दान के फल – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

 अजी सुनते हैं…. हां , हां यही हूं बोलो ना…. गिरधारी लाल ने सुनयना देवी से कहा…!

       आज शनिवार है, मैं सोच रही हूं शनि मंदिर के सामने बैठे  भिखारियों को फल बांट दूं…..ऐसा करिए आप मुझे पांच किलो सेव लाकर दे दीजिए…।

      ठीक है , तुम तैयार हो तब तक मैं फल लेकर आता हूं… कहकर गिरधारी लाल बाजार की ओर चल पड़े…

सेव कैसे दिए…?

दो सौ अस्सी रुपए किलो साहब…

मीठे हैं….?

दुकानदार (फ़लवाला )इधर-उधर बगलें ताकने लगा…. उसे समझ में नहीं आ रहा था क्या जवाब दे…. तभी गिरधारी लाल ने शिकायत भरे लहजे में कहा…

पिछली बार ले गया था बिल्कुल बेस्वाद था….

गिरधारी लाल फलवाले से उत्तर की आशा कर ही रहे थे कि ….स्वाद के बारे में कुछ पता चले तभी फलवाले ने संकोच करते हुए कहा…

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साहब सच बताऊं या…..

अरे सच ही तो बोलोगे ना….. झूठ क्यों बोलोगे… गिरधारी लाल ने आश्चर्य से पूछा ।

मेरा मतलब…. झूठ बोलकर  … हां मीठे हैं…… ऐसा बोलकर बेच भी दूं तो फिर आप अगली बार मेरी दुकान ( ठेले ) में आएंगे ही नहीं…

   देख भाई , तेरी बातों से तो लग रहा है कि इस बार का भी सेव  बेस्वाद ही है…. इसीलिए तू बात घुमा रहा है….!

अरे , नहीं , नहीं साहब ऐसी बात नहीं है…. दरअसल …ना तो मैं पिछली बार एक भी सेव चखा था , ना ही इस बार चखा हूं… ।

   वैसे भी एक दो सेव खराब हो ही जाते हैं…. उसका ही काफी नुकसान हो जाता है…. फिर हम सेव खाएंगे तो घर में चूल्हा कैसे जलेगा….?

 इसीलिए मैं साफ-साफ बता दूं कि मुझे नहीं मालूम ये सेव मीठे हैं भी या नहीं…..

गिरधारी लाल को दुकानदार से ऐसे जवाब की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी…. दुकानदार की स्थिति ,  परिस्थिति और सच्चाई देखकर गिरधारी लाल ने तुरंत कहा……अरे यार..m फिर तो फटाफट काटो एक सेव…. चलो साथ में चखते हैं…. और हां इस चखने वाले सेव के पैसे मेरे रहेंगे ….अब तो ठीक है ना ….मजाकिया मूड में गिरधारी लाल ने दुकानदार  के संकोच को दूर करने की कोशिश की…!

  वाह , बड़े स्वादिष्ट हैं ये सेव तो …

ऐसा करो 5 किलो दे दो….

फलवाले ने 5 किलो सेव तौले और गिरधारी लाल को पकड़ा दिया…!

      गिरधारी लाल ने₹1500 निकाले और फलवाले को दे दिए …..फलवाले ने उन्हें ₹100 लौटना चाहा ,बोला… साहब 5 किलो के 1400 रुपए ही होते हैं ….पर गिरधारी लाल ने  हंसते हुए कहा ये ₹100 चखने वाले सेव के हैं….।

  गिरधारी लाल आज सोचने को मजबूर हो गए…. एक तरफ दान देने के लिए ही सेव खरीदे जा रहे थे …..वहीं दूसरी ओर फलवाले से इतना मोलभाव , स्वाद के बारे में किचकिच…?

   वो तो भला हो फलवाले का… जो सेव चखने वाली बात सच-सच बता दिया वरना उनकी स्थिति की तरफ कभी ध्यान ही नहीं जाता…। एक तरफ दान कर पुण्य कमाना चाहते हैं …वहीं दूसरी ओर किसी की जरूरत, मजबूरी को नजर अंदाज कर उसकी नीयत पर संदेह करते हैं…!

(स्वरचित सर्वाधिकार  सुरक्षित रचना )

संध्या त्रिपाठी

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