तालमेल – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

बड़ी बहू,बड़ी बहू सुन सुन कर मेरे कान पक गए हैं।क्या मैं इस घर की बहू नहीं हूं छोटी हूं तो क्या हुआ मेरा कोई महत्व ही नहीं है।मेरी इच्छा मेरी राय मेरे निर्णय भी हैं।मेरा अधिकार भी इस घर में बराबरी का है हर काम में हर जगह बड़ी बहू बड़ी बहू… अब मेरे मायके के लोग आ रहे हैं

तब भी बड़ी बहू ही सारी व्यवस्था करेगी …मुझे भी कुछ करने दीजिए…. छोटी बहू निशि तमतमाकर कह रही थी।हालांकि बेटे आदित्य ने कमरे के दरवाजे और खिड़कियां जल्दी से बंद कर दी थीं फिर भी घर में सभी के कानों तक उसकी तीखी आवाज पहुंच चुकी थी।

दीपाजी सकते में थी कि आखिर गलती कहां हो गई!!

दीपा जी के दो बेटे प्रखर और आदित्य थे। कोई बेटी नहीं थी इसीलिए वह हमेशा से ही अपनी आने वाली बहुओं को बेटियों की तरह ही दुलार और स्नेह से रखने की लालसा रखती थीं।

बड़े बेटे प्रखर की शादी के समय ही वह आने वाली बहू के साथ अपने तालमेल को लेकर सतर्क थीं। बहू और सास के संबंध बहुत मधुर तो नहीं हो सकते लेकिन आजकल तो सामान्य संबंध ही बने रहें आपस में बोलचाल बनी रहे।इतना ही बहुत है ऐसा ही वह सोचा करतीं थीं।ज्यादा हस्तक्षेप सही नहीं रहता । बहू अपने हिसाब से जीवन जिए ।ज्यादा टोका टाकी  नहीं करूंगी।

लेकिन बड़ी बहू शालिनी ने आते ही उनका दिल जीत लिया।

उन्हें याद है जिस दिन शालिनी बहू की मुंह दिखाई हो रही थी पूरा घर रिश्तेदारों से भरा था।बहुत बड़ा सुविधायुक्त मकान था उनका ।फिर भी उस दिन सबके इकठ्ठा होने के बाद जगह की कमी महसूस होने लगी थी। भले ही हर काम के लिए ढेरों नौकर चाकर उनके पति अविनाश और बेटों ने लगा रखे थे

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ताकि उन्हें कोई दिक्कत ना हो।लेकिन हर काम का बारीकी से निरीक्षण दीपा जी खुद ही करतीं थीं ।ऐसा उछाह ऐसा चाव था उन्हें पुत्र की शादी के लिए की धरती पर पैर ही नहीं पड़ते थे।उस दिन सभी आगंतुकों का आतिथ्य सत्कार करते विदा विदाई देते लेते अचानक उन्हें चक्कर सा आ गया और वह फर्श पर गिर पड़ी थीं उनका रक्तचाप अचानक ज्यादा बढ़ गया था।

पूरे घर में हलचल मच गई थी।

नई बहू के पैर घर में पड़े और सासू जी की तबियत बिगड़ गई… इन पारंपरिक त्वरित टिप्पणियों को नजरअंदाज करते हुए प्रखर ने तुरंत कार निकाली और मां को डॉक्टर के पास ले गया ।डॉक्टर ने उनकी हालत ज्यादा खराब देखते हुए दो दिनों के लिए एडमिट करने की बात कह दी।

शादी वाला घर सारे रिश्तेदारों से भरा था।आज मुंह दिखाई रस्म के बाद लगभग सभी बाहर वाले रिश्तेदार प्रस्थान करने वाले थे।ऐसे में मुख्य कर्ता धर्ता दीपाजी का हॉस्पिटल में एडमिट हो जाना आसमान सिर पर गिर पड़ने के समान था।नई बहू शालिनी उस अनजान से वातावरण में सिमट सी गई थी।दीपाजी ने तो होश आते ही घर जाने की रट ही लगा दी थी।उनके बिना घर कैसे संभलेगा।किसको क्या लेना देना है।किसके साथ क्या रखना है।नौकर चाकर कुक सभी उनके बिना निरुपाय थे।

