बहु, बहु…सीमा जी की आवाज तेज हुई जा रही थी।
आई मांजी, मिनी ने चेतन से खुद को छुडाना चाहा, छोड़िए माँजी बुला रही हैं
चेतन, उसका पति: अब तो हमारे पास रुकना भी नही चाहतीं, पहले कैसे रूठ जाती थीं पल भर भी न मिलूं
तो।
मिनी: हंसते हुए, ज्यादा बातें न बनाइये, डांट पडवाएँगे आज मांजी से
इतने में सीमा ऊपर, उन्ही के कमरे में आ गईं और बोलीं, मेरी हरी वाली साड़ी नही मिल रही, इस्त्री होके नही
आई क्या?
अरे, कल प्रेसवाला कपड़े देकर नही गया शायद, मैं भी फ़ोन कर याद दिलाना भूल गयी। मिनी ने कहा।
आजकल देख रही हूं तुम बड़ी लापरवाह होती जा रही हो, सीमा गुस्से से बोलीं…
अरे सच कह रही हो मां, चेतन ने उनकी हां में हां मिलाते हुए कहा, मेरी भी बातें इग्नोर करती है ये बहुत। देर रात
फ़ोन करती रहती है।’
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मिनी को बड़ा अटपटा लगा, अभी तो उससे रोमांस कर रहा था और अपनी माँ के आगे लगा उसकी ही बुराई
करने।
उसे अपने पति का ये रूप कुछ समझ न आया।लेकिन संकोचवश कुछ बोल न सकी।
मन ही मन सोचती कि अगर इन्हें घर के कामों के लिए इतनी पाबंद लड़की ही चाहिए तो ये लोग मुझसे जॉब
ही क्यों करवाते हैं, आखिर जॉब की कुछ जिम्मेदारियां होती हैं, उसीसे संबंधित फ़ोन भी करने पड़ते हैं और
अगर एक बार कुछ भूल गयी तो माँ बेटे मिल कर मुझे ताने मारेंगें क्या?
अपनी लड़की घर मे खाली बैठ दोस्तों से गप्पें मारेगी वो सही, बहु काम से भी फ़ोन करे तो गलत। ये कहाँ का
न्याय है? यकायक उसकी आंखें छलछला आयीं।उसकी ननद रेखा कोई काम भी नहीं करती थी लेकिन
बिल्कुल आजाद पंछी की तरह रहती… माना ये उसका मायका है ,वो स्वतंत्र है यहां लेकिन ऐसा भी क्या कि
बहू को तो बात बात पर टोका जाए और बेटी की गलती दिखे ही नहीं किसी को..और सबसे बड़ा दुख तो इस
बात का था कि उसका अपना पति ही उससे दोगला व्यवहार करता।
जल्दी ही अपना दिमाग दूसरी ओर लगाकर मिनी तेजी से काम निबटाने लगी नही तो उसे ऑफिस को देर
हो जाती लेकिन मन में वो कुछ निर्णय ले चुकी थी।
आज शाम को मैं इन लोगो से बात करूंगी।
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देर रात को सारा घर डाइनिंग टेबल पर इकठ्ठा था। आलोक, उसके ससुर, मिनी को बेटी समान ही प्यार करते
थे पर अपनी पत्नि की टोकाटाकी से खुद भी परेशान रहते इसलिए उसके सामने बहु का फ़ेवर न लेते।
मिनी दौड़ दौड़ के सबको सर्व कर रही थी, उसके ससुर बोले, चलो बेटा, अब तुम भी आ जाओ,थक गयी
होगी..
