रिश्तों की मर्यादा – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

शाम का समय है। पल-पल आसमान में मौसम अपना रंग बदल रहा है। आसमान का रंग सिन्दूरी हो चला है। सामने सड़क के पार गुलमोहर और पीपल के वृक्षों पर अस्ताचलगामी सूर्य जाते-जाते अपनी सुनहरी आभा से उसे नहला रहें हैं।

पक्षी अपने घोंसलों में लौटकर वृक्षों पर कोलाहल मचाऍं हुए हैं। आसमान में झुण्ड के झुंड कतारबद्ध पक्षी अपने आशियाने में लौटने को बेताब हैं।शाम का दृश्य बड़ा ही मनभावन प्रतीत हो रहा है।कथा नायिका आभा मंत्रमुग्ध -सी खिड़की के बाहर प्रकृति के अद्भुत नजारे को देखती है।

तभी शाम का धुॅंधलका अंधकार में परिवर्तित होने लगता है।आभा सोचती है-“जीवन में रिश्तों की भी यही अहमियत है,अगर मर्यादा में रहें तो सतरंगी इन्द्रधनुष की भाॅंति लगता है और अगर मर्यादा तोड़े तो जीवन अमावस की काली रात के समान लम्बा हो जाता है।”

उसी समय फोन की घंटी से उसकी सोच को विराम लग जाता है।बेटी सुमि फोन पर कहती हैं -“माॅं! आज मुझे अस्पताल से आने में आज देर हो जाएगी।एक मरीज को खून की जरूरत है।आप चिन्ता मत करना।”

आभा _”सुमि!तुम फिर से अपना खून देने मत लग जाना।”

सुमि_”ओके माॅं!मिलने पर बात करती हूॅं।”

आभा मन-ही-मन सोचती है कि यह लड़की भी अजीब पागल है। डॉक्टर है तो इसका मतलब थोड़े ही है कि जब-तब अपना खून दान करती रहे!जब मना करो तो उल्टे उसे समझाते हुए कहती हैं -“माॅं!मेरा ब्लड ग्रुप AB Negative बहुत ही मुश्किल (रेयर ग्रुप) है,इस कारण जब कभी किसी मरीज की जान आफत में पड़ जाती है,तो एक डॉक्टर होने के नाते मरीज की जान बचाना मेरा फ़र्ज़ बन जाता है!”

आभा ऊपरी मन से तो बेटी को खून देने से मना करती रहती है, परन्तु मन-ही-मन बेटी की सेवा-भावना से गौरवान्वित भी होती रहती है।उसी समय सामने से सुमि के दोस्त  डॉक्टर मयंक आते हुए दिख जाते हैं।

पास पहुॅंचकर डॉक्टर मयंक पूछते हैं -” ऑंटी!सुमि अभी तक अस्पताल से नहीं आई है?”

आभा -“नहीं बेटा!तुम तो उसका पागलपन समझते ही हो।आज भी किसी मरीज को अपना खून दे रही है!”

मयंक हॅंसते हुए -ऑंटी!चिन्ता मत कीजिए। मैं भी अस्पताल ही जा रहा हूॅं।”

मयंक को जाते हुए देखकर आभा सोचती है कि मयंक के साथ सुमि की जोड़ी कितनी प्यारी लगेगी!अगर दोनों शादी कर लें,तो उसका मन भी निश्चिन्त हो जाएगा।

सोचते-सोचते अचानक से आभा को अपना अतीत याद आने लगता है। अतीत के पन्ने परत-दर-परत अनायास ही उसकी ऑंखों के सामने फड़फड़ाने लगते हैं।उसकी और दीपक की जोड़ी भी देखकर लोग कहते थे

कि आभा और दीपक की जोड़ी कितनी प्यारी है!काॅलेज के समय से ही दोनों में दोस्ती थी,जो धीरे-धीरे प्यार में बदल गई। पढ़ाई पूरी होने पर दोनों ने डरते -डरते  घर में शादी की बात की।दीपक अमीर बाप का एकलौता बेटा था।

बचपन में ही माॅं की मृत्यु हो गई थी।उसके पिता उसकी हर इच्छा को पूरी करते थे,इस कारण शादी अस्वीकृत करने का सवाल ही नहीं था।

धूम-धाम से शादी के बाद दुल्हन बनकर आभा ससुराल आ गई।उसकी सहेलियाॅं उसकी किस्मत पर रश्क कर रहीं थीं। ससुराल में पति के अलावे केवल ससुर थे।शेष घर नौकर -चाकरों से भरा हुआ था। ससुराल में उसे किसी चीज की कमी नहीं थी।

