अन्तर्मन की आवाज़ – ऋतु दादू : Moral Stories in Hindi

कुमुद वृद्धाश्रम की संचालिका सुशीलाजी के साथ लॉन में बैठी कुनकुनी धूप का आनंद ले रही थी,उसके डाक्टर बेटी, दामाद हर तीसरे माह  वृद्धाश्रम में आकर यहां रहने वाले लोगो का स्वास्थ्य परिक्षण करते हैं,आश्रम की संचालिका सुशीला देवी कुमुद की सखी हैं, इसलिए कुमुद भी उनके साथ आ जाती है।अचानक कुमुद की नज़र सामने बैठे दंपती पर पड़ती है

और वह चौंक जाती है,अरे ये तो ,इतने में सुशीला जी कह उठती है, हां कुमुद तुमने सही पहचाना,येे सेठ द्वारिका प्रसाद और उनकी पत्नी ही हैं। भगवान का भी अजब खेल है,येे वृद्धाश्रम इन्हीं ने बनवाया है और देखो आज इन्हीं को इसमें शरण लेनी पड़ी,सुना है पोते ने सारी संपत्ति अपने नाम करके दोनो को घर से बाहर निकाल दिया,बहु बेटे तो कुछ महीने पहले एक एक्सिडेंट में चल बसे थे,

फिर सुशीला ने स्वर को धीमा करते हुए कहा कि सुनने में तो यह भी आ रहा है कि उनका एक्सिडेंट भी बेटे ने करवाया था, आखिर गोद लिया हुआ बेटा है ना ,सुनकर  कुमुद का अंतरमन चित्कार उठा, नहीं सुशीला गोद लिए हुए बच्चे को इल्ज़ाम ना दो , दोष तो परवरिश और संस्कारों का है। इतने में शिल्पी और राहुल कुमुद के पास आ गए, चलिए ,मां घर चलते हैं।

घर आकर कुमुद बालकनी में झूले पर बैठकर ढलते सूरज को देख रही थी,पक्षी तेज़ी से उड़ते हुए अपने नीड़ में लौटने को लालायित थे,उतनी ही तेज़ी से कुमुद का मन भी पिछली यादों की तरफ भाग रहा था।

तीस वर्ष पहले की बात है, अल्हड़ सी कुमुद गुनगुनाते हुए अपने कॉलेज से घर लौट रही थी कि उसे अपने घर के सामने एक लम्बी सी काले रंग की गाड़ी खड़ी दिखाई दी,इतनी बड़ी गाड़ी में हमारे घर कौन आया होगा,येे सोचते हुए कुमुद घर में दाखिल हुई तो मां  उसे जल्दी से अंदर वाले कमरे मेें ले गई और उसकी  बलैया  लेते हुए बोली,चल जल्दी से ढंग के कपड़े पहन कर बाहर आ जा

,तेरी तो किस्मत खुल गई ,सेठ द्वारिका प्रसाद जी और उनकी पत्नी अपने बेटे के लिए तेरा हाथ मांगने आये हैं।कुमुद का मुंह खुला का खुला रह गया ,क्या कह रही हो मां, वही न जिनकी बड़े चौंक के पास बड़ी सी सफेद रंग की हवेली है,मां रीझते हुए बोली, हां मेरी  बिटिया वोही सेठजी आए है ,तुझे अपने घर की बहू बनाने, हमारी तो क़िस्मत खुल गई।कुमुद को कुछ समझ नहीं आ रहा था,

इस कहानी को भी पढ़ें: 

माँ मेरी पत्नी की जगह अगर आपकी बेटी होती – पूजा शर्मा : Moral Stories in Hindi

वह मां के कहने के अनुसार तैयार होकर बाहर आ गयी और आदर के साथ सेठजी और उनकी पत्नी का अभिवादन किया। सेठानी जी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा कि तेरी सहेली रत्ना के विवाह मेें देखा था तुझे,तभी सोच लिया था कि इसी  लड़की को अपने घर की बहू बनाउंगी और वह अपने हाथ के कंगन उतारकर उसे पहनाने लगी।पिताजी ने हस्तक्षेप किया,वे बोले सेठजी हमारे अहो भाग्य कि आप हमारे यहां पधारे,

