आप लोगों को एक सुझाव देना चाहती हूं, पता है आजकल शादी का लहंगा किराए पर मिल जाता है। जिससे हजारों रुपए की बचत हो जाती है और उसे हम शादी के अलग कामों में खर्च कर सकते हैं। वैसे भी शादी तो होनी अलग साड़ी में ही है, लहंगा तो बस कुछ देर के लिए पहनना है, तो फिर इतना इतना भारी लहंगा लेने की क्या ज़रूरत? योगिता ने कहा
वहां उसका पति अरनव, सास आशा जी, ससुर अशोक जी, देवर प्रतीक और ननद विशाखा भी बैठे हुए थे। विशाखा की शादी में होने वाले खर्चों के बारे में ही बात चल रही थी और विशाखा का लहंगा काफी महंगा आ रहा था, इसी बात पर योगिता अपने विचार देती है।
योगिता के इस विचार को सुनते ही सबसे पहले तो सब हँसे और फिर विशाखा ने कहा, भाभी! आपको यहां किसने बुलाया? जाइए किचन में अपना काम संभालिए, खुद तो एक हल्की सी साड़ी पहनकर आ गई इस घर में, अब क्या चाहती है मैं भी उसी फतेहाल हालत में अपने ससुराल जाऊं? आपकी हैसियत और हमारे हैसियत का कोई मेल है क्या?
अरनव: हां योगिता! मेरे इकलौती बहन की शादी है तो हर एक चीज़ उसकी पसंद की होगी, यह हमारे ऊपर बोझ नहीं है जो कुछ भी देकर भेज दिया जाए, ऊपर से हमारे खानदान की इज्ज़त का भी सवाल है, तुम्हें इन सब मामलों में दखल देने के लिए किसने कहा? जाओ और अपना काम करो
प्रतीक: हां भाभी! आप तो बस हमारे खाने पीने का ध्यान रखो और एक कड़क की चाय और पकौड़ो का इंतजाम करो, कहकर सभी हंसने लगे
अशोक जी: इसमें बुरा क्या कहा योगिता ने? इतना खर्च पहले से ही हो रहा है, तो फालतू के खर्च क्यों करना और जिस लहंगे को लेकर विशाखा इतनी जिद कर रही है शादी में पहनकर अलमारी में ही तो रखना है, वैसे भी शादी तो अलग साड़ी में ही होगी ना, तो इतना महंगा लहंगा क्यों?
आशा जी: मुझे पता था आप तो इसके लिए ज़रूर बोलेंगे, आखिर पसंद करके तो आप ही लाए थे ना इसे? वरना ऐसे कंगाल घर से हम कभी रिश्ता जोड़ते क्या? जो एक अच्छी साड़ी भी ना दे पाया अपनी बेटी को, उस वक्त तो अपनी चला ली पर इस बार मैं आपकी एक नहीं चलने दूंगी।
यह कोई नई बात नहीं थी। योगिता से उसके ससुराल वाले हमेशा ऐसे ही पेश आते थे। क्योंकि वह एक गरीब परिवार से थी, ऊपर से कम पढ़ी लिखी, बस अशोक जी को योगिता काफी पसंद थी, क्योंकि एक तो वह अशोक जी के सबसे अच्छे मित्र की बेटी थी, और दूसरी काफी संस्कारी और सुशील भी।
शादी के बाद से ही योगिता को उसे घर में अपनापन नहीं मिला, जिसे देखो बस उसका अपमान ही करता था, सिवाय अशोक जी के। यहां तक अरनव भी उसे अपने साथ कहीं नहीं ले जाता था, उसे वह अपने काबिल ही नहीं समझता था और योगिता ने भी इन सब हालातो से समझौता कर लिया था, एक बार उसने अरनव से कहा, सुनिए जी! यहां सिटी हॉल में खाना बनाने की प्रतियोगिता होने वाली है, सोच रही हूं उसमें हिस्सा लूं, चारू कह रही थी बस ₹100 का फॉर्म है।
योगिता के इस बात पर अर्नब जोर से हंसते हुए कहता है, घर का खाना बनाते-बनाते तुम खुद को मास्टरशेफ समझने लग गई क्या? तुम्हें पता भी है कितने टैलेंटेड कूक आएंगे वहां, उनके सामने तुम एक पल भी टीक पाओगी. अपना तो मज़ाक बनवाओगी ही साथ में हमारा भी।
इसलिए बेहतर है घर की रसोई ही संभालो, यह सुनकर योगिता का खिला चेहरा उतर गया और उसने मन ही मन सोचा आखिर क्यों मैं चारू की बातों में आकर इनसे यह सब पूछा? खामखा मज़ाक बन गया मेरा, सच ही तो कह रहे हैं यह, उन धुरंदरो के आगे मेरा क्या ही मुकाबला? यह कहकर वह अपने कामों में लग गई, तभी उसकी बहन चारू का फिर से फोन आया, बड़े ही मुरझे मन से योगिता फोन उठाती है और हेलो बोलती है,
चारू: क्या हुआ दीदी? बात की क्या जीजा जी से? क्या बोले वह?
योगिता: और क्या कहेंगे? वही जो हमेशा कहते हैं, यह सब मेरे लिए नहीं है, वैसे देखा जाए तो ठीक भी है, मैं एक मामूली सी ग्रहणी, बड़े-बड़े कूक से कैसे मुकाबला कर पाऊंगी?
