पैसे का गुरूर – सिम्मी नाथ : Moral Stories in Hindi

निशा के कक्ष में प्रवेश करते ही सारी सहेलियों ने उठकर उनका स्वागत किया और गले से लगा लिया ।

आते ही उन्होंने ऊपर की तरफ़ देखकर कहा , अरे रेखा ए ० सी ० चलाओ न ! रेखा जी ने सिर नीचा कर कहा ,

वो मेरे घर में ए ० सी नहीं है । इसपर निशा जी ने बुरा सा मुँह बनकर बोला ,भाई, मैं तो इतनी गर्मी में मर जाऊँगी।

कला तुमने क्यों नहीं बताया , मैं किसी अच्छे होटल में पार्टी कर लेती ।

निशा की बातों से रेखा जी की आँखें झुक गईं, उन्हें नहीं पता था  ,

जिनके लिए इतनी गर्मी में सुबह से किचन में लगकर इतने पकवान बना रही थीं, वो आते ही ऐसी बेरुखी दिखाएंगी। 

निशा  जी अपने डायमंड सेट दिखाते हुए बोलीं, देखो पिछले महीने राहुल ने दुबई से ये सेट भिजवाया है।

  उनकी बातें सुनकर विभा जी ने चुटकी ली ,आपकी तो किस्मत लाज़वाब है ,नौकर , चाकर,बंगला जीवन तो आप जी रही हैं भई !

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रेखा जी के पति प्राइवेट बैंक में क्लर्क थे , बच्चे बाहर पढ़ रहे थे , उनका खाली समय कहलानियोँ  पढ़ने में निकलता ,

वो तो उस दिन को कोस रही थी ,जब मार्केट में पूनम जी मिली थी, और उन्होंने हैप्पी क्लब * का मेंबर बनाया था,

वो किट्टी पार्टी में ऐसी दिखावे  की बातों से बिल्कुल अंजान थी ।

निशा जी के पास रिश्ते के नाम पर कोई नहीं था, पति भी दुबई में रहते थे,  बच्चे अपनी दुनिया में मग्न थे ,

किंतु उनके पास पैसे थे , जिसके गुरूर में वो आए दिन शहर के अखबारों में छाई रहती थीं,

कभी गरीबों को कंबल बांटते हुए, कभी अनाथ आश्रम में खाना खिलाते हुए उनकी तस्वीरें दिख जाती ,

इसी कारण उनके पैसों का गुरूर * बढ़ता जा रहा था।

सिम्मी नाथ

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