बड़ी बहू – विनीता महक गोण्डवी : Moral Stories in Hindi

मालती देवी के तीन पुत्र और दो पुत्रियां थी। बड़ा बेटा पढ़ने में बहुत अच्छा था। वह एमबीबीएस की तैयारी कर रहा था। गांव समाज के लोग शादी का दबाव डाल रहे थे और दीपक अभी शादी के लिए तैयार नहीं था। मालती देवी का स्वास्थ्य भी खराब चल रहा था। सभी बच्चे शादी के योग्य थे ।

दीपक ने मां की तबीयत को देखते हुए कहा……. मां मझले भाई शिव की शादी कर दो ।आपको आराम मिल जाएगा। मालती देवी ने दीपक से कहा… लोग क्या कहेंगे बड़े बेटे के रहते हुए मझले बेटे की शादी कर रहे हैं। बहुत सोचने के बाद मालती देवी और उनके पति ने शिव की शादी का निर्णय लिया। शिव की पत्नी कामकाज में थोड़ी सुस्त थी। किसी तरह से घर परिवार चल रहा था। दोनों बेटियां कभी-कभी आती इनकी शादी पहले ही हो चुकी थी तो मालती देवी को कुछ आराम मिल जाता।

 एक साल बाद दीपक का एमबीबीएस में चयन हो गया। सभी फिर दीपक की शादी का दबाव डाल रहे थे। एमबीबीएस के दो साल बाद मालती देवी और उनके पति को एक रिश्ता पसंद आया लड़की शिक्षिका थी परन्तु  शहर की थी और मालती देवी का परिवार ठेठ गांव में रहता था परंतु जो किस्मत में लिखा होता है वही होता दीपक की शादी उसी लड़की से तय हो गई उसका नाम गीतांजलि था। मालती देवी के पति व्यापार के साथ राजनीतिक में भी सक्रिय थे। उनको यह रिश्ता अच्छा लगा बात आगे बढ़ी और विवाह की शुभ घड़ी भी आ गई।

पूरा घर हंसी टिटौली से भरा था। सब तैयारी में लगे हुए थे। उस गांव से पहली बारात शहर जा रही थी इसलिए छोटे से बड़े तक सभी तैयारी में जुटे हुए थे। बड़ी धूमधाम से बारात रवाना होकर लखनऊ जैसे बड़े शहर में पहुंची ।बाराती बहुत खुश थे ।आतिशबाजी और और ढोल नगाड़ों  के साथ सभी बाराती नाच रहे थे। जयमाला की खूबसूरत घड़ी भी आ गई। जब वरमाला लेकर दुल्हन के रूप में होले होले  गीतांजलि मंच की ओर बढ़ रही थी और दीपक मधुर मुस्कान के साथ उसका स्वागत कर रहा था। जोड़ी को देखकर सभी हर्षित थे ।

सभी बहुत प्रशंसा कर रहे थे। विवाह की सभी रस्में में संपन्न हुई और विदाई की पावन बेला भी आ गई। दीपक संग गीतांजलि पीहर से ससुराल  चल पड़ी सभी अश्रु पूरित नैनों से गीतांजलि को सुखी जीवन का आशीर्वाद दे विदा कर रहे थे। कई घंटे की यात्रा के बाद गीतांजलि ससुराल पहुंची। चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था। घर में कुछ दीपक जल रहे थे। गीतांजलि की ससुराल ठेठ गांव में थी जहां अभी तक बिजली नहीं थी। गांव की सभी महिलाएं इकट्ठा होकर के बहू के स्वागत में लोकगीत गा रही थी। मालती देवी भी  निहारन करने को आतुर थी।

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अपनी बड़ी बहू की। गांव के बच्चे मोटर कार देखकर खुश हो रहे थे। गीतांजलि के पिता ने खूब दान दहेज दिया था ।इसकी चर्चा कई गांव में थी। बड़ी बहू की शिक्षा नौकरी और दान दहेज की। इसलिए मालती देवी के घर बहुत भीड़ थी उनकी बड़ी बहू को देखने के लिए। सब बहुत प्रशंसा कर रहे थे मालती देवी बहुत भाग्यशाली है जो नौकरी वाली बहू पाई है। मालती देवी ने बहू की निहारन कीऔर आरती उतार के गृह प्रवेश कराया।

   गीतांजलि जितने दिन ससुराल रही सभी की खूब सेवा की। सभी उसकी बहुत प्रशंसा करते नहीं अघाते परंतु मझली बहू मन ही मन बड़ी बहू से चिढ़ती रहती। कोई न कोई बहाना बना उसे नीचे दिखाने की जुगाड़ लगाती रहती। दीपक शादी के कुछ दिन बाद कॉलेज चला गया और गीतांजलि भी  चौथी में मायके आ गई ।गीतांजलि अपनी नौकरी में व्यस्त हो। 

