रात होने को और दरवाजे पर लगी डोरबेल भनभनाई टिंग टांग टिंग टांग टिंग टांगऽऽऽ अनीता जी किचन समेटती सब छोड़ छाड़ जल्दी से आई ये रात को कौन आ गया ..? थोड़ा सा दरवाजा खोल देखा अरेऽऽ अनीशा आई है । सुनकर पिता अविनाश भी कमरे से दौड़े आये ।अरे…बेटा रात को आई सब कुशल मंगल है, दामाद जी घर में सभी ठीक है ना।बेटी को ससुराल से रात अचानक आया देख अनीता जी थोड़ा घबरा सी गई… अरे माँ साँस तो लेने दीजिए अब अन्दर भी आऊँ या सब प्रश्नों के उत्तर दरवाजे के बाहर खड़ी खड़ी ही दे दूँ । अनीशा की आवाज में एक ठहराव सा था ।
अरे बेटा कैसी बात करती हो तेरा ही घर है। अनीता जी बेटी को रात में आया देख असमंजस में थी । फोन कर देती तेरी पसंद का कुछ बना कर रखती । अनीशा अन्दर आई उसके बुझे से चेहरे को देख सिर्फ अंदाज लगाया जा सकता था कुछ न कुछ परेशानी तो जरूर है उसको…नहीं माँ खाना खाकर सबको खिलाकर ही आई हूँ ।
अनीशा ,अनीता अविनाश जी की इकलौती संतान, बचपन से ही बिंदास, चंचल खुले मिजाज की तीखे नैन-नक्श ससुराल वालों ने तो देखते ही एक ही नज़र में पसंद कर लिया था। कुछ माह पूर्व ही इसी शहर में विवाह हुआ, कभी कभार आ जाती मगर साथ में पति उमेश भी रहते आज अचानक उसका अकेले आना माता पिता को चिन्ताग्रस्त कर सकता है। यह स्वाभाविक ही है।
माँ पानी ले आई अनीशा पानी पीकर सोफे पर सर रखकर लम्बी साँस लेकर बोलने लगी ।
माँ कहां शादी कर दी मेरी,समझ ही नहीं आता “ वो ससुराल है या जेल “ !!!
“ उसके अन्दर छिपी भावनाएं,और आथाह दर्द आँसुओं में बदलकर बहने लगे “ ।
अरे बेटा बात क्या है…? माँ अनीता परेशान आवाज में बोली
बेटा शुरू शुरू में परेशानी तो सभी को होती है । थोड़ा एडजस्ट कर लो सभी को करना पड़ता है।
“ कैसी बातें करती हो माँ “!!
आप क्या सोचती है…मैंने कोशिश नहीं की होगी क्या ?
मैंने हर तरीके से कोशिश करके देख लिया । कोई मुझे समझना ही नहीं चाहता मै वहां एक नई सदस्य हूँ । मेरे लिए सब नया है। लेकिन वहां कोई समझे तब न , हर कोई बात बात पर आरोप लगाये जाता है। हर कोई अपना फैसला सुनाये जाता है मेरी परवाह किसे है वहां। मै सब सहती जाती हूँ…किसी भी तरह परास्त नहीं होना चाहती पर कौन समझ पाता वहां उसकी पीड़ा को ..? जब बात बात पर अपमान,छल तब कैसी गतिशीलता माँ समझ नहीं आ रहा क्या करूं मैं ?
एक स्त्री कितनी भी सम्पन्न सुरक्षित आधुनिक क्यों न हो उसे अपने अस्तित्व व स्वामित्व व अपनत्व की आवश्यकता तो होती ही है ना …?
माँ वहां रहकर मुझे तो बस जेल का सा अहसास होता है।
अनीता जी बेटी के पास बैठ गई उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली.. बेटा धैर्य पूर्वक इस समय रूपी खाई को भरने में वक्त चाहिए होता है।
अनीशा रूआंसी सी होकर बोली माँ..
ननद, जेठानी, सासूमां सभी मुझसे हर बात में प्रतियोगिता करते हैं। जैसे की मैं एक प्रतिद्वंद्वी हूँ…
बात बात पर एक शब्द सुनने को मिलता अपनी मत चलाओ, अपनी मत चलाओ।
तुम्हारे घर के तौर तरीके अलग हमारे घर के तौर-तरीकों से अलग हैं । माना की मा़ँ बहुत फर्क है मै कब मना करती हूँ इस बात से..
