रंग का दंश – डॉ कंचन शुक्ला : Moral Stories in Hindi

दरवाजे की घंटी बार-बार बज रही थी पर सलोनी को जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था वो अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी उसके दिल की बेचैनी उसके चेहरे और आंखों  उदासी बनकर झलक रही थी उसकी आंखों में एक दर्द था जिसे हर कोई नहीं पढ़ सकता था दरवाजे की घंटी की आवाज सुनकर सलोनी की मां ने झल्लाकर कहा

” “सलोनी तुम कहां हो दरवाजे पर कोई है क्या तुम्हें घंटी की आवाज सुनाई नहीं दे रही है!!? अपनी मां की गुस्से भरी आवाज सुनकर सलोनी चौंक कर वर्तमान में लौट आई उसने जल्दी से दरवाजा खोला तो सामने पोस्टमैन खड़ा था उसको देखकर सलोनी के चेहरे पर आश्चर्य के भाव दिखाई देने लगे उसने घबराई हुई आवाज में पूछा 

“आपको किससे मिलना है” सलोनी की बात सुनकर पोस्टमैन ने गुस्से में कहा ” सलोनी के भूत से अरे मैडम मैं कितनी देर से घंटी बजा रहा हूं क्या आप लोग कान में तेल डालकर बैठे थे ” पोस्टमैन की बात सुन सलोनी को अपनी गलती का अहसास हुआ उसने जल्दी से कहा” “माफ करना भैया मैं कुछ काम कर रही थी बताइए क्या काम है!!?” ” मैडम क्या आपका ही नाम सलोनी है!!? पोस्टमैन ने पूछा 

” हां भैया!!? सलोनी ने जबाव दिया 

” मैडम किसी कमल जी ने आपके नाम एक रजिस्ट्री भेजी है यहां हस्ताक्षर कर दीजिए ” पोस्टमैन ने गम्भीर लहज़े में कहा 

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कमल का नाम सुनते ही सलोनी के चेहरे पर एक व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट फैल गई उसने मन-ही-मन बड़बड़ाने लगी ” जनाब सामने से नहीं मना कर सके तो पत्र लिखकर शादी के लिए मना कर रहें हैं चलो किसी में इतनी शराफ़त तो है” यही सोचते हुए सलोनी ने हस्ताक्षर किया पोस्टमैन के जाते ही उसने पत्र खोला और पढ़ने लगी

पत्र पढ़ते ही उसकी आंखों में ख़ुशी और आश्चर्य के मिले जुले भाव दिखाई देने लगे सलोनी ने जल्दी से दोबारा खत को पढ़ा पता नहीं वो सपना था या भ्रम!! उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था सलोनी अपने हाथ में पकड़े हुए उस गुलाबी ख़त को बार-बार पढ़ रही थी उसने अपनी आंखों को अपनी हथेलियों से मला फिर पढ़ने लगी

पर ख़त के शब्दों में कोई बदलाव नहीं आया सलोनी का दिल जोरों से धड़कने लगा उसने खत को चूमकर अपने सीने से लगा लिया ऐसा करते ही उसके चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई फिर जल्दी से वो ख़त लेकर अपने कमरे में भाग गई उसे भाग कर जाते हुए देखकर सलोनी की मां ने पूछा, “सलोनी कौन था दरवाजे पर?”

कोई जवाब न पाकर सलोनी की मां बड़बड़ाने लगी “ये लड़की भी न एक जगह ठहर ही नहीं सकती” कहते हुए सलोनी की मां अपने काम में लग गई।

सलोनी वहां थी ही नहीं वह तो उस गुलाबी ख़त को लेकर अपने कमरे में जा चुकी थी। सलोनी बिस्तर पर लेट गई और फिर से वही गुलाबी ख़त खोल कर पढ़ने लगी।

सलोनी जी,

नमस्कार,

अभी यही संबोधन दे सकता हूं मैं आपको अपना फैसला फोन पर भी बता सकता था पर मैं आपसे अपने  प्यार का इज़हार ख़त लिखकर करना चाहता था।

मुझे आपकी सादगी आपकी मासूमियत भा गई है आपकी आंखें बहुत ही खूबसूरत हैं आपकी मासूमियत से मुझे प्यार हो गया है आपकी सलोनी सूरत मेरे दिल में बस गई है। हां मैं आपको पसंद करने लगा हूं या यूं कहूं प्यार करने लगा हूं आपको देखकर मैं समझ गया की आप में एक पत्नी और बहू के सारे गुण हैं

