नया पहलू – उमा महाजन : Moral Stories in Hindi

‘अरे दीदी,आप माँ के पास बैठिए न ! उन संग गपशप कीजिए। यहां किचन में क्यों आ गईं ? मैं सब संभाल लूंगी यहां।’ अपनी ननद कविता को किचन में आया देखकर चेहरे पर प्रेमभरी मुस्कान लिए रिया तुरंत बोली।

‘भाभी, आप दूसरा काम देखें। मैं आपको सब्जियों का मसाला- प्याज, टमाटर, अदरक, लहसुन आदि छीलकर मिक्सी में तैयार कर देती हँ।  पहले हम मिलजुल कर काम निपटा लेते हैं। मेरी थोड़ी सी मदद से किचन का काम जल्दी निपट जाएगा। फिर हम सभी इकट्ठे बैठ कर गपशप करेंगे।’

   वस्तुत: इस सप्ताह में अपनी चार छुट्टियाँ इकट्ठी आते ही कविता ने अपने मायके आने का कार्यक्रम बना लिया था। उसे अपनी छुट्टियों का अपने बच्चों से भी ज्यादा इंतजार रहता है क्योंकि इस दौरान मायके आकर बच्चों की योजना जहां नाना-नानी और मामा-मामी के लाड़-प्यार पाने और अपनी नन्हीं ममेरी बहन संग खूब धमाचौकड़ी मचाने की रहती है, वहीं अपनी गृहस्थी और नौकरी में पिसती कविता को मायके में रहकर

कुछ दिन आराम से व्यतीत करने की चाह रहती है। यहां आकर अपनी उबाऊ दिनचर्या से मिलने वाला छुटकारा उसे पुनः काम के लिए तरोताजा कर देता है,किंतु वह ननद-भाभी के संबंधों की नाजुकता को भी भलीभाँति समझती है। इसीलिए अपनी भाभी की अति व्यस्त सुबह में  उसकी मदद हेतु वह किचन में आ गई थी।

‘नहीं दीदी, आप मेरी चिंता मत करिए।आप तो बस माँ के पास बैठिए। मेरा तो यह नित्यप्रति का ही काम है और मैं इसकी पूर्णतः अभ्यस्त हूं, किंतु माँ पिछले एक सप्ताह से आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं। दरअसल पापा का तो अपने मित्रों का एक अलग दायरा है। सुबह शाम वे सैर पर भी चले जाते हैं, लेकिन अपनी बिगड़ती सेहत के कारण माँ अकेली अब कहीं आ-जा नहीं पातीं। सो, अधिकतर घर तक ही सीमित रह गईं हैं

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और वे बड़ी बेसब्री आपकी प्रतीक्षा कर रही थीं। आप लोगों के आने से उनके चेहरे पर भी रौनक आ जाती है। अन्यथा आपके भैया तो सुबह निकलकर शाम देर बाद घर आते हैं, मैं घर के कामों में व्यस्त रहती हूँ,पापा की अपनी मित्र-मंडली है ।अतः कभी-कभी माँ स्वयं को बहुत अकेला महसूस करती हैं।’

‘ भाभी! लेकिन यह तो कतई सही नहीं है न कि मैं माँ संग बैठकर गप्पें लगाऊं और आप अकेली किचन में काम करें ?

‘ऐसा कुछ नहीं है । दीदी, मैं एक राज की बताऊं आपको ? जब मैं अपने मायके जाती हूँ न, तो मैं भी अपनी माँ संग बैठकर खूब गपशप करती हूँ। उन दिनों वहाँ माँ के चेहरे पर खुशी की एक अलग ही चमक दिखाई देती है। अतःआपके आने से सासू माँ की प्रसन्नता का अंदाजा मैं बखूबी लगा सकती हूँ और यहाँ भी सासू माँ के चेहरे पर वही चमक देखना चाहती हूँ । हम स्त्रियां अपने मायके जाकर प्रसन्न होती हैं तो हमारे मायके वाले भी तो हमारे आने से प्रसन्न दिखने चाहिए न !’ कविता को सहज महसूस करवाने की दृष्टि से रिया खिलखिलाते हुए बोली।

फिर, सहसा कविता को असमंजस की स्थिति में देखकर वह पुनः बोली,

‘अच्छा चलिए ! आप मेरी एक अलग तरह की मदद कर दीजिए। आपकी भतीजी हिंदी के वर्णों को पहचानने और उन्हें लिखना सीखने में बहुत समय लगा रही है। संभवतः मेरे सिखाने में ही कुछ कमी है। आप तो हिंदी की अध्यापिका हैं। आपसे यह अवश्य सीख जाएगी । अतः आप माँ के पास बैठ जाएं। उनसे बातचीत करते हुए बीच-बीच में इसे लिखने का अभ्यास भी करवाती जाएं। यह तो वैसे भी अपनी बुआ की बहुत दुलारी है।

आपके तो झटपट काबू में आ जाएगी। इससे माँ को भी अच्छा लगेगा, न केवल आप संग बातचीत करना बल्कि आप द्वारा अपनी पोती को सिखाया जाना भी और मेरा काम भी आसान हो जाएगा । सही मायने में ये ‘एक पंथ दो नहीं अपितु तीन काज’ हो जाएंगे। ‘ माँ भी खुश और हम सब भी खुश।

फिर, कुछ ही समय में किचन का काम निपटाकर मैं भी आप लोगों की गपशप में शामिल हो जाऊंगी। आप द्वारा दिया गया यह सहयोग सचमुच मेरे लिए एक अनमोल तोहफा रहेगा।’ कहते हुए रिया मुस्कुरा पड़ी।

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कविता मन ही मन भाभी के प्रति कृतज्ञ होकर सोच रही थी कि भाभी ने अपनी सास को ‘माँ’ के ही रूप में देखते हुए उसके मन को कितनी आसानी से समझ लिया है। तभी तो माँ भी भाभी का गुणगान करते नहीं थकतीं और भाभी की सोच के इस नए पहलू ने मुझे भी सहज करवाने के साथ-साथ कितना कुछ नया अहसास करवा दिया है,अन्यथा अपनी सासू माँ और ननद की गपशप को संशय की दृष्टि से देखते हुए

मैं तो हमेशा तनावग्रस्त ही रहा करती थी।दरअसल हमारी सोच में ही रिश्तों की सुंदरता छिपी होती है…

   और फिर मन में एक ‘दृढ़ संकल्प’ लिए कविता भतीजी संग मुस्कुराते हुए तुरंत माँ समीप जा बैठी। मां और भाभी के मुख पर भी एक मधुर मुस्कान आ गई।

 उमा महाजन 

कपूरथला 

पंजाब 

#ननद

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