    एक साल बाद  गीतांजलि ट्रांसफर ले के ससुराल आ गई ।अभी दीपक की पढ़ाई चल रही थी। गीतांजलि सुबह से शाम तक घर के काम के साथ विद्यालय भी जाती ।मझली बहू बस उसके काम में नुक्स निकालकर ताने देती और रोब से कहती….. मैं तो पहले आई थी। दीपक बीच बीच में कॉलेज से छुट्टी लेकर आता ।कुछ महीने बाद ही गीतांजलि गर्भवती हो गई। गीतांजलि के गर्भवती होने से  पूरा घर खुशियों से भर गया। मझली बहू को बहुत खराब लगा क्योंकि चार वर्ष हो गए थे अभी तक उसकी गोद सूनी थी

पर  गीतांजलि उसे आश्वासन देती है सब ठीक हो जाएगा । मझली बहू उसके साथ काम में कोई हाथ नहीं बटाती और परेशान करने के तरीके खोजती रहती।एक दिन उसने अरहर की दाल में बाकला की दाल मिला दी और बड़ी बहू के हाथ का खाना बना उठाकर फेंक दिया और ससुर साहब से रो रो के शिकायत करने लगी….. ये जानबूझकर ऐसा करती है और गीतांजलि की बात सुने बिना ही ससुर साहब ने गीतांजलि को डांट दिया। गीतांजलि मन ही मन बहुत दुखी हो गई अपनी बात किससे कहती। गीतांजलि मझली बहू

सीमा से बात करने की कोशिश करती, पर सीमा उससे बात नहीं करती और झूठी झूठी शिकायत कभी सास से कभी ससुर साहब से करती।जिससे गीतांजलि को डांट पड़े ।गीतांजलि अंदर ही अंदर घुटने लगी ।जिसका प्रभाव उसके गर्भ पर पड़ा और सात माह का गर्भ गर्भपात में बदल गया।गीतांजलि की हालत पागलों जैसी हो गई। वह अपने पेट पर हाथ रखकर कहती देखो मेरा बच्चा है। दूसरे दिन दीपक भी  आया दीपक के गले लग के गीतांजलि बहुत रोई ।देखो सब कह रहे हैं…. मेरा बच्चा मर गया ।दीपक ने बड़ी मुश्किल से गीतांजलि को संभाला।

गीतांजलि की हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही थी। वह घर का काम नहीं कर पा रही थी।जब मझली बहू को काम करना पड़ा तो मझली बहू ने भी काम करने से मना कर दिया और अपने भाई को बुलाकर मायके चली गई। गीतांजलि सास के साथ मिलकर कुछ काम करती तुरंत बीमार पड़ जाती कमजोरी के कारण। मझली बहू ने  मायके से संदेशा भेजा …कि जब तक बड़ी बहू वहां रहेगी। तब तक हम नहीं आयेगे । सास ससुर देवर सब परेशान हो गए। अब क्या होगा समाज में बहुत बदनामी होगी।

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बड़ी बहू को भी लगने का लगा कि मेरे कारण ऐसा हो रहा है उसने दीपक से बात की और विद्यालय के पास एक मकान किराए पर ले लिया। दीपक का भी एमबीबीएस पूरा हो गया था। गीतांजलि को घर छोड़ने में बहुत दुख हो रहा था परंतु बड़ी बहू होने के नाते उसका कर्तव्य था घर के सम्मान को बचाना। गीतांजलि के घर छोड़ने के बाद सीमा घर आ गई । गीतांजलि के जाने से सीमा तो खुश थी पर सास ससुर बहुत दुखी थे। लेकिन घर को बचाने के लिए गीतांजलि को यह त्याग करना ही पड़ा ।सास ससुर ने सीमा को बहुत समझाया ..

.पर  वो टस से मस नहीं हुई गीतांजलि ने बड़ी बहू होने का कर्तव्य निभाया। सास ससुर बहुत दुखी रहने लगे। गीतांजलि के जाने के कुछ महीनो बाद मझली बहू सीमा को महसूस हुआ कि मुझसे गलती हो गई और वह गीतांजलि के पास एक दिन पहुंचकर उससे माफी मांगी दीदी मुझे माफ कर दीजिए। गीतांजलि ने उससे प्यार से गले लगा लिया। कल का भूला समय पर वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। गीतांजलि को घर में फिर से देखकर के सास ससुर बहुत खुश हो गए और उनकी आंखों में आंसू आ गए। सासू मां ने दोनों बहूओ को गले से लगा लिया।  पुनः एक बार बड़ी बहू का गृह प्रवेश हो गया।

 स्वरचित एवं मौलिक 

विनीता महक गोण्डवी

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