दरवाजे पर ताला लगाते ही मेघना के आंख से आंसू बह निकले ।चाभी ने मकान मालिक अधिराज जी को पकड़ा दिया।और बाहर से ही खड़े खड़े मकान और उसकी चारदीवारी को निहारे जा रही थी।पांव ही नहीं आगे बढ़ रहे थे घर छोड़कर जाने की कितनी पीड़ा थी मन के अंदर ।एक अनकहा सा दर्द था जो किसी से कहा नहीं जा सकता था।
मां ओ मां अब चलो भी देर हो रही है अब तक घर को देखती रहोगी अमित बोला ।अब ये घर बिक गया है अपना नहीं रहा अधिराज अंकल का हो गया है। चलो अब बहुत हो गया देखना दिखाना। मेघना मन मार कर आंसुओं को छुपाती हुई कार में आकर बैठ गई। आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा था जो रूकने का नाम ही नहीं ले रहा था ।
मेघना खिड़की खोल कर बाहर शून्य में देख रही थी और आंख से आंसू निरंतर बह रहे थे। सोंच रही थी कैसा अनकहा दर्द था जो कहा नहीं जा सकता था । शून्य में देखते देखते मेघना अतीत में खो गई।
मेघना दुल्हन बनकर विजय के साथ दो कमरे के किराए के मकान में आई थी। मेघना ,विजय और एक छोटी ननद और बूढ़ी सास थी घर में ।यही पर आकर मेघना ने अपना वैवाहिक जीवन शुरू किया था।विजय एक प्राइवेट कंपनी में काम करते थे घर का किराया और बहन की पढ़ाई लिखाई का सब खर्चा विजय को ही करना पड़ता था।
अपनी ज़िम्मेदारी समझो – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi
विजय के पापा की बहुत समय पहले एक एक्सीडेंट में मौत हो गई थी ।विजय के दादा जी स्कूल में प्रिंसिपल थे तो कुछ उनकी पेंशन भी आती थी और घर का खर्च चलाने के लिए अब मेघना भी टीचिंग करने लगीं थीं।
कुछ समय पहले विजय के दादा जी का देहांत हो गया तो पेंशन बंद हो गई । गांव में एक छोटा सा मकान था दादा जी का दादा जी के न रहने पर उसको बेच कर शहर में एक घर लेने की सोची क्यों कि आगे की पढ़ाई के लिए बच्चों को अच्छे स्कूल की जरूरत थी ।ननद की भी शादी हो चुकी थी
और शहर में किराए से रहना मुश्किल था तो शहर में जोड़ तोड़ करकें एक छोटी सी जगह ले ली । फिर थोड़ा लोन और कुछ अपने पैसे लगाकर किसी तरह मेघना ने एक छोटा सा घर बना लिया था।
अमित मेघना का बेटा अब बड़ा हो गया था होशियार भी था पढ़ने लिखने में ।अच्छा पढ़-लिखकर अब नौकरी पर आ गया था तो मेघना को थोड़ी राहत मिल गई थी। मल्टी नेशनल कंपनी में नौकरी करने लगा था अमित । फिर अपने आफिस की ही एक लड़की काव्या से शादी करने की इच्छा जताई तो मेघना और विजय मान गए और दोनों की शादी हो गई । दोनों की एक ही कंपनी में नौकरी थी और दोनों ही हैदराबाद में रहते थे ।और मेघना और विजय अपने घर में।
हंसी खुशी समय बीत रहा था कि एक दिन विजय स्कूटर से बाजार कुछ सामान लेने गई थे । तभी डम्पर ने पीछे से टक्कर मारी थी स्कूटर में ।और विजय गिर पड़े स्कूटर से सड़क पर पड़े एक पत्थर से उनका सिर टकराया और वो बेहोश हो गए ।
अचानक से मेघना के फोन पर विजय का फ़ोन आया जब मेघना ने उठाया तो कोई अपरिचित व्यक्ति की आवाज सुनकर चौंक गई । उसने बताया कि जिसका मोबाइल है उनका एक्सीडेंट हो गया है आप फौरन आ जाए ।विजय को अस्पताल में भर्ती कराया गया । मेघना ने अमित को फोन किया उसको आने में थोड़ा समय तो लगेगा डाक्टरों ने विजय के सिर का आपरेशन करने को बताया ।
