पुनर्मिलन का चाँद…  – विनोद सिन्हा “सुदामा”

वंशिका ऑफिस से अभी घर आई ही थी कि उसकी माँ का फोन आ गया…

थोड़े अनमने ढंग से उसने माँ का फोन उठाया..

हाँ माँ बोलो….

अरे कहाँ थी बेटा…? कबसे फोन ट्राई कर रही लगातार बंद बता रहा..सब ठीक तो है..

हाँ माँ वो मोबाईल की वैटरी डिस्चार्ज हो गई थी.. वर्क लोड भी ज्यादा था इसलिए ध्यान नहीं रहा…मोबाईल चार्ज में लगाना भूल गई

अभी जस्ट घर आकर मोबाईल चार्ज में लगाया और तुम्हारा फोन आ गया..

इतनी रात तक कहाँ थी तुम..समय देखा तुमने..??

बोला न वर्कलोड ज्यादा था इसलिए ऑफिस से आने में देर हो गई..

सच कह रही न…कुछ छुपा तो नहीं रही मुझसे…

नहीं माँ…मैं भला क्या छुपाऊँगी.तुमसे

कुछ भी तो नहीं..छुपा रही

मत बता लेकिन..

बेटा हमेशा ध्यान रखना एक घर की लड़ाई से चार घरों का मनोरंजन होता है

अच्छा… ?? लगता है वंश से बात हुई तुम्हारी..

हाँ दिन में फोन किया था उसने..तुम्हें लेकर काफी चिंतित था…दिन से कितनी बार फोन लगा चुका है तुम्हें..

चिंतित वींतित कुछ नहीं.. माँ..

सब दिखावा है उसका..तुम नहीं समझती..

सही कह रही…हो सकता है मुझे उतनी समझ नहीं..लेकिन तुम तो समझदार हो…

फिर ऐसा कदम क्यूँ उठा रही…

माँ अब मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं…

सही गलत की समझ है मुझे..

मानती हूँ तू बड़ी हो गई …लेकिन इतनी भी बड़ी नहीं हुई कि दुनियाभर की समझ आ गई हो तुममे

बेटा..अभी तुम्हें लग रहा है कि तुम सही कर रही हो लेकिन बाद इसके दुषपरिणाम से शायद अवगत नहीं तुम..

गुण अवगुण सभी में होते हैं..इसका मतलब ये नहीं कि हम अपनी बसी बसाई गृहस्थी अपने हाँथों से तबाह कर लें

वंश को थोड़ा समय दो तुम्हें समझने का..हो सके तो तुम भी कुछ समय ले लो…जीवन के फैसले….जल्दबाज़ी में नहीं लिए जाते…और फिर अभी समय ही कितने हुए तुम्हे वंश के साथ गृहस्थी बसाए….

माँ ने बड़े शांत लहजे में कहा…

वंश एक अच्छा लड़का है..काफी समझदार है…ऊँच नीच की अच्छी समझ है उसे…एक बार शांत मन से मिल बैठ उससे बात कर के तो देखो..

मुझे पूरा विश्वास है वो तुम्हारी बातों को नहीं टालेगा..तुम्हारी दिक्कतों को समझेगा..


माँ अब कुछ नही हो सकता..

बहुत बात कर ली…उसे जो कहना था कह लिया…उसने अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकती..रोज की झिकझिक से अच्छा है हम अलग हो जाए..

वंशिका ने लगभग सीधे शब्द़ों में अपनी माँ को अपना फैसला सुना दिया..

हमारे लाख मना करने के बाद तुमने खुद चुना था वंश को फिर अब क्या बात हो गई जो तुम उससे अलग होना चाहती हो उससे डाइवोर्स  लेने पर आमादा हो..क्यूँ अपनी गृहस्थी में अपने हांथों से आग लगा रही…तुम

वंशिका की माँ ने चिंता भरे स्वर में कहा..

एक हो तो कहूँ….

