कुंभ जाने की बातें रोज सरोज अपने पति से करती… आस पड़ोस रिश्तेदार सभी जा चुके हैं.. अजी हम दोनों हीं अभागे हैं जो अब तक नहीं जा पाए.. रमेश बोलता चले तो जाए पर मईया का क्या करें.. सरोज अपनी सास को कोसने लगती बुढ़िया मरती भी नहीं है…. हमे खा कर दुनिया से जाएगी..
बूढ़ी सास कमला बेबस लाचार आंसू बहा कर चुप हो जाती.. कुछ बोलने का मतलब था जो बचा खुचा बासी खाना मिल जाता था वो भी बंद हो जाता.. रमेश का बेटा कलकत्ता में नौकरी करता था और बेटी का ब्याह कर चुका था.. पिताजी ने जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा मकान बनाने के लिए खरीदा था जिसे रमेश की पत्नी ने
धोखे से ससुर के अंतिम समय में अपने परिचित वकील के सलाह से अंगूठा लगवा कर अपने नाम कर दिया था.. इसी कारण रमेश का छोटा भाई सुरेश भाई बहन मां से हमेशा के लिए रिश्ता खतम कर लिया था.. रमेश की मां की मजबूरी थी रमेश के साथ रहना.. घर के काम भी जितना हो सकता था करती थी… फिर भी रमेश की पत्नी उसे सुनाती रहती..
सरोज ने पति को खूब समझाया ये महाकुंभ है… एक सौ चौवालीस साल के बाद हीं फिर आयेगा.. रमेश बोला मईया का क्या करें.. सरोज बोली तीसरे दिन हम लौट आयेंगे.. खाने पीने की पूरी व्यवस्था कर के जायेंगे….. जो हम बना के ले जाएंगे उसमें से भी रख देंगे..और फिर दोनों कुंभ के लिए निकल गए… बाहर से ताला बंद कर दिया…
रमेश की मां एक दिन बसी चावल नमक से खा कर गुजारा… दूसरे दिन थोड़ा सा चूड़ा था उसे पानी में भीगों कर नमक से खाया… तीसरे दिन के लिए कुछ नहीं था… रमेश और सरोज कुंभ के बाद अयोध्या चले गए राम लल्ला के दर्शन के लिए… फिर वहां से वाराणसी का प्रोग्राम बन गया.. पर घर में बूढ़ी मां कैसे गुजारा करती होगी ये नहीं सोचा…
तीसरे दिन रमेश की मां पानी पीकर किसी तरह दिन रात गुजारा… भूख और कमजोरी से मुंह से आवाज नहीं निकल रहा था…. धीरे धीरे कराहती आवाज में लोगों को पुकारती पर पड़ोसी सुन नहीं सके… एक दिन मुहल्ले के बच्चे रमेश के दरवाजे के पास खेल रहे थे अचानक अंदर से दरवाजा पीटने की धीमी आवाज के साथ किसी की आवाज भी आ रही थी.
. बच्चे डर गए और भूत भूत कह कर भाग खड़े हुए… बच्चों के घरवाले रमेश के दरवाजा के पास गए.. तो उन्हें भी किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी… उनलोगों ने थाने में खबर की… कुछ लोगों ने रमेश की बहन को फोन किया… थोड़ी देर में पुलिस ने पड़ोसियों की मौजूदगी में दरवाजे की तोड़ा…
अंदर का दृश्य देख सब के रोंगटे खड़े हो गए… रमेश की मां के मुंह में प्लास्टिक और पेपर था और वो बेहोश थी… पड़ोस के डॉक्टर को बुलाया गया.. उन्होंने पानी का छींटा दिया… कमजोरी और भूख से उनकी स्थिति बहुत खराब हो गई थी… बेटी भी थोड़ी देर के बाद आ गई.. इधर बेटा बहु तीर्थ यात्रा कर रहे थे…
पर जो गुनाह उन्होंने किया था उसका प्रायश्चित कभी हो पाएगा… तीर्थ यात्रा से आने के बाद उन्हें पुलिस पकड़ कर ले गई… बेटी अपने साथ मां को ले जाने के लिए रुक गई… तीन दिन बाद हॉस्पिटल से छुट्टी मिलने पर बेटी के घर चली गई बूढ़ी मां.. #ऐसे हीं कुछ गुनाह होते हैं जिनका प्रायश्चित नहीं होता…#.
वीणा सिंह