राधा और गुंजन का खून का रिश्ता नहीं था लेकिन ऐसा रिश्ता था जो हर किसी के मन में चाहत लाता था कि काश! गुंजन जैसी बेटी ईश्वर सबको देता। गुंजन राधा के घर काम करने वाली सेविका की बेटी थी। बेटे की चाहत में जब चौथी बेटी के रूप में गुंजन का जन्म हुआ तो, गुंजन की मां की मृत्यु हो गई और गुंजन के पिता ने तो अस्पताल में ही उसे छोड़कर घर आ गया।जब ये खबर राधा को मिली
तो राधा ने बच्ची की जिम्मेदारी स्वयं उठाने का फैसला लिया। राधा अस्पताल में नर्स का काम करती थी। राधा ने कई बार गुंजन की मां को समझना चाहा था कि,” बेटा-बेटी में कोई अंतर नहीं होता है और बच्चों को अच्छी शिक्षा और संस्कार देना जरूरी है।” ये सारी बातें उन लोगों के समझ के बाहर की थी। इसके बाद राधा ने अपने शहर को छोड़कर गुंजन को लेकर दूसरे शहर में आकर नौकरी करने लगी और किसी को उनके रिश्ते के बारे में जानने नहीं दिया यहां तक की गुंजन को भी।
गुंजन में राधा के संस्कार थे और अच्छी शिक्षा प्राप्त कर गुंजन डॉक्टर बन गई थी और उसको पहला अस्पताल वही मिला था जिसमें उसका जन्म हुआ था।
राधा बेचैन हो उठी थी कि,” कहीं गुंजन को उसके जन्म के बारे में कुछ पता ना चले वरना बच्ची का कोमल हृदय टूट जाएगा। गुंजन!” बेटा तुम इतनी दूर कहां जाओगी? और क्यों ना दोबारा बात करके कोई आस-पास का अस्पताल देख लो।”
मां!” आप परेशान ना हों…. मैं आपको अपने साथ ही रखूंगी और हां मां कई अस्पतालों का नाम आया था पर ना जाने क्यों उस शहर ने मुझे अपनी ओर खींच लिया और मैंने ही मांगा उस अस्पताल को।” राधा की धड़कनें अब बढ़ने लगी थी और वो सोचने लगी थी कि,” उस शहर से गुंजन का अटूट रिश्ता है।उसका परिवार वहां पर है।” राधा को गुंजन के खोने का डर नहीं था क्योंकि उसका उससे जो स्नेह का बंधन था वो इतना कमजोर नहीं था कि वो टूट जाएगा। उसे डर था कि अगर कभी भी उसे अपने माता-पिता के बारे में जानकारी मिलेगी और उसको किस हालात में मौत के मुंह में छोड़कर उसके पिता ने उसे मुड़ कर दोबारा नहीं देखा था तो उस पर क्या गुजरेगी।
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एक हफ्ते बाद गुंजन को जाना था और वो अपनी ज्वाइनिंग को लेकर बहुत उत्साहित थी। कहते हैं ना आपकी जन्मभूमि आपको खींचती ही है और शायद गुंजन के साथ भी ऐसा ही था। भले ही उसे कुछ भी जानकारी नहीं थी पर उसके पिता और बहनें तो शायद उसी शहर में हीं थीं। राधा की उलझनें जायज़ थीं। राधा ने मन में विचार किया कि,” वो गुंजन के साथ नहीं जाएगी… कोई ना कोई बहाना करके यहीं रहेगी क्योंकि उसी शहर में उसकी वापसी अतीत के पन्नों में दबे राज को खोल देगी।राज जब तक छिपा रहे समझ लो सबकुछ ठीक है वरना रिश्ते बिखरते देर नहीं लगती है।”
गुंजन को उसने बेटी की तरह पाला था शादी भी नहीं की क्योंकि शादी के बाद गुंजन के साथ कोई समझौता ना करना पड़े और उसकी ममता में कभी कोई भेद-भाव ना आए।ये रिश्ता अनमोल था त्याग और बलिदान का जिसको समझ पाना सबके बस की बात नहीं थी।
मां!” मैंने अपनी सारी तैयारियां कर ली है ।अब आप बताएं कि आप का क्या – क्या सामान रखना है?”
