मॉ बाप – एम पी सिंह : Moral Stories in Hindi

रोहित जी के 2 बेटे थे, अमित ओर सुमित।बडा बेटा अमित दिल्ली में बड़ी कंपनी में अच्छी पोस्ट पर था और अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहता था। अमित की पत्नी भी नोकरी करती थी, कमाई ओर खर्चे में किसी प्रकार की कोई कमी नही थी। सुमित अपनी मॉ, पत्नी ओर बेटे के साथ झाँसी के पुश्तेनी मकान में रहता था,

जो बहुत बडा तो नहीं था, पर 4 लोगों के लिये पर्याप्त था। सुमित घर के पास ही फैक्ट्री में फिटर का काम करता था ओर ठीक ठाक कमाता था। पिताजी के गुजर जाने के बाद, सुमित ओर उसकी पत्नी,  मॉ जी की सेवा करते औऱ मॉ भी बेटे बहू के साथ खुश रहती। सुमित का बेटा भी दादी से घुल मिल कर रहता है। रोज़ सवेरे की चाय,

सुमित ओर उसकी पत्नी सुमित्रा, मॉ जी के साथ उनके कमरे में ही पीते ओर 10 -15 मिनट साथ बिताते। चाय के बाद सुमित ड्यूटी के लिये तैयार होने चला जाता और समित्रा रसोई में नास्ता ओर सुमित का टिफ़िन बनाने। सुमित, मॉ ओर सुमित्रा के साथ नास्ता करता ओर शाम को मिलते है मॉ, बोल कर ड्यूटी चला जाता। इसके बाद सुमित्रा बेटे को उठाती,

तैयार करके स्कूल भेजती।  सुमित्रा दिनभर मॉ जी से बातें करती रहती, कभी, मॉ जी मैं संब्ज़ी लेने जा रही हूं, कौनसी सब्जी खाओगे, कुछ चाहिये तो नही, आप बैठे रहे, मैं बाहर से ताला लगा लूँगी वगैरह वगैरह। बाजार से आकर फिर शुरू  हो जाती, लो मॉ जी आपके लिये लौकी ले आई, कैसी लौकी खाओगे, कोफ्ते, बढ़ी बाली या चना दाल वाली।

मॉ जी बोली चना दाल वाली बनाले। अच्छा मॉ जी बोलकर लौकी चना दाल बना देती। संब्ज़ी बनाकर फिर आ जाती, मॉ जी चाय पिओगे, बनाऊ? अगर मॉ जी हाँ कहती, तो चाय पिला देती, ओर अगर मना करती, तो बोलती, ठीक है,

आप आराम कीजिये मैं बाकी काम कर लेती हूँ। सब काम निपटाने के बाद सुमित्रा फिर आ जाती मॉ जी खाना तैयार हैं जब खाना हो बता देना, बस रोटी तभी गरम गरम बनाउगी। खाना लगाते हुऐ पूछती, मॉ जी दही खाओगे या लस्सी बना दू? 

खाना खाने के बाद थोड़ी देर मॉ जी के कमरे मे बैठ कर बाते करती, फिर बोलती, माजी अब आप आराम करो, मैं भी आराम करती हूं, बोलकर अपने कमरे में चलीं जाती। 

शाम को बेटे के स्कूल से आने के बादे फिर मॉ जी के पास आकर पूछती,माजी आप उठ गए, चाय बना दू? मॉ अक्सर मना कर देती, बोलती एक ही बार बनाना, सुमित जाए तब। सुमित ड्यूटी से आते ही सीधा मॉ के पास जाता और हाल चाल पूछता,

मॉ जी, कैसी हो। फिर फ्रेश होकर मॉ जी के कमरे में आ जाता, तब तक सुमित्रा चाय लेकर आ जाती और तीनों साथ मे चाय पीते। चाय पीते पीते सुमित्रा मॉ जी से पूछ लेती, रात में कौन सी दाल संब्ज़ी बना दू। मॉ जी को अभी अकेलापन महसूस नहीँ होता था।

