“ दुल्हिन आज रीता ने अपने यहाँ रात के खाने पर तुम लोगों को बुलाया है। अच्छे से तैयार हो कर जाना ।”साधना जी ने अपनी नवविवाहिता बहू स्नेहा से कहा ।
“जी मम्मी जी,पर मैं कै.. से.. जाऊँगी.. ये तो बैंक के काम से बाहर गए है ।”स्नेहा ने कहा ।
“ तुम संजना के साथ कैब से चली जाना और रोहन सीधे वही पहुँच जाएगा…. साथ में तुम सब लौट आना।”
स्नेहा सोच रही थी कि… शादी से पहले लोगों से सुना था कि… लड़का सीधा है पर… माँ-बहनें बहुत तेज़ है…
दादी भी एक कहावत कहती थी कि… “ माटी की ननद भी मुँह चिढ़ाती है । बात-बात पर कहती थी कि— माँ के साथ खाना बनाने में हाथ बँटाया करों, नहीं तो… तेरे बाप को देहरी पर ही सास गाली देगी…”
अभी दो हफ़्ते पहले तो… ब्याह के इस घर में आई है… अभी तो पग-फेरों की रस्म तक ना हो पायी…भाई बेचारा अपना सा मुँह लेकर लौट गया… स्नेहा की हिम्मत भी ना हुई अपने पति रोहन से कुछ कहने की, क्योंकि उसे पता था कि.. जो मम्मी जी कहेगी वही होगा…
शाम को संजना ने कॉलेज से आते ही दोनों तैयार होकर बड़ी ननद (रीता दीदी) के घर पहुँच गए । बहुत अच्छे से दीदी-जीजाजी और बच्चों बी हमारा स्वागत किया और जो फल-मिठाई, चॉकलेट -उपहार आदि लेकर गए बच्चों की बहुत पसंद आया और सब “मामी जी- मामीजी “ कह कर आगे- पीछे लगे रहे। शादी होते ही एक लड़की दीदी से कब भाभी-मामी बन जाती है… अत्यंत सुखद अहसास था वो …इस सुखद अनुभूति में डूबी हुई थी स्नेहा तभी…
“स्नेहा आओ तुम्हें अपनी रसोई दिखाऊँ… “रीता दीदी की आवाज़ कानों में पड़ी ।
सिर का पल्लू सही कर दीदी के पीछे-पीछे चल पड़ी स्नेहा ।
सारी तैयारियाँ कर दी है मैंने… “ मटन “ बनाने में लग जाओ… क्योकि तुम्हारे जीजाजी … आज तुम्हारे हाथों से बना “मटन “ खायेंगे ।
“ह..ह..हें… ये क्…या… हमें डिनर पर बुलाया… और मैं ही खाना बनाऊँ… ये क्या बात हुई… स्नेहा सोचने लगी…किससे कहे और क्या कहे…. उसे समझ नहीं आ रहा था, तभी संजना ( छोटी ननद) ने आकर पूछा… क्या हुआ भाभी… बनाने तो आता है ना…आपकी माँ ने तारीफ़ तो बहुत करी है कि… मेरी बेटी को सब आता है…बनाया तो कभी नहीं.. पर माँ को देखा है बनाते हुवे… स्नेहा ने मन ही मन में कहा और सिर हाँ में हिलाते हुवे चल पड़ी… ससुराल में अपनी परीक्षा देने…
ड्राइंग रूम से सभी की हँसी-ठिठोली की आवाज़े आ रही थी… बीच-बीच में रीता दीदी चक्कर लगा जाती… कुछ चाहिए तो नहीं… स्नेहा सिर ना में हिलाती और सारा ध्यान अपने काम पर लगाती । उसे समझ नहीं आ रहा था सबका व्यवहार … पहली बार बड़ी ननद के घर आयी है… और उसका ऐसे स्वागत…??????
