मत जाओ प्लीज ! – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

सागर ने नया जॉब नोएडा में ढूंढा था । आज कोलकाता से नोएडा जाने के लिए अपनी पत्नी पंखुड़ी के साथ निकल चुका था । साथ में सागर का छोटा भाई राहुल और बहन राशि भी थे । 

सागर पंखुड़ी की शादी के चार साल हो गए थे, अभी तक कोई बच्चा नहीं था । जब से शादी करके आई थी पंखुड़ी उस दिन से ही सागर के भाई- बहन राहुल और राशि साथ रहने लगे । एक सप्ताह की छुट्टियाँ मिलने पर भी माँ के पास नहीं जाते थे दोनों । कारण कि पंखुड़ी ने बहुत आराम देकर रखा था सबको । हर प्रकार का खाना बिस्तर पर मिल जाता, एक आदेश से चाय हाथ में मिल जाता और कॉलेज जाते समय कपड़े भी प्रेस करके मिल जाते ।

जब बिल्कुल बीमार हो जाती पंखुड़ी तभी वो चैन पाती थी वरना पूरे दिन चकरघिरनी की तरह घर में घूमती । सागर की मम्मी चंचला जी को दहेज नहीं कामकाजी लड़की चाहिए थी जो उनके शादीशुदा बेटे के साथ अविवाहित बेटे – बेटियों को भी संभाले, तो पंखुड़ी के रूप में ये इच्छा पूरी हुई थी । और पापा प्रकाश  जी का तो चलता ही नहीं था , जितना चंचला जी बोलतीं उतना ही करना उनकी मजबूरी थी । प्रकाश जी बहुत उदार व्यक्ति थे । 

नोएडा पहुँचकर घर व्यवस्थित करने में समय तो लग ही रहा था, कभी कोई वस्तु जगह पर नहीं तो कभी कोई सामान जगह पर नहीं मिलती । कोई हाथ भी नहीं बंटाता था । पंखुड़ी ने राशि और राहुल से कहा…”तुम दोनों मिलकर साथ दो तो आसान होगा ढूंढना । पंखुड़ी की ये बातें सुनकर सागर बोला..”राशि राहुल यहाँ पढ़ने आए हैं या तुम्हारे कामों में हाथ बंटाने ? “अरे ! ये क्या बात हुई ?

पढ़ने वाले सिर्फ पढ़ते ही हैं, कोई काम नहीं करते, काम नहीं सीखते क्या ? पढ़ाई के साथ – साथ काम भी तो जरूरी है । नहीं कराना काम तो कोई बात नहीं, पर लोग तो मुझे बोलेंगे ना कि भाभी के साथ शुरू से रही और भाभी ने कुछ सिखाया ही नहीं ।  पंखुड़ी ने ऊबते हुए कहा ।”कोई कुछ नहीं बोलेगा तुम्हें पंखुड़ी ! तुम्हारा जो काम है वो करो और राशि राहुल अपना काम करेंगे । पढ़ने के लिए यहाँ रखा हूँ सेवा में लगाने के लिए नहीं ।

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सागर बहुत ज़िद्दी और गुस्सैल था, उसके स्वभाव से जीत पाना पंखुड़ी के अंदर नहीं था । अपनी एक – दो बात रखने की वो कोशिश भी करती पर सागर के बेरुखे व्यवहार से वो हार कर शांत हो जाती । जैसे – जैसे समय और बोझ बढ़ रहा था वैसे वैसे पंखुड़ी का चिड़चिड़ापन भी बढ़ रहा था , पर सागर के गुस्से का शिकार वो नहीं बनना चाहती थी ।

उस दिन पंखुड़ी की मम्मी प्रभा जी का फोन आया । कहा..”बेटा !तुम कब से बुला रही थी, आना नहीं हो पा रहा था । इस बार संयोग से मेरा आना हो रहा है । तुम्हारी रुपाली बुआ की पोती हुई हैं, उसे देखने जाना है, तो मैं सोच रही थी तुम्हारे घर से तो एक घण्टे ही लगेंगे ।तुम्हारे साथ एक दिन रुकूँगी फिर सागर जी मुझे वहाँ छोड़ देंगे ।

प्रभा जी की बात पूरी भी नहीं हुई तो पंखुड़ी ने कहा..”एक दिन क्यों मम्मी ? एक सप्ताह रुकिये ना । कल मुझे बाजार जाना है, घर में छोटी सी पूजा रखी है, तो मैं एक -दो घण्टे में सामान लेकर आ जाऊँगी । आप बुआ के यहाँ से बच्ची को देखकर फिर वापस यहाँ आकर रुक जाना । “कोशिश करूँगी बोलकर प्रभा जी ने फोन रख दिया । 

अगली सुबह मम्मी का मनपसंदीदा लंच तैयार करके नहा धोकर पंखुड़ी सामान लेने बाजार जा रही थी तब मम्मी को फोन किया तो उन्होंने बोला..”पापा के कुछ जरूरी कार्यालय कागजात कुरियर से आने वाले हैं, आ जाए तो लेकर आती हूँ । प्रभा जी ने फिर कहा..”तुम चली जाओ, अपना काम करो मैं आ जाऊँगी  और वो निकल गयी ।

बाजार से सामान लेने के बाद मुश्किल से पंद्रह मिनट की दूरी तय करने पर रास्ते में खूब ज़ोरदार जाम लग गया । पंखुड़ी ने मम्मी को फोन किया तो पूरी बात साफ नहीं सुनाई दे रही थी लेकिन पता चल गया कि मम्मी पहुँच चुकी हैं । घर में राशि और सागर थे । राहुल कहीं बाहर निकला हुआ था । सागर और राशि ने पैर छुए फिर सागर ने सोफे की ओर दिखाते हुए बैठने कहा और मोबाइल में तल्लीन हो गया ।

राशि अपनी सहेली से बात करने में ब्यस्त हो गयी । प्रभा जी घर से नाश्ता करके आई थीं तो भूख लग गई थी । पंखुड़ी की उपस्थिति में वह असमंजस में थी कि खाना निकालूं या नहीं ? थोड़ी देर रुक के फिर डायनिंग टेबल पर रखे बोतल से पानी पीया और राशि सागर से पूछा..आपलोगों ने खाना खाया ? दोनों ने कहा..”नाश्ता किया है अभी, खाना नहीं खाया ।

प्रभा जी ने दोनों को खाना निकालकर दे दिया फिर सोची पंखुड़ी को आने देती हूँ तो साथ में खाऊँगी । इतने में दरवाजे की घण्टी बजी । सागर ने दरवाजा खोला तो उसके दो मौसेरे भाई हॉस्टल में वहीं रहते थे, जब छुट्टी होती दोनों आ जाते । प्रभा जी ने अंदर बुलाया और उन दोनो के लिए भी खाना परोस दिया । अब सिर्फ दाल और साग बचा था । सब्जी, भरवा, चटनी सब खत्म हो गए थे । भूख से छटपटाहट हो रही थी प्रभा जी को, और पंखुड़ी आ नहीं रही थी तो उन्होंने टोकरी में से रखा केला खा लिया ।

अब प्रभा जी आराम करने के लिए टेकीं  तो आंख लग गयी । तभी पंखुड़ी आ गयी । हड़बड़ा कर उठीं प्रभा जी और सामान रखते हुए पंखुड़ी ने देखा उसके दोनों देवर हॉस्टल से आए हुए हैं । फिर रसोई जाकर देखी तो खाना खत्म था । उसने मम्मी से पूछा..”खाना खा लिया मम्मी ? प्रभा जी ने पंखुड़ी के देवर की ओर इशारा करते हुए कहा..”खाना से पहले ये बच्चे आ गए थे ।

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पंखुड़ी को गुस्सा आ रहा था अब । उसने राशि से जाकर कहा…राशि ..खाना खाया ? राशि ने अलसाते हुए कहा..”भाभी ! खाना तो आंटी ने हम सबको खिला दिया । आप थोड़ी देर में चाय के साथ पकौड़े बनाकर दे दो । मेरी सहेली स्नेहा और सुरभि आ रही हैं ।”हाँ पंखुड़ी ! मुझे और भाइयों के लिए हलवा बनाकर दे दो । 

“राशि ! बहुत हो गया । बैठे बैठे दिन रात आदेश देती रहती हो , कभी खुद भी हाथ चला लिया करो । “सागर पंखुड़ी को घूरते हुए खड़ा हुआ और कहने लगा..”मम्मी जी के सामने तुम्हारे हिम्मत कैसे हुई पंखुड़ी , राशि से ऊँचे आवाज़ में बात करने की ?

“राशि से नहीं बोलूँ, आपके मेहमानों को कुछ नहीं बोलूँ तो क्या कठपुतली बनकर सुनती रहूँ ? इतनी बड़ी है राशि, क्या वो मम्मी को खाने के लिए नहीं कह सकती थी । दिन रात आपलोगों की इतनी सेवा करती हूं ये सोचकर कि आपलोग कभी तो समझेंगे पर आपलोग की हद पार ही होती जा रही है । 

सिर्फ मेरा फर्ज है कि आपके घर वालों को अलग अलग व्यंजन बनाकर खिलाऊँ ? क्या आपका2 को बुलाना है बेशक बुलाओ, लेकिन  मुझसे कोई उम्मीद न करना ।

प्रभा जी तेज कदमों से आईं और पंखुड़ी को बोलने लगीं..”क्यों गुस्सा हो रही है पंखुड़ी ,? ये ले पानी पी ! कोई बात नहीं, मुझे कुछ बुरा नहीं लगता । मेरे सामने तो ये सब मत करो , तुम तो बहुत दयालु और शांत हो, फिर आज क्या हुआ ?