लेकिन जब मैं जेठानी से कुछ पूछतीं हूँ तो करारा सा जवाब दे देतीं है…इतने सालों से घर की बागडोर हमने संभाली हमे नहीं पता अब तुम संभालो.. कहती हैं अब हमें भी आराम चाहिए। माँ उनका खाना पीना यहां हमारे घर से बहुत विपरीत है मुझे तो सादा खाना ही बनाना आता कई बार मैंने कहा एक बार समझा दो फिर आगे से मैं बना लुंगी समझाना तो दूर हर कोई बेइज्जती करने में ही तुला रहता है।
आज सुबह पाव भाजी बनाने को कहा मैंने कहा भाजी थोड़ा समझा दो क्या और सब्जी जैसी ही बनेगी..?
बस मेरा इतना कहना जो बेइज्जती हुई मेरी ।
जेठानी बोली- हे !! भगवान बताओ महारानी को भाजी बनाना भी हमें सिखाना पड़ेगा।
सास तो हर बात में जेठानी की हाँ में हाँ करती बहुत दबती है उनसे, बोली-तेरी माँ ने कुछ सिखा कर भी भेजा या ऐसे ही मथे मढ़ दिया हमारे ।
ननद की तो पूछो नहीं उसका दिमाग तो सदा सातवें आसमान में ही रहता है।
आज सासूमां ने जो ताने सुनाये मुझे तो रोना आ गया माँ ..
मैंने फिर और सब्जी की तरह ही पाव के लिए भाजी बनाई खाते समय तो सब खा गये पर बीच बीच में मीनमेख निकालते किसी को नमक ज्यादा किसी को मिर्ची किसी को तेल ।
अनीशा बोल रही थी उसकी वाणी में तटस्थता थी । झिझक थी ।
बेटा तुने उमेश से इस विषय में बात नहीं की कभी माँ बोली..
माँ उमेश देर शाम आते दिन भर के थके वैसे भी स्वभाव में कम बोलने वाले ही है…अब मैं अपना दुखड़ा रोना धोना लेकर बैठ जाऊंगी…नहीं माँ यह मुझे अच्छा नहीं लगता न ही कभी लगेगा।
घर के हर क्रिया कलापों में जेठानी ननद ही छाये रहते सास ससूर हर बार उन्हीं का पक्ष लेते।मै तो महज एक छोटी बहू जो चरखी की तरह पूरे घर में घूम घूम काम करती रहे ,बस काम करने के लिए ही रह गई छोटी बहू जो ठहरी हर की गुलाम…माँ काम तो कोई नहीं मगर प्यार प्रोत्साहन भी तो मिलना चाहिए बदले में।
नित्य ननद जेठानी के नये नये रंग रूप देखने को मिलते रहते हैं। मैंने तो क्या क्या सोचा था शादी से पहले मेरी सारी कल्पनाएं, मेरे सारे ख्वाबों के महल ढह कर रह गये।
आज उमेश दो दिन के लिए आफिस टूर पर जा रहे तो मैंने कहा मै इधर आ जाती हूँ आधे रास्ते हम साथ आये …. मैंने सोचा कुछ पल तो चैन मिलेगा इसलिए सासूमां से बहाना बनाकर यहां चली आई अब मांँ इन दो दिनों में कोई तो हो जिसका चेहरा देख मुझे दो पल का चैन नसीब हो जाये अपनी छोटी मोटी इच्छाओं के बारे में कुछ सोचने का मौका ही मिल जाये ।
अगले ही पल अनीशा की आँखों से झर झर आँसू बहने लगे ।उसका मन हुआ कि माँ के सीने से लग फूट-फूट कर रोये।
उसकी दशा देखकर पिता अविनाश को भी बहुत दुःख होता है वह उसे समझाते हैं बेटा धैर्य से काम लेना तुम को सभी बातें दामाद जी उमेश को बतानी चाहिए। आखिर पति पत्नी का रिश्ता होता ही ऐसा है दोनों एक दूसरे के पूरक दुख सुख के साथी है…अविनाश समझदार है वो इस समस्या का कोई न कोई हल जरूर निकाल लेंगे। इससे पहले की बात बड़े रिश्तों में खटास दूरी आ जाये समस्या को दूर करना आवश्यक है।