रसोई में रखी सभी चीज़े उपलब्ध थी सो वह खाना बनाने में जुट गयी ।
“ रोहन आ गया है.. स्नेहा जरा… हम तीनों के लिए चाय बना लो… यदि तुम्हें पीनी हो तो अपने लिए भी बना लेना…।” रीता दीदी यह कह कर चली गयी ।
स्नेहा सोच रही कि… मैं डिनर पर इन्वाइट हूँ या ये…
रोहन भी मुझसे ना मिलने आया और ना ही मुझे वहाँ बुलाया… सब भाई-बहन और जीजा मिल कर हँसी-मज़ाक़ कर रहे… किसी को भी मेरी परवाह नहीं….नई-नई आई हूँ इनके घर…. सिर्फ़ बच्चे आकर पूछते मामी आप ये मिठाई खायेंगी… और स्नेहा प्यार से मना कर देती ।
क़रीब २ घंटे में स्नेहा ने बच्चों से कहलवाया कि… खाना तैयार हो गया है ।
“अरे वाह! “संजना ने कहा ।
“चलो थोड़ा आराम कर लो..” रीता दीदी ने कहा ।
स्नेहा सबके साथ आकर ड्राइंग रूम में बैठ गई, रोहन ने उसे मुस्कुराते हुवे देखा तो.. वो शर्मा गई ।
“सुना है.. तुम गाना बहुत अच्छा गाती हो..।” जीजाजी बोले ।
स्नेहा कुछ कहती संजना और दीदी दोनों ने स्नेहा के गानों के तारीफों के पुल ही बांध दिए।
“अब तो है… तुमसे हर ख़ुशी अपनी…
कोई बनाये बातें… चाहे अब जितनी…”
स्नेहा ने गाना शुरू किया और माहौल और भी ख़ुशनुमा हो गया ।
“ दीदी खाना जल्दी लगवा दो प्लीज़… देर हो रही है… थक भी बहुत गया हूँ… “ रोहन ने कहा ।
“हाँ भाई… अब देर हो रही.. रोहन को…”जीजाजी ने चुटकी लेते हुवे कहा ।
सब एक साथ हँसने लगे और स्नेहा शर्मा गई ।
बच्चों को पहले खाना खिला कर …
डाइनिंग टेबल पर खाना लग गया तो… रीता दीदी ने सबको खाना खाने की आवाज़ लगायी ।
ये क्या???? पूरी डाइनिंग टेबल कई तरह के व्यंजन से सजी हुई थी… स्नेहा ने तो… बस मटन, पुलाव, सलाद और रोटी ही बनायी थी… बाक़ी सब???जैसे… शामी कबाब, फ्राइड फिश, रायता आदि… तो क्या रीता दीदी ने ये सब पहले से बना लिया था…
“ये सरप्राइज़ था स्नेहा… “ रीता दीदी बोली ।
“ हाँ भाभी हम दोनों की साज़िश थी ये ।”
सभी ने स्नेहा के हाथों बने खाने की तारीफ़ की ।
खोईचा देते समय दीदी ने कई सारे और उपहार पकड़ाए तो.. स्नेहा ने कहा—-“ ये क्या दीदी???”
“तुमने पहली बार कगाना बना कर खिलाया ना… मेरे घर में… ये साड़ी… तुम्हारी विदाई की, ये कान के झुमके मेरी तरफ़ से , ये लिफाफा… जीजाजी की तरफ़ से…।”
स्नेहा सोच रही थी क्या… ये कोई रस्म है…
वो अब घर जाकर अपनी माँ को फ़ोन करके पूछेगी..
स्नेहा ने घर पहुँच कर सब सामान अपनी सासू माँ को दे दिया तो… उन्होंने उसे वापस देते हुवे कहा -“ये सब तुम्हारा ही है दुल्हिन ।”
स्नेहा सोचने लगी—-“कितनी अच्छी तो है सासू माँ और ननदें… फिर ऐसा क्यों लोग कहते है कि.. सास -ननद तेज है ।”
रात में जब समय मिला तो स्नेह ने सारा हाल अपनी माँ को फ़ोन करके बताया… आज कैसे उसने मटन, पुलाव आदि बनाया और सबने उसकी तारीफ़ की ।
स्नेहा को मिले उपहार पर उसकी माँ ने कहा—“ ये प्यार और सम्मान था एक नयी नवेली बहू का जो … उसको उसकी दोनों प्यारी ननदों ने दिया था… इस प्यार और विश्वास को बनाये रखना बेटा।ननद-भाभी का यह नाज़ुक रिश्ता प्रेम और विश्वास पर ही टिका होता है । वो दोनों तेरी बहन भले ना हो पर… बहन जैसी ही है… क्योकि वो तेरे पति की बहन है ।किस्मतवाली हो … तुम जिसे ऐसी ससुराल मिली है । किसी की सुनी सुनाई बातों पर ध्यान कभी मत देना बेटा।”
“ अच्छा माँ!”कह कर स्नेहा ने फ़ोन काट दिया ।
लेखिका : संध्या सिन्हा