“दयालु और शांत हूँ तो क्या मम्मी ? जिसकी जो मर्जी वो करेगा  । बहुत हुआ ये सब । इस घर में सबको एक आदेश पर सब कुछ चाहिए । मेरा जी नहीं है क्या, मेरा ह्रदय नहीं है ? थक गई हूं दिन रात मेरे उम्र के बच्चों की तीमारदारी करके । मैं उम्र में राशि से सिर्फ एक साल बड़ी हूँ, लेकिन उसकी शादी नहीं हुई तो वो बच्ची है और मेरी शादी जल्दी हुई तो परिपक्व हो गयी । मैं कभी ये सब आपको नहीं बताना चाहती थी कि आप ये सब सुन के चिंतित हो, लेकिन अब आपने देख ही लिया तो समझ लीजिए । कोई जरा सा हाथ हिलाना नहीं चाहता । सब करके सबको देती हूँ और रोआब , गुस्सा भी सबका झेलना होता है अगर एक कदम देर हुआ तो ….।

पंखुड़ी अलमारी से कपड़े निकालकर बैग में रखने लगी और मम्मी से बोल रही थी..”अब मैं और नहीं रुकूँगी मम्मी ! # एक फैसला आत्मसम्मान के लिए मुझे लेना है ।आखिर कब तक घुट कर मरूं ? मुझे भी बहुत तकलीफ होती है । सागर स्तब्ध सा रह गया इतने सालों में पंखुड़ी का विकराल रुप देखकर । अब वो बोल पाने की स्थिति में नहीं था। 

थोड़ी देर ऐसा लगा सागर के चेहरे से भाव ही गायब हो गए ।फिर उसने थोड़ी देर ठहर के पंखुड़ी के कमरे में जाकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा..”चली जाओगी पंखुड़ी मुझे छोड़कर ? पंखुड़ी ने कोई जवाब नहीं दिया और कपड़े समेटने में व्यस्त रही तो फिर से सागर ने दोहराया । 

“चली जाऊँगी और रह भी लूँगी सागर ! जिस घर में मेरी इज्जत नहीं मेरे घरवालों की कोई कीमत नहीं वहाँ रह कर क्या करना है । इंसान हूँ मैं, पत्थर नहीं , मुझे भी चोट लगती है बातों से । हर वक़्त आपलोग सिर्फ एकतरफा पक्ष लेते हैं ।मुझे क्या शौक है आपके घरवालों से दुश्मनी निकालने का ? मैं कितने काम करती हूँ तो आपलोग खूब जली कटी सुनाते हैं, सोचिए राशि को दूसरा सागर और ऐसे ही घरवाले मिल जाएं तो क्या जिस नाजुकता में आपलोग पाल रहे वो जी पाएगी वहाँ ?

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राशि पीछे से सारी बात सुन रही थी । सागर ने पंखुड़ी से कहा..”प्लीज मत छोड़कर जाओ, तुम रह लोगी मेरे तानों से आजाद होकर, लेकिन मुझे तुम्हारी आदत हो गयी है मैं नहीं रह पाऊँगा  । पंखुड़ी को लेकर सागर बाहर ही आ रहा था कि उसकी नज़र राशि पर पड़ी । वो मुँह घुमाते हुए फ्रीज से कोल्डड्रिंक की बोतल  और दराज से चिप्स पैकेट निकाली और  खा पीकर गिलास टेबल पर रख दी । सागर ने सख्ती से कहा..”राशि ! थोड़ा तो ढंग सीखो कोई बाई नहीं है भाभी तुम्हारी , जो तुम मनमानी की जा रही हो ।अगर ऐसे ही मनमानी से चलना है तो फिर तुम मम्मी के पास रहो । राशि भी पहली बार अपने प्रति सागर के व्यवहार को देखकर सहम गयी ।

सागर ने बैग अलमारी में डालते हुए कहा..”तुम्हारी तरह ढलने की कोशिश करूँगा, मत जाओ प्लीज ! पंखुड़ी हैरान थी सागर की बातों से और खुश भी । सागर ने उसे सोफे पर बिठाया और अपने हाथों से चाय बनाकर पिलाया और प्रभा जी से कहा..”चलिए मम्मी जी ! आपको बुआ के घर छोड़ देता हूँ , पंखुड़ी तो नहीं जाएगी, मेरे साथ ही रहेगी  । पंखुड़ी ने जाने का इरादा बदल दिया और सागर के हाथ की चाय पीकर दिमाग से तरोताज़ा महसूस करने लगी ।

।मौलिक, स्वरचित

#एक फैसला आत्मसम्मान के लिए

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