शादी के बाद दोनों ने स्विट्जरलैंड जाकर अपने हनीमून को यादगार बनाया। हनीमून से वापस लौटकर दीपक अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बटाने लगा।आभा अपने व्यवहार से ससुराल में सबको खुश रखती।

उसके मिलनसार स्वभाव से पति और ससुर भी काफी खुश रहते।दीपक भी आभा की छोटी-छोटी खुशियों का ख्याल रखता।उसके ससुर भी उसे बेटी के समान प्रेम करतें। पति-पत्नी एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए दाम्पत्य -जीवन की सुखद डगर पर चल चुके थे।

रिश्तों की मर्यादा में बॅंधकर उसकी जिंदगी खुशनुमा हो चली थी।

समय पंख लगाकर तीव्र गति से भाग रहा था।शादी के तीन वर्ष बाद अचानक से आभा के ससुर का देहांत हो गया।अब सारे काम-काज की जिम्मेदारी दीपक के कंधों पर आ गई।पिता की मृत्यु और काम के बोझ से दीपक चिड़चिड़ा रहने लगा।

अब आभा दीपक के प्यार पाने को तरस उठती।शादी के पाॅंच साल तक आभा की गोद‌ हरी नहीं हुई थी,इस कारण उनके जीवन में नीरसता आ गई थी। एक दिन आभा घर का सामान खरीदने बाजार गई,संयोगवश उसे वहाॅं उसकी पुरानी सहेली मीना मिल गई।

दोनों सहेलियाॅं एक-दूसरे को काफी दिनों बाद देखकर खुशी से गले मिलीं।आभा उसे अपने घर ले आई।काॅलेज के समय से ही मीना का उन्मुक्त और स्वछंद व्यवहार सबके लिए आकर्षण का विषय बना रहता।

उसकी दूध में शहद -सी रंगत,लम्बा कद ,लंबी केश-राशि,तीखे नैन-नक्श, सुगठित तन्वी काया, सुमधुर खिलखिलाहट  लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती। रूप तो उसका आज भी वही था, परन्तु सदा चमकनेवाली मीना अब कुछ उदास और खामोश -सी थी।

आभा ने मीना के हाथों में चाय की प्याली पकड़ाते हुए पूछा -“तुमने अपने दोस्त विनय के साथ  अभी तक शादी नहीं की?”

मीना ने मायूस शब्दों में कहा -“नहीं!उसने मुझे धोखा देकर किसी अमीर लड़की से शादी कर ली और विदेश चला गया।अब परिवारवालों ने भी मुझसे किनारे कर लिया है।मेरी नौकरी भी छूट गई है।मकान-मालिक भी किराए की रकम के लिए परेशान कर रहा है। मैं जिन्दगी के कठिनतम दौर से गुजर रही हूॅं।”

अपनी दोस्त की करुण आपबीती सुनकर आभा भाव-विह्वल हो उठी।उसने मीना से कहा -” मेरा घर इतना बड़ा है।तुम कल से ही आकर ऊपर के कमरे में रहो।मेरा भी मन लगा रहेगा।”

अगले दिन बोरिया-बिस्तर लेकर मीना आभा के घर में रहने आ गई। दोनों सहेलियाॅं काम के बाद आपस में पुराने दिनों की ढ़ेर सारी बातें करतीं। आरंभ में दीपक को मीना का घर में रहना पसंद नहीं था,परन्तु धीरे-धीरे दीपक भी उन दोनों की बातों में शरीक होने लगा।

मीना अब उसके घर की सदस्या बन गई थी।एक दिन अचानक आभा चक्कर खाकर गिर पड़ी।जल्द ही दीपक और मीना उसे डॉक्टर के यहाॅं ले गए। डॉक्टर ने दीपक को पिता बनने की खुशखबरी दी और आभा को पूर्ण आराम करने को कहा।

पिता बनने की खुशी में दीपक अब काम से जल्दी घर आने लगा।दीपक और‌ मीना आभा का पूरा ख्याल रखते।दीपक ने मीना को अपने ही दफ्तर में नौकरी दे दी। दोनों साथ-साथ दफ्तर आने-जाने लगें और एक दूसरे के प्रति आकर्षित भी।

आभा को अपने पति और दोस्त पर पूरा भरोसा था,वह तो मीना के प्रति कृतज्ञता महसूस कर रही थी।उसे लग हो रहा था कि मीना उसका और उसके पति का कितने अपनेपन के साथ ख्याल रख रही है!

