Moral stories in hindi : आज सुबह से ही रमा जी के घर में खूब चहल-पहल थी। हर बार की ही तरह ,इस वर्ष भी नवरात्रि के दिनों में घर पर देवी पाठ रखा गया था। रमा जी देवी मां की परम् भक्त थीं। उनका मानना था उनकी ये शानो शौकत और खुशहाल जिंदगी ,सब माता रानी की ही देन है। पति एक जाने माने बिजनेसमैन थे और दो जुड़वा बेटे थे ,जो विदेश में रह कर शिक्षा ग्रहण कर रहे थे । जिंदगी बहुत बढ़िया चल रही थी, एकदम परफेक्ट!
नवरात्रि, श्रध्दा के साथ साथ लेकर आती है ढेर सारी उमंग और उल्ल्हास। सुर्ख लाल रंग की साड़ी, लाल चूड़ियां, डायमंड नेकलेस और माथे पे बड़ी सी लाल बिंदी लगाए रमा जी शीशे में अपने परफेक्ट नवरात्रि लुक को सराहते हुए, अपने कमरे से निकल कर बाहर हॉल में आ गई।
उन्होंने एक नज़र पूरे हॉल पर दौड़ाई। पूजा की सब तैयारियां हो चुकी थीं। आलीशान से बंगले के, फूलों से सजे, बड़े से हॉल में देवी जी की, करीब पांच फीट ऊंची, सौम्य सुंदर प्रतिमा विराज रही थी।
देवी मां की प्रतिमा के पास ही ज़मीन पर बैठी थी झुमरी, पांच साल की नन्ही सी बच्ची,जो आलीशान से बंगले की चकाचौंध देख कर हैरान थी। देवी की सुन्दर प्रतिमा तो मानो उसे मोहित कर रही थी। वो एक टक देवी की प्रतिमा को निहार रही थी।
तभी किचन से आती पकवानों की सुगंध ने उसे अपनी ओर खींचा । वो किचन की तरफ दौड़ी पर किचन के दरवाज़े पर आकर ठिठक गई। उसने दरवाज़े से ही किचन के अंदर झांका, उसकी मां संतो वहां खाना बनाने में व्यस्त थी।
अभी कुछ ही दिन हुए थे संतो को रमा जी के घर पर काम करते हुए। पति की मृत्यु के बाद वो इसी तरह लोगों के घरों में काम कर के, अपने छोटे से परिवार का भरण पोषण करती थी। वैसे तो वो झुमरी को अपने साथ काम पर कभी नहीं लाती थी
लेकिन आज झुमरी ने रो रो कर आसमान सिर पर उठ लिया था। उसे तो हर हाल में अपनी मां के साथ बड़े बंगले (रमा जी का घर) पर जाना था, वो भी अपना लाल लहंगा पहन कर, जो उसकी मां संतो ने उसके लिए सिला था।
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नन्हीं झुमरी की ज़िद के आगे संतो की एक न चली और वो उसे अपने साथ बड़े बंगले ले आई थी। झुमरी का यूं घर पर आना रमा जी को बिलकुल अच्छा नहीं लगा। उन्होंने संतो को साफ हिदायत दी थी की झुमरी घर की किसी चीज़ को हाथ न लगाए।
चुप चाप एक कोने में बैठी रहे। संतो ने भी झुमरी को समझा कर हॉल के एक कोने में बैठने को कहा और उसे वहां से न हिलने की हिदायत देकर खुद पकवान बनाने में व्यस्त हो गई । पर नटखट झुमरी के पैर एक जगह कहां टिकने वाले थे ।
पकवानों की खुशबू उसे किचन के दरवाज़े तक ले ही आई। पर मां की डांट के डर से वो दरवाज़े पर ही ठिठक गई और बाहर से ही बोली
” क्या बना रही हो मां? बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है ” झुमरी की आवाज़ सुन संतो पलटी।
” तू यहां क्या कर रही है? मना किया था न तुझे जगह से हिलने को? जा भाग यहां से और चुप चाप हॉल में बैठ, और अब यहां दिखाई मत देना समझी। कहीं मालकिन ने देख लिया ना तो डांटेंगी मुझे, तू तो आज डांट खिला कर ही मानेगी। जा भाग यहां से।” संतो गुस्से से झुमरी पर बरस पड़ी।
मां की डांट खाकर मायूस झुमरी फिर से देवी की मूर्ती के पास आकर बैठ गई और मंत्र मुग्ध सी हॉल की सजावट को निहारने लगी। तभी उसकी नज़र पूजा सामग्री में रखी लाल चुनरी पर पड़ी। उसने इतनी सुन्दर चुनरी पहले कभी नहीं देखी थी।
छोटे छोटे मोतियों और रंग बिरंगे सितारों से सजी ज़रीदार चुनरी , रमा जी ने स्पेशल ऑर्डर पर बनवाई थी, देवी प्रतिमा पर चढ़ाने के लिए। यूं तो झूमरी को सख्त हिदायत दी गई थी की किसी चीज़ को न छुए पर बच्चों का भोला मन ललचा ही जाता है ।
