” एक फैसला आत्म सम्मान का” – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

जैसे ही कॉलेज से नताशा घर आई तो उसकी बड़ी बहन गरिमा और उसके पति दोनों बच्चों के साथ आए हुए थे। उसे देखते ही खुश होते हुए बोले तुम्हारे घर के पास ही अपने किसी परिचित के यहां उनके बेटे के नामकरण संस्कार मेंआए थे तो सोचा तुमसे भी मिलते चलें। हमें नहीं पता था तुमने पढ़ाने के लिए कालेज ज्वाइन कर लिया है।

तुमने बताया भी नहीं नताशा की तुमने नौकरी करनी शुरू कर दी है गरिमा ने नताशा को सवालिया नजरों से देखा। हां दीदी अभी तो 2 ही महीने हुए है कॉलेज जाते हुए। आजकल घर के खर्च ही इतने हो गए हैं कि पति पत्नी दोनों के कमाए बिना काम नहीं चलता। और फिर एक-एक खर्च के लिए निलेश पर डिपेंड रहना मुझे अच्छा नहीं लगता। मनोविज्ञान के टीचर की जगह खाली थी कॉलेज में मेरी फ्रेंड ने बताया था। इंटरव्यू के 1 हफ्ते बाद ही अपॉइंटमेंट लेटर मिल गया था।

 बहुत अच्छा किया तुमने, मैं तो तुम्हें पहले से ही समझाती थी। कब तक अपने एक-एक खर्च के लिए अपने पति पर आश्रित रहोगी एक फैसला तुम्हें अपने आत्म सम्मान के लिए लेना ही चाहिए थोड़ी देर चुप रहने के बाद नताशा मुस्कुराती हुई बोली अच्छा तुम बैठो मैं अभी 2 मिनट में फ्रेश होकर आती हूं और चाय बनाती हूं।

इतनी देर में सावित्री जी ने चाय बना दी थी। उसकी 8 साल की बेटी कुहू ट्रे में चाय नाश्ता लेकर ड्राइंग रूम में आ गई, वह भी थोड़ी देर पहले ही अपने स्कूल से आई थी। सावित्रीजी भी वही ड्राइंग रूम में गरिमा के पास बैठ गई। अपनी बहू से बोली जाओ तुम भी फ्रेश होकर जल्दी आओ फटाफट चाय सब मिलकर पियेंगे।

तभी उसकी नजर अपनी बेटी के उलझे बालों पर पड़ी उसकी टी शर्ट भी साइड से थोड़ी फटी हुई थी जिससे उसकी थोड़ी सी कमर दिख रही थी। उसे खुद पर बहुत शर्म आई। इतनी भी बड़ी कहां है उसकी बच्ची क्या सोच रही होगी दीदी उसे देखकर कि इसकी मां को इसकी बिल्कुल परवाह नहीं है? तभी उसकी नज़रें अपने 4 साल के बेटे चिंटू को ढूंढने लगी उसकी सास सावित्री जी ने उसक मन की बात समझ कर बताया कि चिंटू को उसके दादाजी घुमाने लेकर गए है,

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अब कैसे कहती कि सुबह ऑफिस जाते हुए उसने उसके दो थप्पड़ जड़ दिए थे क्योंकि वो आज स्कूल जाने के लिए मना कर रहा था और उसे भी ऑफिस जाने के लिए मना कर रहा था। आखिर है तो बच्चा ही, दादी बाबा के प्यार दुलार के साथ-साथ अपनी मां का साथ उसके लिए बहुत जरूरी है। पैदा होने से अब तक दिन-रात मां के साथ ही बिताया है एकदम से तो बहुत मुश्किल होगा ही उससे दूर रहना।

 जब से नताशा ने कालेज जाना शुरू किया है वो बहुत चिड़चिड़ा हो गया है ना कुछ भी ढंग से खाना पीना खाता है। गुमसुम सा रहने लगा है। घर के पास ही प्ले स्कूल है जहां पर उसके दादाजी छोड़ आते हैं और लेकर भी आ जाते हैं।। कुछ देर बैठने के बाद गरिमा और उसका पति चले जाते हैं। सावित्री जी ने बच्चों और अपने पति को खाना खिला दिया था नताशा का खाना बनाकर रख दिया नताशा अपने बेटे चिंटू को अपनी गोद में उठा लेती है लेकिन वह उसका हाथ छुड़ाकर अपने दादी से चिपक जाता है।

 आपने सुबह मुझे मारा था। मैं आपसे कट्टी हूं। उसे खींचकर अपने गले लगाते हुए नताशा कहती है लेकिन बेटा आप भी तो मम्मा को तंग कर रहे थे सुबह के समय मुझे भी कालेज जाना होता है। इतना समय नहीं होता मेरे पास और एक दिन की छुट्टी कैसे ले लेती? पैसे कट जाते हैं। आज तुम मेरे पास सोना मैं तुम्हें ढेर सारी कहानी सुनाऊंगी अच्छा सॉरी ठीक नताशा अपने कान पकड़ते हुए बोली।

अपनी बेटी के भी कपड़े बदले। कितना कुछ बदल गया था पिछले 2 महीने में। नताशा ने साइकोलॉजी में पीएचडी की हुई है शादी से पहले भी वह एक कॉलेज में मनोविज्ञान की टीचर थी। लेकिन शादी के बाद कुहू के होने पर उसका खुद का निर्णय था नौकरी न करना। सारे घर की जिम्मेदारी बखूबी निभाती थी वो।

