क्या सच मे हम इंसान है ? – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

नमन की नई नई नौकरी लगी थी सुबह सुबह जल्दी उठ उसने सफ़ेद कमीज और काली पेंट पहनी साथ मे काली टाई भी लगाई । माँ के दिये नाश्ते को करके वो जल्दी से बस स्टॉप की तरफ भागा। 

” शुक्र है बस निकली नही !” खुद से बोलता वो जल्दी से बस मे चढ़ा ।। बहुत सम्भल सम्भल कर चल रहा था वो जिससे उसकी सफ़ेद कमीज पर कोई दाग़ ना लगे और उसका ऑफिस मे पहले दिन ही रुतबा खराब ना हो । 

बस के अंदर उसने अपने लिए सीट खोजी पर क्योकि  सबके ही काम पर जाने का समय था तो ज्यादातर सीट भरी हुई थी ! ” ये हमारे देश की आबादी भी इतनी बढ़ गई है कि जरूरी संसाधनों की भी कमी हो गई है !” खुद से बोलता वो बस मे इकलौती खाली सीट की तरफ बढ़ा । पर वहाँ गंदे कपड़ो मे एक मजदूर को खिड़की के सहारे सोये देख नाक मुंह सिकौड़ा उसने । 

” टिकट टिकट ..!” कंडक्टर की आवाज़ से वो मजदूर एक पल के लिए जगा फिर सो गया । शायद किसी फैक्टरी मे रात की ड्यूटी करके आया होगा । 

” मयूर विहार !” कंडक्टर को पैसे देते हुए मनन बोला और मजबूरी मे उसी एकमात्र सीट पर बैठ गया पर सिकुड़ कर जिससे गलती से भी वो उस मजदूर को ना छू जाये । 

तभी एक महिला सवारी बस मे चढ़ती है और खाली सीट ना देख मनन के बराबर मे आकर खड़ी हो जाती है । अब मनन को दोनो तरफ से खुद को सिकोड़ना पड़ रहा था उसे ऐसा करते देख महिला स्वारी थोड़ा दूर हट जाती है जिससे मनन राहत की सांस लेता है । 

मनन का ध्यान उस गंदे से कपड़े वाले मजदूर की तरफ जाता है जो बेफिक्र सोया हुआ था । मानो ये बस नही उसका अपना कमरा हो । तभी नींद मे उस मजदूर को होश नही रहा और उसका हाथ खिड़की से बाहर निकल गया। 

” अगर कोई दूसरा वाहन आ गया उसकी टककर से इसका हाथ ही टूट जाना है !” मनन ने मन ही मन सोचा ” क्या करूँ उठा कर बोलूं क्या ? …अरे नही नही कितने गंदे कपड़े है इसके इसे छूने से मेरे हाथ भी गंदे हो जाएंगे , पर अगर इसे कुछ हो गया ।तो ? …होने दो ना कौन सा मेरा रिश्तेदार है । उसे खुद सम्भल कर बैठना चाहिए ना !” मनन खुद से ही सवाल जवाब करता रहा ।

” भाई साहब देखिये उनका हाथ खिड़की से बाहर निकला है किसी बस वस ने टककर मार दी तो ? कृपा करके आप उन्हे जगा दीजिये !” तभी जो महिला बस मे चढ़ी थी उसने मनन से कहा । क्योकि वो थोड़ा दूर खड़ी थी इस कारण खुद से तो उठा नही सकती थी उस मजदूर को !

” मैं क्यो उठाऊं उसे खुद को सोचना चाहिए कि ये बस है उसका कमरा नही । पता नही कहाँ कहाँ से आ जाते है !” मनन नाक मुंह सिकोड़ कर बोला ।

दंग रह गई वो महिला ये सुन फिर भी किसी तरह खुद पर संयम रख फिर से बोली। 

” देखिये भाईसाहब अगर उनकी किसी वाहन से टककर हो गई तो हो सकता है उनकी जान भी चली जाये इंसानियत के नाते ही सही उन्हे उठा दीजिये !”

” देखिये मैडम मैने इंसानियत का ठेका नही लिया आज नौकरी का मेरा पहला दिन है मैं अपना दिमाग़ खराब नही करना चाहता इसलिए आप चुपचाप खड़ी रहिये या खुद से कर लीजिये जो करना है !” मनन भड़क कर बोला । मनन की बात सुन सभी रहे थे पर कोई भी ना मनन को कुछ बोल रहा था ना उस मजदूर को जगा रहा था ।

” कैसे स्वार्थी संसार मे जी रहे है हम यहाँ किसी को किसी की जान की परवाह से ज्यादा अपने कपड़ो की फ़िक्र है !” ये बोल वो महिला किसी तरह जगह बनाती हुई उस मजदूर को जगाने लगी । ” भैया आप अपना हाथ अंदर कर लीजिये कही ऐसा ना हो कोई गाडी टककर मार दे !” 

” बहुत बहुत धन्यवाद मैडम जी वो क्या है ना बिटिया की स्कूल फीस जानी है इसलिए कल दिन रात की ड्यूटी करके आया हूँ फैक्ट्री मे और तीन घंटे बाद फिर पहुंचना है फैक्ट्री तो सोचा बस मे थोड़ी नींद पूरी कर लूं । अच्छा हुआ आपने जगा दिया मेरा तो ध्यान ही नही गया कब मेरा हाथ खिड़की से बाहर चला गया !” वो मजदूर शुक्रिया अदा करते हुए बोला। 

” कोई बात नही भैया आप आराम से सो जाइये पर जरा ध्यान से !” उस महिला ने इतना कहा और पीछे हो गई क्योकि भीड़ के कारण वहाँ रुकना मुश्किल हो रहा था। वो मजदूर वापिस सोने लगा पर इस बार बिना खिड़की के सहारे के । 

” अच्छा हुआ मैडम जी आपने इसे जगा दिया वरना कही टकरा वकरा जाता तो खामखा बस रुक जाती और मुझे देर हो जाती ऑफिस पहुंचने मे !” मनन ये बोल भद्दी हंसी हँसने लगा उसकी हां मे हां मिला कुछ और सवारी भी हंस दी । वो मजदूर बेचारा ये सुन सीधा होकर बैठ गया। 

” सच मे ये संसार स्वार्थी हो चुका है यहाँ किसी को किसी की जान की चिंता नही बस चिंता है तो ये कि सामने वाले को कुछ हुआ तो उनको देर ना हो जाये !” ये सोचते हुए वो महिला बस से उतर गई क्योकि उसका स्टॉप आ गया था । 

दोस्तों हम इंसान है पर क्या आपको नही लगता इंसानियत भूलते जा रहे है । किसी के साथ गलत हो रहा हो तो हम या तो नज़रअंदाज करते हुए निकल जाते है या वीडियो बनाने लगते है पर सामने वाले की मदद नही करते खास तौर पर तब जब सामने वाला गरीब हो । किस दिशा मे जा रहे है हम क्या सच मे हम इंसान है भी ?? 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

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