हमारी हैसियत तो आपकी तरफ आंख उठाकर देखने की भी नहीं है,आपसे रिश्तेदारी की तो हम सपने भी कल्पना नहीं कर सकते, जरूर हमने और हमारी बेटी ने कोई पुण्य किए होंगे जो आप हमारी बेटी को अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं पर मेरी इच्छा है कि रिश्ता पक्का करने से पहले हम एक बार आपके बेटे से मिल लेते,तो अच्छा रहता।सेठजी बोले हां हां क्यों नहीं,आज शाम को ही विनोद आप लोगो से मिलने आपके घर आ जायेगा, बच्चे एक दूसरे को समझ ले,उसके बाद हम येे रिश्ता पक्का कर देंगे।

सेठजी और उनकी पत्नी विदा लेकर चले गए,कुमुद को अभी भी सबकुछ स्वप्न जैसा लग रहा था,, मां पिताजी बहुत खुश थे,बोल रहे थे कितने बड़े लोग है पर जमीन से जुडे़ हुए।कुमुद ने भी सपने देख रखे थे,अपने होने वाले राजकुमार के कि वो लंबे कद का गौर वर्ण होगा, उसके सामने घुटनों पर बैठकर अपने प्यार का इज़हार करेगा।

शाम को विनोद घर आए,गहरा सांवला रंग,माध्यम कद,धीर गम्भीर से प्राणी थे।कुमुद ने भी अपने मन को समझा लिया कि जरूरी तो नहीं हर सपना सच हो जाए। पिताजी ने भी अपनी तरफ से खोजबीन करवाई तो यही सामने आया कि लड़का निहायत ही शरीफ है,डिस्को,पब इत्यादि में आजतक नहीं गया,कोई भी गलत शौंक नहीं है। रोज़ घर से दफ्तर और दफ्तर से घर बस यही उसकी दिनचर्या है।

मां पिताजी तो बहुत खुश हो गए क्योंकि किसी भी चीज़ में कोई कमी नहीं दिख रही थी।कुमुद के अंतर्मन ने उसे चेताया कि कुमुद कहीं न कहीं कुछ तो बात है ,जो तू देख नहीं पा रही है पर मां पिताजी के चेहरे की खुशी,रिश्तेदारों की जलन और सहेलियों के उसके भाग्य के प्रति ईर्ष्या भाव ने उसने अपने अंतर्मन की आवाज़ को दबा दिया।

एक माह बाद उसका विवाह विनोद से हो गया,विवाह के बाद जब वह सजी हुई गाड़ी में बैठकर हवेली के अंदर दाखिल हो रही थी,उसे प्रतीत हो रहा था कि वह कोई सपना देख रही है।हवेली में उसका भव्य स्वागत हुआ,जब वह अपने कमरे में पहुंची तो उसने देखा कि उसका कमरा इतना बड़ा है,उतने में उसके मायके जैसे दो घर आ जाये। विनोद बहुत ही गंभीर इंसान थे,उसे लगा शायद अमीर घर के लड़के ऐसे ही होते होंगे।

कुमुद ने अपने कमरे की खिड़की खोलकर बाहर का नजारा देखना चाहा,तो उसे वही बड़े चौंक का चबूतरा दिखाई दिया जहां वे सब सहेलियां बैठकर गोलगप्पे और बर्फ का गोला खाती थी,और हवेली को देखकर बाते करती थी कि इतनी बड़ी हवेली में कितने कमरे होंगे, कैसे  रहते होंगे, इतनी बड़ी हवेली मेें,आज उसका मन कर रहा था कि वो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाकर अपनी सहेलियों को बताए,देखो मै इस हवेली की मालकिन बन गई हूं,अब मै तुम लोगो को बता सकती हूं कि यहां कितने कमरे हैैं,फिर उसे अपने बचपने पर खुद ही हंसी आ गयी।

