समझौता अब नहीं – उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

मीता दुबली पतली ‘नाजुक सी प्यारी लड़की ।पढ़ाई मे ठीक ठाक ।पिता को बहुत मन था बेटी डाक्टर बने।लेकिन पैसे की कमी और हालात के चलते यह सपना पूरा नहीं हो सका।

ग्रेजुएट हो गई तो शादी की तैयारी होने लगी ।बहुत जगह बात चलती और फिर खत्म हो जाती ।कहीं पैसे की मांग ‘कहीं उसका साँवलापन’कहीं दुबला पन आगे आ जाता ।हालांकि रंग कुछ कम होने पर भी आकर्षित करता हुआ चेहरा था उसका ।लेकिन आज के आर्थिक युग में पहले पैसे को ही अधिक महत्व देने का चलन था।

खैर ‘ पिता के जूते फटते रहे।दौड़ धूप आखिर रंग लाई और एक जगह बात तय हो गयी ।लेन देन बहुत नहीं था।पर माता पिता ने संस्कार भरपूर दिया था बेटी को ।बाजे गाजे के साथ बेटी मीता विदा हो गई ।ससुराल भी बराबरी का ही था लेकिन वहां के लोगों के मन में अपने उँचे होने का घमंड बहुत था।ससुराल में मीता ने हमेशा महसूस किया कि उसे और उसके परिवार को यहाँ कोई आदर सम्मान नहीं दिया गया था

।हर बात में नीचा दिखाना सास ससुर का रवैया था।लेकिन माँ ने तो चुप रहने का सीख दिया था अतः वह हमेशा चुप रहती ।वह कमजोर नहीं थी लेकिन संस्कारी थी।उसके आगे और पीछे दो ननद भी थी जो हमेशा पीछे पड़ी रहती ।गहनों से लदी फदी जब पहली बार ससुराल पहुँची थी तो सास ने मायके के सारे जेवर उतरवा दिए कि इतना हल्का जेवर भी कोई अपनी बेटी को देता है क्या ।

यहां लोग देखेंगे तो मेरी तो नाक ही कट जायेगी ।फिर मीता ने माँ के दिए हुए जेवर अपने सूटकेस में बन्द कर दिया ।और सासूमा के दिए हुए भारी गहनों से लद गई भारी भारी बाजूबंद से हाथ दुखने लगते।पर उतारने की आज्ञा नहीं थी।रिशेपशन पर माँ पिता जी और चचेरे भाई बहन आये थे।सासू माँ ने फरमान सुना दिया था कि अधिक मेल मिलाप ठीक नहीं है तुम्हारे लिए ।

अब उनसे नाता तोड़ना पड़ेगा ।मीता सोचने लगी ।भला यह भी कोई बात हुई? जिस घर में पली-बढ़ी उसे ही भूल जाएँ? अपने माता पिता को भूल जाएँ? पति से कहना चाहा तो उनहोंने चुप करा दिया  ” जैसा लोग कहें ‘वैसे ही करो” ।वह चुप तो पहले से ही थी और चुप हो गयी ।स्वागत समारोह खत्म हुआ ।गरमी से उसकी हालत खराब हो गई थी ।रात को सब लोग सोने चले गये थे ।

उसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था ।उसने नाईटी पहन लिया ।अब थोड़ी जान में जान आयी है ।अचानक छोटी ननद पानी लेने आयी।रसोई घर सामने बरामदे से जाना होता था जो मीता के कमरेके बगल में ही था।ननद अकचका गई “भाभी “आपने नाईटी पहना है”?माँ देखेगी तो गुस्सा करेगी ” फिर पति ने तुरंत बदल लेने को कहा ।”जैसा परिवार चाहे वैसा ही रहना चाहिए ” ।

