लड़की भी गलत होती है – संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

” खानदान की बड़ी बहू बनकर जा रही हो बेटा पूरे खानदान को एक सूत्र मे पिरो कर रखना तुम्हारा फर्ज होगा !” बारात आने से पहले आनंद बाबू ने बेटी दीक्षा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।

” पापा क्या सारे फर्ज बहू को ही निभाने होते है , मैं उस घर मे जा रही हूँ पर बाकी सब वहाँ पहले से रहते है फिर सबको एक सूत्र मे बांधे रखना मेरा फर्ज कैसे है ?” पिता की लाडली दीक्षा बोली।

” बेटा तुम उस घर के कायदे , वहाँ के लोगों को अच्छे से नही जानती , कल को किसी की बात बुरी लगे तो समझदारी से काम लेना जिससे घर बिखरे ना , बस यही कहना चाहते है तुम्हारे पापा !” दीक्षा की माँ मधु ने समझाया। 

” पापा बारात आने मे कुछ ही समय बचा है !” तभी दीक्षा का भाई समर्थ वहाँ आकर बोला। 

” हां बेटा चलो !” आनंद बाबू ये बोल वहाँ से चले गये बारातियों का स्वागत करने को । मधु भी उनके पीछे हो ली । सबने मिलकर बारातियों के स्वागत मे कोई कसर ना छोड़ी । सब बारातियों के पंडाल मे प्रस्थान करते ही मधु और आनंद बाबू स्टेज की तरफ दौड़े क्योकि जयमाला से पहले वहाँ भी कुछ रस्मे निभाई जानी थी । 

थोड़ी देर बाद जयमाला के लिए दीक्षा को लाया गया । सुर्ख लाल और सुनहरी जोड़े मे सजी दीक्षा किसी परी से कम नही लग रही थी । कम तो उसको ब्याहने आया देवांश भी नही लग रहा था सुनहरी शेरवानी मे वो भी किसी सल्तनत का राजकुमार लग रहा था । लोग दोनो की जोड़ी देख खुश हो रहे थे ।

बड़ी बहू – सुनीता मुखर्जी “श्रुति” : Moral Stories in Hindi

सधे सधे कदमो से जैसे जैसे दीक्षा स्टेज की तरफ बढ़ रही थी वैसे वैसे आनंद बाबू को दीक्षा का बचपन याद आ रहा था । कभी पिता की आवाज़ सुन दरवाजे पर दौड़ कर आती दीक्षा , कभी पिता के ऑफिस जाने पर देर तक दरवाजे पर खड़ी रहती दीक्षा , कभी किसी चीज को मचलती दीक्षा और कभी पिता के बीमार पड़ने पर नन्हे नन्हे हाथो से दवाई खिलाती दीक्षा। 

ये सब सोचते सोचते खुशी की इस बेला मे आनंद बाबू की आँखों से आँसू उमड़ पड़े । ये आँसू खुशी से नही अपनी नन्ही सी गुड़िया को विदा करने के दर्द से बहे थे ।

” क्या हुआ जी ?” उनकी आँखों मे आँसू देख मधु ने पूछा !

” मधु कुछ घंटो मे हमारी दीक्षा पराई हो जाएगी !” आनंद बाबू रुधे गले से बोले।

” ये तो रीत है दुनिया की आज एक बेटी पराई हो रही कल दूसरी आएगी भी । फिर हमारी लाडो को कितना अच्छा घर परिवार मिला है ये तो खुशी की बात है ना !” मधु जी बोली। 

थोड़ी देर बाद गम और खुशी के मिले जुले भावों के साथ मधु और आनंद बाबू ने बिटिया का कन्यादान किया और बेटी को विदा कर दिया । 

दीक्षा अपने पिया के साथ ससुराल आ गई । यहां भी कुछ रस्मो के बाद उसे उस कमरे मे लाया गया जहाँ वो देवांश के साथ एक नए रिश्ते की शुरुआत करने वाली थी । सजी संवरी दीक्षा कमरे का मुआयना कर रही थी तभी देवांश कमरे मे आया तो वो सकुचाई सी निगाह नीची कर बैठ गई। 

” बहुत प्यारी लग रही है आप !” देवांश के इतना बोलते ही शरमा कर मुस्कुरा दी दीक्षा। 

