मां आप कहां चली गई हो मुझे अकेला छोड़कर मौसी मां मुझे प्यार नहीं करती जब आप थी सब मुझे प्यार करते थे पापा भी और मौसी भी लेकिन जब से आप गई हो तब से सभी बदल गये है।मां सब कहते हैं कि आप भगवान के पास गई हो आप वापिस कब आओगी मुझे आपके बिना अच्छा नहीं लगता और मां पता है
मौसी मां पापा के साथ आपके कमरे में सोती है और मुझे बरामदे में नत्थू काका के साथ सुलाती है।बस एक काका ही है जो मेरी देखभाल करते हैं।अगर मौसी काका को मेरी फ़िक्र करते देख लेती तो उन्हें भी डांटती और खाना भी नहीं देती आज भी ऐसा ही हुआ है मां,मौसी मां किटी पार्टी में जा रही थी
मैंने मौसी मां की साड़ी पकड़ कर कहा मुझे भी अपने साथ ले चलो ना मौसी मां इस वजह से उनकी साड़ी खुल गई थी तो मौसी मां ने मुझे धक्का देकर कहा कहा था हट यहां से मनहूस मेरी साड़ी खराब कर दी। मौसी मां ने इतनी तेज धक्का दिया था कि मैं जमीन पर गिर गई थी और मुझे सिर में चोट आ गई थी। तभी नत्थू काका ने मुझे उठाया
और प्यार से गोदी में लेकर दवा लगा रहे थे तो मौसी मां काका को भी डांटने लगी उन्हें भी धक्का देकर बोली बहुत प्यार आता है इस चुड़ैल पर आज तुम दोनों को खाना नहीं मिलेगा।रहो भूखे। मां मौसी मां के जाने के बाद नत्थू काका बाहर से ब्रेड पकौड़ा लेकर आए थे वहीं मुझे खिलाया और थोड़ा बचा खुद ने खाया ।
कहते-कहते शालू अपनी मां की फोटो को सीने से लगाकर रोने लगी उसकी सिसकियों की आवाज से पास लेटें नत्थू काका की नींद खुली उन्होंने शालू को रोते रोते देखा तो उसे गोदी में बिठाया सिर पर हाथ फेरते हुए प्यार से बोले शालू बेटा मत रो चुप हो जाओ रात हो गई है अभी तेरी मौसी मां आवाज सुनेगी तो जली कटी सुनाएगी।
सोजा बेटा शानू को पास में लिटाया और उसकी मां रीता की फोटो को उठाया। नत्थू काका ने रीता की फोटो को देखा तो उन्हें चार साल पहले की घटना याद आई रीता ओर वैभव की शादी बड़े धूमधाम से हुई थी। सभी बहुत खुश थे नत्थू काका वैभव के घर में लगभग दस साल से काम कर रहे थे।
कभी किसी ने उन्हें नौकर की नज़र से नहीं देखा घर के सदस्य जैसे ही रहा करते थे। रीता की बहन का उसके घर में आना जाना था वह अपने जीजाजी से बहुत मज़ाक भी करती थी। शादी के एक साल बाद ही शालू का जन्म हुआ सभी बहुत खुश थे रीता की बहन भी शालू को बहुत प्यार करती थी। लेकिन ऊपरवाले को तो कुछ और ही मंजूर था।
शालू के जन्म के बाद से ही रीता की तबीयत बिगड़ने लगी उसे बच्चादानी में कैंसर हो गया था बस तभी से रीता की बहन उसकी व शालू की देखभाल करने लगी।चार महीने में रीता बिस्तर पर मिल गई। डाक्टर ने भी कह दिया था रीता बस एक महीने की मेहमान है। वैभव बहुत परेशान रहने लगा शालू भी छोटी ही थी