आभा लंबे समय के बाद माॅं बनने जा रही थी,इस कारण उसके मायकेवालों ने उसे  सातवें महीने में ही अपने पास बुला लिया।उसके माता-पिता उसका बहुत अच्छे से  ख्याल रख रहें थे।आभा हर पल अपने आनेवाले बच्चे के ख्वाबों में खोई रहती।

नव जीवन के आने की कल्पना से ही वह रोमांचित हो उठती। बीच-बीच में दीपक उससे मिलने आते रहता।समय पूरा होने पर आभा ने एक खूबसूरत बच्ची को जन्म दिया।बच्ची के जन्म के दो महीने तक आभा मायके में ही रही।

आभा दो महीने बाद बच्ची को लेकर घर वापस आ गई।कुछ ही महीनों में उसे अपने ही घर में पराएपन की बू नजर आने लगी। रिश्तों की मर्यादा बाॅंध तोड़ती हुई महसूस हो रही थी।उसे एहसास हो रहा था कि मानो मीना ने उसके घर और पति पर कब्जा कर लिया हो।दीपक भी दफ्तर से आने के बाद मीना के साथ ही चाय-नाश्ता करता।

दोनों एक-दूसरे के साथ खुलकर हॅंसी-मजाक करतें।अब आभा को एहसास हो रहा था कि जिस सहेली को उसने मुसीबत की घड़ी में अपने घर में पनाह दी थी,आज वही सहेली उसका घर उजाड़ने पर उतारू है।

आभा का दिलो-दिमाग दीपक और मीना के रिश्तों को लेकर उलझा रहता। औरतों के अंदर की कल्पना -शक्ति बहुत तेज होती है,आनेवाली मुसीबत का एहसास उसकी चेतना को होने लगता है!

एक दिन आधी रात को अचानक उसकी नींद खुल गई।उसने दीपक और मीना को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया।अब उसके  मन में संशय की कोई गुंजाइश नहीं है गई।रिश्तों की मर्यादा को तार-तार होते देखकर गुस्से से उसका सर्वांग सुलग उठा।सुबह होने तक उसने खुद पर काबू रखा।

अगले दिन  उसी बात को लेकर आभा की दीपक से काफी लड़ाई हुई।उसने चिल्लाते हुए कहा -“मीना!तुम बोरिया-बिस्तर समेटकर तुरंत मेरे घर से निकल जाओ!”

 आभा का रौद्र रूप देखकर कुछ देर बाद मीना अपने सामान लेकर नीचे उतर गई।आभा ने उसे देखकर दूसरी ओर मुॅंह फेर लिया, परन्तु दीपक ने  मीना के हाथों से सामान छीनकर उसे ऊपरअपने कमरे में जाने को कहा।उसने बड़ी बेशर्मी से कहा -“आभा!सच बात यह है कि मैं मीना से प्यार करने‌ लगा हूॅं। मैं इसके साथ शादी भी करुॅंगा। तुम्हें जहाॅं जाना हो,चली जाओ।वैसे भी शादी के पाॅंच वर्ष बाद भी तुमने मुझे वारिस न देकर बेटी ही दी है!”

दीपक की बातों से आभा का दिमाग सन्न रह गया।पल भर में उसे धरती घूमती हुई नजर आने लगी।उसे उम्मीद नहीं थी कि दीपक इस तरह रिश्तों की मर्यादा को कलंकित करेगा।उसे दुख इस बात की है कि उसने एक पिता की मर्यादा का भी उलंघन किया है। संतान के रूप में बेटी होने का ताना उसके मर्मस्थल को अंतस तक बेध गया।

जिस सहेली को उसने मुसीबत में साथ दिया,उसने भी रिश्तों की मर्यादा का ध्यान नहीं रखा।उल्टे उसका हॅंसता-खेलता परिवार उजाड़कर रख दिया।मीना नाम की काली ऑंधी ने उसकी बसी-बसाई गृहस्थी को तिनके की भाॅंति तहस-नहस करके रख दिया।कुछ दिनों पहले तक जो दीपक दीवानों की भाॅंति उसे प्यार करता था,