क्यों संदेह के कटघरे में हमेशा औरत ही खड़ी की जाती है – गीतू  महाजन

अगले दिन दीक्षा पगफेरे की रस्म के लिए मायके गई और शाम को लौट आई क्योकि दो दिन बाद उन्हे हनीमून के लिए बाली निकलना था। 

बाली जैसी हसीन जगह पर दोनो का रिश्ता मजबूत कड़ी से जुड़ गया था । दस दिन बाली मे बिता जब दीक्षा वापिस लौटी तब उससे रसोई की रस्म भी करा दी गई । हालाँकि दीक्षा की सास एक आधुनिक विचारों की महिला थी साथ ही समझदार भी वो दीक्षा का भरपूर सहयोग कर रही थी परिवार के सभी लोगो की पसंद – नापसंद जानने मे साथ ही खाना बनाने मे भी । 

वक्त बीतता गया दीक्षा की शादी को दो महीने से ज्यादा हो गये शादी के बीस दिन बाद वो वापिस नौकरी पर भी जाने लगी थी । घर मे सफाई बर्तन को सहायिका थी जो रसोई मे भी सहयोग देती थी । खाना बनाने का काम दीक्षा और उसकी सास आरती करती थी । दीक्षा बहुत अच्छे से ससुराल के वातावरण मे ढल गई थी । देवर , सास -ससुर सबसे उसका रिश्ता प्यार और सम्मान वाला था। 

शादी के छह महीने बाद दीक्षा के भाई के जन्मदिवस पर दीक्षा के माता पिता ने दीक्षा के ससुराल वालों को सादर आमंत्रित किया वैसे भी अभी तक दीक्षा के ससुराल वाले शादी के बाद केवल एक बार दीक्षा के मायके गये थे उसके पग फेरे पर उसे लेने । 

इसलिए आनंद बाबू और मधु ने सोचा इस बहाने सब साथ बैठ कुछ समय व्यतीत करेंगे । 

” नमस्कार सोमेश जी ( दीक्षा के ससुर ) नमस्ते आरती भाभी जी आइये विराजिये !” आनंद बाबू ने समधी – समधन का स्वागत किया ।

” नमस्कार आनंद बाबू और भाभी जी ! अब समर्थ बेटा की शादी कर दीजिये जिससे घर मे रौनक आ जाये !” सोमेश जी हँसते हुए बोले। 

” जी बिल्कुल कोई अच्छा रिश्ता हो तो बताइये वैसे आप सारांश ( देवांश का भाई ) बेटे की शादी कब कर रहे है । हमारी दीक्षा को भी एक सहेली मिल जाएगी ।” आनंद बाबू बोले। 

उतरन  – रश्मि पीयूष

” जी बस उसके रिश्ते की बात तो चल रही है इस साल इस जिम्मेदारी से भी फ़ारिग हो जाएगे । फिर दीक्षा घर की बहू से बड़ी बहू बन जाएगी और अपनी देवरानी को सब सिखाएगी हम तो फिर आराम करेंगे !” आरती हँसते हुए बोली। 

” वैसे भाभी जी एक बात बताइये आप हमारी बेटी से खुश तो है ना , कोई परेशानी तो नही ?” अचानक आनंद बाबू ने पूछा उनका सवाल सुन सोमेश और आरती थोड़ा हैरान हुए क्योकि अक्सर ऐसे सवाल तो माँ बाप बेटी से पूछते है कि वो ससुराल मे खुश तो है !

” हम समझे नही आपकी बात !” सोमेश बोले ।

 ” सोमेश जी वो क्या है ना हमारी बेटी घर संभालने मे थोड़ी कच्ची है । पढ़ाई लिखाई और नौकरी मे समय ही नही मिला। फिर हमारी ज्यादा ही लाडली भी रही है तो बस हमें ये जानना है कि वो ससुराल मे आप लोगो से घुल मिल तो गई ना , कोई परेशानी तो नही आ रही आप लोगो को उसके साथ?। ” आंनद बाबू ने पूछा। 

” अरे भाई साहब आप तो जग से निराली बात कर रहे है भला कोई माँ बाप बेटी के ससुराल वालों से ये पूछते है कि उन्हे उनकी बेटी से परेशानी तो नही । ये बात तो आपको अपनी बेटी से पूछनी चाहिए !” सोमेश जी हँसते हुए बोले। 