सबकी पसंद का खाना नाश्ता चमकते हुए कपड़े समय से पहले ही तैयार रहता। लेकिन पिछले। 2 महीने में सारा घर बिखर गया था आखिर उसकी सास की भी उम्र हो गई है कर ही कितना पाती हैं बच्चों का ध्यान रख लें यही बहुत है। और फिर जितना काम रह जाता है पीछे से वही तो करती हैं। उसका पति निलेश यही दिल्ली में ही मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पद पर कार्यरत है।

 घर वालों के लाख समझाने पर भी नौकरी करने का निर्णय भी उसी का था। दरअसल बात यह थी की एक दिन निलेश के दोस्त की एनिवर्सरी में निलेश और नताशा गए तो उसका सभी सुख सुविधाओं से संपन्न आलीशान घर देखकर नताशा विचलित सी हो गई और खुद से तुलना करने लगी।

निलेश को अपने मन की बात बताई तो निलेश ने चुटकी लेते हुए कहा अब उसकी पत्नी भी तो उसी के बराबर कमाती है घर तो आलीशान होगा ही, यहां तो पढ़ी लिखी होने के बावजूद अपनी बीवी का खर्चा भी मैं ही उठाता हूं।

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 मजाक में कहीं गई बात भी नताशा को इतनी चुभ गई कि उसने अपने आत्मसम्मान के लिए नौकरी करने का एक फैसला उसी दिन ले लिया और अगले ही दिन एक कॉलेज में अपना रिज्यूम भी डाल दिया एक हफ्ते के अंदर ही उसे नौकरी भी मिल गई। निलेश ने बहुत समझाया मेरी मजाक तुम्हें इतनी चुभ गई तो मैं तुमसे माफी मांगता हूं

लेकिन प्लीज अभी नौकरी का समय नहीं है अभी हमारे बच्चे छोटे हैं,भगवान की दया से मेरी सैलरी इतनी है कि हमें किसी चीज की कोई दिक्कत नहीं होगी थोड़े से बच्चे संभल जाएं तो बेशक तुम नौकरी कर लेना मैंने तुम्हें नौकरी करने को कभी मना नहीं किया। कुछ ही दिन की बात है। लेकिन नताशा निर्णय ले चुकी थी। दो ही महीने में घर की स्थिति बेकार हो गई थी। पूरे दिन थकने के बाद। दो घड़ी अपने पति के लिए भी उसके पास नहीं होती थी।

 प्राइवेट कॉलेज में नौकरी करना भी आसान बात नहीं थी बौखला सी गई थी। नताशा सारी झुंझलाहट बच्चों पर उतर जाती थी। उन्हे पढाने का टाइम भी निकाल नहीं पा रही थी।

 थोड़ी देर बाद सावित्री की उसके कमरे में आई और प्यार से उसका

 माथा सहलाते हुए बोली देखो बेटा परेशान होने की कोई बात नहीं है। जितना हो सकता है मैं करती ही हूं। फिर भी बच्चों को मां की बहुत जरूरत होती है। अभी तुम्हारे बच्चे छोटे हैं। उन्हें तुम्हारी जरूरत है। पिछले दो महीने में तुम भी कितनी मुरझा गई हो। अच्छे से सोच समझ लो बाकी तुम्हारी मर्जी।

सही तो कह रही है मां इस बीच में बच्चे भी कितने चिड़चिड़ा गए हैं और हम दोनों के बीच में भी कितना तनाव बढ़ गया है। ऐसा पैसा कमाने का भी क्या फायदा जो मानसिक शांति हर र्ले? अगर निलेश ने मजाक में कुछ कह भी दिया तो मुझे आत्म सम्मान का इशु नहीं बना लेना चाहिए था आखिर मै भी तो उन्हें कुछ भी बोल देती हूं।

 हां नौकरी करूंगी लेकिन थोड़ा सा अपना बिखरा परिवार समेटने के बाद अपने बच्चे थोड़े से संभलने के बाद। अभी मेरी प्राथमिकता मेरे बच्चे होंगे।

 अगले ही दिन उसने रिजाइन दे दिया था। उसने घर आकर बताया तो निलेश की खुशी का ठिकाना ना रहा। उसने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा तुम्हारे जैसी नौकरी तो मैं भी नहीं कर सकता। तुम मेरे मां-बाप को संभालती हो मेरे बच्चों को संभालती हो।

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 तुमने अपने आप को मु झसे कमतर कैसे जान लिया? तुम घर संभालती हो तभी तो मै बेफिक्र बाहर कमाने जाता हूं। मेरा इरादा तुम्हारे सम्मान को ठेस पहुंचाना बिल्कुल नहीं था। अरे तुम्हारे आत्मसम्मान से बढ़कर मेरे लिए कुछ नहीं है। मेरे दोस्त की जिस पत्नी से तुम अपनी तुलना कर रही थी उसके दोनों बच्चे बाहर पढ़ते हैं बचपन से ही। क्या फायदा ऐसा पैसा कमाने से ही जो अपने बच्चों के साथ उनका बचपन ही ना जी पाए बस एक कमाने की मशीन बनकर रह जाए?खैर छोडो चलो मजा आ गया अब तो रोज़ नाश्ते में नई-नई डिश मिला करेगी। बच्चे भी पहले की तरह चहकते मिला करेंगे और अब तुम रात को इतना थका भी नहीं करोगी?

  तुम्हारे कीमती समय में से थोड़ा सा समय हमारे लिए भी निकल जाएगा। निलेश शरारत से बोला तो नताशा ने शर्माकर आंखें झुका ली थी। 

 पूजा शर्मा स्वरचित।

 दोस्तों आपकी प्रतिक्रिया से मेरी लेखनी को बल मिलता है। आपकी हर अच्छी बुरी प्रतिक्रिया के लिए आपका तहे दिल से धन्यवाद।

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