अरे दीपिका… हमारा सामान समेटा या नहीं? पूरा कमरा बिखरा पड़ा है, पता नहीं यह क्या कर रही है? आशा जी ने चिल्लाते हुए कहा.. तब तक दीपिका हड़बड़ाती हुई रसोई से आई और अपना पसीना पहुंचते हुए कहा, क्या हुआ मम्मी जी रसोई का सारा काम अब निपटा है, अभी जाकर आपका सामान लगा देती हूं, यह कहकर वह जाने को हुई ही थी कि फिर वह रुक गई और आशा जी से कहा, मम्मी जी रुचि भी तो यही बैठी है और वह कोई काम भी नहीं कर रही, फिर आप उससे भी तो कह सकती थी ना, आपका सामान जमाने? मैं तो रसोई में खाना बना रही थी
आशा जी दीपिका के इस बात पर तुनक कर कहती है, अच्छा अब तुम बताओगी कि कौन क्या काम करेगा? इसके आने से पहले तुम्हारा ही यह सब काम था ना? देख नहीं रही इसको मैं अपने महाकुंभ की यात्रा का बता रही हूं, जैसे ही देखा कि अब देवरानी आ गई है तो जेठानी राज करने की सोच रही है, पर एक बात कान खोलकर सुन लो, जैसा पहले से होता आया है वैसा ही होगा, खबरदार जो रुचि पर कोई हुकुम चलाया तो, जाओ अब अपना काम करो और जो गंगाजल में लेकर आई हूं उसे पूजा घर में रख देना। दीपिका फिर वहां से चली जाती है उसके जाते ही रुचि आशा जी से कहती है, मम्मी जी! सही ही तो कह रही थी दीदी, अगर मैं उनका हाथ बटा दूंगी तो उनकी मदद भी हो जाएगी और सारे काम भी जल्दी निपट जाएंगे, पर मुझे यह समझ नहीं आता कि आप मुझे उनकी मदद करने से हमेशा क्यों रोकती हो? जबकि इन दिनों जब आप महाकुंभ गई थी, हम दोनों साथ मिलकर ही सारे काम करते थे, दीदी बड़ी ही अच्छी है, मुझे ना जाने कितनी ही व्यंजन बनाना सिखाया।
आशा जी: बस इसलिए ही तुम्हें कहती हूं उससे थोड़ा बचकर रहना, वह चिकनी चुपड़ी बातों में बड़ी तेज़ है, प्यारी-प्यारी बातें बोलकर तुमसे हर काम करवा लेगी और पूरी वाह वाही अकेले ही लूट लेगी, 8 साल हो गए उसकी शादी को, मुझसे बेहतर उसे और कौन जानेगा भला?
रुचि: अच्छा, दीदी ऐसी है क्या? पर उनकी बातों से नहीं लगा! आशा जी: अरे जो तुम एक बार सारे काम सीख जाओगी, देखना कैसे सब कुछ तुम पर छोड़ वह आराम फरमाएगी, इसलिए पहले से ही उससे सावधान रहना, बाकी तुम्हारी मर्जी, अब तो रुचि भी सोचने लगी की मम्मी जी कह रही है तो शायद सही सही ही होगा, और वह दीपिका से चिढ़ने लगी, एक दिन की बात है छुट्टी का दिन था और सभी घर पर थे, तो दोपहर में खाने में बिरयानी की फरमाइश हो रही थी। इतने में रोहन (रुचि का पति) अपने घर वालों से कहता है, अगर प्लानिंग बिरयानी की हो रही है तो यह जिम्मेदारी रुचि को दिया जाए, बड़ी ही अच्छी बिरयानी बनाती है भाभी! आपकी आज रसोई से छुट्टी, क्यों रुचि?
रुचि: अरे ऐसे कैसे छुट्टी? दीदी मेरी मदद करेगी ना! मैं अकेले कैसे करूंगी इतना काम?
आशा जी: हां सही ही तो कह रही है रुचि! दीपिका करेगी उसकी मदद,
रोहन: पर मां हर रोज़ तो भाभी अकेले ही सबका खाना बनाती है और वह भी कई सारे, फिर रुचि क्यों नहीं? क्यों रुचि सही कहा ना मैंने? जैसे ही सभी बातें करने में व्यस्त हो गए, आशा जी फुसफुसाकर रुचि के कानों में कहती है, देखा यह सारा काम अकेले करती है कैसे सबको बता कर रखा है, अब समझ आया इसका खेल? रुचि और भी खींझ जाती है और वह तमतमाती हुई रसोई में चली जाती है और गुस्से में अपना काम शुरू कर देती है। तभी वहां दीपिका भी आ जाती है, जिसे देख रुचि और भी ज्यादा गुस्सा हो जाती है। मन तो उसका कर रहा था कि वह उससे लड़ जाए, पर दीपिका ने उसे सामने से कभी कुछ कहा भी तो नहीं, लड़े भी तो कि बिना पर, फिर दीपिका कहती है, सबके लिए चाय बनाने आई हूं, तू भी पीएगी क्या?