पर सबकुछ रीता की बहन ने सम्भाल लिया इसी बीच वैभव और रीता की बहन रागिनी दोनों करीब आ गए। एक दिन जब सुबह मैं रीता मैम साहब के कमरे में गया तो देखा मैम साहब की आंखें ऊपर की तरफ थी हाथ में शालू की फोटो। मैं घबराकर वैभव साहब के पास गया घर में जैसे मातम छा गया सबकुछ खत्म हो गया
साहब तेज-तेज रोने लगे रागिनी भी चिल्ला कर रोने लगी मैम साहब अब इस दुनिया में नहीं थी। बस तभी से सबकुछ बदल गया वैभव व रागिनी ने शादी कर ली शादी के बाद से ही रागिनी का शालू के प्रति व्यवहार बदल गया।हर समय अंगारे उगलना जैसे उसका स्वभाव बन गया नत्थू काका भी सोचते सोचते कब सो गए उन्हें पता ही नहीं चला।
आंख खुली तो रागिनी। चिल्ला कर कह रही थी देखो इन नालायकों को घोड़े बेचकर सो रहे हैं। काम-धाम कुछ नहीं करना रागिनी ने पास आकर जोर से चिल्लाया। माफ़ कर दो मालिकन अभी सब काम करता हूं।चल उठ फटाफट और सुन इस मनहूस को भी उठा लगा काम पर मुझे बड़ी तेज भूख लगी है।जी मालकिन अभी नाश्ता तैयार करता हूं।
नाश्ता तैयार करते समय काका सोच रहा था कि क्यों ना शालू बिटिया को मै अपने गांव ले जाऊं कम से कम इस नरक से तो छूटेंगी।मै तब इसकी देखभाल अपने बच्चे की तरह कर पाऊंगा सुधा भी बहुत खुश होगी पढ़-लिखकर कुछ बन जाए वरना इसकी मौसी तो इसे नौकरानी बना कर ही रखेगी।पर कैसे ले जाऊं मालकिन जाने नहीं देगी।
पहले बिटिया से पूछता हूं। नाश्ता मालकिन को देने के बाद काका ने शालू बिटिया से पूछा बिटिया क्या तुम मेरे साथ गांव चलोगी वहां तुम्हारी काकी तुम्हें बड़े प्यार से रखेगी और तुम पढ़ भी सकोगी शालू बोली हां काका यहां तो मौसी मारती है।अगर तुमसे कोई पूछेगा कि मैं कौन हूं तो तुम क्या कहोगी?
मेरे बाबा सच काका बहुत खुश हुए और उसे प्यार से गले लगा लिया।अब मालकिन से पूछना बाकी है नत्थू काका मालकिन के पास गये और सिर झुकाकर बोले मालकिन मैं कुछ दिनों के लिए अपने गांव जाना चाहता हूं। मेरी बीवी की तबीयत ठीक नहीं है। रागिनी ने पहले घूरकर देखा फिर बोली हां जाओ वैसे भी तुम अब मुझसे नहीं झेले जाते रीता के समय की सारी यादें मिटा देना चाहती हूं
और सुन रागिनी बोली इस मनहूस को भी अपने साथ ले जाना। ठीक है। नत्थू काका के तो मन की बात हो गई वह अंदर ही अंदर बहुत खुश थे। फिर भी बोले पर मालकिन मालिक कुछ न कहें मैं जल्दी ही आ जाऊंगा। नहीं नहीं उन्हें में समझा दूंगी बस इसे लेकर वापिस मत आना अब तो नत्थू की खुशी का ठिकाना नहीं था।
उसने जल्दी से अपना सामान बांधा और शालू का हाथ पकड़कर चला उसके कानों में रागिनी के बड़बड़ाने की आवाज पड़ी वह कह रही थी अब इस मनहूस से पाला छूटा अब मैं और वैभव और मेरा आने वाला बाबू।पर नत्थू काका ने भी मुड़कर नहीं देखा वह शालू को लेकर चला गया।
निमीषा गोस्वामी