धीरे-धीरे मीता ने उनही लोगों के हिसाब से रहना सीख लिया ।मन को मारती रही ।कभी तो बदलाव होगा? पर बदलाव की उम्मीद में जीती रही लेकिन कुछ नहीं बदला ।दो साल बीत गया ।घर में वंश बढ़ाने की चर्चा होने लगी ।फिर मीता को एक दिन लगा कि कुछ सामान्य नहीं है ।खाना खाती तो उलटी हो जाती ।डाक्टर को दिखाया गया ।

खुश खबरी सुनाया डाक्टर ने “आप माँ बनने वाली हैं ” सभी लोग खुश हो गये ।समय पर मीता को सासूमा ने मायके भेज दिया “अरे,पहला बच्चा तो मायके में होता है “?फिर पापा आ कर ले गये ।मीता एक बेटी की माँ बन गई ।औकात भर पापा ने छठी में खर्चा किया ।पैसे की कमी से बच्ची को सोना नहीं दे पाये थे कितना कुछ सुनना पड़ा था उसे ।

एक महीने के बाद उसे सासूमा ने बुला लिया ।पोती बहुत प्यारी थी।सबकी दुलारी बेटी ठहरी ।दादी दादा भी बहुत प्यार करते थे ।हंसी खुशी मे दिन बीत रहा था कि सवा साल के बाद ही फिर एक बेटी आ गई ।सासू माँ का पारा हाई हो गया ।खानदान क्या बेटी से चलेगा? पति भी माँ के तरफ थे।इस बेटी को कोई नहीं छूता ।दो दो बच्चे की देखभाल, परिवार की जिम्मेदारी,रसोई सबकुछ मीता को देखना होता ।

माँ के लिए तो दोनों आखों का तारा थी।पति सोचते अगले बार तो बेटा होना ही चाहिए ।संयोग से दो साल के बाद ही फिर एक बेटी आ गई ।अब दिन रात सास ननद के ताने सुनने की उसकी आदत हो गई थी ।आजकल पति भी ठीक से बात नहीं करते ।उसे  लगता,थक जाते होंगे ।एक दिन बहुत रात को पति घर आये ।मुँह से बदबू आने के कारण मीता ने पूछा “आपने शराब पी है?

” पहले तो कभी नहीं पीते थे?–“मै कुछ भी करूँ तुम्हे क्या ” लाल लाल आखों से घूरते हुऐ उनहोंने कहा ।वह सहम गई थी ।धीरे-धीरे रोज की ही बात हो गई ।मीता टोकती तो गाली देने लगते।फिर भी वह चुप हो गयी ।बहुत प्यार से बात करेगी वह।प्यार से तो जानवर भी वश में हो जाता है ।लेकिन हालात मे सुधार नहीं हुआ ।

अब नशे में पीट भी देते ।रोज पीने के कारण ठीक से काम नहीं होता ।बिजनेस था टीवी का।वह डूब गया ।घर में ससुर जी का देहांत हो गया ।सासू माँ भी  बेटे का पक्ष लेती और उसे ही दोषी ठहरा देती ।मीता पढ़ी लिखी थी ।उसने सोच लिया था कि अगर सुधार नहीं हुआ तो वह कहीं नौकरी कर लेगी ।अलग हो जायेगी ।

फिर एक दिन पति के साथ एक औरत आई।”मीता,मैंने इससे शादी कर लिया है ।आखिर खानदान के लिए  वारिश चाहिए था कि नहीं “? सन्न रह गई  वह।तो बात इतनी बढ़ गई है? अब और समझौता नहीं कर सकती है वह।अपना फैसला सास को सुना दिया ।दूसरे दिन सुबह आठ बजे तैयार होकर कुछ कपड़े रख लिया और घर से निकल गई ।

“वारिश के लिए घर में आ गयी है, अब मेरी क्या जरूरत?” वह अपने दोनों बच्चों को लेकर निकल गई ।किसी ने रोका नहीं ।शायद सही फैसला कर लिया था उसने ।अब समझौता नहीं कर सकती है ।सामने खुला आसमान था।खुल कर सांस ले सकती है ।

—उमा वर्मा,नोएडा ।स्वरचित ।मौलिक ।

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