ससुरजी की राजनीतिक पहुंच अच्छी थी, समाचार पत्रों में ससुरजी का नाम बहुत बढ़चढ़ कर आया कि उन्होंने अपने एकलौते बेटे का विवाह बहुत ही निम्न परिवार में किया, कई संस्थाएं  उन्हें बुलाकर उनका सम्मान कर रही थी,कुमुद को येे सब सुनना अच्छा नहीं लगता था क्योंकि उसका मायका इतना निम्न वर्ग का तो नहीं था जितना समाचार पत्र वाले दर्शा रहे थे पर उसके हाथ में कुछ नहीं था। वह जब भी किसे सामाजिक कार्यक्रम में जाती तो भारी भरकम साड़ी और गहनों से लदी होती,कई बार उसे कोफ्त आ जाती थी,पर वह अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकती थी।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

मेरी रत्ना बुआ – उमा वर्मा : Moral stories in hindi

विवाह के अगले दिन से ही सासू माँं उसके पीछे पड़ गई थी,बस बहु अब जल्दी से एक पोता देदो,उसे बड़ा आश्चर्य होता कि सामाजिक संस्थाओं में बेटा बेटी एक समान के भाषण देने वाली उसकी सास जब देखो पोता ही मांगती है, खैर जब विवाह हुआ है तो बच्चा भी हो ही जायेगा,क्या होगा लड़का या लड़की वो तो भगवान के ऊपर है।

विनोद अपना पति धर्म भी एक कर्तव्य की भांति निभाते थे,कुमुद को कभी भी उनके आपसी सम्बन्धों में प्यार की गरमाहट महसूस नहीं हुई।

जब कुमुद चाहकर भी मां नहीं बन पा रही थी तब उसने अपनी मां की खास दोस्त जो कि स्त्री रोग विशेषज्ञ थी,उनको दिखाया, उन्होंने कुमुद का परीक्षण करके बताया कि कुमुद तुममें कोई कमी नहीं है, थोड़े दिन और इंतेजार करो अगर फिर भी गर्भ धारण नहीं हुआ तो अपने पति का भी परीक्षण करा लेना।

कुछ महीने ऐसे ही निकल गए फिर एक दिन सासू मां बोली , कुमुद कल डाक्टर के यहां चलेंगे,आखिर पता तो चले कि तुम मां क्योें नहीं बन पा रही हो। अगले दिन कुमुद को लेकर उसकी सास शहर के बहुत बड़े अस्पताल में गई और उसका परीक्षण कराया,कुमुद को पूरा विश्वास था कि उसकी जांच तो बिलकुल ठीक आयेगी और फिर विनोद का परीक्षण की बात आयेगी। परीक्षण कि रिपोर्ट में कुमुद को मां बनने के लिए अयोग्य साबित कर दिया गया था।विनोद के परीक्षण की कोई बात ही नहीं निकली ।

यहां भी सासू मां ने बड़प्पन दिखाते हुए कहा कि कोई बात नहीं कुमुद अब तुम हमारे घर की इज्जत हो ,हम बच्चा गोद ले लेंगे।

यह बात सुन कुमुद परेशान हो गई,उसने अपनी मां को सारी बाते बताई और कहा मां, येे तो मेरे साथ अन्याय हो रहा है,कमी मुझमें नहीं बल्कि विनोद में है, मुझ पर झूठा इल्ज़ाम लगाया जा रहा है। मां ने प्यार से कुमुद को समझाया,देख बेटा वो बहुत बड़े लोग है,उनके आगे तेरी बात कौन सुनेगा,बेहतर होगा तुम इस बात पर ध्यान ही मत दो कि कमी किस मेें है,जब तुम्हारी सास बच्चा गोद लेने के लिए तैयार है तो यही सही।