दो दिन रहकर अनीशा ससुराल वापस आ गई । उमेश ने आते ही कहा क्या बात है अनीशा, मैं देख रहा हूँ… तुम काफी दिनों से परेशान अस्वस्थ नजर आ रही हो । तब अनीशा ने अपनी समस्या बहुत प्यार सहजता से उमेश के सामने रखी । उमेश ने दो दिन छुट्टी का बहाना बना घर पर ही रहकर हर बात पर गौर किया।उसने देखा अनीशा सुबह से काम में लगी है । सुबह से उसके सर में दर्द भी था कोई उसका हालचाल पूछना तो दूर बातचीत की फुर्सत नहीं निकाल रहा था । और सभी खाली गप्पों में हंसी मजाक में व्यस्त चुहलबाज़ी कर रहे उसको बुरा लगता है। वो अपनी माँ से कहता है….घर के काम के लिए एक मेड रख लेते हैं इससे अनीशा को सहारा और आराम मिल जायेगा । मैं देख रहा हूंँ उसका स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है।
उमेश की बात सुनकर जेठानी और सास बोल पड़ी… हमें पसंद नहीं है इन कामवालियों का काम उल्टा सीधा करके भाग जाती है।हमने कभी न रखी घर में कामवाली…अरे घर में लोग ही कितने है और काम ही कितना होता है। हमको नहीं लगता कि हमें कामवाली रखने की जरूरत है।
उमेश कहता है माँ मै देख रहा हूँ जब से अनीशा घर में आई है सारा दिन अकेली ही काम में लगी रहती उसकी मदद कोई नहीं करता सभी काम उसके ऊपर छोड़ सभी मस्ती है गये है। मेड रखने में भी हर्ज है…आप सब उसकी सहायता भी नहीं करते…तो फिर मैं ऐसा करता हूँ उसको लेकर आफिस की तरफ से जो फ्लैट मिल रहा है उसमें सिफ्ट हो जाता हूँ । उमेश की बातें सुनकर एक बार तो पूरे घर में सन्नाटा सा छा जाता है।
बेटे के दूर जाने की कल्पना मात्र से ही माँ बेला जी का दिल सिहर उठता है। एक उमेश ही था जो उनकी सुध बुध लेता, अच्छा कमाता हर माँग पूरी करता, हर बात सुनता तभी तो उसकी पत्नी छोटी बहू अनीशा पर वो हुक्म चला लेती वरना तो बड़ा बेटा उन पर घ्यान देना तो दूर, बड़ा ही अक्कड़ मिजाज का बेला जी की कब सुनता..?, वो तो बातचीत भी ढंग से नहीं करता था । उसके आगे तो उनकी एक नहीं चलती थी तभी बड़ी बहू की भी उनको हां मैं हाँ मिलानी पड़ती।
उमेश की माँ बेला की आँखों में आँसूओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। वो अनीशा की तरफ दया ममता भरी नजरों से देखती है। आज उनको बेटे ने उसकी गलती का उसे अहसास करा दिया । एक दूसरे की होड़, नीचा दिखाने की आदत में उनकी आंँखें इस कदर चौंधियां गई थी कि वो इंसानियत ही भूल गई थी । गहराई से देखा जाए तो ऐसी सोच आगे चलकर अकेलेपन भटकाव और सामाजिक असुरक्षा कलह टूटन का कारण बनती है। वो अमीशा को गले लगा लेती है बड़ी आत्मीयता से बोलती है माना की मैं गलत थी लेकिन अब अतीत को भूला आगे बढ़ने में तुम्हारी मदद करूंगी और हर कदम में तुम्हारे साथ हूँ। तभी बड़ी बहू, और ननद ने माँ का बदला रंग देखा तो खुद भी बदलने में अपनी भलाई समझी और माफी मांग ली । वैसे भी घर के बड़े सही हो तो घर स्वर्ग वरना नर्क बनने में देरी कब लगती है ! उमेश के चेहरे पर भी आज शान्ति के भाव नजर आ रहे थे।
अनीशा में नई ताकत, आत्मविश्वास उपज आया उसका विश्वास जीवंत हो उठा एक सन्तोष की सुगंध से मन प्राण सुवासित हो उठे उसके, आज उसको पहली बार ससुराल जेल सा नहीं अपना घर प्रेम मन्दिर जैसा लग रहा था ।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया