बहु ये मत भूलो, की भगवान् सब देखता है । – लक्ष्मी त्यागी :

अब नंदिनी, अपनी मन मर्जी से सभी कार्य करती है , उसे किसी की कोई  परवाह नहीं ,जब नंदिनी इस घर में नई – नई आई थी, तो चुपचाप और शांत रहती थी। देविका जी चाहती थीं – बहू !को कभी अपने घर की याद न आये , इस घर को भी अपना समझे, अपना बना ले और खुश रहे इसीलिए हमेशा उसके साथ लगी रहतीं और उसे

समझातीं किन्तु तब भी नंदिनी चुप ही रहती,उसके इस तरह चुप रहने से देविका जी को लगता, शायद बहू का यहां मन नहीं लग रहा है। वो उसे बड़े प्यार से घर- गृहस्थी की सारी बातें समझातीं उसके साथ कार्य करवातीं। 

एक दिन पड़ोसन देविका जी से कहती है -देविका जी ! अब तो इस घर -गृहस्थी के झंझट से छुटकारा पाओ ! अब तो बहू घर में आ गई है ,उसे सब संभालने दीजिए। 

                                                        किंतु’ देविका जी’ मुस्कुरा कर कहतीं  – अभी बालक ही तो है, नई-नई आई है, तमाम उम्र काम ही करना है। धीरे-धीरे सब समझ जाएगी और संभाल भी लेगी। देविका जी चाहती थी कि बहू खुश रहे और अपनी जिम्मेदारियों को धीरे-धीरे संभाल ले। कुछ महीनों पश्चात ही उन्हें खुशखबरी मिली, अब वो दादी बनने वाली है , यह सुनकर तो देविका जी बहुत प्रसन्न हुईं और नंदिनी से बोलीं  -बेटा ! किसी बात की चिंता मत करना ! हमेशा खुश रहना, खुश रहोगी तो बच्चा भी तंदुरुस्त और स्वस्थ पैदा होगा। उन्होंने नंदिनी के लिए बहुत सारे फल और मेवे मंगवा दिए।

 अभी शुरुआत हुई थी, नंदिनी की तबीयत थोड़ी खराब रहने लगी, उन्होंने नंदिनी की परेशानी को समझा और बोलीं – शुरू- शुरू में किसी-किसी को यह परेशानी होती है समय के साथ-साथ सब ठीक हो जाएगा। इस प्रसन्नता में अब वे ही घर के सभी कार्य संभाल रहीं थीं। 

एक दिन जब नंदिनी को उसकी सास डॉक्टर के दिखाने ले गई तो डॉक्टर ने कहा -बच्चा बहुत ही तंदुरुस्त है वजन बढ़ता जा रहा है ,ज्यादा वजन भी इसकी सेहत के लिए अच्छा नहीं है। इससे इसे ही दिक्कत होगी सारा दिन आराम भी नहीं करना चाहिए ,इससे कहिए !यह थोड़ा काम भी करवाये  और घूमने भी जाए।

 देविका जी बोलीं – ठीक है और घर आकर नंदिनी से बोलीं – बेटा !तुम टहल -टहलकर जो भी काम है वह कर लिया करो ! जैसे सामान संभालना है, इस तरीके की छोटे-मोटे काम कर लिया करो !

 अभी तक तो नंदिनी आराम से मजे से जी रही थी उसको इस तरह काम करना पसंद नहीं आया और अपने पति से कहा – आपकी मां ने डॉक्टर से कहा है ,’सारा दिन बैठी रहती है ,इसलिए डॉक्टर ने उन्हें सलाह दी है कि वह मुझसे काम करवाये ,अब आप ही बताइये ! मैं इस स्थिति में कैसे कार्य कर सकती हूं थक जाती हूं। 

कोई बात नहीं तुम आराम करो ! मम्मी अपने आप संभाल लेंगीं,बात को न समझते हुए , वह बोला। नंदिनी कहती भी कुछ नहीं थी और करती भी कुछ नहीं थी। 

ऑपरेशन से नंदिनी को एक बेटा हुआ तब डॉक्टर ने कहा – मैंने तुमसे पहले ही कहा था-‘ गर्भवती महिलाओं के लिए थोड़ा योग और कार्य भी जरूरी होता है।’इसीलिए ऑपरेशन की नौबत आई है। 

 बात आई गई हो गई ,अब घर में एक नया सदस्य जुड़ गया था नंदिनी को छह महीने का परहेज़ के साथ आराम करने के लिए कहा गया था। तब भी देविका जी ने ही सारे कार्य संभाल लिए और पोते की भी बड़े लाड- चाव परवरिश कर रहीं थीं। कभी उसकी मालिश करतीं  कभी उसकी नैपी बदलती। लगातार इस तरह कार्य कर रही थीं  किंतु अब उनकी भी उम्र उनसे थमने के लिए कह रही थी, उन्हें भी एहसास होने लगा था कि नंदिनी कुछ भी कार्य करना नहीं चाहती है अभी तक तो वे यही सोच रही थीं  कि बहु इस घर को अपना समझेगी और कार्यों में मेरा हाथ बटाएंगी लेकिन ये तो सारा ही कार्य छोड़कर बैठ गई है। 

