बेटी- बहू में कोई फ़र्क नहीं –  विभा गुप्ता  : Moral Stories in Hindi

 ” डाॅक्टर साहब…अब मेरी बहू कैसी है? डिलीवरी में कितना समय है…।” जानकी जी घबराते हुए पूछने लगीं तो डाॅक्टर साहिबा बोलीं,” बहन जी..मैंने तो आपको पहले ही बताया था कि केस काॅम्प्लीकेकेटड है..।हम माँ और बच्चे, दोनों को बचाने की कोशिश करेंगे..फिर भी अगर एक को ही बचाना पड़े तो..।आप बता दीजिये कि आप लोगों को माँ चाहिये या बच्चा?” 

   ” बच्चा चाहिये..और क्या।बहू तो दूसरी आ जायेगी..।” तपाक-से जानकी जी बोलीं तो पास खड़ा उनका बेटा रवि अवाक् रह गया।बोला,” ये आप क्या कह रहीं हैं…#माँ, मेरी पत्नी की जगह अगर आपकी बेटी होती तो..तब भी क्या आप यही बात कहतीं..।” उसका गला भर आया।

  ” मेरी बेटी की तुलना अपनी पत्नी से ना कर..।” लगभग चीखते हुए जानकी जी बोलीं तब डाॅक्टर साहिबा बोलीं,” शांत रहिये..ये अस्पताल है…आप लोग इत्मीनान से सोच कर एक घंटे में हमें बता दीजिये।” फिर रवि को दवा की पर्ची थमाती हुई ओटी(operation theatre)में चली गईं।

        जानकी जी के पति राधेश्याम एक सरकारी दफ़्तर में नौकरी करते थे।उन्होंने अपनी आमदनी से बेटी रश्मि और बेटे रवि को अच्छी शिक्षा दिलवाई और पत्नी की इच्छानुरूप दो मंजिला मकान भी बनवा लिया था।रश्मि की पढ़ाई पूरी होते ही उचित घर-वर देखकर उन्होंने उसका विवाह कर दिया।

रवि मुंबई के एक काॅलेज़ से इंजीनियर की डिग्री लेकर वहीं नौकरी भी करने लगा।छह-सात महीने बाद जब वो छुट्टी लेकर घर आया तो जानकी जी उसे देखकर रोने लगी।उसका हाथ पकड़कर बोलीं,” अब मत जाना..पूरा घर काट खाने को दौड़ता है..तेरे पिता भी नौकरी और शरीर से रिटायर हो रहें हैं..कल हमें कुछ हो गया तो पानी कौन…।” रवि ने उनके मुँह पर अपना हाथ रख दिया और उनके आँसू पोंछते हुए बोला,” नहीं जाऊँगा माँ..।” उसने नौकरी छोड़ दी और मुंबई जाकर अपना सामान ले आया।कुछ दिनों के बाद उसे अपने शहर के ही एक कंपनी में नौकरी मिल गई।

       अब जानकी जी बेटे के लिये बहू तलाशने लगीं जो खूबसूरत और सरल स्वभाव की हो।साथ ही, दहेज़ भी लेकर आये।इसी बीच रवि की मुलाकात कंचन से होती है जो उसके मित्र की कज़िन थी।कंचन की सादगी, सरलता और स्पष्टवादिता ने एक ही नज़र में उसके दिल में जगह बना ली थी।फिर बातें-मुलाकातें होने लगी।एक दिन मौका देखकर रवि ने अपने मन की बात जानकी जी को बता दी।

    जानकी जी को कंचन पसंद आ गई लेकिन दहेज़ की डिमांड पर उसकी माँ बोली कि पति की असमय मृत्यु होने के कारण हम आपको अपनी शिक्षित-संस्कारी बेटी ही दे पायेंगे।जानकी जी को ये मंज़ूर न हुआ।तब राधेश्याम जी बोले,” जानकी..हाथ के मैल के लिये क्यों बेटे का दिल दुखा रही हो..ईश्वर का दिया सब कुछ तो है

हमारे पास..लड़की तो स्वयं ही लक्ष्मी है।” बड़ी मुश्किल से जानकी जी रवि और कंचन के विवाह के लिये तैयार हुईं लेकिन मन में गाँठ तो थी ही जो वो गाहे-बेगाहे बहू पर निकालती रहती थी।कंचन अपनी तरफ़ से सास के दिल में जगह बनाने की पूरी कोशिश करती..राधेश्याम भी पत्नी को समझाते कि दिन भर तो बहू घर का काम करने और तुम्हारे सेवा में लगी रहती है।फिर भी तुम उसे लेकर घर में बेवजह की अशांति क्यों किये रहती हो?लेकिन वो उनकी बात को अनसुना कर देतीं।