” भाई साहब बेटी के साथ एक बेटे का पिता भी हूँ और आजकल के मोहोल को देखते हुए बेटी से ज्यादा बेटों की चिंता होती है क्योकि बेटी के चेहरे की चमक से हर माता पिता को पता लग जाता है उनकी बेटी ससुराल मे खुश है पर ससुराल वाले खुश है या नही ये कैसे पता लगे , ससुराल वाले खुश भी हो पर लड़का खुश है

या नही ये कैसे पता लगे क्योकि लड़के तो वैसे भी घुटते है मन ही मन । जैसे मैं ये नही चाहता कि कल को किसी की बेटी मेरे घर आ मेरे घर के टुकड़े करे वैसे ही मैं ये भी नही चाहूंगा

दिल का कारीगर – संजय मृदुल

कि मेरी बेटी किसी के घर के टुकड़े करे । वो बड़ी बहू बनने वाली है छोटी के लिए वो एक उद्धारण होगी और मैं नही चाहता वो उद्धारण गलत हो !” आनंद बाबू हाथ जोड़ बोले । गला भर सा आया सोमेश का उन्होंने झट आनंद बाबू के हाथ अपने हाथों मे ले लिए । 

” भाई साहब आप जैसे माँ बाप हो तो कोई बेटी कैसे किसी घर को तोड़ सकती है । आपने बहुत अच्छे संस्कार दिये है अपनी बिटिया को । रही घर गृहस्थी मे कच्ची होने की बात तो कोई दिक्क़त नही वैसे भी हमें बहू चाहिए थी जो हमारे घर मे खुशियां लाये जो दीक्षा बाखूबी कर रही है । वैसे मुझे भी आपसे एक सीख मिली है मैं भी अब अपने बेटे के साथ साथ बहुओं से भी पूछूंगी वो खुश तो है , उन्हे कोई परेशानी तो नही !” मधु बोली उनकी बात सुन सब हंस दिये।

” देख लो पापा सब कितने खुश है मुझसे , एक आप हो हमेशा मुझसे एक ही सवाल करते हो तुम्हारे ससुराल वालों को तुमसे कोई दिक्क़त तो नही , देवांश बाबू खुश तो है इस शादी से ? अब पता लग गया आपकी बेटी से किसी को कोई तकलीफ नही !” उनकी बात सुन दीक्षा बोली।

” बेटा ऐसे ही सबको खुश रखना , तुम बड़ी बहू हो घर की तुम्हारी जिम्मेदारी भी हमेशा बड़ी रहेगी !” आनंद बाबू बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले।

” मैं जानता हूँ भाई साहब आजकल जो चल रहा उसे देखते हुए हमें अपने बेटों की भी उतनी ही फ़िक्र होती जितनी बेटियों की पर सब एक से नही होते । फिर जब हम अपने बेटे और बेटी दोनो को संस्कारों से सींचेगे तो वो हर जगह अपनी मजबूत जड़ बना लेंगे ना कि किसी घर की नींव हिलायेगे ।” सोमेश बोले।

” बिल्कुल सही कहा आपने अब मैं चिंता मुक्त हो गया !” आंनद बाबू हँसते हुए बोले।

मां का अंधविश्वास या भेदभाव – शुभ्रा बैनर्जी 

” पर मुझे पता है आप आगे भी मुझसे वही सवाल पूछेंगे क्योकि आप बदलेंगे तो है नही !” दीक्षा हँसते हुए बोली तो सब ठहाका लगा हंस पड़े। थोड़ी देर मे केक काटा गया और फिर खाने के बाद बातों का दौर चला जो देर रात तक चला। 

दोस्तों सबको अपने बच्चो की फ़िक्र होती है और होनी भी चाहिए पर जब हम किसी से अपने बच्चो का रिश्ता जोड़ते है तो सामने वाले और उसके घर वालों की खुशियां भी मायने रखती है । मैं ये नही कहती हर लड़की गलत होती है पर आजकल जो कुछ केस सुनने को मिल रहे उससे ये तो बात साफ है कि लड़की भी गलत होती है । 

 

आपकी दोस्त 

संगीता अग्रवाल

#बड़ी बहू

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!