उसे मेरे जॉब से दिक्कत है..मेरे खुले विचारों से दिक्कत है,मेरे घर आने जाने से दिक्कत है..जब भी घर आती हूँ..एक ही रट लगाए रहता है..जॉब बदल लो..या फिर तुम यह जॉब छोड़ दो…

कहता है…तुम्हें जॉब करने की आवश्यकता नहीं..मैं अकेले सब संभाल लूंगा..

ठीक ही तो कहता है…

सच कहूँ तो मैं भी यही चाहती हूँ..तू जॉब बदल ले या कुछ दिनों तक छोड़ दे..ज्यादा से ज्यादा घर को समय दे..

माँ वंश के पास भी तो मेरे लिए समय नहीं…और जब रहती है तो सारा दिन लैपटॉप और मेल में लगा रहता है..

क्या तुम्हारे पास उसके लिए समय है..??

क्या तुम उसे वक़्त दे पाती हो..?

वंशिका चुप थी….

नहीं न..?

तो फिर उससे शिकायत क्यूँ..?

तुम दोनों को एक दूसरे का जॉब प्रोफाइल पहले से पता था न..

फिर…बीच ये अनबन क्यूँ…?

माँ….मेरा जॉब ही ऐसा है…मै क्या कर सकती हूँ..मुझे देर रात रहना पड़ता है..

माना तुम्हारे एम्बिशन्स बहुत हाई हैं और तुम आगे बढना चाहती हो…तुम्हें जॉब करना है कर..वंश भी मना नहीं करता..पर जॉब से थोड़ा समय तो निकाल ही सकती हो न..वंश के लिए न सही…अपने बच्चे के लिए तो वक़्त होना चाहिए तुम्हारे पास..

लेकिन तुम हो कि..ऑफिस के बाद भी…देर रात तक घर नहीं आती..बॉस के साथ मीटिंग में लगी रहती हो…

तुम्हें नहीं लगता तुम्हारी हाई एम्बिशन्स को लेकर तुम ख़ुद तक ही सिमट कर रह गई हो..वंश से दूर होती जा रही..परिवार से दूर होती जा रही हो..

लगता पूरी कान भर रखी है वंश ने तुम्हारी..


कान नहीं भरी उसने मुझसे अपनी चिंता व्यक्त की है…अंश के देखभाल को लेकर..उसकी अच्छी परवरिश को लेकर..

तू ही बोल..किस पति को अच्छा लगेगा यह सब…उसकी पत्नी देर रात तक घर से बाहर रहे…..

माना तुम्हें लेकर गलत नहीं सोचता पर जरूरी तो नहीं अच्छा सोचता होगा,कहता नहीं  पर हो सकता है तेरा यूँ देर रात घर आना उसे बुरा लगता हो..

और अंश का क्या…?

आखिर कब तक उसे आया के भरोसे पालेगी..

आगे कुछ ऊँच नीच हो गई तो..

आए दिन खबर सुनती और पढ़ती रहती हूँ…

बच्चा ले भागने की..

क्या तू नहीं जानती..

तो क्या मैं बच्चे की देखभाल के लिए..अपनी कैरियर बर्बाद कर लूँ..

मेरे भी कुछ सपने हैं..मैने भी कुछ ख्वाब सजाए हैं..

अपने सपनों का गला घोंट दूँ…अपने ख्वाबों को यूँ ही बिखर जाने दूँ

कभी नहीं…मैं ऐसा कह भी नहीं रही..

सपने देख..लेकिन सपनें देखने के बजाए सपनों को जीना सीख..

बस ज्यादा देर घर से बाहर रहना छोड़ दे…अपने बॉस से दूरी बना….घर पे ध्यान दे..अपना परिवार संभाल..वंश को समय दे..अपने बच्चे अंश को समय दे..

अच्छा पति.. घर परिवार भी सपना ही होता है..