अमित 2-3 महीने में जब भी मॉ से मिलने आता ओर मॉ को अपने साथ चलने के लिये कहता, मॉ कुछ न कुछ बहाना बना कर टालने की कोशिश करती, पर हर बार अमित मॉ को जबरदस्ती अपने साथ ले जाता। मॉ अमित का मन रखने के लिए उसके साथ चली तो जाती, पर ज्यादा दिन नहीँ रुकती ओर वापस सुमित के पास आ जाती।

अमित के यहाँ किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, पर उसका मन नहीं लगता था। सुबह सुबह कुक नास्ता ओर सुबह का खाना बनाकर चली जाती, फिर शाम को आती। 8 बजे तक दूसरी बाई आती जो दिनभर रहती, बेटे को तैयार करना, टिफिन लगाना ओर स्कूल बस में छोड़ना ओर शाम को वापस लाना, झाड़ू पोछा, साफ सफाई वगैरह वगैरह।

मॉ जी को खाना खिला देना, चाय बनाकर पिला देना ओर जो भी काम मॉ जी बता दे कर देती थी। एक दिन खाना खाते हुए मॉ जी ने बाई से पूछा, ये बेस्वाद सी सब्जी क्या है? बाई बोली, मॉ जी, इसे ब्रोकली कहते है, बहुत महंगी आती हैं ओर मेमसाब को बहुत पसंद है। बाई शाम को मॉ जी को मंदिर भी ले जाती थी। सब मिलाकर मॉ जी को किसी बात की कोई कमी नही थी

और कोई काम भी नही करना पड़ता था। बेटा बहु सवेरे 8 बजे इकट्ठे निकल जाते और ओर लगभग रात 8 बजे तक साथ साथ ही आते। बहू आते ही बाई से पूछती मॉ जी को खाना खिलाया, चाय दी, बाबा कितनी देर सोया आदि, ओर फिर बाई को जाने के लिए बोल देती।

उसके बाद बेटा बहु अपने कमरे में चले जाते ओर फ्रेश होकर कमरे में ही खाना खाकर अपना अपना लैपटोप खोलकर बैठ जाते और कब सोते, पता नहीं।

एक बार अमित मॉ जी को लेने आया पर मॉ जी ने जाने से मना कर दिया तो अमित नाराज होकर मॉ जी ऒर सुमित को बहुत कुछ बोल गया। क्या मैं आपको किसी तरह की कोई कमी रखता हूँ, या खाना नही खिलाता हूँ? नोकर चाकर सब हैं, आपको तो कुछ भी करने की जरूरत नहीं हैं। फिर क्या कमी है

जो वापस सुमित के पास भाग आती हो? मॉ जी बोली, मुझे तेरे पास किसी चीज की कमी नही है, खाना पीना सब सुमित से बढ़िया हैं, पर अकेलापन बहुत ज्यादा है, जो मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। जब तक तेरे पिताजी थे, हम दोनों को एक दूसरे का साथ था। उनके जाने के बाद मैं बिल्कुल  टूट गई थी। सुमित ओर सुमित्रा हर समय मेरे साथ रहते हैं।

सच सच बताना, मैं जब भी तुम्हारे पास रही, खाना तो दूर, क्या कभी तुमने या तुम्हारी बीवी ने मेरे साथ बैठ कर चाय भी पी? क्या तुम दोनों कभी मेरे कमरे मे आये हो? क्या कभी पूछा कि मुझे क्या चाहिए? बेटा, इस उम्र में अकेलेपन से बहुत डर लगता हैं, इसलिए मैं तेरे यहां नहीं जाऊँगी।

हर मॉ बाप को बुढ़ापे में अपनों का साथ चाहिये होता हैं। अगर दोनो में से कोई एक अकेला रह जाये, तो अकेलपन बहुत डराने लगता हैं। उस समय उन्हें सुख सुविधाओं से ज्यादा अपनो का साथ जरूरी होता हैं। अपनी ब्यस्त दिनचर्या से कुछ समय निकालकर, माता पिता के साथ बिताया करो। यकीन मानो, तुम्हारा साथ उनके चेहरे पर मुस्कान ही नहीं, तंदरुस्ती और लंबी आय भीु देगा।

एम पी सिंह

स्वरचित, अप्रकाशित, मौलिक

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