यश औऱ सुबोध बचपन के दोस्त तो हैं ही, दोनों के परिवार भी अड़ोसी पड़ोसी हैं। लँगोटिया यार व दाँतकाटी रोटी जैसी कहावतें इन पर सौ टके लागू होती हैं। किंतु किस्मत का खेल भी निराला है। सुबोध, वो तो बन गया साला… साहब लंदन का। और यश रह गया बिलासपुर में प्रोफेसर बनकर।
वैसे दोनों ने अंग्रेजी भाषा में डॉक्टरी की उपाधि प्राप्त की है। दोनों के बीच एक कॉमन कड़ी है दोस्त सोनालिका। वह गाहे ब गाहे सही राह दिखाने वाली सलाहकार भी है। दोनों ही उसे जी जान से चाहते हैं किंतु सोनालिका के दिल में सरल सौम्य यश बसा है। यश भी इस बात से भलीभाँति परिचित है। लेकिन सोनालिका के माँ पापा सजातीय सुबोध को अपना दामाद बनाने का मन बना चुके हैं।
सुबोध लंदन जा रहा है। आराम से सोफे पर लेटे हुए कहता है, ” यार यश ! तू जो भी पैक कर रहा है न, ऐसा कर उसकी एक लिस्ट बनाकर रख देना। पता चला सुबोध जी को ऑफिस पहुँचना है और जूते मौजे ही नदारद। “
” अरे हाँ यार ! सब पता है कि तू कितना लापरवाह है। ऐसा कर, तू तो शादी करले। मैं तो वहॉं हूँगा नहीं। मेरे इस लापरवाह दोस्त का ध्यान कौन रखेगा ? बता ना तेरी पसंद। करना क्या है, चट मंगनी पट ब्याह। फ़िर हनीमून मना लेना लंदन में। मार लेना एक तीर से दो निशाने। बस तू हाँ कर दे, बाकी छोड़ अपने जिगरी पर। “
सुबोध नाचते हुए कहता है, ” मेरी पसंद तू भी जानता ही होगा। वो है हम दोनों की दोस्त सोनालिका। पर यार अभी तक मैंने अपने प्यार का इज़हार नहीं किया है। उसे और कैसा साथी चाहिए ? एक आत्मीय दोस्त वह भी मेरे जैसा स्मार्ट जेंटिलमैन । मेरे ख़याल से अंकल आँटी को भी कोई एतराज़ नहीं होगा। लेकिन सोना को तैयार करने का काम मेरा दोस्त ही करेगा। “
यश को काटो तो खून नहीं, इस भारी जिम्मेदारी को कैसे निभाएगा ? वह सोनालिका से वादा कर चुका है कि वे शीघ्र ही विवाह बंधन में बंध जाएँगे। आज शाम सुबोध की विदाई पार्टी में दोनों यह खुशख़बरी देने वाले हैं। वह बदहवास सा सिर पकड़ कर बैठ जाता है।
सुबोध दौड़ता हुआ आता है, ” अरे मेरे भाई ! तू अभी से थक गया। अभी तो तुझे दोस्त की शादी करवाना है और बारात में चलना है। और तू अभी तक गया नहीं सोनोलिका को बताने… डोली सजाके रखना…सजना जी आ रहे हैं। “
पसीने में नहाया यश ख़ुद को सम्भालता है। उसे एक सच्चे मित्र का फ़र्ज जो निभाना है। वह नज़रें छुपाता हुआ दिल पर पत्थर रखकर
चल देता है सोना के घर की ओर। अरे अरे ! घर में कैसे बात करेगा ? काँपते हाथों से नं डॉयल करता है और वही रोज़ वाले ठिकाने के रेस्तराँ में उसे बुलाता है।
दोनों आमने सामने बैठे हैं। सोना, अपने यश की पसंद की गुलाबी साड़ी में आई है। पर वह नज़रें नहीं मिला पा रहा है। सोना कहती है कि लग रहा है हमारी पहली मुलाकात है। यश के मुँह से यकायक निकल जाता है, ” हाँ सोना ! अगर यह आखरी मुलाक़ात हुई तो…डार्लिंग। मुझे आज तुमसे एक ज़रूरी बात कहनी है। वादा करो कि मुकरोगी नहीं। “
