सोचा महिला दिवस की शुरुआत घर के नजदीक खुले वृद्धाश्रम में जाकर उनलोगों को कुछ पसंद का खिला कर, थोड़ा वक्त उनके साथ गुजार कर क्यों न किया जाए… सुबह की चाय पीकर नाश्ते के पैकेट के साथ निकल गई वृद्धाश्रम.. अक्सर जाते रहने के कारण सब से पहचान सी हो गई थी… मेरे जाते हीं उनके आंखों की चमक मेरी आत्मा को तृप्त कर देती थी…
एक कुतुहल एक जिज्ञासा हर बार मेरे जेहन में उठते प्रश्न को उत्तर के लिए बाध्य करती पर… एक साठ साल के बुजुर्ग जिन्हें आप वृद्ध बिल्कुल नहीं कह सकते, हाफ पेंट ब्रांडेड टी शर्ट आंखों में टाईटन आई के फ्रेम का चश्मा हाथों में कीमती घड़ी आई फोन कुल मिलाकर वृद्धाश्रम में रहने वाले लोगों से बिल्कुल अलग… खूबसूरत व्यक्तित्व चेहरे पर गंभीरता के साथ साथ विद्वता की चमक… कभी फूलों में पानी डालते दिख जाते पर ज्यादातर किताबों में खोए रहते…
इस बार मुझे उनसे बात करनी हीं थी… सब से मिलकर नाश्ता का पैकेट पकड़ा उनकी तरफ बढ़ी गरम पानी का थर्मश और चाय का पैकेट लिए… अभिवादन के बाद मैने पूछा चाय बना दूं आपके लिए? हाथ में पकड़ी किताब को बगल में रख कर चश्मा उतारा और मुस्कुराते हुए गंभीर स्वर में बोले जी नहीं शुक्रिया.. मैं खुद बना लेता हूं..
जी अगर आपको बुरा नहीं लगे तो मैं थोड़ी देर आपसे बातें करना चाहती हूं…एक मिनट सोचने के बाद उन्होंने हां कर दी… इधर उधर की बातों के बाद मैने माफी के साथ उनसे जानना चाहा आप यहां कैसे… थोड़ी देर चुप रहने के बाद उन्होंने बोलना शुरू किया… मैं कॉलेज में केमेस्ट्री का प्रोफेसर था.. दो बेटे ऋषभ और रौनक… ऋषभ आई टी सेक्टर में इंजीनियर है और रौनक सीए है…. पांच साल पहले पत्नी हार्ट अटैक से चल बसी….
तभी से मेरी दुनिया उजड़ गई.. कितने खुश रहा करते थे हम सभी… समझदार सुशील पत्नी आज्ञाकारी पढ़ने में होशियार बच्चे… पता नहीं किसकी नजर लग गई.. हमने सोचा था रिटायरमेंट के बाद खूब घूमेंगे… बच्चों की परवरिश उनकी उच्च शिक्षा के कारण कभी कहीं निकल नहीं पाए.. माया मेरी पत्नी हर कदम पर मेरा साथ दिया…
मेरी छोटी बहन की शादी में अचानक बारात के दिन गहनों के डिमांड लड़के वालों के तरफ से होने पर अपने सारे गहने बिना कुछ कहे मेरे हाथ पर रख दिया… रिटायरमेंट के पैसों से उसके लिए एक सेट गहना बनवाने की बात मन हीं मन सोच रखा था… एनिवर्सरी में महाबलीपुरम के समुद्रतट पर मै उसे अपने हाथों से ये गहने पहनाऊंगा… पर नियति को ये मंजूर नहीं था.. रिटायरमेंट के एक महीने पहले हीं मेरी दुनिया उजड़ गई…
दोनों बेटे अपनी पत्नी के साथ बैंगलोर में रहते थे… पंद्रह दिन के लिए दोनो आए… फिर घर को बेचने के लिए बोर्ड लगा मुझे अपने साथ लेते गए… मेरी मानसिक स्थिति कुछ भी सोचने समझने लायक नहीं थी… ऋषभ व्हाइटफील्ड में था और रौनक कोर मंगला में… धीरे धीरे मै सामान्य होने की कोशिश कर रहा था…
ऋषभ की पत्नी का व्यवहार धीरे धीरे बदलता जा रहा था.. मेरा पेंशन महीने के एक तारीख को आता…बहु राशन का लिस्ट पकड़ा देती इसे ऑर्डर कर दीजियेगा….सब्जी भी बिग बास्केट से ऑर्डर कर दीजिएगा…दूध वाला एडवांस लेता है,… उसे भी फोन पे कर दीजियेगा…बात बात पर झुंझला जाती….
सुबह में सारा खाना मेड बना कर चली जाती… तीन साल की आन्या की प्ले स्कूल से लेकर घर मेरे पास छोड़ देती और खुद कभी किट्टी कभी मॉल कभी मूवी सहेलियों के साथ चली जाती… आन्या को खाना खिलाना कपड़े चेंज करना सब मेरी जिम्मेदारी थी… आन्या आते हीं फोन लेकर बैठ जाती मना करने पर रोने लगती… कितना मुश्किल से खाती… एक दिन बहु को बोला बच्चे पर भी ध्यान दो… मेड सुबह खाना बना कर चली जाती है….
