आज सुमित्रा के देवर राहुल का तिलक समारोह है। हमारी कहानी की पात्र बड़ी बहू यानि सुमित्रा को पल भर के लिए भी फुरसत नहीं थी। तिलक समारोह का कार्यक्रम निखिल माथुर जी ने अपने ही घर पर रखा था। अरे बहू! कहां हो, देखो अभी तक नाश्ता भी तैयार नहीं है। लड़की और उसके परिवार वाले कभी भी आ सकते हैं।
यह आवाज उसकी सास यानी ममता जी की थी। अभी यह सब चल रहा था कि घर के बाहर एक गाड़ी के रुकने की आवाज सुनाई दी। घर के नौकर रामू ने मेहमानों को आदर सहित लाकर एक बड़े से हॉल में बैठा दिया। इसी हॉल में आज का समारोह रखा गया था। सुमित्रा किसी काम से हॉल की तरफ आ रही थी कि उसकी नज़र लड़की पर पड़ गई ।
वह चौंक गई कि यह तो कॉलेज में साथ पढ़ने वाली कविता है, जो पढ़ाई की तरफ कम ध्यान देती थी और अपने रूप सौन्दर्य से कॉलेज में पढ़ने वाले धनाढ्य लड़कों को फांसती थी। पढ़ाई में ध्यान नहीं देने के कारण ही वह पढ़ाई में हमेशा से ही पीछे रहती थी। कॉलेज से उसे निकाल दिया गया था।
सुमित्रा ऐसी आवारा और बदचलन लड़की से अपने परिवार से रिश्ता तोड़ना चाहती थी लेकिन किस उपाय से। वह ऐसा उपाय सोच रही थी कि जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। उसे अचानक याद आया कि उसके बुआ का लड़का उमेश भी उसी की कॉलेज में ही पढ़ता था और उससे सीनियर भी था, को भी कविता ने अपने मोहजाल में फांस लिया था
और उसके साथ फोटो भी लिए थे। उमेश भी इस समारोह में शामिल होने आया था कि सुमित्रा ने उसे बुलाया और कहा कि कविता से राहुल का तिलक किया जा रहा है। इसे कैसे रोका जाए तो उमेश ने उसके कान में कुछ फुसफुसाया और जब सभी मेहमानों ने नाश्ता कर लिया और अंगूठी पहनाने की रस्म अदा की जा रही थी कि उमेश भी हॉल में पहुंच गया
और एक तरफ़ जाकर सोफे पर बैठ गया। जैसे ही राहुल कविता की अंगुली में अंगूठी पहनाने लगा कि उमेश ने रोक दिया और कहा कि कविता से तो उसका प्रेम चल रहा है । उसने अपने मोबाइल में वो सभी फोटो दिखाए जिसमे कविता और उमेश एक दूसरे की बाहों में थे।
यह सब देख कर निखिल जी ने कार्यक्रम को रोक दिया और लड़की वालों को फटकार लगाई कि तुम ऐसी आवारा और बदचलन लड़की को इस घर की बहु बनाना चाहते थे। कविता और उसके परिवार वाले तुरन्त अपना सा मुंह लेकर वहां से निकल गए।
निखिल माथुर जी को जब यह पता चला कि परिवार को बदनामी से बचाने में सुमित्रा और उमेश दोनों का हाथ है तो उन्होंने दोनों की ही प्रशंसा की। आज सुमित्रा यानी बड़ी बहू की समझदारी से परिवार बदनामी से बच गया था।
लेखक : विनय मोहन शर्मा