बटुआ – एम पी सिंह : Moral Stories in Hindi

अमन दिल्ली में एक एन एम सी में कार्यरत था और ऑफिस की ही एक लड़की अंजलि से प्यार हो गया, ओर वो भी उसे प्यार करने लगी। 

अंजलि के घर वाले इस शादी के लिये  तैयार नहीं थे, उन्हें डर था पता नहीं परिवार वाले कैसे होगे, इसी शहर के जाने पहचाने लोग होते तो अच्छा होता, अनजान लोगों मे अंजलि कैसे एडजस्ट हो पाएगी, वगैरह वगैरह।

अमन ने मॉ बाबूजी को सब कुछ बता दिया था और दिल्ली आकर बात करने को बुलाया।

लड़की देखने के लिये अमन के मॉ बाबूजी यानी राहुल औऱ रीना, कोटा स्टेशन से दिल्ली जाने के लिए ट्रैन में चढ़े। 2 एसी कोच में लोअर बर्थ थी। दोनो रिटायर्ड सरकारी टीचर्स थे। बैठने के बाद सामान सीट के नीचे रखा और बेड शीट बिछाने के बाद जब ब्लैंकेट उठाया तो रीना ने देखा कि वहाँ बटुआ पड़ा है। रीना ने बटुआ उठाया और पति पर गुस्सा हो गई, आप का ध्यान कहाँ रहता है, बटुआ गिरा दिया। 

मेरा पर्स मेरी पॉकिट में है बोलते हुए राहुल ने पर्स ले लिया। राहुल ने देखा कि उस पर्स में बहुत सारे कार्ड और काफी सारे पैसे थे। उन पैसों को देख एक बार तो राहुल का मन डोल गया, पर कार्ड्स को देख उसका ज़मीर  जागता रहा। बेडिंग लगाने के बाद राहुल ने आस पास की सीट वालो से पूछा कि क्या किसी का पर्स गिरा है?

पर कोई लेने नहीं आया। साइड बर्थ वाला बोला, अंकल, कोई मालिक नहीं है, शायद कोटा में उतर गया होगा, आप ही रख लो। राहुल बोला, इसमें कुछ ए टी एम कार्डस के अलावा पैसे भी है, बेचारा परेशान होगा, वैसे आपका नाम ओर कहाँ तक जा रहे हो? साइड बर्थ वाला बोला, जी मैं अशोक,  मुम्बई से दिल्ली जा रहा हूँ। वो लोग बातें कर ही रहे थे कि चाय वाला आ गया

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ओर वो दोनो चाय लेकर पीने लगे। चाय वाले की आवाज सुनकर ऊपर बर्थ वाला जो सो रहा था, उठ गया और चाय मांगी। चाय के पैसे देने के लिए जेब मे हाथ डाला तो पर्स नही मिला तो घबरा गया, किसी से कुछ बोला नही पर सीट, बेडिंग, बैग सब जगह ढूढ़ता रहा। उसे देखकर राहुल ने पूछा, क्या ढूंढ रहे हो?

अंकल, मेरा पर्स नहीं मिल रहा है। राहुल बोला, बेटा,  मिल जायेगा, यही कही होगा ओर बोलते बोलते सबकी चाय के पैसे दे दिये। फिर राहुल ने पूछा, तुम्हारे पर्स में पैसे थे क्या ? वो बोला, पैसे तो 4-5 हजार ही थे, पर डैबिट ओर क्रेडिट कार्ड थे, प्रॉब्लम हो जाएगी। राहुल ने पूछा कि तुम्हें अगर कुछ पैसे चाहिए, तो मैं दे देता हूं, तुम चाहो तो वापिस कर देना,

ओर नही करोगे तो भी चलेगा। वो बोला, अंकल, पैसे तो गूगल पे से भी हो जायेगे, पर कार्ड्स का प्रोब्लम होगा, सब ब्लॉक कराने पड़ेंगे, नया कार्ड आने में टाइम लगेगा और फ्रॉड का भी रिस्क बना रहेगा। अशोक, साइड बर्थ वाला चाय पीते पीते उन दोनों का वार्तालाप सुन रहा था ओर मुस्कुरा भी रहा था। फिर राहुल ने उसका नाम पूछा ओर मोबाइल न. मॉगा। वो बोला, मेरा नाम कुलदीप सिंह है और फ़ोन न. भी बता दिया।

राहुल ने फ़ोन लगाया, घंटी बजाई ओर ट्रू कॉलर पर नाम चेक किया। फिर पर्स से कार्ड्स निकाल कर उसपर नाम चेक किया। पूरी तरह आश्वस्त होकर, पर्स कुलदीप की ओर बड़ा दिया। पर्स देखकर कुलदीप नीचे उतर आया और राहुल के पांव छूकर बोला, अंकल, आपने मुझे बहुत बड़ी परेशानी से बचा लिया, मैं जिंदगी भर आपका अहसान नहीं भूलूंगा।

साइड बर्थ वाला बोला, अंकल, आप महान है, आज के जमाने मे कहाँ कोई पैसो को आसानी से जाने देता है और आप तो अपनी जेब से भी देने तो तैयार थे। बेटा, हमारी उम्र में जरूरते सीमित होती हैं, पेसो की कमी तो नोजवान पीढ़ी को होती है, बोलकर हँसने लगा ओर बर्थ पर लेट गया। सुबह,

अमन दिल्ली स्टेशन पर मॉ बाबूजी को लेने आ गया था और उनको अपने घर ड्राप करके बोला, आप आराम कर लो , शाम को आफिस से आकर मिलते हैं। शाम को अमन ने बताया, कि कल अंजलि के घर वालों से मिलने चलेंगे।

अगले दिन अमन अपने मॉ बाबूजी को लेकर अंजली ओर उसके मम्मी पापा से मिलने उनके घर गए। अमन ने घंटी बजाई तो दरवाजा अंजली ने खोला ओर वो सब अंदर आ कर बेठ गए। अमन ने मॉ बाबूजी का परिचय करवाया और तभी अंजलि का भाई बाहर से आया और बोला, अंकल आप यहाँ? राहुल बोला अरे तुम यहाँ कैसे?

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अंजली ने पुछा आप एक दूसरे को जानते हैं? अशोक बोला, मैं अंजलि का भाई हूँ, ओर अमन से मिलने ही मुम्बई से आया हूँ। अशोक फिर बोला, पापा, मैंने आपको ट्रैन का पर्स वाला किस्सा बताया था न, वो यही अंकल थे। अशोक के मॉ पिता जी राहुल की नेकदिली से बहुत इम्प्रेस हुए और शादी के लिए हाँ कर दी। जल्दी ही दोनो की शादी हो गई और खुशी खुशी जीवन बिताने लगे।

कभी कभी छोटी सा भलाई / इंसानियत का काम बड़े बड़े रिस्तो को जन्म देता हैं। निस्वार्थ किया हुआ कार्य कभी व्यर्थ नही जाता। 

लेखक

एम पी सिंह

( Mohindra Singh)

स्वरचित, अप्रकाशित

14 Mar 25

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