खास कर उन चीज़ों के लिए, जिनका अभाव हो उनके जीवन में। उस चुनरी ने उस बच्ची को इतना आकर्षित कर दिया कि उसने बिना सोचे वो चुनरी ओढ़ने के लिए उठा ली । जैसे ही उसे ओढ़ने लगी तभी किसी ने उसके हाथ को ज़ोर से खींचा ।
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झुमरी ने घबरा कर देखा तो रमा जी थीं।गुस्से से चेहरा तमतमा रहा था उनका। उन्होंने झूमरी के हाथ पर अपनी पकड़ को थोड़ा और कसा और एक ज़ोरदार चांटा लगा दिया झुमरी को। झुमरी इस अचानक हुए आघात से सन् रह गई, उसकी नन्ही नन्ही आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी। वो ज़ोर ज़ोर से रोने लगी। बेटी के रोने की आवाज़ सुन संतो भाग कर हॉल में पहुंची।
” क्या हुआ मेमसाब?” डरते डरते संतो ने पूछा।
“क्या हुआsss? रमा जी चीखते हुए बोलीं।
” तेरी बेटी देवी प्रतिमा पर चढ़ाए जाने वाली चुनरी ओढ़ रही थी। वो तो अच्छा हुआ मैंने देख लिया, वरना क्या ओढ़ी हुई चुनरी चढ़ाती मैं देवी मां पर? पता है स्पेशल ऑर्डर देकर बनवाई है मैंने ये चुनरी। अभी के अभी भगा अपनी इस मनहूस बेटी को यहां से ”
रमा जी गुस्से से कांप रहीं थीं।
“माफ कर दें मेमसाब ,अब नहीं करेगी ये ऐसा। अभी के लिए रहने दें। मैं वादा करती हूं अगली बार से कभी इसे अपने साथ नहीं लाऊंगी ।” संतो रुआंसी होकर बोली।
” ठीक है ठीक है। यहां रोना धोना मत मचा। अपनी बेटी को समझा ले कि अब कोई चीज़ न छेड़े। चुप चाप एक कोने में बैठी रहे, वरना फिर से पिटेगी मुझसे।” बड़बड़ाते हुए रमा जी कमरे में चली गई।
संतो रोती हुई झुमरी को बैठने का इशारा कर चुप चाप किचन में चली गई। रमा जी का, उसकी बेटी पर यूं हाथ उठाने से मन आहत था संतो का। मन तो कर रहा था सारा काम बीच में ही छोड़ छाड़ कर घर चली जाए। पर अकसर गरीबी विद्रोह नहीं करने देती।
कुछ ही देर में सभी लोग अपने अपने कामों में व्यस्त हो गए। पर उस थप्पड से झुमरी के नन्हे से मन को बहुत गहरी चोट पहुंची थी। वो छुप जाना चाहती थी सबसे, या यूं कह लो ,थप्पड से लाल हुआ अपना गाल छुपाना चाहती थी।
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वो सुबकते हुए देवी प्रतिमा के पीछे जाकर छिप गई। नन्ही सी झुमरी दीवार और देवी प्रतिमा के बीच की छोटी सी जगह में सिकुड़ कर बैठ गई। रोते-रोते न जाने कब उसकी आंख लग गई।
कुछ समय बाद पूजा आरम्भ हुई। परिवार के सभी सदस्य और मेहमान हॉल में एकत्रित हो गए। पण्डित जी ने मंत्रोचारण के साथ माता का शृंगार किया और प्रतिमा पर लाल चुनरी चढ़ाई। देवी जी की भव्य आरती हुई।
आरती की आवाज़ सुन झुमरी की नींद खुल गई पर वो डर के मारे बाहर नहीं आई। आरती पूर्ण होते होते देवी प्रतिमा पर चढ़ाई हुई लाल चुनरी ना जाने कैसे सरक कर पिछे छुप कर बैठी झुमरी के सर पर आ गिरी। जैसे स्वयं माता न उसे वो ओढ़नी भेंट की हो।
चुनरी पाकर नन्हीं झुमरी चहक उठी उसका भोला मन थोड़ी देर पहले मिले आघात को बिलकुल भूल गया। उसका सारा भय, ना जाने कैसे पूर्णतः गायब हो गया। वो लाल चुनरी ओढ़े, खिलखिलाती हुई देवी प्रतिमा के पीछे से निकल कर अचानक सबके सामने आ गई।
उस समय वहां उपस्थित सभी लोगों को ऐसा प्रतीत हुआ मानों प्रतिमा से निकल कर देवी का साक्षात रूप प्रकट हो आया हो। लाल लहंगे और लाल चुनरी में चहकती हुई झुमरी सबको देवी सी प्रतीत हो रही थी। तभी पंडित जी का स्वर गूंजा।
“जयकारा शेरा वाली दा ….बोल सांचे दरबार की .. जय। झुमरी की खिलखिलाने की आवाज़ सुन संतो किचन से दौड़ती हुई आई। वहा उसने जो नज़ारा देखा वो उसकी कल्पना से परे था।
देवी सी प्रतीत होती झुमरी खुशी से झूम रही थी और वहां उपस्थित सभी लोग हाथ जोड़े उसके सामने खड़े थे। उसने देखा, उन सभी जुड़े हुए हाथों में दो श्रद्धा से जुड़े हाथ रमा जी के भी थे।
सच ही तो है…. भगवान तो इंसानों में भी बसते है।
हैं ना??
स्वरचित मौलिक
ऋचा उनियाल बोंठियाल।