      कंचन को पहली संतान बेटी हुई तो तब तो जानकी जी को एक और बहाना मिल गया।अब वो उसे पोता न देने का ताना देतीं।कंचन दूसरी बार गर्भवती हुई तब डाॅक्टर ने उसे आराम करने को कहा जो वो नहीं कर रही थी।इसलिये सातवें माह में ही डाॅक्टर ने रवि को बता दिया था कि डिलीवरी के समय परेशानी हो सकती है।अब जब समय आया और जानकी जी ने बच्चे को ही बचाने की बात कही तो रवि को बहुत दुख हुआ।

       डाॅक्टर के जाते ही जानकी जी पैर पटकती हुई वेटिंग हाॅल में चली गईं और पति को देखकर बोलीं,” देखिये तो..मेरी बेटी की तुलना अपनी पत्नी से कर रहा है।” 

   ” तो क्या गलत कहा।तुम बीमार होती थी तब उसकी पत्नी ही तुम्हारे सिरहाने बैठी रहती थी।तुम्हारे व्रत-त्योहारों का ख्याल वो ही रखती थी।तुम्हारे पैरों में लहसुन तेल की मालिश करना उसका नियम था और आज जब उसके जीवन बचाने का निर्णय लेना था तो तुमने उसकी मृत्यु को चुन लिया।क्षण भर में उसके विश्वास, उसकी आस्था और सेवा पर तुमने पानी फेर दिया…उसे पराया कर दिया।

भूल गई, कुछ साल पहले रश्मि के साथ भी यही स्थिति हुई थी, उसकी सास ने भी अपनी बहू की जगह बच्चे को चुना था तब तुम्हें कितना गुस्सा आया था।जब तुम्हारे दामाद ने अपनी माँ से कहा कि # माँ, मेरी पत्नी की जगह अगर आपकी बेटी होती तो..।तब तो तुमने दामाद की प्रशंसा की थी।

अपनी समधिन को बेटी-बहू में कोई फ़र्क नहीं ‘ पर भाषण दिया था तो अब क्या हुआ? बेटे की बात क्यों ज़हर लग रही है।आखिर कंचन भी तो किसी की बेटी है।उसकी मरती हुई माँ को तुमने कहा था कि कंचन मेरी बेटी बनकर रहेगी तो क्या वो एक दिखावा था।” राधेश्याम की एक-एक शब्द जानकी जी के दिल में उतरते चले गये और उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी।तभी रवि आया और आँखें नीची करके बोला,” मुझे माफ़ कर दीजिये माँ..मैंने आपका निर्णय डाॅक्टर साहिबा को…।” 

   ” नहीं रवि…।” कहते हुए जानकी जी दौड़ते हुए डाॅक्टर साहिबा के चेंबर में गई जो ओटी में जाने की तैयारी कर रही थीं।उन्होंने उनका हाथ पकड़ लिया,” कंचन को बचा लीजिये..वो मेरी बहू है और बेटी भी..प्लीज़…।” डाॅक्टर साहिबा उन्हें आश्वासन देकर चली गईं।

      करीब आधे घंटे के बाद नर्स ने आकर खुशखबरी सुनाई,” बधाई हो..लड़का हुआ है।भगवान की कृपा से माँ और बच्चे दोनों ही स्वस्थ हैं।” सुनकर जानकी जी की आँखों से खुशी के आँसू निकल पड़े।उन्होंने मन ही मन देवी माँ को धन्यवाद दिया।पोते को आशीर्वाद देकर वो कंचन के माथे को स्नेह से सहलाते हुए बोलीं,” बहू..हो सके तो मुझे माफ़ कर देना।तुमने मेरी इच्छा पूरी की है..तुम्हारे भी सारे अरमान पूरे होंगे…।” 

   ” और मेरे..सारे आशीर्वाद भाभी को देंगी..मुझे नहीं..।” रश्मि के इतना कहते ही सभी हँसने लगे।अपने परिवार को खुश देखकर कंचन की आँखें भी खुशी-से छलक पड़ीं।  

                            विभा गुप्ता 

                        स्वरचित, बैंगलुरु 

# माँ मेरी पत्नी की जगह अगर आपकी बेटी होती तो..

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