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रही सही कसर आपकी मौसी ने पूरी कर दी उन्होंने आपके बारे में हमें सब कुछ बता दिया है मुझे एक प्यार करने वाली पत्नी चाहिए नुमाइश में सजाने वाली गुड़िया नहीं मेरी मां भी एक संस्कारी बहू चाहतीं हैं जो उन्हें सास नहीं अपनी मां समझे हमें तो आप बहुत पसंद आईं

अब मैं आपको पसंद हूं कि नहीं मैं ये जानना चाहता हूं वो भी फोन के जरिए नहीं ख़त के माध्यम से मैं आपके ख़त का इंतजार करूंगा जल्दी ही जवाब देना मैं बेसब्री से आपके जबाव का इंतजार कर रहा हूं अभी कुछ ज्यादा नहीं लिखूंगा आपके जबाव के बाद मैं अपने मन के उद्गार को व्यक्त करूंगा।

तुम्हारे जवाब के इंतजार में

तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा,

कमल 

” मैं एक बात और कहना चाहता हूं जो मेरी मां ने उस दिन आपकी मां से कहा था हमारे यहां लेने-देने से ज्यादा रिश्तों में प्यार सम्मान और अपनेपन को महत्व दिया जाता है धन दौलत को नहीं यही हमारे घर की परंपरा है “

सलोनी ख़त को बार-बार पढ़ रही थी उसे पढ़कर सलोनी के चेहरे पर शर्म की लाली फैल गई उसकी आंखों में ख़ुशी के आंसू ये। उसने अपनी ही नज़रें बचाकर उस ख़त को चूम लिया।

सलोनी ख़त पढ़ते-पढ़ते अतीत की गहराइयों में उतरती चली गई।

सलोनी स्कूल जाने के लिए तैयार होकर जब अपनी सहेली पूर्णिमा के घर पहुंची तो पूर्णिमा बाहर गेट पर खड़ी सलोनी का इंतजार कर रही थी सलोनी को देखते ही पूर्णिमा ने कहा,” सलोनी तुम आज फिर लेट हो मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रही हूं तुम कहां रह गई थीं!!?” 

सलोनी कुछ कहती उससे पहले पूर्णिमा की मां ने व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट के साथ कहा,” अरे पूर्णिमा तुम्हारी तरह सुन्दर दिखने के लिए ये चेहरे पर कोई लेप लगाकर बैठ गई होगी इसी से लेट हो गई पर सलोनी तुम कुछ भी कर लो मेरी पूर्णिमा की तरह सुन्दर नहीं दिखोगी कहां  मेरी बेटी पूर्णिमा के चांद की तरह सुन्दर है जबकि तुम तो अमावस्या की काली अंधेरी रात हो तुम दोनों को देखकर तो लगता है जैसे हंसिनी ने कोयल से दोस्ती कर ली हो” 

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अपनी मां की बात सुन पूर्णिमा खिलखिलाकर हंस पड़ी जबकि सलोनी की आंखों से आंसू छलक पड़े उसने कोई जवाब नहीं दिया वो पूर्णिमा के साथ आगे बढ़ गई।

स्कूल के कैम्पस में दाखिल होते ही फिर से सलोनी को व्यंग्यात्मक तंज सुनने पड़े उसे देखकर लड़कियां कह रहीं थीं वो देखो सामने से हंसिनी और कोयल एक साथ आ रही हैं सलोनी को ऐसे व्यंग हर दिन सुनने पड़ते थे अब तो वो इसकी आदी हो गई थी।

  सलोनी पढ़ने में बहुत ही होशियार थी इसलिए उसके टीचर उसकी  बहुत तारीफ करते सलोनी बहुत ही सुलझी हुई लड़की थी उसका सौम्य व्यवहार सभी को मोहित कर लेता था लेकिन कुछ छोटी मानसिकता के लोग उसकी रंगत को देखकर उस पर व्यंग्यबाण चलाने से बाज नहीं आते थे।

  सलोनी  लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देती थी समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा सलोनी ने बहुत अच्छे नम्बरों से ग्रेजुएशन की परीक्षा पास कर ली उसके साथ पढ़ने वाली लड़कियों ने उसे बधाई देने के साथ-साथ तंज भी कस दिया,

” सलोनी चलो ये तो तुम्हारे साथ अच्छा हुआ कि, तुम अच्छे नम्बरों से पास हुई हो अब तुम्हें कोई छोटी मोटी नौकरी मिल जाएगी जिससे तुम अपना आगे का जीवन अच्छे से गुजार लोगी  तुम्हारे काले रंग को देखकर शादी तो  कोई तुमसे करेगा नहीं ” इतना कहकर सभी लड़कियां हंसने लगी 

आज कोई नई बात नहीं हुई थी सलोनी  अपने सांवले रंग के कारण बचपन से ही अपमान का तंज़ झेलने की आदी थी ।

  अपनी सहेलियों की बातें सुन सलोनी  के चेहरे पर दर्द सिमट आया उसने फीकी मुस्कुराहट के साथ कहा,” ये तो समय बताएगा मेरी शादी होगी या नहीं हो सकता है कोई मेरी सूरत को नहीं मेरी सीरत देखकर मुझसे शादी कर ले” 

” तुम ऐसे ख्वाब देखा भी नहीं,जो कभी पूरा ही न हो आज कल के लड़के सूरत देखते हैं सीरत नहीं तुम्हारी जैसी लड़की के साथ कोई लड़का खड़ा होना भी पसंद नहीं करेगा ” उसकी सहेलियों ने कहा और वहां से चलीं गईं।

जहां नाते-रिश्तेदार और आस-पड़ोस के लोग उसकी रंगत का मजाक उड़ाते थे वहीं उसके मम्मी-पापा उसे बहुत प्यार करते थे लेकिन ग़रीब होने के कारण वो उसके लिए कुछ ज्यादा नहीं कर पाते थे। सलोनी पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी पर उसकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई

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क्योंकि इसी बीच उसकी मां को कैंसर डिक्लेयर हो गया  उनके इलाज में बहुत पैसा लग रहा था। सलोनी के पिता एक स्कूल में चपरासी थे उनकी इतनी आमदनी नहीं थी कि वो अपनी पत्नी के इलाज के साथ अपनी बेटी की पढ़ाई भी जारी रख सकें अब सलोनी घर में ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी जिससे उसके पापा का बोझ कुछ कम हो सके।

समय पर इलाज़ होने के कारण सलोनी की मां ठीक हो गई पर वह कितने दिनों तक जिंदा रहेंगी किसी को नहीं पता था कैंसर बीमारी ही ऐसी है। सलोनी की मां अपने जिंदा रहते अपनी बेटी के हाथ पीले करना चाहती थी सलोनी शादी के लिए तैयार नहीं थी पर अपनी मां की जिद्द के आगे वो हार गई। सलोनी की मां ने अपने नाते-रिश्तेदारों से कहा, कि,वो लोग सलोनी के लिए कोई रिश्ता बताए।

ज्यादातर लोगों ने दो टूक जवाब दिया आपके पास न तो दहेज देने के लिए पैसे हैं और न ही आपकी बेटी देखने में सुंदर है ऐसे में कोई लड़का आपकी बेटी को पसंद नहीं करेगा “

  पर कुछ लोगों ने रिश्ते बताए पर सलोनी की सांवली रंगत उसके विवाह में बाधक बन जाती थी, जो भी लड़का उसे देखने आता नापसंद करके चला जाता।

कुछ लोगों ने कहा,” अगर आप लोग दहेज दें तो हम आपकी बेटी को अपनी बहू बना सकते हैं,”

एक लड़के ने कहा,” अगर आपकी बेटी नौकरी कर रही होती तो मैं शादी के विषय में सोच सकता था आपकी बेटी में तो कुछ भी नहीं है”

लड़के वालों से ऐसी बातें सुन-सुनकर सलोनी अंदर ही अंदर टूटने लगी उसका सांवला रंग उसके गुणों को दबा दे रहा था। सलोनी की आंखें बहुत ही सुन्दर थी, सलोनी बहुत ही मृदु भाषी और संस्कारी लड़की थी घर के कामों में पूरी तरह दक्ष उसमें वो सभी गुण विद्यमान थे जो एक बहू, पत्नी और मां में होने चाहिए थे।

परंतु उसका रंग और उसकी गरीबी  उसके गुणों पर आवरण डाल दे रहा था।

सलोनी अपनी नुमाइश करते हुए थक चुकी थी उसने अपनी मां से कहा,” मम्मी अब मेरी नुमाइश बंद करो जब लड़के वाले मुझे देखने आते हैं तो मुझे लगता है मैं इंसान नहीं कोई चीज हूं जिसका मोलभाव किया जा रहा है मम्मी हर दिन मेरा स्वाभिमान घायल होता है मैं अंदर-ही-अंदर टूटकर बिखर गईं हूं

ऐसा प्यार कहां… – प्रीती सक्सेना

आजकल  लोगों को अच्छी संस्कारी बहू नहीं चाहिए। उन्हें तो गोरी चिट्टी सुन्दर लड़की चाहिए और साथ में ढेरों दहेज  फिर चाहे कल को वो लड़की उनका अपमान ही क्यों न करे उन्हें इससे कोई मतलब नहीं है अब आज के बाद मैं अपनी नुमाइश नहीं करूंगी “

लेकिन मां तो मां होती है हर मां का यही सपना होता है की वो अपनी बेटी को दुल्हन बनते हुए देखे सलोनी की मां ने भी यही सपना देखा था उन्होंने अपनी बहन से सलोनी के रिश्ते की बात की सलोनी की मौसी बहुत ही अच्छी और सुलझी हुई महिला थीं उन्होंने सलोनी के लिए एक रिश्ता भेजा

लड़का सरकारी अफसर था और  देखने में भी  सुंदर और स्मार्ट जब सलोनी की मां को ये बात पता चली तो उन्होंने सलोनी से कहा,” सलोनी कल तुम्हें एक लड़का देखने आएगा उसे तुम्हारी मौसी यहां भेज रहीं हैं  लड़का सरकारी अफसर है तुम्हारी मौसी बता रहीं थीं वो लड़का सूरत से ज्यादा सीरत को पसंद करता है मुझे विश्वास है ये लड़का तुम्हें पसंद कर लेगा “

अपनी मां की बात सुनकर सलोनी ने गुस्से में कहा “मैं उनके सामने नहीं आऊंगी” इतना कहकर वो अंदर चली गई

दूसरे दिन  लड़का और उसकी मां सलोनी को देखने आए तो सलोनी ने उनके सामने आने से इंकार कर दिया। लेकिन सलोनी की मां ने जब उसे अपनी कसम दी तो वो उन लोगों के सामने आ गई। वो लड़के का नाम कमल  था कमल और उसकी मां ने बहुत प्यार और अपनेपन से बात की सलोनी की मां ने कमल की मां से हाथ जोड़कर कहा,” बहन जी मेरे पास दहेज में देने के लिए

ज्यादा कुछ नहीं है ये बात मैं पहले ही बता देना चाहतीं हूं” तब कमल की मां ने मुस्कुराते हुए जबाब दिया,” बहन जी हमारे यहां लेने-देने से ज्यादा रिश्तों में प्यार और अपनेपन को महत्व दिया जाता है यही हमारे घर की परंपरा है”  थोड़ी देर इधर-उधर की बातें होती रही फिर जाते हुए उन्होंने कहा ,” वो अपना फैसला फोन पर बता देंगी।

पापा चले गए – रीटा मक्कड़

उनकी बात सुनकर सलोनी के चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुस्कुराहट फ़ैल गई क्योंकि वो जानती थी  वो लोग घर जाकर शादी से इंकार कर देंगे। इससे पहले आने वाले लड़कों ने उनके मुंह पर ही इंकार किया था कमल के घर वालों में थोड़ी शराफ़त बाक़ी होगी इसलिए वो सामने से नहीं पीछे से इंकार करने की बात कर रहे थे।

यही सोचकर सलोनी के चेहरे पर जहरीली मुस्कुराहट फ़ैल गई थी, पर आज कमल का ख़त पाकर सलोनी ये समझ ही नहीं पा रही थी कि ये उसका सपना है, भ्रम है या उसके जीवन की सबसे खूबसूरत सच्चाई सलोनी यही सोच रही थी।

ख़त पढ़कर सलोनी के चेहरे पर आत्मविश्वास की मुस्कान फ़ैल गई उसने कागज़ और पेन लिया और कमल से अपने प्यार का इज़हार करने के लिए ख़त लिखना शुरू किया।

 

डॉ कंचन शुक्ला

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित अयोध्या उत्तर प्रदेश 

#वाक्य “हमारे यहां लेने-देने से ज्यादा रिश्तों में प्यार सम्मान और अपनेपन को महत्व ज्यादा दिया जाता है “

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