नंदिनी के दो बेटे हो गए और अब वह बड़े भी हो गए देविका जी और उनके पति ने मिलकर उनका बचपन संवार दिया क्योंकि नंदिनी अब नौकरी करने जाने लगी थी। जब बच्चे बड़े हो गए, तब वह किसी न किसी बहाने से ,अब बच्चों को उसके दादा-दादी से दूर करने लगी ,अब वह देविका जी और उनके पति से भी रूखा व्यवहार करती। 

धीरे-धीरे समय व्यतीत होने लगा देविका जी की उम्र बढ़ रही थी और नंदिनी के दोनों बच्चे छह- आठ वर्ष के हो गए थे जब उसके बच्चे संभल गए, तब वह उनसे रूखा व्यवहार करने लगी। उनकी बीमारी और सिर दर्द में भी एक बार उनसे नहीं पूछती थी -मम्मी जी !आपकी तबीयत कैसी है ? दवाई पूछना या देना तो दूर उनके समीप जाकर भी नहीं देखती।

 अब देविका जी सोच रहीं थीं  मैंने बहु से ऐसा क्या अनुचित व्यवहार कर दिया ?जो इस तरह से व्यवहार कर रही है। मैंने तो कभी उससे ऊंची आवाज में भी बात नहीं की, उसके बच्चों को भी पाल दिया। 

तब एक दिन उनकी पड़ोसन बोली- तुम्हारी बहु चालाक है, जब तक उसका काम था, वह कुछ नहीं बोली और तुम ही सारा दिन काम करती रहीं, उसके बच्चे पाल दिए , अब उसे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है। अब बढ़ती उम्र के साथ, जब तुम्हें उसकी जरूरत है, तो वह ऐसा व्यवहार करके तुम लोगों से पीछा छुड़ा लेना चाहती है।

 यह बात सुनकर देविका जी को बड़ा धक्का पहुंचा और सोचने लगीं – मैंने तो ऐसा कभी सोचा भी नहीं था। मैंने तो इसे भी अपने घर की सदस्या समझा, ये बच्चे भी तो मेरे पोते ही हैं। यह सोचकर मन ही मन दुखी हो रही थीं किंतु बच्चों को बचपन से ही देविका जी ने पाला था देर -सवेर मां के न रहने पर, दादी के पास आ ही जाते थे।

 एक दिन देविका जी की तबीयत ठीक नहीं थी उन्हें बुखार था। नंदिनी अपनी नौकरी पर चली गई उसने एक बार भी नहीं पूछा -मम्मी जी !आपके पास दवाई है या नहीं या आपको कोई परेशानी तो नहीं है।वे बुखार और सिर दर्द में तड़प रहीं थीं , अपने उन दिनों को सोचकर परेशान हो रही थीं कि मैंने अपनी बहू को कितना प्यार दिया औरआज,मुझसे  किस तरह का व्यवहार कर रही है ? तभी उनके पोते उनके पास आ गए और दादी- दादी कहकर उनसे लिपट गए। 

कुछ देर पश्चात नंदिनी भी वहां आ गई और बच्चों को डांटते  हुए बोली -पढ़ना नहीं है, सारा दिन यहीं  खेलते रहते हैं , इनका क्या है ?अब बुखार का बहाना लेकर लेट गई हैं, क्या आप, इतना भी नहीं जानतीं ? बीमार व्यक्ति के पास बच्चों का जाना ठीक नहीं है, इन्हें कुछ हो गया तो…..  

बहु !बच्चों को मुझसे प्यार है क्योंकि मैंने इन्हें बचपन से ही पाला है। 

मैं इनकी मां हूं, मैंने तो कुछ भी नहीं किया, गुस्से से नंदिनी बोली -सब कुछ आप ही करती आ रही हैं , इस घर को अब तक आप ही तो संभाल रही थीं और अभी भी संभाल रही हैं। क्रोधित होते हुए बच्चों को हाथ पकड़ कर उन्हें खींच कर ले जाने लगी। 

तब देविका जी बोलीं  -बहु ! मेरे तो एक बेटा था, जिससे तुम आईं और मैंने तुमसे बहुत प्यार किया कभी अनुचित व्यवहार नहीं किया किंतु बहू यह मत भूलो ! भगवान सब देखते हैं। तुम्हारे तो दो बहुएँ आएंगीं तब तुम्हें मेरी प्रति जो तुम यह व्यवहार कर रही हो ,तब अपनी गलती का एहसास होगा। 

नंदिनी गुस्से से बोली – क्या आप मुझे बद्दुआ दे रही हैं ? आपको यह कहते हुए शर्म नहीं आ रही है इस घर में रह रही हैं, इसी घर का खा रही हैं और मुझे ही बद्दुआ दे रही हैं। 

मां अपने बच्चों को कभी बद्दुआ नहीं देती, सिर्फ समझा रही हूं, ‘समय बड़ा बलवान है’ , बुढ़ापा सबको आता है बीमार भी सब होते हैं , कम से कम बच्चों के सामने तो मुझे ऐसा व्यवहार ना करो !भगवान सब देखते हैं।  कल को तुम्हारे साथ, ऐसा कुछ हो गया तो बच्चों को वही दिन याद आएंगे कि हमारी माँ ने हमारी दादी से कैसा व्यवहार किया था ?

उनकी बात सुनकर मुँह बिचकाते हुए नंदिनी अपने बच्चों का हाथ पकड़कर वहां से ले गयी और देविका जी मन ही मन भगवान से दुआ कर रहीं थीं -‘भगवान इसे सद्बुद्धि दे। ” 

                ✍️ लक्ष्मी त्यागी

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