चकरघिन्नी सब उसे पुकारते थे।
बचपन से वह चंचल स्वभाव की
थी। एक जगह कभी टिकती नहीं थी।कभी इधर तो कभी उधर।मुहल्ले का हर घर जैसे उसका अपना हो। और घर वाले सब दादी,नानी,काकी,दीदी,भैया,चाचा
चाचा होते थे।
वह थी भी इतनी प्यारी कि उसकी नादानी भरी
हरकतों से भी कोई नाराज नहीं
होता था। ईश्वर ने उसे जैसे फुर्सत के समय गढ़ा था l गोरा रंग, नीली आंखे,घुंघराले बाल उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे
माता-पिता की इकलौती लाडली सन्तान होने की वजह से उनका भी भरपूर प्यार मिलता था lसभी
उसे अत्यधिक प्यार करते थे l जैसे- जैसे वह बड़ी होती गई उसके व्यवहार में परिवर्तन दिखाई देने लगाl उसे किसी को चिढ़ाने में मजा आने लगा।कभी
किसी के चूल्हे पर पानी फेंक देती। किसी बच्चे को खामख्वाह रुला देती और खुश होती,फ़िर इतनी जल्दी वहाँ से गायब होती थी कि कोई उसे ढूंढ नहीं पाता ।’
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जब कोई उलाहना ले कर उसकी
माँ के पास आता तो वह यही
कहती—–” आप चाहे जो सजा दे दो। मैं तो हार मान गई क्या करूँ
इस चकरघिन्नी का।”
फिर शिकायत करने वाला लौट
आता थाl दरअसल दिल से कोई
उससे गुस्सा नहीं होता था l
जैसे-जैसे वह बड़ी होती गई समाज मे उसका मिलना जुलना
बढ़ते गयाl किसी के दुःख-सुख में वह हाजिर हो जाती थीl किसी
को अपनी बातों से खुश कर देतीl
किसी की सेवा-टहल भी कर दिया करती थी lमुहल्ले की किसी भी लड़की की शादी में तो वह खुशी से झूम उठती थी l फ़िर क्या मजाल की वह घर जाए।
दूसरे के घर ही उसका रहना होता थाl इस दौरान उसका नाचना-गाना जारी रहता था l यानि शादी वाले घर में रौनक बनाए रखती थी।
धीरे-धीरे जब वह सोलहवें
साल में पहुंची तो उसके माता-पिता को उसके विवाह की चिंता सताने लगी l अभी से वे योग्य वर
की तलाश में रहने लगे l क्योंकि
वे जानते थे की वर की तलाश में
समय लगेगा और तब तक चकरघिन्नी अट्ठारह साल की हो
जाएगी।
इधर चकरघिन्नी ने अपना वर स्वंय चुन लिया। हुआ ऐसा कि मुहल्ले में एक बरात आई थी। चूँकि गाँव की बरात थी,
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उसमें कई तरह के बाराती सम्मिलित थे l
कुछ मामूली कपड़ों में थे कुछ
आधुनिक कपड़ों में । उसी में
एक बाराती ऐसा था, जिस पर
उसका दिल आ गया।
वह लड़का बहुत ही खूबसूरत और स्मार्ट था। सूट-बूट में उसका
व्यक्तित्व बहुत निखर रहा था l
उस लड़के के ऊपर उसका दिल
इस तरह आ गया कि तुरत ही उसने मन बना लिया कि उसी
लड़के से विवाह करेगी। तुरत वह अपनी मां को बुलाकर ले आई
और अपनी मंशा जाहिर की।
उसकी मां ने घर जा कर उसके पिता से इस विषय में
बात की। पिता पहले तो बेटी की
फर्माइश से स्तब्ध रह गए । फिर
सोचा आखिर कहीं तो शादी करनी है,अच्छा होगा यदि बेटी के
पसंद का ही लड़का हो। उन्होंने
उसी लड़के का पता लगाया और
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बेटी का रिश्ता ले कर गए।लड़के
वाले को ये रिश्ता मन को भा गया और शादी पक्की हो गई ।
महीने भर के अंदर
विवाह संपन्न हो गया। उसकी
विदाई के समय सारा मुहल्ला
रो पड़ा।सब की लाडली जो थी ।
उसकी चुहलबाजी ने ही उसे सब का अजीज बना दिया था । सब
को रोते-बिलखते छोड़कर वह ससुराल पहुंची। ससुराल में उसे
हफ्ते भर घूंघट में एक जगह
रहना था। इस तरह रहना उसके
लिए सजा से कम नहीं था।हफ्त
भर बाद उसे बाहर निकलने की
इजाजत मिल गई। फिर क्या था?
वह रिश्तेदारों तथा पड़ोसियों के
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यहाँ बेधड़क जाने-आने लगी।
उसका यह रवैया ससुराल वाले
को बिल्कुल नहीं भाता था। नयी
नवेली दुल्हन से ऐसी हरकत किसी को पसंद न थी ।पर चकरघिन्नी के पैर में तो चक्र था,वह इधर-उधर किए बिना रह
नहीं सकती थी। कभी-कभी किसी के चूल्हे में पानी डाल आती थी और जब उस पर कोई गुस्सा करता तो बजाय नाराज होने के
खुश हुआ करती थी l कभी किसी सोयी हुई हमजोली के चेहरे पर
रंग पोत आती थीl ऐसा नहीं था
कि वह सिर्फ खुराफात ही करती
थी,बड़े बुढ़े के तकलीफ़ के दिनों
मैं सेवा टहल भी कर आती थी l
लेकिन उसके अच्छे गुणों को नहीं देख पाए और एक दिन उसकी सासु माँ ने उसके पति को खत
लिखा कि वह अपनी पत्नी को
अपने पास बुला लेl उसका पति
कलकत्ते की एक कंपनी में कार्यरत थाl खत पाकर पति आया और उसे अपने साथ ले
गयाl कलकत्ते मे पति का छोटा
सा एक कमरे का फ्लैट थाl
पत्नी के आ जाने से वह बहुत
खुश थाl कुछ ही दूरी पर उसका
कम्पनी थाl अतः उसने उसे कहा
कि दोपहर का लंच वह कम्पनी
में पहुंचा दिया करेl वह खुशी-खुशी लंच पहुंचाने लगीl लेकिन
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ईश्वर को उसकी खुशी देखी नहीं
गईl एक दिन अचानक से रोड क्रॉस करते वक्त दुर्घटनाग्रस्त हो
गईl बच तो गई किन्तु काफ़ी चोट
आईl खास कर उसका एक पैर
क्षतिग्रस्त हो गया।हड्डियों में
चोट के कारण सर्जरी भी करानी
पड़ी। अन्दर कुछ स्टील के प्लैट
और स्क्रू लगाये गए।पैर तो उसका काम लायक सही हो गया किन्तु अब वह पहले जैसा दौड़-भाग नहीं कर सकती थी।उसकी इच्छा होती थी कि वह पहले की तरह ही उछल-कूद करे।नहीं कर पाती थी तो उदास हो कर बैठ जाती थी।इस तरह उसके मूल प्रवृति में
आप ही आप परिवर्तन आ गया ।
अब वह बिल्कुल शांत हो गई।
चक्करघिन्नी की अब अपने नाम
को सार्थक नहीं कर पा रही थी।
जिसे उसका रवैया पसन्द नहीं था वे लोग तो खुश हुए किन्तु वह उदास रहने लगी। जैसे बहती नदी पर बांध बना दिया गया हो।
स्वरचित
डा.मंजु लता
नोएडा
17/2/2025