कुमुद का अंतरमन कह रहा था कि जो हो रहा है वह गलत है पर अपनी ससुराल वालों की बात मानने के अलावा उसके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था।

बहुत बड़े उद्योगपति की बहु होने की वजह से कुमुद को जगह जगह मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया जाता था। इसी सिलसिले में एक दिन कुमुद एक अनाथालय में मुख्य अतिथि बन कर गई, आयोजन चल ही रहा था कि अनाथालय के पालने में कोई चार पांच घण्टे की बच्ची को रख गया, जब कुमुद ने उस बच्ची को देखा तो उसके दिल में  उस बच्ची के लिए ममता उमड़ आई,

कुमुद ने वहां की संचालिका से बात करके उसको गोद लेने के सारी तैयारियां कर ली,जब वह खुशी खुशी घर पहुंची और सारी बाते बताई,तो सासु मां क्रोध से भर उठी और बोली तुम होती कौन हो ,इस घर के वंश का निर्णय लेने वाली की, कान खोलकर सुन लो हमारे घर में गोद बेटा ही लिया जायेगा और किसी अनाथालय का नहीं,जिसका यह भी पता नहीं कि उसकी रगों में किसका खून  है,

मैंने अपने पीहर के गांव में बात कर रखी है,जैसे भी होगा,हम वहीं से कोई लड़का गोद लेंगे,तुम्हे अपना दिमाग चलाने की ज़रूरत नहीं है। कुमुद ने कहा ,ठीक है मांजी,हम लड़का भी गोद ले लेगे पर इस नन्ही सी जान को मुझे गोद ले लेने दीजिए पर सासू मां ने साफ मना कर दिया,कुमुद ने आशा भरी नज़रों से विनोद की तरफ देखा कि शायद वो तो उसके मन को समझेंगे पर विनोद भी अपनी मां के समर्थन में थे,वो बोले कुमुद जो मां कह रही है,वैसा ही करो,इसी में तुम्हारी भलाई है।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

 उपेक्षा का दंश – पुष्पा जोशी : Short Moral Stories in Hindi

आज कुमुद का अंतर्मन उसे धिक्कार रहा था ,विवाह से लेकर अब तक वो अपने अंतर्मन की आवाज़ को दबा रही थी,कभी अपने माता पिता की इज्जत की खातिर तो कभी समाज़ की खातिर पर अब नहीं, यदि आज वो मौन होकर येे अन्याय सहन करेगी तो पूरी जिदंगी अपने आप को माफ नहीं कर पायेगी।

कुमुद ने विनोद से  तलाक ले लिया और उस बच्ची को गोद लेकर अपनी ज़िन्दगी आत्मसम्मान के साथ जीने का फैसला लिया। कुमुद अपनी बेटी को लेकर अपने माता पिता के घर आ गई और उसने विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी कर ली।नन्हीं शिल्पी भी अपने  नाना नानी के संरक्षण में पलने लगी।

‌थोड़े समय बाद कुमुद को पता लग गया था कि विनोद का दूसरा विवाह कर दिया गया है और कोई बेटा भी गोद ले लिया है।

पिताजी के रिटायर होने पर उन्होंने वह शहर छोड़कर दूसरी जगह आकर रहने लगे थे,उसके बाद विनोद के परिवार में क्या हो रहा है,कुमुद ने इन सब बातो से कोई वास्ता नहीं रखा,उसका पूरा ध्यान अपनी बेटी के भविष्य को सफल बनाने में था।

आज उसकी वही बेटी डाॅक्टर शिल्पी के रूप में उसके सामने खड़ी है। आज कुमुद को गर्व हो रहा था अपने उस एक फैसले पर जो उसने अपने आत्मसम्मान के लिए उठाया था।

ऋतु दादू

इंदौर मध्यप्रदेश

#एक फैसला आत्म सम्मान के लिए

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!