सम्मान की चमक – भगवती : Moral Stories in Hindi

सुष्मिता आज बहुत खुश थी। आज रिशी के साथ उसकी सगाई होने वाली थी। रिशी एक संपन्न परिवार का

सुदर्शन युवक था। उसके भावी ससुराल में सास ससुर के अलावा रिशी की एक छोटी बहन रेखा थी।

सगाई संपन्न हो चुकी थी। तीन माह बाद विवाह की तारीख तय हुई थी। इन तीन महीनों में रिशी और सुष्मिता

घरवालों की मर्ज़ी से मिलते रहें और इस दौरान रिशी का व्यवहार सुष्मिता के प्रति काफी सौम्य ही रहा और

आखिरकार वह दिन भी आ गया जब सुष्मिता रिशी की दुल्हन बनकर उसके घर आ गई। सारी रस्में की जा रहीं

थीं तभी मुंह दिखाई की रस्म के दौरान रिशी के रिश्तेदारों ने सुष्मिता का दहेज़ दिखाने की बात उसकी मां से

कही।

“कुछ खास लाई हो तो आप सबको दिखाऊं भी, अब वो जो उस कोने में रखा है वही है जो है। हमारा तो अपना

बेटा ही डांस प्रोग्राम में इसे देखकर ऐसा लट्टू हुआ कि हमें सीधे इसके घर पार्सल कर दिया कि इसके मां बाप

से इसका हाथ मांग लो।”

बड़ी बहू – विनय मोहन शर्मा : Moral Stories in Hindi

यह सुनकर घूंघट के भीतर सुष्मिता के आंसू उसके आंचल में ही समा गए और खोखली मुस्कान फिर से होंठों

पर सज गई।

एक माह बीतते ना बीतते सुष्मिता ने महसूस किया कि उसकी सास जब तब बातों ही बातों में उसके मायके

वालों को नीचा दिखाती रहती है और रिशी कुछ कहता ही नहीं है।

“तुम मम्मी जी से कुछ कहते क्यूं नहीं… तुम्हारे सामने वो कितनी बार मेरे घरवालों के लिए ऊंचा नीचा

बोलती रहतीं हैं… अगर आप लोगों को इतनी ही दहेज की दरकार थी तो हम जैसे मिडल क्लास लोगों से

रिश्ता क्यूं जोड़ा…?… और तुमने तो रिशी शादी से पहली हुईं इतनी मुलाकातों में भी कभी कुछ जाहिर नहीं

किया…!… ऐसा क्यूं किया तुमने..?”

“ऐसा क्या कह दिया तुम्हारे घरवालों को… चलो माना हमने कुछ नहीं मांगा पर क्या तुम्हारे पापा को समाज

की रिवायतें नहीं पता..?.. क्या उन्हें अच्छा खासा दहेज़ नहीं देना चाहिए था..?…तुम मुझे क्या सुना रही हो…

बल्कि सुनता तो मैं हूं तुम्हारी वजह से कि मखमल में टाट का पैबंद लगा दिया मैंने..!”

 ये कैसा रिश्ता है ? – स्मिता सिंह चौहान

ना जाने कितनी ऊंचाई से गिरी सुष्मिता रिशी के मुंह से उसके दिलो दिमाग में उपजा ये घटिया सच सुनकर।

“तो निकाल दो ये टाट का पैबंद और कोई नई मखमली जोड़े वाली को अपनी मां के समक्ष प्रस्तुत करो ताकि तब

तुम्हारे कानों में मेरी वजह से ताने नहीं बल्कि किसी दूसरी की वजह से तारीफें सुनने को मिलें..?”

सुष्मिता ने बहुत बड़ा कदम उठा लिया था। उसने रातों रात रिशी का घर छोड़ दिया।

“अरे, ऐसे कैसे घर छोड़ कर आ गई, लड़की वालों को ये सब सुनना ही पड़ता है सारी ज़िंदगी, इसमें नई बात

क्या है..?”

“अरे, पापा कैसी बातें कर रहें हैं आप, यहां दुनिया चांद सूरज पर पहुंच गई है और आप अभी भी ये

लड़का लड़की में फर्क कर रहें हैं..!” सुष्मिता गुस्से से बोली।

 

“चांद सूरज पर जाने से धरती के मसले हल नहीं होने वाले, सास बहू में तो थोड़ी तनातनी रहती ही है, कल को तू

भी तो सास बनेगी…” सुष्मिता की मां उसे अपने ही तरीके से समझाती हुई बोली।

“हां तो आप लोगों को क्या लगता है कि जैसे मैं यहां अपमानित हो रहीं हूं तो इसका बदला मैं अपनी बहू को

जलील करके लूंगी और क्या ये जरूरी हैं कि मुझे बेटा ही हो..!… क्या मैं बेटी की मां की मां बनने का गौरव

नहीं पा सकती…!”

“तू तो दुनिया जहान से ही अनोखी बातें कर रही है… ठीक है जैसी तेरी सोच, पर इस वक्त उन लोगों से

कुछ सुन लेगी तो तेरी नाक नीची नहीं हो जाएगी…”

रिश्तों के रूप – रचना कंडवाल

सुष्मिता के माता पिता अपनी ही बातों पर अड़े हुए थे।

“जब मैंने कुछ किया ही नहीं तो मैं क्यों बर्दाश्त करूं…. अगर रिशी के दिल में मेरी, मेरे परिवार की कोई

इज़्ज़त है तो खुद मुझे लेने आएगा।“ सुष्मिता ने जैसे फ़ैसला सुना दिया था।

तीन माह बाद रिशी आया। पता चला रेखा के लिए लड़का देखा गया है और सुष्मिता के इस तरह यहां रहने

से घर की बदनामी हो सकती है।

“उफ्फ, रिशी आज भी तुम मेरे लिए नहीं आए, आज भी तुम्हें सिर्फ अपने मतलब निकालना है, सीधा क्यूं

नहीं कहते कि रेखा की शादी हो जाने दो फिर चाहे तो दोबारा मायके में पड़ी रहना”

सुष्मिता अत्यधिक क्रोध में थी।

“तुम्हारी वजह से अगर मेरी बहन की शादी में कभी कोई अड़चन आई तो देख लेना, मुझसे बुरा कोई ना

होगा,.”रिशी बेशर्मी से बोला।

“मेरी नज़रों में आज तुमसे बुरा कोई है भी नहीं, तुम्हारे घर की बेटी बेटी है, क्या मैं किसी की बेटी नहीं, नहीं

रिशी अभी तक मैं दुविधा में थी पर अब अब अपने फैसले पर अडिग हूं, मैं कभी तुम्हारे साथ नहीं जाउंगी

क्योंकि तुम जैसे स्वार्थी, लालची और मतलबपरस्त लोगों से मैं कोई रिश्ता रखना नहीं चाहती। अब अभी

आधी हक़ीक़त आधा फ़साना- सब तुम्हारे लिए ही है  – कंचन शुक्ला

इसी वक्त यहां से चले जाओ।“

अपने झूठे अहम और गुस्से से भरा हुआ रिशी वहां से पैर पटकता हुआ चला गया पर उसके पीछे खड़ी सुष्मिता

के चेहरे पर आत्मस्वाभिमान और खुद्दारी की चमक कई गुना बढ़ चुकी थी।

 

भगवती

# एक फैसला आत्मसम्मान के लिए

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