आज वही दूसरी औरत पर मोहित हो गया।उसके लिए अपनी पत्नी का अस्तित्व ही पूरी तरह विलुप्त हो उठा।सब कुछ सोचते-सोचते आभा के मस्तिष्क की नसें मानो फट पड़ना चाहती हों।उसने इस विषम परिस्थिति में भी खुद को संयत रखा और अपने स्वाभिमान को मरने नहीं दिया

।न तो वह दीपक के  कदमों को पकड़कर रोई,गिड़गिड़ाई,न ही उसने बेटी के भविष्य की दुहाई दी।अगले दिन आभा बच्ची को लेकर अपने मायके आ गई।

मायके में उसके माता-पिता ने उसका बहुत साथ दिया।दीपक ने उसे तलाक दे दिया।तलाक से मिले पैसों को उसने बेटी के भविष्य के लिए जमा कर दिया। माता-पिता के गुजरने के बाद आभा दूसरे शहर में जाकर स्कूल में पढ़ाने लगी।उसने ज़िन्दगी में फिर कभी मुड़कर नहीं देखा। धीरे-धीरे उसकी जिंदगी पटरी पर लौट आई।

जैसे-जैसे उसकी बेटी सुमि बड़ी होने लगी, वैसे-वैसे अतीत की कड़वाहट भूलने लगी।उसकी बेटी कभी भी उसकी ऑंखों में ऑंसू नहीं आने देती।हमेशा उसके गमों पर स्नेह की शीतल लेप लगाती रहती।एक बार  पिता के बारे में जानने के बाद फिर कभी उसने पिता का जिक्र कर माॅं को दुखी नहीं किया।

आभा की बेटी सुमि अपनी मेहनत और लगन के बल पर डाॅक्टर बन गई।बेटी को देखकर आभा को एहसास होता है कि भले ही उसकी जिंदगी का सफर संघर्षपूर्ण, कष्टप्रद और दुखदायी रहा है, परन्तु उसकी जिंदगी की सांध्य -वेला खुशियों की रोशनी से झिलमिला रहा है।

काॅलबेल की घंटी से उसकी चेतना वापस लौट आती है।दरवाजा खोलते ही सुमि उसे गले लगा लेती है।देरी से आने के कारण सफाई देते हुए कहती हैं -“माॅं! एक बुजुर्ग मरीज हैं,जो इस शहर में अकेले‌हैं। यहाॅं उनका कोई नहीं है। उन्हीं का एक्सीडेंट हो गया है, जिसके कारण मुझे अपना खून देना पड़ा।”

आभा मुस्कराती हुई कहती हैं -“अब ज्यादा सफाई मत दो,जाकर मुॅंह -हाथ धो लो फिर खाना लगाती हूॅं।”

दोनों माॅं -बेटी खाना खाते हुए आपस में ढ़ेर सारी बातें करतीं हैं।आभा उसे काम के साथ-साथ खुद का भी ख्याल रखने की सलाह देती है। अस्पताल जाते ही सुमि उस बुजुर्ग  मरीज के पास पहुॅंचकर हाल-चाल लेती है।

न जाने क्यों उस मरीज से उसे एक खास लगाव महसूस होने लगता है। अनजाने आकर्षण की डोर में खिंची हुई वह सुबह-शाम उस बुजुर्ग मरीज के पास पहुॅंच जाती है। बुजुर्ग मरीज भी सुमि की सेवा-भावना देखकर मन-ही-मन सोचते हैं -“सुमि के माता-पिता कितने खुशनसीब होंगे, जिन्हें इतनी काबिल संतान मिली है!”

सुमि उन्हें ध्यानमग्न देखकर कहती हैं -“अंकल!कल आपको अस्पताल से छूट्टी मिल जाएगी।आप अपना ख्याल रखिएगा।”

बुजुर्ग मरीज -“बेटी!एक सप्ताह बाद मैं अपने शहर लौट जाऊॅंगा,उससे पहले तुम्हारे माता-पिता से मिलने तुम्हारे घर आऊॅंगा।”

सुमि हॅंसते हुए कहती हैं -“अंकल! जरूर आईएगा, परन्तु शाम को ही!”

आभा अक्सर शाम के वक्त खिड़की के पास बैठकर प्रकृति के अनुपम नजारें को निहारा करती और सुमि का इंतजार भी।

एक दिन शाम में दरवाजे की घंटी सुनकर सोचा कि शायद सुमि आज जल्दी आ गई है, परन्तु दरवाजा खोलने पर सामने दीपक को देखकर अचंभित हो उठती है।दीपक भी आभा को देखकर ठगा-सा रह जाता है।उसने आभा से कहा -“घर के अंदर आने नहीं कहोगी?”

आभा हड़बड़ाकर दरवाजे के सामने से हट जाती है और दीपक को सोफ़ा पर बैठने कहती हैं।आभा दीपक के लिए पानी लाते हुए

सोचती है -” मैंने तो दीपक को जी-जान से प्यार किया था।एकाएक उसने मेरे प्यार को नकारकर मेरे पूरे वजूद को ही थरथरा दिया था।उसने मेरे विश्वास को खंडित किया था और अचानक से आज मेरे घर क्यों आ पहुॅंचा?”

हमेशा से अकड़ में, घमंड में चूर रहनेवाले दीपक को इस हालत में देखकर आभा का अंतर्मन रो उठा।वह चाहकर भी दीपक की हालत पर खुश न हो सकी।समय के साथ दीपक की चट्टान -सी अहं की दीवार अब भावनाओं की ऊष्मा पाकर पिघलने  को‌ आतुर थी।वह आभा की ओर याचक की दृष्टि से देख रहा था।

दीपक की ओर देखकर आभा ने मन-ही-मन सोचा -” ज़िन्दगी तो गुज़र ही गई, परन्तु तुम्हारा साथ होता तो जीवन खुशनुमा होता।कुछ रिश्ते मर्यादा तोड़ने पर इतनी दूर चले जाते हैं कि उनके साथ स्नेह तो क्या क्रोध के धागे भी टूट जाते हैं।उसके प्रति सारी भावनाऍं खत्म हो जाती हैं। व्यक्ति उस रिश्ते से तटस्थ और उदासीन हो जाता है।”

आभा ने भावनाओं  में बहकर अपने‌ स्वाभिमान को कमजोर नहीं पड़ने दिया।दीपक के सामने‌पानी का ग्लास रखकर खामोश बैठी रही।आज  बोलने और पश्चाताप करने की बारी दीपक की थी।उसने कहना शुरू किया -“आभा! तुम्हारे साथ विश्वासघात करके मैं खुश नहीं रह सका।शादी के पाॅंच साल तक  हमारी जिंदगी एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने में ही बीतती रही।

अचानक से एक हादसे में मीना की मौत हो गई। मैं बिल्कुल अकेला रह गया।कई बार तुमसे मिलकर माफी माॅंगने को सोचा भी, परन्तु  तुम्हारे बारे में कोई जानकारी नहीं थी।तुमने हमारी बेटी की बहुत अच्छी परवरिश की है। मैं बिल्कुल अकेला रह गया हूॅं।तुम दोनों माॅं -बेटी मुझे माफ़ कर दो।”

दीपक की भावपूर्ण आग्रह को सुनकर एक बार तो आभा का मन‌पिघलने को आतुर हो उठा, परन्तु अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए उसने कहा -“दीपक!जिस समय हम माॅं -बेटी को‌ तुम्हारे मजबूत कंधों की जरूरत थी,

उस समय तो तुमने हमें दूध की मक्खी की भाॅंति निकाल फेंका।उन दिनों को मैं कैसे भूल जाऊॅं? सुमि  केवल मेरी बेटी है।आज मेरे पास डॉक्टर बेटी का मजबूत सहारा है। मैं पुराने जख्म को भूलकर तुम्हें कभी माफ नहीं कर सकती।”

सुमि भी अस्पताल से आकर दरवाजे पर खड़ी होकर सारी बातें सुन रही थी।दीपक ने उम्मीद भरी नजरों से बेटी की ओर देखा, परन्तु सुमि ने इंकार करते हुए कहा -“अंकल! मैंने आपकी और माॅं की सारी बातें सुन ली है।

आपने‌ उस समय रिश्तों की मर्यादा का ख्याल नहीं रखा,तो अब उम्मीद करना बेकार है।आपका और मेरा रिश्ता एक डॉक्टर और मरीज का ही रहेगा।माॅं के ज़ख्मों को भूलकर मैं कभी भी आपको माफ नहीं कर सकती।”

दीपक के पास शेष कहने को कुछ नहीं बचा था।वह झुकी हुई कमर और धीमी चाल से अपनी ज़िंदगी का बचा-खुचा लम्हा तन्हा गुजारने को घर से निकल पड़ा।सच ही कहा गया है कि जो रिश्तों को मर्यादा में सॅंभालना नहीं जानते, उन्हें एक-न-एक दिन पछताना ही पड़ता है।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा ( स्वरचित)

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