।

मैं अंदर से टूट गयी और आंसुओं का सैलाब लिए घर आ गई घर के कमरे में खूब रोई उसका फोन आया मैंने कई बार काट दिया फिर वो नम्बर बदल बदलकर फोन करने लगा अब उसने मुझे वट्सप पे मेरी निजी तसबीरें भेजनी शुरू कर दी ये कहकर की देखो हमारे प्यार की निशानियां ये तसबीरें क्या तुम ये पल भूल पाओगी मैं तो हमेशा इन तस्बीरों के सहारे जी लूंगा

हमेशा तुम्हारा इंतज़ार करूँगा चाहे तुम आओ या न आओ। ये ब्लैकमेलिंग थी या इमोशन मुझे समझ नही आ रहा था।असल मे मैं भी उसे दिल से प्यार करने लगी थी उसके प्यार कि पट्टी आंखों पे ऐसी बंधी की मैं सबकुछ जानते हुए भी अनजान होने का नाटक खुद से ही करने लगी। मैं दिमाग से सोचने की बजाए दिल से हार गई क्योंकि अब मेरे पास बचा ही क्या था।

कुछ दिन बाद हमारे रिश्ते पहले की तरह हो गए और मैं उससे निकाह के लिए भी तैयार हो गई थी। मैंने अपनी मां से बात की उसे बहुत समझाया मगर मेरी माँ ने कहा कि ये बात मुझसे तो कह दी गलती से अपने भाई या बाप को मत कह देना नही तो क्या होगा भगवान जाने। उसने मुझे बहुत समझाने की कोशिश की कि ये प्यार बयार चार दिन का होता है

जैसे ही आदमी का मन भर जाता है औरत कहीं की नही रहती ये जो चांद सितारे तोड़कर लाने की बात करते हैं ये ऐसी जगह ले जाकर पटक देते हैं कि दिन में भी तारे नजर आने लगते हैं वो कौन है उसके घरवाले कैसे हैं

परिवार कैसा है बिना कुछ जाने तुमने अपनी जिंदगी का फैंसला कर लिया कल को अगर उसके मां बाप तुम्हे न रखें तो क्या करोगी क्या वो तुम्हे नौकरी करने देंगे

क्या तुम्हारी ये सारी पढ़ाई इसलिए करवाई की तू घर के किसी कोने में पत्थर बनकर बैठी रहे। मां ने बहुत समझाया मगर उसकी बातें मेरे सिर के ऊपर से गुजर रही थी मुझे कोई फर्क नही पड़ रहा था।

एक रात की बात है कि हम दोनों ने भागने की स्कीम बनाई और मैं रात को घर से कुछ पैसे चुराकर भाग निकली। लकी बस स्टैंड पे मेरा इंतज़ार कर रहा था हम दोनों बस पकड़कर चंडीगढ़ पहुंच गए। लकी ने मुझे कहा कि कुछ दिन हम यहीं रहेंगे बाद में जब बात ठंडी हो जाएगी तब अपने घर चले जाएंगे।

हम होटल में रुके थे होटल में टाइमपास के लिए मैं रोज अखवार बगैरह पढ़ती थी। घर से भागे हुए बारह दिन हो चुके थे तेहरवें दिन जब अखवार पढ़ते पढ़ते मेरी नजर एक विज्ञापन पर पड़ी तो मैं सन्न रह गई विज्ञापन में मेरी तस्बीर लगी थी

जिसमे लिखा था आज हमारी बेटी की तेहरवीं है सभी लोग उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें। मेरे घरवालो ने जीते जी मेरा पिंडदान श्राद्ध सबकुछ कर दिया था।

ये मेरे लिए एक सदमे जैसा था अब मेरे पास बापिस जाने के सारे रास्ते बंद हो चुके थे। कुछ दिन बाद लकी मुझे अपने घर ले गया कुछ दिन तक सब ठीक रहा मगर जैसे जैसे दिन गुजरने लगे उनका व्यबहार बदलने लगा बात बात पर उसके घरवाले ताने मारने लगे

कि जाने कैसे घर की है अच्छे घर की होती तो भागकर थोड़ी आती क्या पता कहाँ कहाँ मुहँ मारकर हमारे बेटे के पल्ले पड़ गई। मेरा घर से निकलना लगभग बन्द हो चुका था मैं घर मे कैद हो चुकी थी बाहर की दुनिया से कट चुकी थी रोज के रोज मुझपर बंदिशें बढ़ती जा रही थी