रुचि: नहीं आप ही पियो! मुझे अभी बहुत काम है।
दीपिका: तू पागल है? तुझे लगा भी कैसे कि मैं तुझे सारा काम अकेले करने दूंगी? हां रोहन को तेरे हाथ की ही बिरयानी खानी है इसलिए बनाएगी तू ही, बस मुझे उसकी तैयारी बता दे, मैं सारा फटाफट कर देती हूं, रुचि हैरानी से बस यही सोचती है, यह सच में मेरी मदद के लिए आई है या इसमें भी कोई चाल है? कहीं यह बस मदद करने के बहाने पूरा श्रेय तो खुद नहीं लेना चाहती ना? एक काम करती हूं जब तक यह चाय बना रही है मैं मम्मी जी से पूछ कर आती हूं, यह कहकर जैसे ही रुचि आशा जी के कमरे में जाती है, तो उसके पर दरवाजे पर ही रुक जाते हैं, क्योंकि आशा जी फोन पर अपनी बेटी से कह रही होती है की बड़ी को तो काबू में नहीं कर सकी, इसलिए छोटी को बहला रही हूं, ऐसा भड़काया है के दोनों में कभी कोई मेल नहीं हो पाएगा और तभी मेरा राज चल पाएगा, वरना आजकल तो बहुएं एकजुट होकर सास का जीना ही मुहाल कर देती है। रुचि अचंभित वहां से रसोई की ओर गई और दीपिका के गले लग गई और कहने लगी माफ कर दो दीदी!
दीपिका: लगता है मम्मी जी के बारे में सब पता चल गया!
रुचि हैरान होकर: मतलब आपको पता था कि मम्मी जी मुझे आपके खिलाफ भड़का रही है?
दीपिका हंसते हुए: हां और साथ में यह भी पता था यह ज्यादा दिनों तक चलेगा भी नहीं!
रुचि: पर दीदी! आप मम्मी जी को कुछ कहेंगी नहीं?
दीपिका: सच कहूं मैं कभी इसके बारे में ज्यादा सोचा ही नहीं। उन्हें यह करके खुशी मिलती है तो मैंने भी सोचा, चलो यही सही, पर अब लगता है गलत का साथ देकर हम भी गलती ही करते हैं। पर अब बारी है मम्मी जी को सबक सिखाने की, अगले दिन सुबह-सुबह सब की नींद दोनों भाइयों की लड़ाई से खुलती है, जहां मनोज रोहन से कहता है, तुम्हारी पत्नी दिन भर बैठी बस आराम करती रहती है, क्या वह तुम्हारी भाभी का हाथ नहीं बटा सकती? वहीं रोहन कहता है, भाभी भी तो बस रुचि से जलती है, रुचि कुछ भी करें उसे अपना काम बती कर सारा श्रेय खुद ले लेती है..
मनोज: फिर ठीक है अब तो हमें अलग हो जाना चाहिए, फिर करेंगे सब अपना अपना काम। मां आप बताइए आप किसके साथ रहेंगी?
आशा जी: अरे तुम दोनों को अचानक हो क्या गया है? यह तुम्हारी पत्नियां दोनों भाइयों को अलग कर रही है समझ नहीं आ रहा क्या तुम दोनों को? क्यों दीपिका, रुचि घर की बातों को पति की कानों में डालकर ज़हर घोलना जरूरी था? रुचि तो बस रोए जा रही थी, पर दीपिका कहती है, क्यों मम्मी जी ज़हर की क्या बात है? यही तो सच्चाई है ना? रुचि कोई काम करती है क्या?
आशा जी: अरे वह तो मेरे कहने पर तुम्हारा साथ नहीं देती थी, वरना ऐसी कोई बात नहीं,
दीपिका: आपके कहने पर? पर आप ऐसा क्यों कहती है मम्मी जी?
आशा जी: ताकि तुम दोनों के बीच गलतफहमी पैदा हो और तुम दोनों कभी एकजुट ना हो सको! क्योंकि अक्सर मैंने देखा है जिस घर में देवरानी जेठानी एकजुट हो जाती है, सास का जीना ही दूभर कर देती है।
दीपिका: पर आपने यह नहीं सोचा कि इसका असर इसके बिलकुल उलटा भी तो हो सकता है। इसका असर आपके बेटों के रिस्ते पर भी पड़ेगा, अभी तो यह मेरे कहने पर नाटक कर रहे थे, पर ऐसा सच में भी तो हो सकता था ना? आपने बस अपने बारे में सोचा, मतलब घर टूट जाए वह चलेगा?
रूचि: दीदी! यह लोग सच में नाटक कर रहे हैं ना? मैं तो डर ही गई थी। कम से कम मुझे तो बता देती।
दीपिका: नहीं रुचि, घर की बड़ी बहू होने के नाते अब तक अपनी जिम्मेदारियां को बखूबी निभाया है, तो सोचा इस जिम्मेदारी को भी मैं ही निभा लूं।
आशा जी बस चुपचाप सिर झुकाए खड़ी थी, क्योंकि वह आज क्या ही कहती और सभी चुपचाप थे, तभी रोहन कहता है चलो लगता है हमारी प्यारी माता जी सब समझ चुकी है, जो नहीं समझी तो चलो भैया, अलग घर देख लिया जाए! क्यों मां क्या कहती हो? सभी मौजूद वहां हंस पड़े और आशा जी भी आंखों में आंसू लिए रोहन के कान खींचकर कहती है, खबरदार जो दोबारा ऐसा कहा तो?
दोस्तों इस कहानी का अर्थ यह है, कि बुजुर्ग घर में सभी को जोड़ने का भी काम करते हैं और तोड़ने का भी। वह यह नहीं सोचते कि जो हमारे साथ हुआ है वह मैं अपनी अगली पीढ़ी को ना दूं, बल्कि कभी-कभी वह ऐसा सोचते हैं कि जो हमारे साथ हुआ, वही परंपरा है, जो की बिल्कुल गलत है और इसी वजह से मनमुटाव दिनों दिन गृहस्तियों में बढ़ती जा रही है।
धन्यवाद
रोनिता कुंडु
#बड़ी बहू