लेकिन तभी सिकुड़ी सिमटी नई बहू शालिनी ने बहुत शालीनता और हिम्मत से दीपा जी से हॉस्पिटल में रहने का आग्रह किया था।और उनके पास बैठ कर बहुत शांति और समझदारी से सारा काम समझ  लिया था।उसके बाद बेहद कुशलता से घर के सारे काम सम्भाल लिए थे।हर कोई उनकी बहू की बड़ाई करते नहीं थक रहा था।हर आनेवाला पूर्ण प्रसन्न और संतुष्ट होकर गया जैसा दीपा जी चाहती थीं।

“दीपा तुम बहुत भाग्यशाली हो एकदम खरा सोना है तुम्हारी बड़ी बहू ।बड़ी बहू  तो सोना बहू है।पूरे घर को जोड़ कर मिला कर चलने की खूबी और कुशलता है इसके अंदर…” हॉस्पिटल में   मिलने आए सभी रिश्तेदार उनसे शालिनी की जी खोल के तारीफ करके  जा रहे थे।दीपा जी बेहद खुश थीं। वर्षों से मांगी जाने वाली दुआ मंजूर लग रही थी।

घर आते ही उन्होंने सारी (चाभियां )जिम्मेदारियां शालिनी को सौंप दीं थीं “….तुम इस घर की बड़ी बहू हो सोने से गुणों से भरपूर आज से तुम सोना बहू हो  सर्वथा उपयुक्त हो आज से मैं निश्चिंत हुई ।”

तब से लेकर आज तक शालिनी ने उन्हें कभी शिकायत का मौका नहीं दिया । उनसे भी ज्यादा अच्छे से पूरे घर का ख्याल रखती है।सबसे बड़ी बात हर काम दीपाजी से पूछ कर ही करती है।हर बात में आपस में बैठ सलाह लेती है।

सारे घर में फिरकी की तरह नाचने वाली दीपाजी के पांव अब थम गए थे। उनके पास अब समय ही समय था।शालिनी उन्हें कुछ करने ही नहीं देती थी।

धीरे से वह अब घर गृहस्थी के कार्यों से मुक्त होकर समाज सेवा और महिला संगठनों के साथ पूरा समय बिताने लग गई थी ।पुराने शौक उन पर हावी होने लगे थे।घर में कौन आ रहा है जा रहा है कौन क्या कर रहा है इन सब जिम्मेदारियों से वह पूर्ण निश्चिंत हो गई थी।शालिनी अपने नाम के अनुरूप ही शालीनता से सारे कर्तव्यों का शांति पूर्वक निर्वहन करती रहती थी।

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प्रखर की शादी के तीन साल बाद  छोटे पुत्र आदित्य की शादी में भी शालिनी ने हर जिम्मेदारी बहुत कुशलता से  निभाई थी।पूरे घर में बड़ी बहू जी बड़ी बहू जी की पुकार मची रहती थी।पूरी शादी में भी हर काम में दीपा जी से सलाह लेना और हर हाल चाल बताते रहना शालिनी कभी नहीं भूलती थी।

मां मै कुछ दिनों के लिए मायके जाना चाहती हूं शालिनी ने देवर की शादी के कुछ दिनों बाद उनसे कहा तो दीपा जी परेशान हो गईं थीं।

थोड़े दिनों बाद चली जाना बहू।क्या बात है कोई जरूरी काम है क्या पूछा था उन्होंने।

नहीं मां काफी दिनों से सोच रही थी।अब शादी का काम भी निबट गया और अब छोटी बहू निशि भी आपकी देखभाल के लिए आ ही गई है तो सोचा थोड़े दिन मायके हो आऊं निशि की तरफ देखते हुए  शालिनी ने आग्रह से कहा था ।लेकिन दीपा जी जो अब शालिनी पर हर काम के लिए आश्रित हो चुकी थीं इतनी जल्दी निशि को घर सौंपने पर राजी नहीं थीं।

अरे अभी ही तो शादी हुई है उसकी।अभी तो निशि नई है उसे घर गृहस्थी समझने तो दे ।कुछ माह बाद चली जाना कह कर मना कर दिया था दीपा जी ने।

जी मां काफी अनमने थके से स्वर में शालिनी ने कहा था जिसे दीपा जी ने अनदेखा कर दिया था।