सोनोलिका के आश्वस्त कराने पर वह बमुश्किल अपनी बात शुरू करता है, ” हाँ सोना ! आज मैं वो कहने जा रहा हूँ जिसे तुम सुन नहीं पाओगी। मैं क्या कहूँ ? वह नादान सुबोध…अपने भोलेपन में यही समझता रहा कि तुम तो उसी की हो। उसे हमारे प्यार का भी नहीं पता। अब तुम्हीं बताओ मैं क्या करूँ ? “
ठंडी हो चुकी कॉफी का मग पटकते सोनालिका रोती हुई चल देती है। यश का दिमाग सुन्न हो चुका है और दिल बेचारा दो अजीजों के बीच ख़ुद को असहाय पा रहा है। उसकी स्थिति संगम के राजेन्द्रकुमार जैसी हो रही है। वह लड़खड़ाते कदमों से सुबोध के घर पहुँचता है।
यश की ऐसी हालत देखकर सुबोध फूट पड़ता है, ” क्या हुआ ? सोना ने मना कर दिया क्या? “
” अरे नहीं मेरे दोस्त ! तुम जैसा लायक जीवनसाथी भला किसे नहीं चाहिए। ज़रा धीरज धर मेरे यार। सब ठीक हो जाएगा। अच्छा बता शादी कब करनी है। “
” बस लंदन जाने के पहले ही दोस्त। तू तो मेरे सात फेरे करवा दे। फ़िर ये दिलवाला तो दुल्हनिया के साथ उड़ने को तैयार बैठा है। “
यश जैसे तैसे घर पहुँचता है। आज की रात मानो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। कई बार डॉयल करने के बाद सोनालिका कॉल रिसीव करती है। उसका सुबकना थम नहीं रहा है। ऊपर से तूफ़ानी मौसम। इस अचानक आई आँधी ने दो प्रेमियों के सपनों का संसार उजाड़ कर रख दिया है। सोना अपने यश की हालत सह नहीं पाती है। वह उसकी खुशी की ख़ातिर सुबोध की जीवनसंगिनी बनने को तैयार हो जाती है।
उसे तो अपने माँ पापा को भी मनाना है। उन्हें तो यश पसन्द है।
बड़े धूमधड़ाके से ब्याह सम्पन्न होता है। यश सारे कार्य निपटाता है। लोगों को उसकी खुशी दिखाई देती है। किंतु मुस्कान के पीछे छुपे दर्द का एहसास सोना के सिवा किसी को नहीं हो पाता है। सुबोध के साथ उड़ान में सोना की देह अवश्य थी, दिल तो कहीं पीछे ही छूट गया है।
नई नौकरी, पार्टी, हनीमून में समय को तो मानो पंख लग गए हैं। उधर यश हल्के से ह्रदयाघात के कारण अस्वस्थ है। लेकिन वह यह सब बताकर मित्र की खुशियों में ग्रहण लगाना नहीं चाहता है।
एक दिन देर रात सुबोध गिटार पर धुन छेड़ देता है… दोस्त, दोस्त ना रहा; प्यार, प्यार ना रहा; जिंदगी मुझे तेरा ऐतबार ना रहा। सोना द्वारा पूछने पर सुबोध कहता है, ” मैंने तुम्हारी डायरी पढ़ ली है। तुम दोनों ने मुझे इतना पराया समझ लिया। मुझे पता चला है कि यश की तबीयत भी ठीक नहीं है। चलो हमें बिलासपुर चलना है। “
तीनों दोस्त एक दूसरे से लिपटे हैं। कौन किसे सांत्वना दे, कुछ समझ नहीं पा रहे हैं। आंखों से बह रही गंगा यमुना थमने का नाम नहीं ले रही हैं।
स्थिति को सहज करने के लिए यश हँसता है, ” अच्छा अब ये बताओ, तुम दोनों अपनी भाभी कब ला रहे हो ? ” दूर कहीं से गीत सुनाई दे रहा है…ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे…
स्वरचित
अप्रकाशित
सरला मेहता
इंदौर म प्र
पहले तो सोनालिक के घर वाले सुबोध को पसंद करते थे फिर यश को कैस करने लगे। पूरी तरह से अविश्वसनीय व बिना किसी तर्क के जो मन में आया लिख दिया