“ सुन रही हो माँ की तबीयत बहुत ख़राब है अब उनके बचने की उम्मीद जरा भी नहीं है…. भैया कह रहे थे एक बार आकर उन्हें देख लो ।”कुन्दन अपनी पत्नी रूचि से कह रहा था जिसकी आँखों में आँसू और आवाज़ में कंपन रूचि महसूस कर रही थी
“ तुम्हें क्या लगता है हमें जाना चाहिए और नहीं?” रूचि कुन्दन के करीब आकर उसकी पीठ सहलाते हुए पूछी
“ हमें जाना चाहिए ।” कुन्दन ने हिचकिचाते हुए कहा
“ एक बार और सोच लो कुन्दन!” रूचि ने जोर देते हुए कहा
“ हाँ मैं माँ से मिलने जा रहा हूँ उसने हमसे मुँह मोड़ा था हमने नहीं ।” कहकर वो अपने कपड़े समेटने लगा और घर जाने के लिए बस में टिकट बुक करने लगा
“ हम भी साथ चलेंगे… बच्चे भी एक बार अपनी दादी को देख लें जिन्होंने हमसे बस इसलिए मुँह मोड़ लिया क्योंकि हमने प्रेम विवाह करने के लिए उनसे इजाज़त माँगी और उन्होंने हमें घर से बेदख़ल कर फिर कभी अपना मुँह ना दिखाना का फरमान जारी कर दिया था…हम तो उनके आशीर्वाद से ही जीवन की नई शुरुआत करना चाहते थे पर …. खैर कोई बात नहीं अब शायद वो हमें आशीर्वाद दे दे।”रूचि ने कहा
वो लोग जब घर पहुँचे सीधे माँ के कमरे की तरफ बढ़ने लगे …हर एक कदम उन्हें भारी महसूस हो रहा था ऐसा लग रहा था जैसे कल की ही बात हो जब कुन्दन ने रूचि से शादी की बात की..
“ तू पागल हो गया है कुन्दन … ना हमारी जाति की है ना हमारी बराबरी की… पढ़ाई संग किया और नौकरी करने लगे तो प्यार हो गया… देख उसको अपने दिल से निकाल दे नहीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा… सोचा भी है समाज क्या कहेगा…पिता नहीं है तो बेटा गुलछर्रे उड़ाता रहा और माँ ने कुछ कहा नहीं… फिर छोटी बहन का ब्याह ..सब सब बर्बाद हो जाएगा ।” माँ के कठोर शब्दों के बाण कुन्दन आँसू बहा कर झेल गया पर रूचि से किए वादों को वो तोड़ ना सका
“ फिर तू मेरी भी सुन ले…अगर तुने उससे शादी की तो मुझसे तेरा कोई रिश्ता नहीं रहेगा …मैं समझूँगी मेरा एक ही बेटा एक बेटी ही है ।” माँ के कटु वचन सुनकर कुन्दन जड़ हो गया
बहुत समय तक ऊहापोह की स्थिति में रहा रूचि ने भी माँ की ख़ातिर उसे भुला कर आगे बढ़ जाने को कहा पर कुन्दन ऐसा ना कर सका
बड़े भाई भाभी और बहन ने माँ को भरसक समझाया पर वो टस से मस न हुई …. फिर सबने कुन्दन से कहा शादी कर लो आखिर माँ है मान ही जाएगी पर माँ ने मुँह मोड़ कर कुन्दन और रुचि को रोते हुए घर से जाने को कह दिया
दोनों रोते हुए घर छोड़कर चले गए…
और आज आए भी तो माँ ऐसी हालत में थी ..
कमरे में जैसे ही उन्होंने कदम रखा एक मरियल सी आवाज़ आई,” आ गया कुन्दन… पता था तू रह ही नहीं पाएगा… यहाँ आओ मेरे पास…मैंने अपने बच्चों को खुद से अलग कर दिया… अपनी ज़िद में ..।” कहते हुए माँ कराह उठी
कुन्दन और रूचि आगे बढ़ कर माँ के पैर छूने लगे तो माँ ने कहा,”अब चैन से मर सकूँगी… अपने ही बच्चों से कौन मुँह मोड़ता है….. मैं ही अभागन माँ थी जो अपने बच्चों की खुशी ना देख सकी।”
आज माँ ने भी उन्हें आशीर्वाद दे उनकी ख़ुशियों को स्वीकार कर लिया ।
रश्मि प्रकाश
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