बड़ी बहू – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

आज बड़ी बहू , बड़ी बहू कहने वाली मांजी ने आंखें मूंद लीं है ।अब कौन कहेगा मुझको बड़ी बहू ,कौन समझाएगा मुझे मेरी जिम्मेदारियां,कौन कहेगा बड़ी बहू तुम घर की सबसे बड़ी बहू हो सबकुछ तुम्हें भी देखना है । सोच सोच कर सास के पार्थिव शरीर के पास बैठी शारदा के आंसू नहीं रूक रहे थे। कितना मान देती थी मुझे मां जी हर समय कहती रहती थी तुम इस घर की सबसे बड़ी बहू हो । तीन देवर है दो ननदें है घर परिवार को बांधकर रखना मेरे जाने के बाद समझीं जी मां जी।

            ब्याह कर शारदा जब ससुराल आई थी तो मां जी ने दरवाजे पर आरती की थाल लिए हुए मुझसे कहा था घर की बड़ी बहू बनकर आई हो बहुत सारी जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी ,निभा लोगी बड़ी बहू ,सास के पैर छूते हुए शारदा ने कहा मां जी आपका साथ रहेगा तो मैं अपनी जिम्मेदारी उठाने में पीछे नहीं रहूंगी ‌। बहुत बढ़िया तुम्हारी जैसी बहू की ही मुझको जरूरत थी।

क्यों कि अबतक तो मैं सबकुछ संभालती आई हूं लेकिन बहू अब तो मेरा बुढ़ापा आ रहा है अब भगवान के यहां से बुलावा आ जाए तो इस घर में तूझे मेरी जगह लेनी पड़ेगी। जैसे मैंने संभाला है सबकुछ वैसे ही तुम्हें संभालना पड़ेगा।घर परिवार, देवर देवर ,ननदें रिश्ते,नाते दार  कहां किसके यहां कोई फंक्शन है क्या शगुन भेजना है सुख दुख है सबकुछ देखना पड़ेगा। मां जी बस आप बताते जाना और मैं करती जाऊंगी शारदा बोली।

              धीरे धीरे शारदा ने घर परिवार सबकुछ संभाल लिया। ननदों में एक नंद तो बड़ी थी जिनकी शादी शारदा से पहले ही हो गई थी।और एक नंद रह गई थी।बस सबेरे से ही घर में आवाजें लगनें लगती सास की ससुर की बड़ी बहू बड़ी बहू और देवर ननदों की बड़ी भाभी ।सबसे छोटा देवर जो था वो तो शारदा को बड़ी मम्मी कहता था वो अभी मात्र पंद्रह वर्ष का ही था।सुबह तड़के उठकर शारदा रसोई संभाल लेती एक एक करके सबका नाश्ता खाना देती जाती और जिसको जिस समय निकलना होता वो लेकर निकल जाता।घर के नौकर चाकर की भी सारी जिम्मेदारी शारदा ने उठा ली थी।

          ननद के लिए लड़के देखें जाने लगे थे। लड़का पसंद है कि नहीं ननद दीपा से शारदा ही खुलकर पूछती और सारी मन की बात दीपा खुलकर भाभी को बता देती मां बाबा से लड़कियां थोड़ी झिझकती है। तीन चार लड़के देखें गए उनमें से एक लड़का दीपा को पसंद आया घर बार भी ठीक था लड़का सरकारी नौकरी में था तो हां कर दी गई ।

मंगनी की रस्म करके बात पक्की कर दी गई। शादी की तारीख तय होते ही सारी तैयारी की जिम्मेदारी बड़ी बहू ने उठा ली। कपड़े लत्ते ,जेवर , गहने घर के राशन का सामान , पूजा पाठ का सामान शारदा सबकुछ क़रीने से करती जा रही थी। आखिर शादी का दिन भी आ गया रिश्ते दार आने लगे ।बुआ सास आकर भाभी के पास बैठ गई।बस हर तरफ से भाभी भाभी , बड़ी बहू बड़ी बहू आवाज आ रही थी।बुआ सास सब देख रही थी बोल पड़ी भाभी तुम बड़ी बहू तो बहुत अच्छी लाई हो देखो सब काम कैसे अच्छे से निपटा रही है ।

हां पुष्पा बड़ी बहू तो बहुत अच्छी है इतने अच्छे से सब काम संभाल लिया कि क्या बताऊं मैं तो अब बहुत निश्चित हो गई हूं । मेरे और तुम्हारे भईया के न रहने पर घर को और देवर ननदों को बहुत अच्छे से संभालेंगी। देखो पुष्पा घर का बड़ा चाहे वो कोई भी हो वो सही है तो घर के लोग और घर कभी नहीं बिखरता ।घर का बड़ा सबकुछ संभाल लेता है। हां भाभी तुम सही कह रही हो।दीपा विदा होकर ससुराल जाते समय मां से ज्यादा भाभी के गले लगकर रो रही थी भाभी एक नंद के लिए सिर्फ भाभी ही नहीं एक दोस्त भी होती है । जिससे वो मन की हर बात कह सकती है ।

            दीपा की शादी के बाद बड़े देवर की शादी हुई और देवरानी घर में आ गई।घर में शारदा की बहुत ज्यादा अहमियत देखकर वो शारदा से मन ही मन कुढ़ने लगी।आज ससुर जी ने अलमारी की चाबी शारदा को दी और बोले बड़ी बहू ज़रा आलमारी से पच्चीस हजार रुपए निकाल लाना किसी को देने है । देवरानी कावेरी सब देख रही थी उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था कि ससुर जी भाभी को आलमारी की चाबी भी दे देते हैं इतना विश्वास।