किसी की पत्नी और बाद माँ बनने से सुंदर और पवित्र ख्वाब और कुछ नहीं

प्रोफेशनल एटिट्यूड एवं हाई प्रोफाइल की चकाचौंध से बाहर निकल…#बॉस “बॉस” होता है और #पति” पति होता है…

डरती हूँ कहीं देर न हो जाए..और तुम्हें बाद में पश्चताना पड़े..

कहीं घर परिवार सब छूट न जाए तुमसे…

वंश को भी यही चिंता सताती है..

माँ ने वंशिका को समझाते हुए कहा..

माँ…वो भी तो कई कई दिन बाहर टूर पर रहता है..मैने तो कभी कोई शिकायत नहीं की उससे..

क्या घर सिर्फ मेरे अकेले से है…उसका भी तो है..क्या अंश के प्रति उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं..

है लेकिन तुम्हारी ज्यादा है..तुम अंश की माँ हो…अभी अंश छोटा है उसे तुम्हारी आवश्यकता है..

दूसरी वो अगर गलत होता तो उसे तुम्हारी इतनी चिंता नहीं होती…बच्चे का क्या वो भी छोड़ देता चाहे जैसे पले बढ़े…

लेकिन नहीं.. अंश के खातिर कई कई दिन टूर पर नहीं जाता..

और सबसे बड़ी बात…माँ की जरूरत एक पिता किसी भी हाल में नहीं पूरा कर सकता…इसलिए मेरी बात मान अभी भी वक़्त है वंश को डाइवोर्स देने का अपना फैसला बदल ले…

और सुन…घर …सिर्फ घर होता है तेरा घर मेरा घर कुछ नहीं होता….


मैनेज करना सीख….

और कितना मैनेज करूँ….

वंशिका बिफरती हुई बोली…

सुबह की निकली रात को आती हूँ…. जाने से पहले अंश का सारा इंतजाम कर जाती हूँ…इतनी व्यस्तता के वावजूद भी आया से दिन में चार बार बात करती रहती हूँ….एक आद बार वंश से बात हो ही जाती है…फिर मेरी जरूरत कहाँ रही..

जरूरत है…पहले अपनी जिमेदारी तो जान…माँ बनने और माँ बन बच्चे को पालने में बहुत अंतर है..

माँ हूँ तुम्हारी कभी गलत नहीं चाहूँगी…फोन रख रही वंश घर आता है तो बात कर उससे..बाकी आगे तुम्हारी मर्जी.कहकर वंशिका की माँ ने फोन काट दिया..

वंशिका पहले से ही थकी थी ऊपर से माँ से हुई देर तक बातों ने उसे और थका दिया था पानी पीकर वह कमरे में सोने चली गई..लेकिन नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी. माँ की कही बातें वंशिका के मन को विचलित कर रही थी…एक एक शब्द काँटें की तरह चुभ रहे थे..उसकी कही हर बात हर सुझाव ने उसके स्वयं को प्रश्नों के कटघरे में खड़ा कर दिया था.

मन में कई प्रश्न आ और जा रहें थे,जिनके न तो उसके पास उत्तर थे और न ही उन प्रश्नों से खुद को अलग करने का रास्ता दिख रहा था…

इसी उधेड़बुन में कितने पल बीत गए,वंशिका बड़ी बेचैनी-सी महसूस करने लगी,वह लगातार बेचैनी से करवटें बदल रही थी..

कुछ देर बिस्तर पर करवटें बदलने के बाद वह उठ खड़ी हुई और अपने कमरे के आगे की छोटी सी बॉलकनी में जा खड़ी हुई.सामने पूर्णमासी का पूरा चांद साफ आसमान में गोल रोटी की तरह दमक रहा था..

आज काफी दिनों बाद पूरा चाँद देखा था उसने…खूले आसमान में दूर दूर तक चांदनी फैली हुई. लाखों तारे एक दूसरे से थोड़ी दूरी पर टिमटिमाते हुए..चमकीले, हवा के साथ झिलमिलाते….अठखेलियाँ कर रहे थे..

हल्की हल्की ठंडी हवा के झोंके वंशिका के कपोलों को सहला रहे थे, आज हवा की उस छुअन में जाने कैसी मादकता थी..कि उसे वंश के साथ बीताए सारे बीते पल याद आ रहा थे..वो खूबसूरत पल जब दोनों चांदनी रात में एक दूसरे की बाहें थामें देर रात तक चाँद को निहारा करते थे..उससे बातें किया करते थे.

वंशिका बीती पुरानी बातें सोच रोमांच से भर उठी थी उसके मन में एक अजीब-सी गुदगुदी और सिहरन सी होने लगी थी..

वंश के साथ गुज़ारे वो दिन, वो सुनहरे पल..जब गर्मी की तपिश में ठंडी बयार, बारिश में गीली मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू और सर्दी में गुनगुनी धूप का एहसास देते थें.नई नई ब्याही जब वो वंश के साथ हर हाल ख़ुश रहती थी… वंश ने भी कभी किसी तरह की कोई कमी महसूस नहीं होने दी..उसे..

जहाँ तक संभव हुआ..उसकी आगे की पढाई में मदद की उसने.यहाँ तक पहला जॉब भी उसने ही दिलवाया था..लेकिन..आज़ यह जॉब उसकी परेशानियों का कारण बन गया था…उसे वंश से उसके खुद के बच्चे से दूर कर रहा था


वह गहन सोच में पड़ गई ..जाने क्यूँ वंशिका का दिल यह सोच कर दुखने लगा कि अगर वो जिद्द न करती तो उस की दुनिया जो आज है उससे कितनी अलग हो सकती थी…जॉब तो वो दूसरी भी कर सकती थी..वंश ने कभी मना भी नहीं किया…तो फिर क्यूँ वह यह जॉब करने की जिद्द धरी रही..

वो अभी इन सब बातो में गुम ही थी कि पीछे से वंश ने आकर उसके कांधे पे अपना हाँथ रख दिया…वंशिका ने मुड़कर वंश को देखा..उसकी दिल की धड़कनें बढ़ गईं थी…दोनों की आँखों ने क्या बात की कहा नहीं जा सकता..लेकिन वंश को देख वंशिका की आँखें नम हो चली थी..

आज़ वंशिका को वंश के सहारे की बेहद जरूरत महसूस हो रही थी, न जाने क्या सोच कर वह वंश के सीने से जोर लिपट गई..उसके माथे पे हाँथ फेरता..वंश ने भी उसे अपने आलिंगन में समेट लिया था..

आज़ एक अंतराल बाद वंश का साथ वंशिका को भावविभोर कर रहा था.दोनों एक दूसरे से बिना कुछ कहे घर की बॉलकोनी से पूर्णमासी के चमकते चाँद को निहार रहे थे..जो एक बार फिर  गवाह बनने जा रहा था “वंश और वंशिका”  के पुनर्मिलन का..

इस बीच थोड़े आत्ममंथन करने के बाद वंशिका ने अंश के खातिर मन ही मन  कुछ दिनों तक जॉब न करने का फैसला ले लिया था..

जो सामने पलंग पर सोया था…जिसे वंश ने अपनी गोद से उतार अभी अभी पलंग पर सुलाया था..उसने तुरंत दौड़कर अंश को अपने सीने से भींच लिया. इतने दिनोंपरांत अपने कलेजे के टूकडे को अपने सीने से लगाकर एक अलग आनंद की अनुभूति हो रही थी..उसकी आँखों से गंगोत्री बह रही थी..मानों उसकी सोई ममता जाग उठी हो..

वंश भी बेटे अंश के लिए अपनी माँ की ममता का सैलाब बहते देख अपने आँसू रोक नहीं पाया था..

वंश को उसकी पहले वाली वंशिका मिल गई थी,अंश को उसकी माँ व माँ का छूटा आँचल..

और वंशिका को एक टूकड़ा उसके ख्वाब का..

©®विनोद सिन्हा “सुदामा”

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