खाना ठंडा हो जाता है.. उसे बारह बजे बुलाओ… आन्या को भी ताजा खाना मिलेगा… भड़क गई… ये मेरा घर है… मेरे नियम कायदे चलेंगे… बाकी आपकी मर्जी… मधुर स्वर में पापाजी कहने वाली बहु माया के सामने कितनी सल्लजता से पेश आती थी आज उसका ये रूप…. उफ़ जिंदगी किस मोड़ पर ले आई….
रात में ऋषभ से जाने क्या कहा अगले दिन ऋषभ भी नाश्ते के समय उखड़ा उखड़ा सा था… शाम को रौनक आया मुझे अपने साथ ले जाने… जाते जाते आन्या ने कहा दादू आपको यहां आए दो महीना हो गया अब दो महीना चाचू के पास रहो… मेरे कानों में जैसे किसी ने गरम पिघले शीशे उड़ेल दिए हों…
मैं कोर मंगला आ गया रौनक के पास… रौनक और उसकी पत्नी दोनो नौकरी करती है…. सुबह दोनो निकलते तो रात में आते… यहां भी सुबह मेड खाना बनाकर चली जाती.. खैर मैने अपने को माहौल के अनुसार खुद को ढालना शुरू कर दिया… किताबों को अपने अकेलापन का साथी बनाया…
यहां भी महीने का राशन दूध सब्जी सब मेरे हीं हिस्से में था मंगवाना…दोनो बहुओं में से किसी ने नहीं पूछा आपको क्या पसंद है बनवा देती हूं…माया याद आ जाती और आंखों के कोर गिले हो जाते…इस उम्र में पति या पत्नी किसी को जाना हीं होता है पर दोनों एक दूसरे के इतने आदी हो जाते हैं कि…. एक का जाना दूसरे को जिंदा लाश बना देता है…और ऐसा व्यवहार उफ्फ…ऐसे हीं दो महीने बीत गए… जीवन में ना कोई खुशी ना उत्साह ना बात करने के लिए कोई अपना…
मशीनी जिंदगी…. एक दिन रात में फोन पर रौनक की तेज आवाज सुन डाइनिंग हॉल के पास गया.. लगा किसी से झगड़ा कर रहा है…. मै कुछ नहीं जानता… दो महीने हो गए अब पापा को ले जाओ या किसी वृद्धाश्रम में डाल दो… चुपचाप अपने कमरे में आ गया… अगले दिन रौनक की पत्नी बोली भैया आपको अपने पास ले जाने के लिए तैयार नहीं हैं… हमारी डील हुई थी दो महीने पारा पारी रखेंगे पर अब नकार गए…
दोनो के पिता हैं.. सिर्फ हम हीं क्यों झेले… बंधन में बंध गए हैं हमलोग आपके कारण… वीक एंड में हमारे घर में पार्टी होती थी जब से आप आए हैं बंद हो गया है…कहीं चार दिन के लिए जा भी नहीं सकते… पता नहीं कब तक ये चलेगा..
अब मुझे #एक फैसला आत्मसम्मान के लिए# लेना हीं होगा… मैं फ्लाइट का टिकट करवा लिया.. कैब बुक कर एयरपोर्ट आया… और फिर अपने घर पहुंचा…. पावर ऑफ अटर्नी मेरे पास होने के कारण घर ऋषभ और रौनक बेच नहीं पाए.. मैने घर को रेंट पर लगा दिया… दो कमरे अपने लिए रखकर… छोटे से इस शहर में खुले वृद्धाश्रम के बारे में मेरे एक दोस्त ने बताया… वो खुद इससे जुड़ा है.. एन जी ओ चलाता है वो…
बड़े शहरों के चमक दमक से मन खिन्न हो गया था इसलिए इस छोटे से शहर में पिछले दो साल से हूं… बीच बीच में कभी रामेश्वरम कभी बनारस चला जाता हूं.. पेंशन के पैसे में से आधा इस आश्रम को देता हूं…. रेंट भी मेरे खाते में आता है.. मैने वसीयत बना दी है.. मरने के बाद घर बिकने से मिले पैसे दो और वृद्धाश्रम को मिलेंगे…
सभी यहां दुखियारी हैं… महिलाएं तो रोकर अपना दुःख हल्का कर लेती हैं… पर पुरुष तो रोते नहीं… यहां खुली हवा में सांस तो लेता हूं.. अपने आत्मसम्मान को बचा के रखा हूं… योगासन सिखाता हूं सुबह… दो तीन संस्था में भी योगा सिखाने जाता हूं… यही मेरी कहानी है…. मेरा मन भी भर आया.. मैं बोझिल कदमों से वापस लौट रही थी…
Veena singh