बड़े देवर की शादी के बाद ससुर जी को एक दिन हार्टअटैक आ गया उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया । इलाज के बाद सही से देखभाल हो घर में , छुट्टी दे दी गई।अब शारदा ससुर जी की सेवा में दिन-रात जुटे गई।एक दिन ससुर जी ने शारदा और बड़े बेटे प्रताप को बुला कर पास बैठाया और बोले देखो बड़ी बहू तुमने बहुत अच्छे से सबकुछ संभाल लिया है और बेटे प्रताप तुमने खेती बाड़ी को अच्छे से संभाल लिया है

उम्मीद है कि तुम लोग आगे भी अपनी जिम्मेदारी ऐसे ही निभाओगे।अब तो हमारे जाने का समय आ गया है और बड़ी बहू ये है आलमारी की चाबी इसे अब तुम संभालो।घर का और भाई बहनों का ध्यान रखना।अब तो मेरे चला चली की बेला आ गई है। नहीं ऐसा न कहें बाबूजी शारदा बोली।और रात को ससुर जी सोएं तो फिर उठे ही नहीं।अब बड़े भाई भाभी होने के नाते प्रताप और शारदा को ही सबकुछ देखना था।

              कुछ दिनों बाद बाकी दोनों देवरों की भी शादी हो गई। लेकिन एक कमी रह गई शारदा के जीवन में उसके कोई औलाद न थी ।इतने लोगों के बीच उसको कभी अहसास ही नहीं हुआ कि मैं बेऔलाद हूं । फिर सबसे छोटी देवरानी ने अपना बच्चा शारदा की गोद में डाल दिया कोई बात नहीं भाभी ये आपका ही बच्चा है। बहुत प्यार लुटाती थी शारदा छोटे से करण पर ।

आज करण को गोद में लेकर शारदा को अपना अधूरा पन भी पूरा नज़र आ रहा था। बाकी दोनों देवरानियां तो शारदा से जलती कुढ़ती थी जबकि शारदा सबको ‌‌‌बराबर से प्यार करती थी कोई भेदभाव न करती । ऐसे ही एक मनहूस दिन प्रताप खेतों में काम देख रहा था तो खेत में सांप ने काट लिया और उसकी मृत्यु हो गई। इतना बड़ा दुख शारदा परिवार के सहारे ही झेल पाई ।

परिवार के साथ रहते हुए उसे अकेला पन नहीं लगता था।शारदा ने बहुत कोशिश की कि परिवार एक साथ रहे लेकिन हर इंसान एक सा नहीं होता । बाकी दोनों देवर देवरानी यो ने अपना अलग अलग मकान कर लिया ।और‌ सबसे छोटा देवर की दिल्ली में नौकरी लग गई थी तो‌ वो वहां चला गया ।घर में सिर्फ सासू मां और शारदा रह गए।

               और आज शारदा के लिए बहुत भारी दिन था।उसकी सास भी दुनिया से चली गई। शारदा अकेली बैठी बैठी सोच रही थी अब अकेले अकेले कैसे जीवन कटेगा। सहारे को अब तो कोई भी न रहा। दोनों देवर देवरानी भी अलग रहते हैं।पति भी नहीं है कोई बेटा बेटी भी नहीं है। इतना सबके लिए किया लेकिन मुझे क्या मिला इस उम में तो तन्हां ही रह गई। कैसे कटेगा जीवन सोचते सोचते कब शारदा की आंख लग गई पता ही न चला।

              सुबह-सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई तो शारदा ने दरवाजा खोला तो सामने छोटे देवर देवरानी और करण खड़ा था। अरे तुम लोग अचानक , हां बड़ी मम्मी मेरी नौकरी लग गई, बहुत अच्छा बेटा खूब फूलों फलों। हां और अपना सामान समेटो और चलो मेरे साथ। कहां चलूं तुम्हारे साथ ,अब आप हमारे साथ रहेंगी यहां पर अकेले अकेले नहीं ,पर बेटा सारी जिंदगी तो यही कटी है ,रह लूंगी जैसे तैसे।नहीं कटी है सारी जिंदगी जब सबलोग थे दादी थी अब तो यहां कोई नहीं है हम आपको अकेले नहीं रहने देंगे।अब तो आपकी भी उम्र हो रही है देखभाल की आपको भी जरूरत है। हां भाभी अब आपको हमारे साथ चलना पड़ेगा देवर देवरानी बोले ।

          और शारदा अपने पुराने आशियाने को छोड़कर देवर देवरानी के पास आ गई रहने।करण बड़ी मम्मी का बहुत ध्यान रखता था।अब शारदा को सुकून मिल गया कि अब बचा खुचा जीवन सुकून से कट जाएगा और एक ये भी सुकून कि उसका किया व्यर्थ नहीं गया किसी ने तो उसका साथ निभाया ।और मां जी के कसौटी पर खरी भी रही मैं। मैंने सारी जिम्मेदारी यां निभाई तो उसका प्रतिफल कि मेरा कोई सहारा बन गया ।इस तरह बड़ी बहू बड़ी बनकर ही रही ताउम्र।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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