जब छोटी बहू निशि के मायके वालों के आगमन की खबर आई तो हमेशा की तरह दीपा जी ने बड़ी बहू शालिनी को सबके रुकने खाने के सारे इंतजाम करने को कह दिया था और निश्चिंत होकर अपनी मीटिंग में जाने वाली थीं…तभी अचानक छोटी बहू निशि के तीखे बोलों ने उन्हें सहमा दिया । 

शांत मधुर घर अनजानी कटुता की अप्रत्याशित सेंध से थर्रा गया था।

निशि इस घर की छोटी  नई बहू के दिल में अपनी जेठानी के प्रति इतनी कटुता है।इतनी ईर्ष्या है।दीपाजी का इस तरफ़ ध्यान ही नहीं गया था। सास बहू के तालमेल के प्रति फिक्रमंद रहने वाली दीपा  अब अपने ही घर की दोनों बहुओं के आपसी तालमेल को लेकर तनावग्रस्त हो गई।दोनों बहुओं के आपसी तालमेल के नाजुक बिंदु को उन्होंने अनदेखा कर दिया था।नवागंतुक छोटी बहू की  असभ्य शब्दावली से घर फूट की डरावनी कल्पना करती वह पास पड़ी कुर्सी पर धम से बैठ गईं।

मां आप ज्यादा मत सोचिए। निशि सही तो कह रही है।आखिर उसके मायके वाले आ रहे हैं।उसकी भी इच्छा होगी अपने इस नए घर में अपने घर बालों की खातिरदारी अपने अनुसार करने की।आप बिल्कुल चिंता मत करिए मै निशि को समझा दूंगी और उसी को अपने अनुसार सारी व्यवस्था करने के लिए आश्वस्त कर दूंगी शांत सहज मुस्कुराहट से शालिनी ने उन्हें समझाते हुए कहा फिर उठ कर निशि की कमरे में चली गई थी।

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दो दिनों के बाद निशि के मायके से उसके मां पिता जी और भाई आ गए।शालिनी ने खुद को हर काम से पीछे कर लिया था।हर काम निशि ही कर रही थी।दीपा जी देख रहीं थीं निशि शालिनी को एक भी काम नहीं करने दे रही थी।घर के हर काम निशी के मन के मुताबिक ही किए जा रहे थे।सारे नौकरों को निशि ही आदेशित कर रही थी।

किचेन में भी उसका बताया मीनू तैयार किया जा रहा था। शालिनी बेहद शांति से हर काम में निशि की सहायता करने में लगी थी।उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी।निशि के घर के लोगों से  शालिनी बहुत आत्मीयता से बातें कर रही थी।

दीपा जी ऊपर से सहज और शांत बनी हुई थी लेकिन निशि की उस दिन की तीखी बातें उन्हें असहज बना देती थी।मन ही मन ही वह अपने प्यारे से घर के दो टुकड़े होते हुए देखने लगी थीं।

अचानक छोटे बेटे की “भाभी क्या हुआ आपको “तेज आवाज से वह चौंक पड़ी।

शालिनी के हाथों से शरबत की ट्रे नीचे गिर पड़ी थी वह कराह रही थी।

मैंने पहले ही मना किया था चुपचाप बैठे रहिए मैं सब कार्य अच्छे कर तो रही हूं लेकिन इनके सिर पर तो “सोने जैसी बड़ी बहू का भूत” चढ़ा है। निशि की फिर वही तीखी आवाज से दीपाजी सहित सभी उसकी ओर देखने लगे ।

“क्या कह रही हो निशि दीपा ने तेज आवाज में टोका।” शालिनी तो हर दृष्टि से इस घर की सोने सी बड़ी बहू ही है।”

हां मां मै भी यही  कह रही हूं।मैं जिस दिन से इस घर में आई हूं शालिनी भाभी को दौड़ते ही देखा है।पूरे घर में हर काम में चाहे घर के अंदर का हो या बाहर का ,घरवालों का हो या रिश्तेदारों का,दिन रात जुटी रहती है।इन्हें खुद के लिए आराम करने का समय भी नहीं मिल पाता है।घर का हर व्यक्ति पापा से लेकर माली,कुक,धोबी,सब्जी वाला,सुनार लोहार कपड़े से लेकर  बड़े भैया के ऑफिस से संबंधित कई काम भी भाभी ही करती

