रसीली बाई – गीता वाधवानी : Moral Stories in Hindi

 मुन्नी बाई का मशहूर कोठा, और कोठे की आन बान और शान रसीली बाई। वैसे उसका असली नाम रश्मि था लेकिन वह खुद इस नाम को कब का भूल चुकी थी। 

 हर एक बाई की तरह उसकी भी यही दर्द भरी कहानी थी कि कोई अपना पैसे की  लालच में उसे वहां बेच कर गया था। 

 दो-चार बार उसने यहां से भागने की कोशिश की पर सफल न हो सकी फिर उसने इसे अपनी किस्मत मानकर स्वीकार कर लिया। जैसी भी थी, चाहे खुद को रोज बेचती थी पर आत्मसम्मान बहुत था उसमें। अब तो मुन्नी बाई भी उसे बहुत मानने लगी थी। मुन्नी बाई के बाद वही कोठे का अधिकार का प्राप्त कर लेगी ऐसा सबको लगता था। 

 उसके खरीदार भी एक से बढ़कर एक। कोई पैसों से अमीर तो कोई दिल से। मुन्नी बाई को तो पैसों का अरमान था, लेकिन रसीली दिल से अमीर लोगों को खूब पहचानती थी और उनकी इज्जत भी करती थी। 

 रसीली उस खरीदार को एकदम से मना कर देती थी जो उसे भाता नहीं था। फिर चाहे वह कितने गुना पैसे ज्यादा क्यों ना दे रहा हो। अगर उसने ना कर दी तो मुन्नी बाई भी उसे मना नहीं पाती थी और जो बात करने में उसे अच्छा लगा तो फिर चाहे वह ठन-ठन गोपाल हो, रसीली को कोई फर्क नहीं पड़ता था। 

 उसका कहना था कि दूसरे लोगों के कामों की तरह यह भी हमारा काम है तो इसे हम आत्म सम्मान से करेंगे। जो इज्जत से पेश आएगा उसे हम इज्जत देंगे, वरना निकलो यहां से। 

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 एक बार रसीली को बहुत तेज सिर दर्द हो रहा था। शाम का समय था उसके ग्राहक आने शुरू हो गए थे रसीली के अंदर आज बिल्कुल हिम्मत नहीं थी। वह आज बहुत चिड़चिड़ी हो रही थी। तभी मुन्नी बाई ने एक आदमी को अंदर भेज दिया। रसीली ने उसे देखा और गुस्से में भरकर बोली -” चल जल्दी आ, और फिर जल्दी वापस जा मेरे सिर में बहुत दर्द हो रहा है। ” 

 वह आदमी चुपचाप रसीली के पास आकर बैठ गया और उसका माथा हल्के हल्के हाथ से दबाने लगा, रसीली को बहुत आराम मिल रहा था, उसका सिर दर्द धीरे-धीरे ठीक हो रहा था, आराम मिलने के कारण उसे तुरंत नींद आ गई और वह आदमी चुपचाप वहां से चला गया। 

 जब रसीली की आंख खुली तो वह वहां पर नहीं था। उसे आदमी के प्रति रसीली के मन में इज्जत जाग उठी। वह जब भी आता रसीली उसके साथ बहुत सम्मान से पेश आती थी। 

 इसी तरह एक बार रसीली को बहुत तेज बुखार आया। उसका शरीर दर्द से टूट रहा था। दवाई खाने पर भी वह ठीक नहीं हो रही थी। 2 घंटे के लिए बुखार उतरता था और फिर से आ जाता था। इसी तरह दो दिन बीत चुके थे। बिस्तर से उड़ने ही रसीली को चक्कर आने लगते थे। 

 उधर मुन्नी बाई को लग रहा था कि 2 दिन की कमाई तो गई, और अब कितना आराम करेगी। उसने एक आदमी को डबल पैसा लेकर रसीली के पास भेज दिया। रसीली ने उससे कहा -” मुझे तेज बुखार है आप वापस जाइए। ” 

 वह आदमी चिल्लाने लगा-” डबल पैसा दिया है वापस क्यों जाऊं? ” और वह रसीली के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगा। 

 रसीली को गुस्सा आ गया और उसने चिल्ला कर कहा -” अपने  पैसे वापस ले लो और निकल जाओ यहां से, माना कि मैं धंधा करती हूं पर मेरी भी कोई इज्जत है आत्मसम्मान है। ” 

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 वह आदमी हंसने लगा और बोला-” इज्जत बेचने वाली की इज्जत, वाह वाह भई वाह। ” 

 उसे हंसता हुआ देख कर रसीली अपने आत्म सम्मान के लिए एक फैसला ले चुकी थी। वह तुरंत मुन्नी बाई के पास गई और उसके हाथ से पैसे छीन कर, आदमी के मुंह पर मारे और साथ ही एक जोरदार तमाचा खींचकर उसके मुंह पर मारा और बोली-” अपना काम करती हूं लेकिन आत्मसम्मान के साथ, आइंदा चार गुना पैसे होने पर भी, यहां मत आना, तेरे से तो कुत्ता भी अच्छा होता है, जो सामने वाले के दुख दर्द को समझता है, चल निकल यहां से। ” 

 वह आदमी अपना सा मुंह लेकर वहां से चला गया।  

 आशा है आपको कहानी पसंद आई होगी 

 स्वरचित,अ प्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली

# एक फैसला आत्म सम्मान के लिए

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