अमित आ चुका था और विजय का आपरेशन भी हो चुका था लेकिन जो समय डाक्टर ने बताया था होश आने का उस समय पर होश आने का उस समय पर होश नहीं आया । ऐसे ही पच्चीस दिन निकल गए और फिर विजय की मौत हो गई ।
अंतिम संस्कार करने के बाद तीन दिन बाद अमित और बहू काव्या वापस हैदराबाद चले गए आखिर नौकरी भी तो करनी थी ।अब यहां मेघना अकेली रह गई ।तो अमित परेशान रहता कि मम्मी वहां अकेली कैसे रहेगी । अमित ओर काव्या ने फैसला किया कि वहां का मकान बेचकर अब यही हैदराबाद में एक बढ़िया सा फ्लैट ले लेते हैं
और मम्मी को यही ले आते हैं । हैदराबाद में फ्लैट लेना भी था अमित को लेकिन बड़े शहरों में फ्लैट लेना आसान नहीं होता है काफी पैसा लगाना पड़ता है । अमित ने मेघना से कहा मां वहां का मकान बेचकर यहां फ्लैट ले लेते हैं और तुम भी वहां अकेले कैसे रहोगी यही मेरे पास रहो आकर।
तो मेघना ने कहा नहीं अमित मैं मकान नहीं बेचूंगी कभी यहां तो कभी वहां रह लेंगे ।ये कैसे संभव होगा मम्मी। नहीं बेटा मकान नहीं बेचना है । मेरे सपनों का घर है ,तुम लोगों का बचपन बीता यहां ,कितनी यादें जुड़ी हैं इस मकान से । नहीं नहीं मैं मकान नहीं बेचूंगी। लेकिन मम्मी फिर वहां रहेगा कौन,आप अकेले हो।
मैं रह लूंगी अकेले बेटा तुम लोग बीच बीच में आते जाते रहना। नहीं मम्मी ऐसा संभव नहीं है ।वहीं का मकान बेचकर यहां पर एक अच्छा सा फ्लैट ले लेते हैं । लेकिन मेघना मकान को बेचने को बिल्कुल भी तैयार नहीं हो रही थी जब भी मकान बेचने की बात आती मेघना दुखी हो जाती।
लेकिन छै महीने बाद आज वो दिन भी आ गया कि मकान बिक गया।और मेघना को सबकुछ छोड़कर अमित के साथ जाना पड़ गया।ऐसा अनकहा दर्द था मेघना के मन में मकान बिकने का कि वो कुछ कह भी नहीं पा रही थी। अमित बोला क्या मम्मी इतना क्या परेशान होना मकान के बिक जाने पर ।
तुम लोग नहीं समझोगे बेटा। बहुत तकलीफ़ होती है उस घर को छोड़ना जिसमें आप जिंदगी का एक लम्बा सफर तय किए हैं । कितने हंसी खुशी के पल,सुख दुख के साथी होते हैं ये मकान। कितने सपनों के पूरे होने के साक्षी बनती है ये दीवारें। कितने सपने देखते हैं हम इस छत के नीचे।इसको छोड़ना इतना आसान नहीं होता है।
बहुत अनकहे दर्द को सहना पड़ता है।पर यह तो नियति का खेल है सबकुछ देखना पड़ता है जो हम सोचते भी नहीं है।जब हमारी उमर पर आओगे तब समझोगे।
दोस्तों बहुतों के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब परिस्थितियों वश हमको अपनी जड़ों को छोड़कर कहीं और बसने जाना पड़ता है । बहुत दुखद होता है ये क्षण।अपनी जड़ों को छोड़कर कहीं और बसना आसान नहीं होता है । जिंदगी भर की टीस मिलती है ।जब तक जिन्दा रहते हैं अपने को इस दर्द से मुक्त नहीं कर पाते हैं ।
आप भी बताइए कभी आपके जीवन में ऐसी घटना घटी है। मैंने तो अपने सामने ही देखा तो उसपर कहानी लिख दी । बहुत दर्द देता है अपनी जड़ों को छोड़कर जाने में ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर
12 फरवरी