मिनी को सचमुच भूख लगी थी, वो एक चेयर खींच के बैठ ही रही थी कि उसकी ननद रेखा बोली भाभी मुझे
जरा अचार और ला के दे दो।
जैसे ही वो जाने लगी, उसके ससुर तेज आवाज में बोले: वो तुम सब की नौकर नही है, खुद लाओ उठकर।
इसी बात पर सब आपस मे भिड़ गए, सीमा का कहना था कि आपने बहु को बहुत सिर चढ़ाया हुआ है, जबकि
आलोक कह रहे थे कि मैंने सुबह भी नोटिस किया था तुम दोनों उसे कैसे रुला रहे थे।
बहु सीधी हो, तुम्हारी दो बात क्या सुन ले, सब उसे वेबकूफ बनाना शुरू कर देते हैं, आज से कुछ काम रेखा भी
करेगी, आखिर उसे भी तो दूसरे घर जाना है, उसे भी तो वहां कोई सुनाने वाला मिल सकता है।
जी नहीं…मेरी बेटी बहुत कमेरी है वो तो चंद दिन मायके में मेहमान है इसलिए काम कम कराती हूं मैं बाकि
आप देखना वो कैसे सुघड़ता से अपनी गृहस्थी चलाएगी,इन महारानी की तरह नहीं जो हर काम के लिए
दूसरों का मुख देखती रहती हैं।
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तुम हर बात में टारगेट मिनी को क्यों बनाती हो सीमा? आलोक खुद पर नियंत्रण खो बैठे थे आज,चेतन को
भी पहली बार मां और बहिन की गलती लगी थी आज।
उसने भी पहली बार मुंह खोला…ठीक है इन दोनो के काम बांट दीजिए,फिर विवाद कैसा.?
बहुत विवाद के बाद थोड़े काम रेखा को और बाकी काम मिनी के हिस्से में आये।
आज घर में पूजा की तैय्यारी चल रही थीं, देवी माँ का जागरण रखा हुआ था। प्रसाद का काम रेखा संभाल
रही थी जबकि बाकी सभी काम मिनी के जिम्मे था।
मिनी बड़ी समझदारी और लगन से सब कर रही थी लेकिन सीमा कोई न कोई कमी निकाले ही जा रहीं थीं,
जब बारी आयी प्रसाद के समान को चैक करने की तो रेखा को बुलाया गया।
बहुत बार बुलाने पर तो वो आयी फिर लापरवाही से बोली: अभी से क्या शोर मचा रखा है, कल सुबह पूजा है,
कल ही मंगा लूंगी न,भूल गई आज मैं, तो क्या करूँ?
सीमा बोलीं, बच्ची है अभी, कभी जिम्मेदारी पड़ी नही न, धीरे धीरे सब सीख जाएगी।मिनी को याद दिलाना
चाहिए था इसे।
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उसका इतना कहना था कि आलोक जी , जो कभी कुछ नही कहते थे, आज बरस पड़े: "कुछ तो शर्म करो
चेतन की माँ! पराये घर की बच्ची के लिए इतना ज़हर और अपनी बेटी को बर्बाद करने पर तुली हो।"
तुम क्या समझती हो, तुम अपनी बेटी को लाड़ कर रही हो? तुम उसकी जिंदगी नर्क बना रही हो, उसकी
गलतियों पर पर्दा डालकर।
अपनी आंखों से ये, अपने पराये का चश्मा उतार के देखो, तुम्ही बहु भी तुम्हारी बेटी जैसी है, उसे भी तुम्हारे
प्यार, विश्वास की जरूरत है। क्यों कहते हो बहु, बेटी समान नही होती, उसे वो इज्जत, सम्मान दे के भी तो
देखो।
जानती हो तुम्हारी जैसी मानसिकता की वजह से ही आजकल समाज में ये भ्रांति है कि जिस घर में
अविवाहित ननद बैठी हो,वहां शादी नहीं करनी…कितनी शादियां रुकी रहती हैं इस वजह से…ठीक भी है अगर
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ऐसी सास और ननद होंगी तो कौन बेटी सुखी रह सकेगी अपनी ससुराल में?फिर उन्हें दोष क्यों देती हो कि
आते ही उसने तुम्हारे बेटों को घर से दूर किया,उन्हें घर सा माहौल तो दो पहले,तभी कुछ उम्मीद करना।
सब मुंह झुकाए बैठे थे।सीमा और रेखा को अपनी गलती समझ आ रही थी।उन्होंने आंखों आंखों में मिनी से
सॉरी बोला और उसने मुस्करा के एक नई शुरुआत की हामी भर ली अपनी नन्द रेखा को गले लगाकर।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद
#ननद