हैं।मां आपके भी महिला संगठन की पार्टी व्यवस्था यही करती हैं ।ये आपकी बड़ी बहू भी एक सामान्य व्यक्ति ही है।कोई रोबोट नहीं ।सोने जैसी बड़ी बहू का मुलम्मा संजोए रखने के लिए इन्होंने खुद को भुला ही दिया।सबको खुश रखने के लिए अपने बारे में भूल ही गईं।जिम्मेदारियों के बढ़ते बोझ तले अपनी कोख के शिशु की देखभाल इनके लिए दूभर हो गई… निशि की आवाज का तीखापन बढ़ गया था।

कोख के शिशु..!! क्या कह रही है निशि दीपाजी ने विस्मित होकर शालिनी की तरफ देखा तो उसने नजरें झुका लीं।

तुमने कभी बताया तक नहीं उन्होंने अधीर होकर शालिनी से पूछा तो जवाब निशि ने दिया था आपने भी तो  कभी पूछा नहीं ..आपने भी कभी ध्यान तक नहीं दिया..!आपके पास समय है??आक्रोशित निशि का हाथ पकड़ कर रोकना चाहा था शालिनी ने।दीपा जी हिल गईं थीं।

सही कह रही है निशि।शालिनी की व्यक्तिगत परेशानियों की तरफ मैने कभी ध्यान नहीं दिया।पूरे घर और घरवालों को सुबह से शाम तक एक टांग से संभालती अपनी मृदुल शांत बहू की चिंताओं और कष्टों से मैं अनभिज्ञ रही।इधर कई दिनों से उसके चेहरे पर उभर आई थकान और कमजोरी की तरफ मेरा ध्यान कभी नहीं गया।

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मेरी बड़ी बहू खरा सोना है,किसी काम को मना नहीं करती सबका ख्याल रखती है,अपने मायके तक को भूल गई है .. यही सब कहती उसको नित नई जिम्मेदारियां ओढ़ाती रहती हूं मैं और मेरी हर बात पर वह मुस्कुरा देती है।

अपनी समाज सेवा अपनी व्यस्तता में मैं घर में सबका ख्याल रखने वाली शालिनी का जरा सा भी ख्याल नहीं रख सकी।पिछली महिला मीटिंग के दिन भी शालिनी थकी थकी दिख रही थी लेकिन मैंने टाल दिया था।

दीपाजी का दिल अपराधबोध से व्याकुल हो गया।मेरी हर बात सुनने वाली मानने वाली बहू मुझसे इतनी दूर हो गई कि अपने दिल की बात मुझसे खुल कर नहीं कह सकी।मैं इतनी लापरवाह सास हूं!!अब ये छोटी बहू भी इसे सुनाने लगी!सास बहू के आत्मीय तालमेल की एकतरफा जिम्मेदारी बड़ी बहू ने ही संभाल ली है…उनकी आँखें छलक उठीं।

मां …मुझे माफ कर दीजिए ।इसीलिए  मैंने भाभी से चिढ़ने का नाटक किया था ऐसी खरी खोटी सुनाई थी ताकि आपके सौंपे  हर काम से उन्हें छूट मिल जाए और वह थोड़ा आराम कर सकें निशि ने पास आकर विस्फोट किया तो दीपा जी चौक गईं।

जैसे अंतर के पट खुल गए हों।

मैं तो तुझे भी गलत समझ बैठी निशि ।तू नई होकर भी जिस बात को समझ गई वो मैं कैसे नहीं समझ पाई!मेरी बड़ी बहू तो सोने सी थी ही छोटी बहू भी सोने से कम नहीं है… लेकिन मैं ही अच्छी सास बनने की राह से भटक गई..!तालमेल मिलाते मिलाते बेताल हो गई दीपा जी की आवाज अवरुद्ध हो गई।

नहीं मां आपके ही कारण तो मैं सोने सी बन पाई शालिनी ने तुरंत पास आकर उनके गले में हाथ डाल दिया।

हम दोनों सोने सी और हमारी मां हीरे सी हैं निशि ने भी पास आ कर बहुत लाड से कहा।

हीरे को तराशने वाली हमारी दोनों बहुएं किसी जौहरी से कम नहीं है.  अबकी  पिता जी ने  जोर से कहा तो सारा घर हंस पड़ा..।

लतिका श्रीवास्तव

बड़ी बहू#साप्ताहिक शब्द प्रतियोगिता

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