पापमोचनी एकादशी व्रत 28 मार्च दिन सोमवार को रखा जाएगा. पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को पापमोचनी एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा (Lord Vishnu Puja) करते हैं और पापमोचनी
एकादशी व्रत कथा का पाठ करते हैं. इस व्रत कथा के श्रवण या पाठ करने से समस्त पापों का नाश होता है और संकट दूर होते हैं. पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा स्वयं ब्रह्मा जी ने नारद जी को सुनाई थी. इस साल पापमोचनी एकादशी की तिथि 27 मार्च को शाम 06:04 बजे शुरु हो रहा है और इसका समापन 28 मार्च को शाम 04:15 बजे होगा. जो लोग व्रत रखेंगे, वे व्रत का पारण अगले दिन सुबह सूर्योदय के बाद करेंगे. आइए जानते हैं पापमोचनी एकादशी व्रत कथा (Papmochani Ekadashi Vrat Katha) के बारे में.
पापमोचनी एकादशी व्रत कथा
एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के बारे में बताने को कहा. तब श्रीकृष्ण ने कहा कि इस एकादशी को पापमोचनी एकादशी के नाम से जानते हैं. इस व्रत को करने से पाप का नाश होता है और संकट मिट जाते हैं. उन्होंने ब्रह्मा जी द्वारा नारद मुनि को सुनाई कथा के बारे में बताना शुरु किया, जो कुछ इस प्रकार से है-
एक चैत्ररथ वन था, जिसमें देवराज इंद्र अप्सराओं और देवताओं के साथ विचरण करते थे. एक बार च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी चैत्ररथ वन में तपस्या करने गए थे. वे भगवान शिव शंकर के भक्त थे. वे शिव जी की तपस्या करने लगे. कुछ समय व्यतीत होने के बाद कामदेव ने मंजुघोषा नाम की एक अप्सरा को मेधावी ऋषि का तप भंग करने के लिए भेजा.
उस समय मेधावी युवा थे और वे मंजुघोषा के नृत्य एवं सुंदरता पर मुग्ध हो गए. वे शिव भक्ति से विमुख हो गए. मेधावी मंजुघोषा के साथ रति क्रीड़ा में लीन हो गए. ऐसा करते हुए 57 साल बीत गए. तब एक दिन मंजुघोषा ने मेधावी से वापस देवलोक जाने की अनुमति मांगी.
मंजुघोषा की वापसी की आज्ञा मांगने पर मेधावी को अपनी गलती का एहसास हुआ कि वे तो शिव जी की तपस्या से विमुख हो गए हैं. आत्मज्ञान होने के बाद उन्होंने मंजुघोषा को शिव भक्ति से विमुख करने का कारण माना. क्रोधित होकर उन्होंने मंजुघोषा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया.
तब मंजुघोषा डर से कांपने लगी, उसने क्षमा याचना करते हुए श्राप से मुक्ति का उपाय पूछा. तब मेधावी ने उसे पापमोचनी एकादशी व्रत रखने को कहा. मंजुघोषा ने पापमोचनी एकादशी व्रत विधि विधान से किया, जिसके परिणाम स्वरुप उसके पाप मिट गए और वह श्राप से मुक्त होकर देवलोग चली गई.
काम क्रीड़ा में लीन रहने के कारण मेधावी भी तेजहीन हो गए थे. तब उन्होंने भी पापमोचनी एकादशी व्रत रखा. व्रत के प्रभाव से मेधावी के भी पाप नष्ट हो गए.