अब मेरे कपड़ो पे भी सवाल उठने लगे घर से बाहर कभी जाना भी हो तो मुझे बुर्के में मुहँ ढककर जाना पड़ता मेरी अपनी पहचान खत्म हो चुकी थी अब मैं सिर्फ एक बस्तु बनकर रह गई थी जिसका उपयोग दिन में नौकरानी की तरह काम करना

और रात को पति की सेवा। मेरी सारी पढ़ाई लिखाई रद्दी हो चुकी थी खाना बनाना साफ सफाई कपड़े धोना उनके टॉयलेट बशरूम साफ करना ही मेरी जिंदगी बन चुकी थी।

अब लकी का व्यबहार भी बदलने लगा वो बात बात पर तलाक देने की धमकी देता और मुझे कठपुतली की तरह अपनी उंगलियों पे नचाता छोटी छोटी बात पर मारपीट आम हो गया था अब उसके लिए मैं बोझ बन गई थी।

उसके घरवाले उसका निकाह उसकी फूफी की बेटी से करवाना चाहते थे क्योंकि वो काफी अमीर थे और मोटा दहेज आने वाला था इसलिए उसके मां बाप मुझे तंग करने लगे ताकि मैं उसके दूसरे निकाह के लिए राजी हो जाऊं मगर मुझे ये मंजूर नही था। मैं घुट घुटकर पिंजरे में कैद पंछी की तरह छटपटाने लगी मेरे पंख कतरे जा चुके थे

मैं जाती भी तो कहां? घरवालो ने मेरा श्राद्ध कर दिया था। अब मुझे हर वो काम करने को मजबूर किया जाने लगा जो मैंने कभी सोचा भी न था

मैं शुद्ध शाकाहारी परिवार से थी अंडा मांस सोचकर भी घिन्न आती थी मगर अब वो कहने लगे कि जो घर मे बना है खाना पड़ेगा रोज रोज तुम्हारे लिए अलग से सब्जी लाने को तुम्हारे बाप ने कोई खजाना नही दे रखा है। मैं अचार के साथ रोटी खाती रही। 

सबकुछ सहती रही मगर कबतक एक कठपुतली बनकर नाचती रहती कबतक इस उम्मीद में खुद को सजा देती की आगे सबकुछ ठीक हो जाएगा इसकी आखरी उम्मीद टूट चुकी थी अगले हफ्ते लकी का दूसरा निकाह उसकी फूफी की लड़की से है मैंने बहुत हाथ पैर जोड़े मगर उसके घरवालों ने साफ कह दिया कि या तो अपने घर से दस लाख रुपए लाकर दो या फिर चुपचाप जो हो रहा है

होने दो हमारे यहां दो क्या चार शादियां भी जायज हैं।अब मैं और बर्दाश्त नही कर सकती थी इसलिए मुझे फैंसला करना था

और मैंने कर लिया आज वो सब शादी का सामान लेने बाजार गए तो बाहर गेट को ताला लगा गए मैं किसी तरह दीवार से कूदकर बाहर तो निकली पर जाती कहाँ इसलिए मैंने भगवान के पास जाने का निर्णय कर लिया।

अपनी कहानी को लिखने का मकसद सिर्फ इतना है कि इस कहानी को अखवार में छापें ताकि अगर और कोई लड़की ऐसा कदम उठाने का सोच रही है तो वो अपना फैंसला बदल लें मेरी बजह से अगर कोई नरक में जाने से बच सकती है तो मेरे पापों का थोड़ा प्रायश्चित होगा। मेरी सभी लड़किओं से बिनती है

कि शादी माँ बाप की मर्जी से ही करें चाहे जिसे प्यार करती हो उससे करें मगर घरवालों की मर्जी से। किसी ऐसी मंजिल का सपना न देखें यहां से बापिस आने का कोई रास्ता ही न बचे बिना किसी को जाने उसपर अंधा बिस्वाश न करें। मां बाप अपनी औलाद के लिए कभी बुरा नही सोचते जो भी करते हैं उनकी भलाई के लिए होता है

ताकि भविष्य में उनके बच्चे तड़प तडप कर उनकी आंखों के सामने न जिएं। मैं उम्मीद करती हूं कि मेरे परिवार वाले मुझे माफ़ कर देंगे और कम से कम मेरा अंतिम संस्कार अपने हाथों से कर देंगे ताकि मेरी आत्मा को मुक्ति मिल सके। पापा मां भैया मुझे माफ़ कर देना प्लीज।

                  के आर अमित

         अम्ब ऊना हिमाचल प्रदेश

Leave a Comment

error: Content is protected !!