बेटा! ” अभी तो तुम अकेली जाओ और नौकरी ज्वाइन कर लो ।देखो तो सही कि अस्पताल कैसा है और तुम्हारे काम काज और जिम्मेदारियों को समझो। जब सब कुछ अच्छी तरह से हो जाएगा तब मैं आ जाऊंगी।”
मां!” मैं आपको छोड़कर नहीं जा सकती।मेरा मन ही नहीं लगेगा और पढ़ाई के चक्कर में कितना दूर रही हूं आपसे।अब आपको मेरी जरूरत है।आपकी देखभाल करना मेरी जिम्मेदारी भी है।आप यहां ढंग से ना खाओ- पीओगी और दवाइयां भी समय – समय पर लेना है,वो कौन करेगा।आपकी सेहत के साथ लापरवाही अब मैं नहीं ले सकतीं हूं और पता नहीं क्यों आपको यहां छोड़ कर जाने का दिल भी नहीं कर रहा है।”
गुंजन! ” तू बहुत बड़ी हो गई है पर तेरी मां अभी अपनी देखरेख खुद कर सकती है। तुम जाओ और जब भी मेरा मन करेगा मैं आ जाऊंगी।”
अच्छा मां!” सब ठीक होते ही मैं आपको बुला लूंगी।”
सुबह गुंजन को निकलना था और राधा को रात भर नींद नहीं आई थी करवटों में रात गुजारी थी।हे ईश्वर!” तुम्हारी लीला भी अपरंपार है।जब उस शहर से मैंने अपना सारा नाता तोड़ दिया था तो दोबारा क्यों वहीं जाने पर मजबूर कर रहे हो? आखिर क्या चाहते हो राम जी…. कितनी और परीक्षा देनी होगी मुझे और मेरी बेटी को?”
एक नई सुबह ने दस्तक दे दिया था।सच पूछिए तो कितना बड़ा दिन था कि आज गुंजन को वो सब मिलने जा रहा था जो राधा ने सोचा था और दूसरी तरफ उस शहर से फिर से रिश्ता जोड़ना उसके लिए कहीं ना कहीं जख्म कुरेदने जैसा अहसास था। वक्त भी किस मोड़ पर इंसान को लाकर खड़ा कर देता है
जहां से कोई और रास्ता ही नहीं होता।सारे रास्ते मानो बंद पड़ गए हों। राधा क्या कह कर रोकती गुंजन को। इसी उधेड़बुन में पड़ी ही थी कि गुंजन ने आवाज लगाई… मां! “आइए चाय बन गई है साथ में चाय पीते हैं। मां…आपकी आंखें कैसी लग रहीं हैं आप सोई नहीं क्या रातभर? आपकी तबियत तो ठीक है ना….आप इतनी उदास तो मुझे तब भी नहीं दिखीं थीं जब मैं कॉलेज जा रही थी…. सचमुच में आप ठीक तो हैं ना..” गुंजन बहुत बेचैन सी हो गई थी।
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गुंजन!” बेटा इतने सारे सवाल और इतनी चिंता ठीक नहीं है। तुम अच्छी तरह जाओ बेटा और अपने फर्ज से कभी मुंह नहीं मोड़ना। डॉक्टर भगवान के समान होता है हर मरीज के लिए और तुम अपनी मां की वजह से अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होना । मैं बिल्कुल ठीक हूं और हां खाने की लापरवाही बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करूंगी मैं। अपनी सेहत अच्छी रखोगी तभी तो दूसरों का इलाज अच्छी तरह से कर पाओगी।” गुंजन निकल गई अपनी मंजिल की ओर।
गुंजन ने जैसे ही उस शहर में कदम रखा उसे अलग सा अहसास होने लगा था मानो ये शहर उसका अपना हो।वो तो यहां कभी भी नहीं आई थी पर यहां का लगाव उसे अलग ही महसूस हो रहा था।
गुंजन अस्पताल के सभी लोगों से अच्छी तरह मिली और अपने काम में लग गई।
उधर राधा की उलझनें बढ़ती ही जा रही थी कि,” आज नहीं तो कल उसे उस शहर में जाना ही होगा जिसे वो वर्षों पहले छोड़ आई थी और कल को गुंजन के जन्म के राज को खोल ना दे।”
गुंजन को अस्पताल के कैंपस में ही घर मिल गया था और अब उसने अपनी मां को लाने का फैसला भी ले लिया था।
राधा के पास कोई बहाना नहीं था और अब उसने अपने आपको तैयार कर लिया था सच्चाई का सामना करने के लिए और अब उसका मन हल्का हो गया था कि जो होगा देखा जायेगा। अब वो गुंजन को सब सच बता देगी और गुंजन को भी हक है अपने परिवार के बारे में जानने का।उसका रिश्ता इतना कमजोर नहीं है कि वो बिखर जाएगा और उसने अपने रिश्ते को बहुत ही सच्चाई से निभाया है।ये बंधन हमेशा ऐसा ही रहेगा।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी
#स्नेह का बंधन