चारू: दीदी! जीजा जी का तो तुम्हें पता ही है, अरे आज तक उन्होंने हमेशा तुम्हें ताना ही दिया है। पर तुम सुनो मैं फॉर्म ले आई हूं और तुम इसे भर रही हो और प्रतियोगिता में भी भाग ले रही हो। और कुछ नहीं सुनना मुझे। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? हार जाओगी यही ना?
वैसे भी दीदी तुम्हारी तरक्की या हार जाने से उस घर में किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, दीदी! पर सोचो अगर तुम इस रास्ते अपनी एक पहचान बना सकती हो, दीदी यह हम सबको पता है तुम खाना कितना अच्छा बनाती हो, इसलिए तुम्हें एक फैसला अपने आत्मसम्मान के लिए आज लेना ही होगा।
चारू की बातों से योगिता को प्रोत्साहन मिलता है और वह प्रतियोगिता में भाग ले लेती है। प्रतियोगिता के दिन वह और चारू सिटी हॉल में जाते हैं और योगिता टॉप फाइव में अपनी जगह बना लेती है। प्रतियोगिता का अंतिम चरण 15 दिनों बाद मुंबई में होना था जहां चारू की खुशी का ठिकाना नहीं था,
वही योगिता परेशान बस यही सोच रही थी कि, वह अब मुंबई कैसे जाएगी? छुपाते छुपाते तो वह यहां तक आ गई, पर अब क्या करेगी? वह घर में क्या कहेगी? यही सोचते हुए वह जैसे ही घर में घुसी, सारे परिवार को पड़ोसियां बधाई दे रहे थे, योगिता का दिल जोरो से धड़कने लगा, ना जाने अब क्या होगा?
पर अब जो होने वाला था उसके अंदाजन के बिल्कुल उल्टा था। परिवार के सभी आकर उसे अंदर बिठाकर पहले तो उसकी बलईया लेने लगते हैं, तभी उसकी सास आशा जी कहती है, सच में मुझे शुरुआत से ही पता था तुम्हारे पापा की नज़र जौहरी की है, हीरा चुना है हीरा।
फिर विशाखा कहती है, भाभी! अगली बार मुझे अपने साथ ले जाना और सबसे हैरान करने वाली बात तो अर्णव ने की, उसने कहा, तुम्हें पता है कल तुम्हें मेरे ऑफिस में इनवाइट किया गया है, आज मुझे तुम पर गर्व है, आखिरकार तुमने खुद को मेरे काबिल बना ही लिया। यह सब कुछ सुनकर योगिता थोड़ी देर तो खामोश रही, फिर एकदम से हंसने लगी और अशोक जी के पैर छूकर कहती है, पापा जी! देखा आपने इन लोगों के व्यवहार को?
कल तक जिनके लिए मैं बस एक नौकरानी थी इस घर की, आज मुझे सर चढ़ा रहे हैं, मैं तो घर यह सोचकर आ रही थी कि पता नहीं आप लोगों को अपने मुंबई जाने की बात कैसे बताऊंगी और यहां आकर कुछ और ही मंजर देखा, पर आज मुझे एक बात अच्छे से समझ आ गई,
किसी से इज्ज़त पाने के लिए सबसे पहले खुद अपनी इज्जत करना सीखो, तुम्हारे आत्मसम्मान की रक्षा तुम्हें खुद करनी होगी, वरना हर कोई तुम्हारी औकात बताने लग जाएगा। इस प्रतियोगिता ने मुझे एक आईना दिखाया। कल इस प्रतियोगिता का फल कुछ भी हो, पर अब से सबसे महत्वपूर्ण मेरा आत्मसम्मान होगा और उसके लिए मुझे जो करना पड़ेगा वह मैं करूंगी।
यह कहकर योगिता वहां से चली गई और प्रतियोगिता में प्रथम तो नहीं बल्कि द्वितीय बनकर जीता। उसे काफी ख्याति मिल गई, हर कोई उसे जानने लगा और फिर बड़े-बड़े होटलों में उसे काम करने का मौका मिलने लगा। उसने कुछ महीने एक बड़े होटल में काम करके, नई-नई तकनीके सीखी और फिर खुद का एक रेस्टोरेंट खोल लिया, जो उसके ख्याति के कारण काफी चलने भी लगा। अब वही योगिता जिसकी बातें पहले उसके ससुराल वाले सुनते तक नी थे, आज उससे ही सलाह लेकर हर काम किया जाता।
दोस्तों! इस कहानी को पढ़कर आपको ऐसा लग रहा होगा कि यह सारी चीज़े सिर्फ किस्से कहानियों में होती है, पर यकीन माने यह कहानी संभव भी होती है, जो हम अपनी शक्तियों को पहचानें। अपने आत्म सम्मान को कुचलकर हम एक परिवेश में ढल तो जाते हैं, पर शायद एक जिंदा लाश के सिवा और कुछ नहीं रहते, इसलिए खुद के फैसले खुद ही ले और सबसे पहले खुद की इज्ज़त और खुद से प्यार करें।
धन्यवाद
रोनिता कुंडु
#एक फैसला आत्मसम्मान के लिए