मुझे बचा लो,बेटा, ये मुझे क्यो मार रहे हैं?अच्छा लो मैं भी मारूंगी, हाँ-कहते कहते उसने भी एक पत्थर उस भीड़ की ओर उछाल दिया। उसका पत्थर फेंकना था कि बच्चो की भीड़ जिसे उकसाने में बड़ी उम्र के लोग भी शामिल थे, तीतर बितर होने लगी।और इससे उत्साहित हो उसने फिर एक और पत्थर उछाल दिया,
अब तो सब बच्चे भाग गये।और वह खुशी के मारे ताली बजाने लगी।आखिर उसे ऐसी वहसी भीड़ से बचाव का हथियार जो मिल गया था।कुछ देर पहले ही वह मेरे पीछे ओट लिये मुझसे बचाने की गुहार कर रही थी,और अब वह सामने आ कर अपनी सफलता से नाच रही थी।मैं एक टक उसे देख कर सोच रहा था बावली ये है या वे जो उसके मानसिक विचलन का मजाक उड़ाने में मजा खोजते हैं।
मेरे ही कस्बे में मैं बचपन से उस महिला को देखता आ रहा था,जिसे सब कल्लो बावली कह कर ही पुकारते थे।बड़ो को मौका मिलता तो वे भी उसे छेड़ने से बाज नही आते थे,बच्चों के लिये तो वह मनोरंजन का खिलौना मात्र थी,जितना वह परेशान होती, चीखती चिल्लाती उतना ही बच्चे उसे और अधिक उकसाते।इन बच्चों को कभी किसी बड़े ने रोका नही।
मैं छोटा ही था दोपहर को घर से बाहर देखा कि कल्लो बावली हमारे घर के सामने बैठी है।पहले तो मैं डर गया,पता नही बावली क्या कर दे,पर वह तो मुझे देख मुस्करा दी।उत्सुकता वश मैं उसे गौर से देखने लगा,मुझे तो वह बावली प्रतीत नही हो रही थी।मैं अंदर घर से उसके लिये पानी ले आया,उसने एक झटके में पूरा गिलास खाली कर दिया,पता नही कब की प्यासी थी।पानी पी कर उसने मेरे सिर पर हाथ फिरा दिया।मुझे बहुत अच्छा लगा था।
ननद भाभी का अनूठा रिश्ता – डॉ कंचन शुक्ला : Moral Stories in Hindi
उस दिन के बाद मेरे और कल्लो बावली के बीच एक अनजाना सा रिश्ता बन गया था।जब भी कल्लो मिलती मुझे प्यार करती और मैं उसे कभी पानी पिला देता या कभी घर से मुझे खाने के लिये मिले बिस्किट, उसे खाने को दे देता।फिर अचानक कल्लो बावली गायब हो गयी।कही दिखाई ही नही दी।मैं घर से निकलता तो मेरी आँखें उसे खोजती,पर वह नही मिली।
समय बीतता गया,मैं अब बड़ा हो गया था।स्मृति पटल से कल्लो बावली हट चुकी थी।सब प्रतिदिन की भांति चर्या चल रही थी कि उस दिन बच्चो के झुंड से अपने को बचाती कल्लो बावली दिखाई पड़ गयी,जो मुझसे चिपट कर गुहार कर रही थी,मुझे बचा लो बेटा।कल्लो बावली को अचानक वर्षो बाद ऐसे सामने देख मैं अवाक रह गया।
बचपन की यादें ताजा हो गयी।कल्लो बावली के प्रति मेरे मन मे अब भी वही बचपन वाला भाव जागृत हो गया।मैं कल्लो का हाथ पकड़ कर घर की ओर ले आया,वहां मैंने उसे पानी पिलाया,खाना खिलाया।मासूम बच्चे की तरह वह जल्दी जल्दी खा रही थी,उसके निश्छल व्यवहार से मैं खड़ा खड़ा उसे निहार रहा था।
अब उसके बाल काफी सफेद हो गये थे,चेहरे पर झुर्री भी दिखाई दे रही थी।सच कहूँ उस कल्लो बावली में मुझे वह माँ दिखाई दे रही थी,जो हमे छोड़ दूसरे लोक चली गयी थी।मैंने अपने घर मे ही एक बाहर की ओर छोटा से कमरे में एक फोल्डिंग पलंग डाल दिया और कल्लो को वहां लिटा दिया।वह तो पांच मिनट में ही गहरी नींद में सो गयी।मैं कल्लो के मासूम चेहरे को देखता हुआ बाहर आ गया।
मैंने कल्लो बावली के बारे में जानकारी करने का निश्चय किया,तो पता चला कि बचपन मे ही उसके माता पिता एक दुर्घटना में मर गये थे,पर कल्लो बच गयी थी।उसके दूर के रिश्तेदार चाचा ने उसे अपने पास रख लिया।रख क्या लिया मुफ्त की नौकरानी ले आया।बालिका कल्लो से उसकी सामर्थ्य से अधिक काम लिया जाने लगा।
ऐसे ही दो वर्ष बीत गये।और एक दिन उस चाचा ने ही उस फूल सी बच्ची से बलात्कार कर डाला।बस तभी से कल्लो, कल्लो बावली हो गयी।उसने एक पत्थर से अपने चाचा का सिर फोड़ दिया और घर से निकल गयी।अस्त व्यस्त कल्लो पूरे कस्बे के लिये कल्लो बावली हो चुकी थी।बच्चे उसे चिढ़ाते तो बड़े उसे कामुक निगाहो से देखते।बावली हों जाने का उसे एक फायदा जरूर हुआ कि लोगो की निगाहें कामुक तो होती पर उस पर हाथ नही डाल पाते थे,कही शोर मचा दिया तो सब इज्जत मिट्टी में मिल जायेगी।
एक दिन बुखार में तपती कल्लो बेसुध किसी घर के सामने पड़ी थी तो उस घर के मालिक ने उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया।कल्लो जब ठीक हुई और अस्पताल वालो को उसकी मानसिक विक्षिप्तता का पता चला तो उन्होंने कल्लो को पागल खाने में भर्ती करा दिया।
इतने दिन कल्लो बावली इसीलिये दिखाई नही दी थी,कल ही वह मौका पा वहां से भाग आयी थी।सब बातों का पता चलने पर मेरी आँखें नम हो गयी थी।मैंने निश्चय कर लिया था
कि अब मैं कल्लो को अपने पास रखूंगा।यही सोचकर मैंने एक कमरे में उसके रहने की व्यवस्था बना दी।पूरे तीन घंटो तक कल्लो सोती रही।उठी तो पास में रखे पानी के जग को मुँह से लगा कर ढेर सा पानी पी गयी और घर से निकल पड़ी।मैंने रोक कर उससे कहा भी तथा इशारे से बताया भी कि अब वह यही आ जाया करे।मैंने उसे जाते रोका तो नही पर उसके पल्ले में कुछ खाने का सामान बांध दिया,जिससे भूख लगने पर वह खा सके।
वह मेरी ओर प्यार भरी आंखों से देखते हुए और मेरे सिर पर हाथ फिराते हुए बाहर की ओर भाग गयी।मेरा सोचना था कि मेरे रोकने से अभी वह रुकेगी नही,शाम को घर ले आऊंगा।धीरे धीरे उसे घर मे रहने की आदत पड़ जायेगी तो फिर वह सड़को पर नही भटकेगी।
कल्लो बावली के जाने के बाद मैं अपने कार्य मे व्यस्त हो गया।शाम के खाने और सोने के लिये मैं कल्लो बावली को लेने बाहर निकला, बाजार की ओर चल दिया,मेरा अनुमान था कि वह उधर ही मिलेगी।बाजार की ओर जाने वाले रास्ते पर जमा भीड़ को देख मैंने जानना चाहा कि माजरा क्या है तो पता चला कल्लो बावली को एक ट्रक रौंदता हुआ चला गया है,
बेचारी कल्लो बावली के दुखों का अब जाकर अंत हुआ।मैं तो भौचक्का सा खड़ा रह गया।मुँह से एक हाय सी निकली,क्या—-या कल्लो नही रही।आज ही तो मैंने उसे घर दिया था।उसने मुझे इस तरह अस्वीकार क्यो कर दिया भला?
पुलिस उसके शव का पंचनामा करने आ गयी थी।लावारिस शव का अंतिम क्रिया पुलिस कैसे करती है,सब जानते हैं।मैं भागा भागा वहां पहुंचा और बोला सर ये लावारिस नही है,मैं हूँ ना,मैं करूँगा अन्तिमसंस्कार।साहब ये लावारिस नही है ये मेरी माँ है।तमाम भीड़ मेरी ओर आश्चर्य से देख रही थी और मैं देख रहा था उस निश्छल कल्लो को जिसे दुनिया कल्लो बावली कहती थी,पर वो मेरी माँ बन चुकी थी।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित
#स्नेह का बंधन साप्ताहिक विषय पर आधारित कहानी: