बालिका – शालिनी दीक्षित

“सुन सो गई क्या?” रामू ने लाली को हिलाते हुए पूछा।

प्रसव के बाद बस अभी आँख लगी थी लाली की, लेकिन तभी रामू ने उसे जगा दिया।

“क्या हुआ?” लाली ने धीरे से पूछा।

अरे पूछ क्या रही हो, जैसे तुम नही जानती क्या हुआ है। यह तीसरी लड़की तुम ने आज पैदा कर दी है, कैसे पालेंगे तीन-तीन लड़कियां; जल्दी उठो, अभी रात में अस्पताल के लोग उतना ध्यान नहीं देंगे हम पर, चलो भाग चलते हैं अपने गांव।

“क्या मतलब?” लाली ने आश्चर्य से पूछा।

“सिर्फ मैं और तुम चुप चाप यहाँ से निकल चले, समझी मतलब?” रामू फुसफुसाया।

“और बच्ची का क्या?” लाली ने पूछा।

“ये अस्पताल वाले करेंगे इस का जो करना होगा……..” रामू बोला।

“मैं न जाऊँगी इसे छोड़ कर।” लाली ने विरोध किया।

“अरे चुप चाप चल यहाँ से, जो दो लड़कियां घर पर हैं उनकी फिकर कर पहले……” रामू लाली को लगभग घसीटता हुआ बाहर आ गया।


लाली खुद को रामू की पकड़ से छुड़ाने के लिये एड़ी चोटी का जोर लगा रही है पर कोई फायदा नही हो रहा था वह उसके साथ खिची चली जा रही थी। 

वो जोर-जोर से चिल्लाना चाहती है पर आवाज कही गले मे ही रुंध गई और रामु नवजन्मी बेटी को हॉस्पिटल में अकेला छोड़ लाली को और जोर से घसीटने लगा। 

लाली ने अपना पूरा जोर एक बार फिर से लगाया और इस बार उसकी आंख खुल गई।

रामू फर्श पर सोया हुआ था उसके सोते चेहरे पर चिंता की लकीरें थी पर क्रूरता नही थी।

लाली इस भयंकर ख्वाब को देख पर पसीना-पसीना हो गई थी; साथ ही मन ही मन सोचने लगी अब किसी दबाव में नही आएगी और लड़के की चाह में चौथा बच्चा हरगिज़ नही करेगी। वो इस डरावने ख्वाब को सच होने का मौका नही देगी।

 

मौलिक/स्वरचित 

शालिनी दीक्षित

 

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