“अस्तित्व” – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

ये  क्या कविता तुमने फिर अपनी सैलरी के पैसे मेरे अकाउंट में डलवा दिए? अरे तुम अब सरकारी मास्टरनी बन गई हो अपनी कमाई जैसे चाहो खर्च कर सकती हो। तुम नहीं जानती मैं कितना खुश हूं तुम्हारे लिए, तुम्हारी दिन रात की मेहनत रंग लाई। अरे मैं कपड़े की दुकान पर काम करता हूं तो क्या हुआ?

मेरा सपना तुमने तो पूरा कर दिया ना। पिताजी के न रहने से घर की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आ गई जिसकी वजह से मुझे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। नहीं तो मैं भी आज सरकारी अध्यापक होता। मगर सच मानो तुम्हें टीचर बनते हुए देखकर मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैंने ही अपनी मंजिल पा ली हो। लेकिन तुम बताओ कहीं तुम्हें ऐसा तो नहीं लग रहा कि तुम एक सरकारी टीचर बन गई हो

और तुम्हारा पति एक कपड़े की दुकान पर नौकर है। अपने पति दिनेश की बात सुनकर कविता ने उसके मुंह पर अपना हाथ रख दिया। और आंखों में आंसू भर कर बोली, आज के बाद यह शब्द दोबारा जबान पर भी मत लाना।

मेरा अस्तित्व क्या है बिना आपके? मुझे नहीं पहचान बनानी कोई अपनी, तुम्हारे नाम से मैं जानी जाती हूँ मेरे लिए मेरी इतनी पहचान काफी है। देखो जी आप फालतू की बातें मत करो, मैं बिना आपका भला कैसे पढ़ सकती थी

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मेरे पढ़ने की इच्छा को जानकर आपने ही आगे पढ़ने के लिए मुझे प्रेरित किया और पुरानी किताबें भी लाकर देते रहे नहीं तो मैं आपके बिना क्या कर सकती थी? हां मैं सरकारी्् मास्टरनी बन गई हूं लेकिन इसके पीछे तपस्या सिर्फ और सिर्फ आपकी है। आपने मुझे कभी पढ़ते हुए देखकर किसी काम के लिए नहीं कहा यहां तक की मुन्ना का भी बराबर ख्याल रखा ।

मेरे माता-पिता की मौत के बाद चाचा चाची ने ही मुझे पालकर बड़ा किया था उनके अपने भी चार बच्चे थे वह मुझे कहां से पढ़ाते? 12वीं में बहुत अच्छे नंबर आने के बाद भी मेरी पढ़ाई छुड़वा दी गई।मेरी पढ़ने की इच्छा मन ही मन में रह गई। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि पति के रूप में मुझे कोई देवता मिल जाएगा।

अब मैं कमाने लगी हूं तब भी मैं अपनी तनख्वाह अपने पास नहीं रखूंगी मुझे अच्छा लगता है आपसे मांगना। कहते कहते कविता अपने पति के सीने से लगकर फूट-फूट कर रो पड़ी। मुझे कोई शर्म नहीं आती आपके कपड़े की दुकान पर काम करने से।

 सुबह-सुबह कर रो रही थी अपनी पत्नी को याद करके दिनेश जी, यह सारी बातें चलचित्र की तरह उनकी आंखों के सामने चल रही थी। कविता जी की मौत को एक महीना हो चुका था। लेकिन दिनेश जी का जीवन तो जैसे वहीं ठहर गया था। सरकारी नौकरी में होते हुए भी दिनेश जी के लाख कहने पर।कविता ने कभी अपने पास एक पैसा नहीं रखा अपने पति से ही पैसे मांगती थी।

दोनों ने मिलकर गृहस्ती की गाड़ी खूब अच्छे से चलाई। उनके दोनों बेटे डॉक्टर बन चुके थे। और मुंबई में अपने अपने परिवार के साथ रहते थे। कविता भी 2 साल पहले रिटायर हो चुकी थी। उनके दोनों बेटों को मुंबई की ऐसी हवा लगी कि उन्होंने वापस अपने माता-पिता की सुध ना ली। बस कभी-कभी औपचारिकता के लिए फोन पर हाल-चाल पूछ लेते थे।

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अपने बच्चों की इस बेरुखी का कविता जी पर बहुत असर पड़ा मन ही मन घुटने लगी थी। और अपने बच्चों को देखने की इच्छा लेकर एक महीने पहले ही चल बसी। कितने फोन कीये अपने बच्चों को लेकिन कोई ना कोई बहाना बनाकर किसी ने भी आने की कोशिश नहीं की अपनी मां के पास। कविता को जैसे पता था

अपने पति की स्थिति का उसने अपने जीते जी ही कमला को घर के सभी कामों के लिए।लगा दिया था। वह सुबह आती थी और शाम को चली जाती थी। कमला उनके ही स्कूल में काम किया करती थी जिससे उन्हें बेहद लगाव था।बस कविता की यही इच्छा थी कि उसकी बेटी की शादी हम अपने हाथों से करेंगे हमारे बच्चों को हमारे पैसे की कोई जरूरत नहीं है क्यों न किसी जरूरतमंद के काम आ जाए। हमारी कोई लड़की भी नहीं है कन्यादान भी हो जाएगा।

और आज भी उनके अकाउंट में इतने पैसे थे की भी आराम से अपना जीवन यापन कर सकते थे। दोनों बेटों ने उन्हें अपने साथ ले जाने के लिए कहा लेकिन वह नहीं गए। की बेटी की शादी के लिए उन्होंने जितनी हो सकती थी आर्थिक मदद की। अक्सर अपनी पत्नी की तस्वीर के सामने बैठकर उनसे कितनी बात किया करते थे। कविता तुम कहती थी तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं है मेरे बिना लेकिन देखो ना तुम्हारे बिना मेरा भी कोई अस्तित्व नहीं है।

तुम्हारे बिना दो दो बेटों के होते हुए भी मैं बिल्कुल अकेला हूं उन्होंने अपने घर के ऊपर वाले हिस्से में कमला और उसके पति को रख लिया था। क्योंकि उनकी तबीयत भी धीरे-धीरे गीरती जा रही थी।

  और एक दिन रात को ऐसे सोए कि फिर उठे ही नहीं। उनके दोनों बेटे आए और अंतिम क्रिया की।औपचारिकता निभा कर चले गए। दिनेश जी ने अपना छोटा सा मकान भी कमला के नाम कर दिया था।

 सच ही है यही जीवन की सच्चाई है पति हो या पत्नी एक दूसरे के बिना दोनों का जीवन अधूरा है किसी एक के न रहने पर दूसरे का भी कोई अस्तित्व नहीं रहता।

 पूजा शर्मा स्वरचित।

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